अमित शाह (Amit Shah) वैसे तो लोक सभा चुनाव 2024 की तैयारियों के लिए दौरे पर हैं, लेकिन त्रिपुरा (Tripura Election 2023) से शुरुआत करने का खास मतलब है. करीब करीब वैसे ही जैसा हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिये संकेत देने की कोशिश हुई थी.
जैसे हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह के दौरों ने तेलंगाना पर बीजेपी के फोकस का इशारा है, त्रिपुरा पहुंच कर बीजेपी की 'जन विश्वास यात्रा' को रवाना करना और फिर रैली करना, आने वाले चुनावों को लेकर बीजेपी की फिक्र दिखा रहा है - ध्यान देने वाली बात ये है कि दो हफ्ते पहले ही प्रधानमंत्री मोदी त्रिपुरा के बीजेपी नेताओं को जीत का मंत्र दे आये हैं.
त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी बीजेपी विधायकों का साथ छोड़ कर चले जाना चिंताजनक तो है ही, पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर हुआ हमला तो उससे भी बड़ी चिंता की बात है - क्योंकि ये सब पश्चिम बंगाल की ही तरह चुनावी हिंसा की आशंका की तरफ इशारा कर रहा है.
और सबसे ज्यादा फिक्र वाली बात इसलिए भी है क्योंकि बिप्लब देब के पुश्तैनी घर पर हुई हिंसा जिन परिस्थितियों में हुई है, वो पश्चिम बंगाल जैसे चुनावी माहौल की ही झलक दिखा रही है. बीजेपी और बिप्लब देब ने तो हिंसा का पूरा इल्जाम सीपीएम (CPM) पर मढ़ दिया है, लेकिन वहां से जो खबर आ रही है, मालूम होता है कि ये हमला एकतरफा नहीं है बल्कि स्थानीय स्तर पर दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव का हिंसक नतीजा और नमूना है - अगर अभी से ऐसी चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया तो मान कर चलना होगा कि आगे स्थिति और भी खराब हो सकती है.
बंगाल ही नहीं बल्कि केरल को लेकर भी बीजेपी राजनीतिक विरोधियों की तरफ से हिंसा और बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमलों का मुद्दा उठाती रही है - पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई हिंसा भी तो सबको याद ही होगी, लेकिन त्रिपुरा में पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर जो हुआ है,...
अमित शाह (Amit Shah) वैसे तो लोक सभा चुनाव 2024 की तैयारियों के लिए दौरे पर हैं, लेकिन त्रिपुरा (Tripura Election 2023) से शुरुआत करने का खास मतलब है. करीब करीब वैसे ही जैसा हैदराबाद में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के जरिये संकेत देने की कोशिश हुई थी.
जैसे हैदराबाद में राष्ट्रीय कार्यकारिणी के साथ साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के सीनियर नेता अमित शाह के दौरों ने तेलंगाना पर बीजेपी के फोकस का इशारा है, त्रिपुरा पहुंच कर बीजेपी की 'जन विश्वास यात्रा' को रवाना करना और फिर रैली करना, आने वाले चुनावों को लेकर बीजेपी की फिक्र दिखा रहा है - ध्यान देने वाली बात ये है कि दो हफ्ते पहले ही प्रधानमंत्री मोदी त्रिपुरा के बीजेपी नेताओं को जीत का मंत्र दे आये हैं.
त्रिपुरा में मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी बीजेपी विधायकों का साथ छोड़ कर चले जाना चिंताजनक तो है ही, पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर हुआ हमला तो उससे भी बड़ी चिंता की बात है - क्योंकि ये सब पश्चिम बंगाल की ही तरह चुनावी हिंसा की आशंका की तरफ इशारा कर रहा है.
और सबसे ज्यादा फिक्र वाली बात इसलिए भी है क्योंकि बिप्लब देब के पुश्तैनी घर पर हुई हिंसा जिन परिस्थितियों में हुई है, वो पश्चिम बंगाल जैसे चुनावी माहौल की ही झलक दिखा रही है. बीजेपी और बिप्लब देब ने तो हिंसा का पूरा इल्जाम सीपीएम (CPM) पर मढ़ दिया है, लेकिन वहां से जो खबर आ रही है, मालूम होता है कि ये हमला एकतरफा नहीं है बल्कि स्थानीय स्तर पर दोनों राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं के बीच टकराव का हिंसक नतीजा और नमूना है - अगर अभी से ऐसी चीजों पर ध्यान नहीं दिया गया तो मान कर चलना होगा कि आगे स्थिति और भी खराब हो सकती है.
बंगाल ही नहीं बल्कि केरल को लेकर भी बीजेपी राजनीतिक विरोधियों की तरफ से हिंसा और बीजेपी कार्यकर्ताओं पर हमलों का मुद्दा उठाती रही है - पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आने के बाद हुई हिंसा भी तो सबको याद ही होगी, लेकिन त्रिपुरा में पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब के घर पर जो हुआ है, वो खतरनाक इरादे की तरफ इशारे करता है.
निश्चित तौर पर केंद्रीय गृह मंत्री होने के नाते भी अमित शाह ने अगरतला से भी रिपोर्ट वैसे ही तलब की होगी, जैसे दिल्ली में अंजलि केस को लेकर पुलिस से रिपोर्ट मांगी गयी है - और उसके बाद साक्षात पहुंच कर स्थिति की समीक्षा के दौरान क्या ऐक्शन प्लान तैयार करना है, पहले ही पूरा खाका खींच लिया होगा.
त्रिपुरा में राजनीतिक चुनौती से सामना होने से पहले ही अमित शाह को दिल्ली से निकलने के बाद मौसम के बदले मिजाज से भी रूबरू होना पड़ा. अमित शाह को सीधे अगरतला पहुंचना था, लेकिन खराब मौसम की वजह से उनकी फ्लाइट को पहले गुवाहाटी में उतारना पड़ा. और मौसम ठीक होने का इंतजार करना पड़ा.
बहरहाल, अमित शाह ने त्रिपुरा चुनाव में भी पश्चिम बंगाल की तरह ही मोर्चा संभाल लिया है - प्रधानमंत्री मोदी का दौरा तो हो ही चुका है, आगे जेपी नड्डा सहित तमाम बीजेपी नेता जल्दी ही त्रिपुरा में डेरा डालने वाले हैं.
बिप्लब देब के घर पर हमले का मैसेज
अब तो बिप्लब देब मुख्यमंत्री भी नहीं हैं और न ही आने वाले चुनाव में बीजेपी का चेहरा ही हैं, फिर भी उनको टारगेट किये जाने का क्या मतलब हो सकता है?
त्रिपुरा के गोमती जिले के उदयपुर में बिप्लब देब के पुश्तैनी घर के आस पास हुई हिंसा के बाद ये सवाल काफी महत्वपूर्ण हो गया है. रिपोर्ट के मुताबिक, हमलावरों ने बिप्लब देब के घर के आस पास की दुकानों में आग लगा दी थी और वहां खड़ी गाडियों में भी तोड़ फोड़ की थी. हमले के वक्त बीजेपी नेता के घर पर कोई नहीं था.
राज्य सभा सदस्य बिप्लब देब ने अपने घर को निशाना बनाये जाने को त्रिपुरा में कानून व्यवस्था खराब करने की कोशिश बताया और हिंसा के पीछे सीपीएम समर्थकों का हाथ होने का इल्जाम लगाया. बताते हैं कि बिप्लब देब के पिता हिरुधन देब की बरसी पर कुछ विशेष अनुष्ठान होने थे, और उसके एक दिन पहले ही ये घटना हुई.
एक टीवी चैनल से बातचीत में बिप्लब देब का कहना रहा, 'पहले भी कम्युनिस्टों ने त्रिपुरा को बदनाम करने की कोशिश की थी, लेकिन वे सफल नहीं हुए.' बोले, 'मैंने अपने पिता की पुण्यतिथि पर पुजारियों को बुलाया था, और मेरी पत्नी तैयारियों का जायजा लेने के लिए अगरतला गई थीं... कम्युनिस्ट नेताओं ने उस क्षेत्र में लोगों को भड़काया... और मार्च निकाला.'
त्रिपुरा बीजेपी के नेता का आरोप है, शाम को मेरे घर के सामने, जहां कार्यक्रम होना था... कम्युनिस्ट झंडा फहराना चाहते थे... जब वे झंडा फहराने की कोशिश कर रहे थे तो पुजारियों और बाकी लोगों ने ये कहकर रोकने की कोशिश की कि वहां हवन होगा... वे नहीं माने और हिंसा शुरू कर दी.
लेकिन सूत्रों के हवाले से आ रही खबर तस्वीर का दूसरा पहलू भी दिखा रही है. टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट से मालूम होता है कि जो कुछ हुआ उसका न्योता तो बीजेपी की तरफ से ही दिया गया था. रिपोर्ट के मुताबिक, सीपीएम का कार्यक्रम वहां पहले से तय था और उसके लिए आस पास झंडे लगाये गये थे और सजावट भी की गयी थी - लेकिन बीजेपी और वीएचपी के कार्यकर्ताओं ने सब तहस नहस कर दिया था.
कहते हैं, बीजेपी कार्यकर्ताओं ने सीपीएम कार्यकर्ताओं से कहा था कि वे अपना प्रोग्राम रद्द कर दें क्योंकि वहां यज्ञ होना है - इसी बात को लेकर टकराव शुरू हुआ और बात हिंसा तक पहुंच गयी. बाद में, कुछ अज्ञात हमलावरों ने एक मुस्लिम परिवार के घर को भी आग लगा दी थी. इस बात से गुस्सा होकर गांव के कुछ लोगों ने हमला किया, लेकिन उससे बिप्लब देब के घर को अलग रखा गया.
सच तो गहन जांच पड़ताल के बाद ही सामने आएगा, लेकिन एकबारगी अब तक जो बाद सामने आयी है, उससे तो यही लगता है कि इस मामले में भी ताली एक हाथ से नहीं ही बजी है - और आग की लपटें तो पूरे मामले का एक ही पहलू दिखा रही हैं.
त्रिपुरा में लेफ्ट अंगड़ाई लेने लगा है त्रिपुरा में 25 साल से चले आ रहे सीपीएम के शासन को बीजेपी ने एक झटके में चलता कर दिया था. देश में लंबा शासन करने वाले मुख्यमंत्रियों में से एक माणिक सरकार को भी यकीन नहीं हुआ होगा कि अचानक कैसे लाल सलाम कहने वाले लोग जय श्रीराम बोलने लगे - और ये आवाज इतनी असरदार हुई कि 60 सीटों वाली त्रिपुरा विधानसभा में उनकी पार्टी 18 सीटों पर सिमट कर रह गयी.
2018 के त्रिपुरा विधानसभा चुनाव में बीजेपी गठबंधन को 41 सीटें मिली थीं. हालांकि, बीते दो साल में ये भी देखने को मिला है कि सत्ताधारी गठबंधन के आठ विधायक छोड़ कर जा चुके हैं - और खास बात ये है कि उनमें पांच तो अकेले बीजेपी के ही हैं.
त्रिपुरा में ऐसी राजनीतिक छीनाझपटी तो पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आने के साथ ही शुरू हो गयी थी, लेकिन सीपीएम कार्यकर्ताओं का ये उग्र रूप चुनावों से पहले दिखा कर अपना इरादा तो जाहिर कर ही दिया है. वो भी ऐसे दौर में जब बीजेपी तमाम तरह की चुनौतियों से जूझ रही है.
करीब छह महीने पहले ही बीजेपी ने अपना मुख्यमंत्री बदला है. बिप्लब देब को हटाकर बीजेपी ने तब तक सूबे में पार्टी की कमान संभाल रहे माणिक साहा को सरकारी मोर्चे पर लगा दिया. फिर भी चीजें बदली हों, लगता तो नहीं है.
ये जरूर है कि सीपीएम ने चुनाव से पहले रंग दिखाना शुरू कर दिया है, और ये भी आशंका हो रही है कि पश्चिम बंगाल की तरह ही त्रिपुरा में भी चुनावी हिंसा एक बड़ी समस्या बन सकती है. पहले तो लग रहा था कि कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस ही त्रिपुरा में ज्यादा एक्टिव है, लेकिन अब तो ऐसा लगने लगा है कि सीपीएम भी बाउंसबैक की तैयारी कर चुकी है - मुकाबला दिलचस्प हो ये तो ठीक है, लेकिन हिंसा का संकेत डराने वाला है. आम लोगों के लिए ही नहीं, बीजेपी के लिए भी. खास तौर पर दो साल पहले ही पश्चिम बंगाल में बड़ा झटका खाने के बाद तो और भी ज्यादा.
मोदी के बाद शाह का त्रिपुरा दौरा
त्रिपुरा में सत्ता में होने के बावजूद बीजेपी के सामने पश्चिम बंगाल जैसी ही चुनौतियां पैदा होने लगी हैं - और प्रधानमंत्री मोदी के दौरे के बाद अमित शाह का मोर्चे पर डट जाना भी यही कहता है. मोदी और शाह के बाद अगरतला में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और ढेर सारे नेताओं का जमघट भी लगने वाला है.
अमित शाह ने बीजेपी की जो जनविश्वास यात्रा शुरू की है, 12 जनवरी को जेपी नड्डा उसका समापन करने वाले हैं. जन विश्वास यात्रा के जरिये बीजेपी को करीब 10 लाख लोगों से जुड़ने की उम्मीद है. जनविश्वास यात्रा के दौरान बीजेपी नेता घूम घूम कर लोगों को सरकार के पिछले पांच साल के कामकाज की रिपोर्ट देंगे और सरकार की उपलब्धियों को लोगों के सामने रखेंगे - जाहिर है, बीजेपी की कोशिश सीपीएम के 25 साल बनाम बीजेपी के 5 साल वाली बहस शुरू करने की भी होगी.
जनविश्वास यात्रा राज्य के सभी 60 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरने वाली है. करीब एक हजार किलोमीटर का सफल तय करने जा रही यात्रा के दौरान 100 रैलियां और रोड शो किये जाने हैं. यात्रा में असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा, केंद्रीय मंत्री सर्बानंद सोनवाल, किरण रिजिजु, अर्जुन मुंडा भी शामिल होंगे. पश्चिम बंगाल से विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी, मिथुन चक्रवर्ती और बीजेपी सांसद लॉकेट चटर्जी भी बारी बारी यात्रा में शामिल होंगे.
त्रिपुरा में भी मोदी को गुजरात मॉडल का ही भरोसा: दिसंबर मध्य में हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के त्रिपुरा दौरे में ये तो समझ में आ ही गया कि आने वाले चुनावों में बीजेपी गुजरात मॉडल को ही आगे करके बढ़ने की कोशिश करेगी. लेकिन ये 2014 के गुजरात मॉडल से थोड़ा अलग है.
ऐसे भी समझ सकते हैं कि त्रिपुरा सहित इस साल होने जा रहे नौ राज्यों के चुनावों में बीजेपी मोदी के चेहरे के साथ साथ गुजरात मॉडल को भी लेकर ही आगे बढ़ेगी. मोदी का चेहरा तो बीजेपी के संसदीय बोर्ड ने तय किया था, गुजरात मॉडल तो राज्य की रिकॉर्ड जीत ने पक्की कर दी है.
मोदी के दौरे में भी ऐसी ही दो चीजें समझ में आयीं कि बीजेपी चुनावी कामयाबी के गुजरात मॉडल के साथ साथ आदिवासी वोटर पर भी ज्यादा ध्यान देने जा रही है. मोदी के साथ मीटिंग में मौजूद एक बीजेपी विधायक के हवाले से आयी एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी नेताओं से गुजरात चुनाव से सीखने की सीख दी थी. मोदी ने नेताओं को समझाया कि जैसे गुजरात में संगठन ने मजबूती दिखायी, बूथ स्तर तक जिस तरह सब एक होकर चुनाव लड़े - वही दोहराने की जरूरत है.
सही बात है, त्रिपुरा के मामले में ये बहुत जरूरी भी है. प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी नेताओं को लोगों तक सीधे पहुंचने और सोशल मीडिया जरिये भी सरकार के कामकाज की हर छोटी से छोटी बात लोगों तक पहुंचाने को कहा है.
एक और खास बात, जिस पर मोदी का काफी जोर दिखा वो है आदिवासी वोटर. प्रधानमंत्री मोदी ने बीजेपी कार्यकर्ताओं से आदिवासी इलाकों में तैयारियों के बारे में पूछा और चुनावी तैयारियों में भी पूरी ताकत झोंक देने की सलाह दी. एक सार्वजनिक रैली में भी प्रधानमंत्री मोदी ने खास तौर पर जिक्र किया कि किस तरह गुजरात में बीजेपी ने ST कोटे की 27 में से 24 सीटों पर जीत सुनिश्चित की है - और बीजेपी ऐसा करने वाली है, इस बात का अंदाजा तो पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव में ही पता चल गया था. ये तो है कि बीजेपी पहली आदिवासी महिला को देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर पहुंचाने का श्रेय ले सकती है.
बाकी बातें अपनी जगह है, लेकिन त्रिपुरा और गुजरात के राजनीतिक हालात बिलकुल अलग हैं. त्रिपुरा में माहौल पश्चिम बंगाल और केरल जैसा है, सिवा इस बात के कि वहां बीजेपी की सरकार है - ऐसे में गुजरात मॉडल पर पूरी तरह अमल हो पाएगा, पहले से मान कर चलना मुश्किल हो रहा है.
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