अमित शाह (Amit Shah) ने गुजरात में तीन साल पहले कांग्रेस से मिली शिकस्त का चुनावी बदला ले लिया है. 2017 में हुए राज्य सभा चुनाव में अमित शाह ने अहमद पटेल को हराने के लिए सारी ताकत झोंक दी थी. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भी अहमद पटेल के लिए कांग्रेस के सारे सीनियर नेताओं को काम पर लगा दिया था - गुजरात से ही आने वाले अहमद पटेल खुद भी आखिरी दम तक लड़ते रहे और आखिरकार अपनी सीट बचा भी ली.
अमित शाह अपना चुनाव तो जीत चुके थे लेकिन वो चाहते थे कि अहमद पटेल किसी भी तरीके से हार जायें, अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के नेताओं और मंत्रियों की परेड कराने के बावजूद अमित शाह को शिकस्त ही झेलनी पड़ी थी - अमित शाह को तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का शुक्रगुजार होना चाहिये कि कांग्रेस नेता ने बीजेपी की राह आसान करते हुए मंजिल तक पहुंचा दिया.
अमित शाह ने ऐसे लिया बदला
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को तो बस मौके का इंतजार था - क्योंकि तीन साल पहले गुजरात के राज्य सभा चुनाव में वो मन मसोस कर रह गये थे. अमित शाह और सोनिया गांधी के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई जो बन गयी थी.
2017 का राज्य सभा चुनाव: गुजरात में हुए राज्य सभा चुनाव में वोटों की गिनती के दौरान सवाल तो वैसे ही उठे जैसे 2017 में उठे थे, लेकिन इस बार चुनाव आयोग तक जोर आजमाइश तक की नौबत नहीं आयी. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि इस बार अहमद पटेल जैसा कोई कद्दावर उम्मीदवार नहीं था जिसकी जीत के लिए सोनिया गांधी ने भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया हो.
गुजरात से राज्यसभा की 4 सीटों में से 3 पर तो बीजेपी ने कब्जा जमा लिया, लिहाजा कांग्रेस के हिस्से में एक ही सीट बच पायी. चुनाव में बीजेपी के अजय भारद्वाज, नरहरि अमीन, और रामिलाबेन बारा ने जीत हासिल की तो कांग्रेस उम्मीदवार शक्तिसिंह गोहिल भी राज्य सभा पहुंचने में कामयाब रहे.
2017 में अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत तो पक्की थी, लेकिन बीजेपी ने तीसरी सीट पर बलवंत सिंह राजपूत को उम्मीदवार घोषित कर दिया जिससे अहमद...
अमित शाह (Amit Shah) ने गुजरात में तीन साल पहले कांग्रेस से मिली शिकस्त का चुनावी बदला ले लिया है. 2017 में हुए राज्य सभा चुनाव में अमित शाह ने अहमद पटेल को हराने के लिए सारी ताकत झोंक दी थी. सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) ने भी अहमद पटेल के लिए कांग्रेस के सारे सीनियर नेताओं को काम पर लगा दिया था - गुजरात से ही आने वाले अहमद पटेल खुद भी आखिरी दम तक लड़ते रहे और आखिरकार अपनी सीट बचा भी ली.
अमित शाह अपना चुनाव तो जीत चुके थे लेकिन वो चाहते थे कि अहमद पटेल किसी भी तरीके से हार जायें, अहमदाबाद से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के नेताओं और मंत्रियों की परेड कराने के बावजूद अमित शाह को शिकस्त ही झेलनी पड़ी थी - अमित शाह को तो राहुल गांधी (Rahul Gandhi) का शुक्रगुजार होना चाहिये कि कांग्रेस नेता ने बीजेपी की राह आसान करते हुए मंजिल तक पहुंचा दिया.
अमित शाह ने ऐसे लिया बदला
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को तो बस मौके का इंतजार था - क्योंकि तीन साल पहले गुजरात के राज्य सभा चुनाव में वो मन मसोस कर रह गये थे. अमित शाह और सोनिया गांधी के बीच प्रतिष्ठा की लड़ाई जो बन गयी थी.
2017 का राज्य सभा चुनाव: गुजरात में हुए राज्य सभा चुनाव में वोटों की गिनती के दौरान सवाल तो वैसे ही उठे जैसे 2017 में उठे थे, लेकिन इस बार चुनाव आयोग तक जोर आजमाइश तक की नौबत नहीं आयी. ऐसा इसलिए भी हो सकता है क्योंकि इस बार अहमद पटेल जैसा कोई कद्दावर उम्मीदवार नहीं था जिसकी जीत के लिए सोनिया गांधी ने भी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया हो.
गुजरात से राज्यसभा की 4 सीटों में से 3 पर तो बीजेपी ने कब्जा जमा लिया, लिहाजा कांग्रेस के हिस्से में एक ही सीट बच पायी. चुनाव में बीजेपी के अजय भारद्वाज, नरहरि अमीन, और रामिलाबेन बारा ने जीत हासिल की तो कांग्रेस उम्मीदवार शक्तिसिंह गोहिल भी राज्य सभा पहुंचने में कामयाब रहे.
2017 में अमित शाह और स्मृति ईरानी की जीत तो पक्की थी, लेकिन बीजेपी ने तीसरी सीट पर बलवंत सिंह राजपूत को उम्मीदवार घोषित कर दिया जिससे अहमद पटेल के लिए जीतना मुश्किल होने लगा. माना गया कि कांग्रेस के ही कई विधायकों ने क्रॉस वोटिंग भी की थी, लेकिन बीजेपी की तरफ से एक बहुत बड़ी गलती हो गयी.
कांग्रेस के दो बागी विधायकों भोला गोहिल और राघवजी पटेल ने बीजेपी को ही वोट देने का सबूत देने के लिए अपने वोट एजेंट के अलावा सार्वजनिक रूप से दिखा दिये थे - और एक कांग्रेस नेता ने इसी बात पर शोर मचाना शुरू कर दिया. मामला दिल्ली के चुनाव आयोग पहुंचा और अमित शाह ने केंद्रीय मंत्रियों एक पूरा जत्था ही आयोग के दफ्तर भेज दिया - लेकिन चुनाव आयोग ने भोला गोहिल और राघवजी पटेल के वोट अवैध घोषित कर दिये. अहमद पटेल चुनाव जीत गये.
2020 का राज्य सभा चुनाव: कांग्रेस ने इस बार भी बीजपी विधायक केसरी सिंह सोलंकी और भूपेंद्र सिंह चूड़ासमा के वोट रद्द करने की मांग की थी, लेकिन चुनाव आयोग ने नहीं मानी. दरअसल, गुजरात हाई कोर्ट ने चूड़ासमा के चुनाव को रद्द घोषित कर दिया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने फैसले पर रोक लगा दी है - और कांग्रेस की चुनाव आयोग में अपील खारिज होने का आधार भी यही बना.
कोरोना वायरस के प्रकोप का बहाना बनाकर मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने भले ही कुछ दिन मोहलत ले ली हो, लेकिन गुजरात में भी कोरोना वायरस की वजह से बीजेपी ने कांग्रेस को तबाह करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. जब चुनाव आयोग ने चुनाव टाल दिया तो बीजेपी को अपनी तैयारी को अगले लेवल तक ले जाने का एक्स्ट्रा मौका मिल गया. बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया.
गुजरात कांग्रेस के 8 विधायकों के इस्तीफे और अदालती मामलों की वजह से दो सीटों सहित 182 में से 10 सीटें खाली हो गयी थीं - लिहाजा 172 सीटें बची थीं. वोटिंग से पहले ही ट्राइबल पार्टी के दोनों विधायक छोटू वसावा और महेश वसावा ने ये कहते हुए मतदान में हिस्सा न लेने का फैसला सुना दिया कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों ने SC/ST, ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लिए कुछ भी नहीं किया - प्रवासी मजदूरों को भी उनके हाल पर छोड़ दिया गया. इस कारण वोटों की संख्या 170 ही रह गयी. ऐसे में हर प्रत्याशी के लिए जीत के लिए मजह 35 वोट ही जरूरी रह गये. ट्राइबल पार्टी ने भले ही अपनी राजनीतिक वजहों से दूर रहने का फैसला किया हो, लेकिन फायदा तो बीजेपी को ही मिला.
कैसे मददगार बने राहुल गांधी
तब और अब के राज्यसभा चुनाव में कई बातें कॉमन थीं, लेकिन एक बड़ा फर्क भी था. राज्य सभा चुनाव के लिए उम्मीदवार तो सोनिया गांधी ने ही फाइनल किये थे, लेकिन राहुल गांधी ने पहले से ही ऐसा माहौल तैयार कर दिया था जिसका बीजेपी ने भरपूर फायदा उठाया - और कांग्रेस एक सीट सीधे सीधे हाथ धोना पड़ा.
गुजरात विधानसभा की 182 सीटों में बीजेपी के पास 103, कांग्रेस के पास 65, भारतीय ट्राइबल पार्टी के पास 2, एनसीपी के एक और एक निर्दलीय विधायक हैं. ऐसे में मान कर चला जा रहा था कि राज्य सभा की चार सीटों में से 2 बीजेपी और 2 ही कांग्रेस को भी मिलेंगी. लॉकडाउन से पहले कोरोना वायरस की दस्तक के बीच जब मध्य प्रदेश कांग्रेस में ज्योतिरादित्य सिंधिया की वजह से भगदड़ मची तो उसकी थोड़ी बहुत आंच गुजरात तक भी पहुंची - और अब तो हालत ये है कि 2017 के विधानसभा चुनावों से लेकर अभी तक कांग्रेस के 16 विधायक पार्टी छोड़ चुके हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी नये अवतार में नजर आये थे और आगे चलकर गुजरात का प्रदर्शन ही 2018 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी की कामयाबी का आधार बना था. जब विधानसभा चुनाव के बाद तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष भरतसिंह सोलंकी ने इस्तीफा दे दिया और कांग्रेस विधायक दल के नेता शक्तिसिंह गोहिल चुनाव हार गये तो राहुल गांधी ने सारे सीनियर नेताओं को दरकिनार कर अपने पसंदीदा नेताओं को जगह जगह बिठा दिया. जैसे ही राहुल गांधी ने राजीव साटव को गुजरात का प्रभारी, अमित चावड़ा को पीसीसी अध्यक्ष और परेश धनानी को विधायक दल का नेता बनाया, अर्जुन मोढवाडिया, कुंवरजी बावलिया और सिद्धार्थ पटेल जैसे नेता उपेक्षित महसूस करने लगे - और गुजरते वक्त के साथ अपने हाथ खींचते गये.
2017 विधानसभा चुनाव के करीब साल भर बाद ही गुजरात के असंतुष्ट नेताओं ने राहुल गांधी से मुलाकात कर अपनी नाराजगी जाहिर भी की थी. नेताओं ने राहुल गांधी को बताया था कि कैसे उनके पसंदीदा नेताओं की टीम गुजरात में कांग्रेस को बर्बाद करने पर तुली हुई है. राहुल गांधी ने नाराज नेताओं की शिकायत दूर करने के लिए हामी तो भरी लेकिन अपने चहेते नेताओं को मनमानी करने की पूरी छूट दे रखी थी.
2019 के आम चुनाव में भी टीम राहुल की टिकट बंटवारे में बड़ी भूमिका रही और नाराज नेताओं की नाराजगी दूर होने की जगह बढ़ती ही गयी. नतीजा ये हुआ कि जो कांग्रेस तीन साल पहले बीजेपी को सिर्फ कड़ी टक्कर ही नहीं, बल्कि अमित शाह को चैलेंज कर शिकस्त दे डाली थी वही औंधे मुंह गिर पड़ी है.
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