‘‘सीएम योगी आदित्यनाथ के पास प्रशासनिक अनुभव नहीं था. इन्होंने तो कभी म्यूनिसपैलिटी भी नहीं चलाई. इनके चयन पर लोगों को आश्चर्य हुआ. हमने और पीएम मोदी जी ने निष्ठा और परिश्रम के मानक पर योगीजी के हाथ मे यूपी का भाग्य सौंप दिया. आज हमें अपने उस फैसले पर संतोष है.’’ ये बयान बीजेपी के अध्यक्ष तथा नरेंद्र मोदी सरकार में गृह मंत्री अमित शाह का है. शाह लखनऊ में दूसरे इन्वस्टर्स मीट की ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी-2 को संबोधित कर रहे थे.
शाह का बयान एक साथ कई सवाल पैदा करता है. क्या वास्तव में शाह ने योगी की तारीफ की? क्या शाह ने योगी पर मुख्यमंत्री बनाने का एहसान जताया? क्या शाह ने योगी विरोधी लाॅबी को कोई संदेश देने का काम किया? क्या शाह असल में योगी से खुश हैं? क्या शाह ने यूपी में गुटबाजी की दरार को और चैड़ा करने का काम किया? यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद से ऐसे कई अवसर आए जब शाह योगी की पीठ ठोक सकते थे. ऐसे में सवाल यह है कि आखिरकार शाह ने 862 दिन यानी दो साल 4 महीने 10 दिन बाद सार्वजनिक तौर पर योगी की तारीफ क्यों की?
फिलवक्त यूपी के राजनीतिक गलियारों में शाह के बयान के अपने हिसाब और समझ से मतलब निकाले जा रहे हैं. लेकिन एक बात तो साफ है कि एक-एक शब्द को छान-छानकर और छांट-छांटकर बोलने वाले शाह ने बिना वजह ये बयान नहीं दिया.
बिना किसी शक शुबहा यह कहा जा सकता है कि, वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में प्रचण्ड जीत के बाद, बीजेपी आलाकमान के समक्ष यक्ष प्रश्न था, मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? चुनाव के दौरान बीजेपी ने किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया था. ऐसे में नेतृत्व के संकट का सवाल गहरा गया. लखनऊ से...
‘‘सीएम योगी आदित्यनाथ के पास प्रशासनिक अनुभव नहीं था. इन्होंने तो कभी म्यूनिसपैलिटी भी नहीं चलाई. इनके चयन पर लोगों को आश्चर्य हुआ. हमने और पीएम मोदी जी ने निष्ठा और परिश्रम के मानक पर योगीजी के हाथ मे यूपी का भाग्य सौंप दिया. आज हमें अपने उस फैसले पर संतोष है.’’ ये बयान बीजेपी के अध्यक्ष तथा नरेंद्र मोदी सरकार में गृह मंत्री अमित शाह का है. शाह लखनऊ में दूसरे इन्वस्टर्स मीट की ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी-2 को संबोधित कर रहे थे.
शाह का बयान एक साथ कई सवाल पैदा करता है. क्या वास्तव में शाह ने योगी की तारीफ की? क्या शाह ने योगी पर मुख्यमंत्री बनाने का एहसान जताया? क्या शाह ने योगी विरोधी लाॅबी को कोई संदेश देने का काम किया? क्या शाह असल में योगी से खुश हैं? क्या शाह ने यूपी में गुटबाजी की दरार को और चैड़ा करने का काम किया? यूपी में बीजेपी सरकार बनने के बाद से ऐसे कई अवसर आए जब शाह योगी की पीठ ठोक सकते थे. ऐसे में सवाल यह है कि आखिरकार शाह ने 862 दिन यानी दो साल 4 महीने 10 दिन बाद सार्वजनिक तौर पर योगी की तारीफ क्यों की?
फिलवक्त यूपी के राजनीतिक गलियारों में शाह के बयान के अपने हिसाब और समझ से मतलब निकाले जा रहे हैं. लेकिन एक बात तो साफ है कि एक-एक शब्द को छान-छानकर और छांट-छांटकर बोलने वाले शाह ने बिना वजह ये बयान नहीं दिया.
बिना किसी शक शुबहा यह कहा जा सकता है कि, वर्ष 2017 में विधानसभा चुनाव में प्रचण्ड जीत के बाद, बीजेपी आलाकमान के समक्ष यक्ष प्रश्न था, मुख्यमंत्री किसे बनाया जाए? चुनाव के दौरान बीजेपी ने किसी को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश नहीं किया था. ऐसे में नेतृत्व के संकट का सवाल गहरा गया. लखनऊ से लेकर दिल्ली तक कई नामों पर चर्चा शुरू हो गयी. राजनाथ सिंह, मनोज सिन्हा से लेकर केश्व प्रसाद मौर्य, डाॅ दिनेश शर्मा के नामों पर कयास लगने शुरू हो गये. इस बीच योगी आदित्यनाथ और वरूण गांधी का नाम भी खूब उछला.
संघ और बीजेपी आलाकमान ने सीएम फेस ढूंढने में कोई हड़बड़ी नहीं की. इस बीच कयास और चर्चाओं का दौर जारी रहा. 11 मार्च को नतीजे आने के बाद बीजेपी शीर्ष नेतृत्व पूरे सात दिन सीएम का नाम फाइनल कर पाया. तमाम दावेदारों के नामों पर चर्चा हुई और अब योगी आदित्यनाथ के नाम पर मुहर लग गई.
मुख्यमंत्री को लेकर जारी रस्साकसी के बीच तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष केश्व प्रसाद मौर्य की तबीयत बिगड़ गई. मौर्य को देखने के लिए बीजेपी के वरिष्ठ नेता आरएमएल पहुंचे. मौर्य की तबीयत को योगी का नाम सीएम के तौर पर फाइनल होने से जोड़ा गया. 2017 में एक चैनल के कार्यक्रम के दौरान सीएम योगी ने बताया कि, ‘‘उनको सपने में भी इस बात का ख्याल नहीं था कि उनको ये पद मिलेगा या इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी.’’ शायद उम्मीद तो पार्टी के तमाम नेताओं को भी नहीं थी. योगी का नाम सामने आते ही पार्टी में खुश चेहरों की बजाय हवाई उड़े चेहरों की गिनती ज्यादा थी. फैसला चूंकि आलाकमान का था, इसलिये विरोध की गुंजाइश शून्य के बराबर भी नहीं थी. 19 मार्च का योगी ने सीएम पद की शपथ ली. बीजेपी आलाकमान ने संभावित रगड़-झगड़ के मद्देनजर ही दो डिप्टी सीएम का फार्मूला खोजा. ऊपरी तौर पर भले ही सब ठीक लगे, लेकिन अंदर ही अंदर रगड़ा और झगड़ा जारी है.
योगी सरकार के लगभग ढाई साल के कार्यकाल में खुशी और निराशा के कई अवसर आए. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अनुभव की कमी के बावजूद योगी ने कदम-कदम पर सीखने, समझने और एक्शन लेने में हिचक नहीं दिखाई. मोदी-शाह की जोड़ी ने भी जो भी टास्क और हुक्म दिया, योगी ने उसे पूरा करने में पूरी ऊर्जा खपायी. योगी ने दिन रात काम करके खुद का ‘प्रूव’ किया है.
योगी ने केंद्र सरकार की योजनाओं को यूपी की जमीन पर उतारने में कोई कसर नहीं छोड़ी. उन्होंने नोएडा जाने का मिथक तोड़ा. एक बार नहीं, कई बार वो नोएडा गये. भव्य कुंभ का आयोजन, फैजाबाद शहर का अयोध्या, इलाहाबाद का प्रयागराज और मुगलसराय स्टेशन का नामकरण पं दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन उनकी खास उपलब्धियों में शामिल है. जनता से सीधा संवाद, क्राइम और करप्शन पर उनकी जीरो टाॅलरेंस नीति उनकी कार्यशैली को दर्शाती है. यूपी में दो बार सफल इन्वेस्टर्स समिट भी उनके खाते में शामिल है.
विरोधी खेमा इस बीच चुप नहीं बैठा. आरएसएस और अन्य माध्यमों से योगी के विरोध में आलाकमान के कान भरता रहा. उपचुनाव में गोरखपुर सीट हारने के बाद तो ऐसा माहौल बनाया गया कि आलाकमान किसी दूसरे को सीएम की कुर्सी सौंपेगा. यहां ये जिक्रयोग्य है कि उपचुनाव में डिप्टी सीएम केश्व प्रसाद मौर्य भी अपनी फूलपुर सीट बचा नहीं पाये थे. योगी को सीएम की कुर्सी से हटाने की खबरें पिछले ढाई साल में कई बार उड़ीं. ये खबरें भी खूब फैलाई गई कि शाह और मोदी की जोड़ी उनसे नाराज है. उनकी केंद्र में चलती नहीं. बीजेपी आलाकमान योगी के बढ़ते कद और राजनीतिक ग्राफ से अंदर ही अंदर परेशान है. योगी आने वाले समय में मोदी के लिये खतरा बन जाएंगे. योगी को बदनाम करने के लिये ये भी फैलाया गया कि योगी प्रधानमंत्री पद के मजबूत दावेदार हैं. यूपी में योगी के समांतर एक लाॅबी अपनी सरकार चलाती है, ये खुला फैक्ट है. ये लाॅबी योगी को बदनाम करने उनके खिलाफ दुष्प्रचार का कोई मौका नहीं छोड़ती. वैसे, आलाकमान इन तमाम बातों और हरकतों से बेखबर नहीं है.
यूपी उपचुनाव में मिली करारी शिकस्त के बाद लोकसभा चुनाव योगी सरकार के लिये बड़ा चैलेंज था. सपा-बसपा गठबंधन ने सिरदर्द बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. लेकिन तमाम मिथक, कयास और गठबंधनों के बावजूद बीजेपी ने यूपी में शानदार प्रदर्शन करते हुए 62 सीटें जीती. योगी की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुये पार्टी ने लोकसभा चुनाव में उनसे देशभर में प्रचार करवाया. पश्चिम बंगाल में बेहतर नतीजों के पीछे योगी की रैलियों का बड़ा योगदान माना जाता है.
राजनीतिक गलियारों में शाह के बयान के बाद यह चर्चा आम है कि योगी के बढ़ते कद और प्रभाव को कम करने के लिये शाह ने सार्वजनिक तौर पर यह याद दिलाया कि मोदी-शाह की जोड़ी ने योगी को मुख्यमंत्री बनाया है. जानकारों के मुताबिक भले ही योगी को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय मोदी-शाह की जोड़ी का हो, लेकिन योगी ने अपनी कर्मशीलता, अनुशासन, निष्ठा और मेहनत से अपनी सीट मजबूत की है.
यूपी में दो डिप्टी सीएम का फैसला होते ही यह साफ हो गया था कि सूबे में सत्ता के एक नहीं कई केंद्र होंगे. डिप्टी सीएम केश्व प्रसाद मौर्य की राजनीतिक महत्वाकांक्षा किसी से छिपी नहीं है. वो सीएम पद की शपथ लेने की तैयारी कर चुके थे. सांप सीढ़ी के खेल माफिक उनका नाम 99 पायदान पर कटा. वो अलग बात है कि ऊपरी तौर पर सत्ता के दो या कई केंद्र दिखाई न दें, लेकिन प्रदेश बीजेपी के बिग बाॅसा यानी संगठन महामंत्री, दो डिप्टी सीएम और कई सीनियर मंत्री अपनी अलग सरकार चलाते हैं.
राजनीतिक विशलेषकों के मुताबिक, अमित शाह ने योगी को सीएम बनाने का बयान देकर, सार्वजनिक तौर पर अपने व मोदी के फैसले पर मुहर लगायी है. फिलवक्त योगी खेमा व उनके विरोधी अपने-अपने हिसाब से शाह के बयान का निचोड़ निकाल रहे हैं. अब किसके हाथ अमृत लगा और किसके हाथ विष, ये आने वाला वक्त बेहतर तरीके से बताएगा.
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