योगी आदित्यनाथ तो उत्तर प्रदेश के माफिया तत्वों को मिट्टी में मिलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अमित शाह (Amit Shah) की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे वो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति के साथ वैसा ही सलूक करने का इरादा कर चुके हैं - करीब करीब वैसे ही जैसे धीरे धीरे करके उद्धव ठाकरे उद्धव ठाकरे की राजनीति को मिट्टी में मिलाने का इंतजाम कर दिया गया.
अमित शाह के नजरिये से देखें तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी तो उसी छोर पर खड़े नजर आते हैं, जहां महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) खड़े हैं. अमित शाह के लिए तो दोनों का व्यवहार उनके प्रति बिलकुल एक जैसा ही रहा है. दोनों ही नेताओं ने अलग अलग समय पर बीजेपी को धोखा दिया है. दोनों ही ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ही बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया.
उद्धव ठाकरे ने तो एक बार ही किया, नीतीश कुमार तो ऐसा दो-दो बार कर चुके हैं. पहले 2014 के आम चुनाव से पहले - और अब 10 साल बाद अगले आम चुनाव से पहले. नीतीश कुमार के मामले में अमित शाह को कोई एकनाथ शिंदे तो नहीं मिल पाये, लिहाजा चौतरफा घेरेबंदी कर डाली है.
एक तरफ से तो चिराग पासवान पहले से ही जड़ें खोदते आ रहे हैं, उपेंद्र कुशवाहा के भी नीतीश कुमार के खिलाफ मैदान में आ जाने के बाद हमले की धार और भी तेज हो सकती है - और उसमें नीतीश कुमार से पहले से ही नाखुश आरसीपी सिंह के साथ मौके की तलाश में बैठे मुकेश सहनी को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.
और अब तो ये भी लग रहा है कि जीतनराम मांझी भी नीतीश कुमार के साथ वैसा ही व्यवहार करने का मन बना रहे हैं, जैसा वो बीजेपी के मामले में कर चुके हैं - अगर ऐसा नहीं है तो नीतीश कुमार क्यों जीतनराम मांझी पर किये गये एहसानों को सरेआम गिनाने लगे हैं.
अव्वल तो नीतीश...
योगी आदित्यनाथ तो उत्तर प्रदेश के माफिया तत्वों को मिट्टी में मिलाने की बात कर रहे हैं, लेकिन अमित शाह (Amit Shah) की बातों से तो ऐसा लगता है जैसे वो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की राजनीति के साथ वैसा ही सलूक करने का इरादा कर चुके हैं - करीब करीब वैसे ही जैसे धीरे धीरे करके उद्धव ठाकरे उद्धव ठाकरे की राजनीति को मिट्टी में मिलाने का इंतजाम कर दिया गया.
अमित शाह के नजरिये से देखें तो बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी तो उसी छोर पर खड़े नजर आते हैं, जहां महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) खड़े हैं. अमित शाह के लिए तो दोनों का व्यवहार उनके प्रति बिलकुल एक जैसा ही रहा है. दोनों ही नेताओं ने अलग अलग समय पर बीजेपी को धोखा दिया है. दोनों ही ने मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए ही बीजेपी से नाता तोड़ने का फैसला किया.
उद्धव ठाकरे ने तो एक बार ही किया, नीतीश कुमार तो ऐसा दो-दो बार कर चुके हैं. पहले 2014 के आम चुनाव से पहले - और अब 10 साल बाद अगले आम चुनाव से पहले. नीतीश कुमार के मामले में अमित शाह को कोई एकनाथ शिंदे तो नहीं मिल पाये, लिहाजा चौतरफा घेरेबंदी कर डाली है.
एक तरफ से तो चिराग पासवान पहले से ही जड़ें खोदते आ रहे हैं, उपेंद्र कुशवाहा के भी नीतीश कुमार के खिलाफ मैदान में आ जाने के बाद हमले की धार और भी तेज हो सकती है - और उसमें नीतीश कुमार से पहले से ही नाखुश आरसीपी सिंह के साथ मौके की तलाश में बैठे मुकेश सहनी को भी मोर्चे पर तैनात कर दिया गया है.
और अब तो ये भी लग रहा है कि जीतनराम मांझी भी नीतीश कुमार के साथ वैसा ही व्यवहार करने का मन बना रहे हैं, जैसा वो बीजेपी के मामले में कर चुके हैं - अगर ऐसा नहीं है तो नीतीश कुमार क्यों जीतनराम मांझी पर किये गये एहसानों को सरेआम गिनाने लगे हैं.
अव्वल तो नीतीश कुमार बीजेपी के उस आरोप पर सफाई दे रहे थे जिसमें उन पर जीतन राम मांझी को धोखा देने का इल्जाम लगा है, लेकिन जिस तरीके से कहा वो तो अलग ही इशारे कर रहा है. नीतीश कुमार का कहना है, 'जरा बताइये मांझी जी को... हम छोड़ कर उनको खुद बिहार का मुख्यमंत्री बनाये... बीच में बेचारे उनके साथ गये तो क्या किये? आपने जीतनराम मांझी का कुछ किया? आपके साथ भी थे तो भी कुछ बनवाये उनको?' जीतनराम मांझी को लेकर अभी नीतीश कुमार जो भी बोल रहे हैं, ध्यान देकर समझने वाली बात है - 'अब मांझी जी पर लगा हुआ है... अब मांझी जी को इधर-उधर नहीं करना है... हमी लोग उनको आगे बढ़वा देंगे... सब करेंगे कभी कोई इधर-उधर नहीं करेगा... निश्चिंत रहिएगा सब लोग मिलकर आगे बढ़ेंगे.'
तो क्या अमित शाह ने अब जीतनराम मांझी को भी साध लिया है? नीतीश कुमार की बातों से तो यही लगता है जैसे जीतनराम मांझी भी कतार में हैं!
बिहार में शासन के जिस 'जंगलराज' को लेकर बीते चुनाव तक नीतीश कुमार आक्रामक बने रहते थे, अब खुद ही निशाने पर आ गये हैं - और अमित शाह जोर शोर से नीतीश कुमार के मौजूदा शासन को आधा जंगलराज बताने लगे हैं - और लगे हाथ नीतीश कुमार के ही कर कमलों से उसके पूरा होने की आशंका जता रहे हैं.
हाफ-जंगलराज के बहाने नीतीश कुमार के टारगेट करने का अमित शाह को ये भी फायदा मिल रहा है कि वो ऐन उसी वक्त लालू परिवार को भी लपेटे में ले ले रहे हैं. ऐसे भी समझ सकते हैं कि अब भी नीतीश कुमार को थोड़ा संदेह का लाभ तो मिल ही रहा है - क्योंकि अमित शाह की तरफ से पूरा जंगलराज रोक रखे जाने में आधा क्रेडिट तो नीतीश कुमार को भी मिलता है.
अब अगर नीतीश कुमार कुछ और सोचें या समझें कि बीजेपी में फिर से संभावनाएं तलाशी जायें तो अमित शाह ऐसी सारी ही संभावनाओं को सिरे से खारिज भी कर देते हैं - अभी और कुछ नहीं तो अमित शाह अपने इस मकसद में तो कामयाब हैं ही कि नीतीश कुमार छटपटा कर रह जायें.
बीजेपी में नीतीश को नो-एंट्री
नीतीश कुमार विपक्ष को एकजुट करने के लिए जीतोड़ कोशिश कर रहे हैं. ऐसा तो नहीं कह सकते कि विपक्षी खेमे के लोग हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं, लेकिन ये तो समझ में आ ही रहा है कि नीतीश कुमार को बहुत भाव नहीं मिल रहा है.
सीपीआई-एमएल की रैली में नीतीश कुमार ने कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद के जरिये नेतृत्व को संदेश भेजा था कि विपक्ष के साथ खड़े होने के लिए वो भी आगे आये. और फिर महागठबंधन की रैली के मंच से भी नीतीश कुमार ने अपनी बात दोहरायी - और ये भी अलर्ट भेजा कि जो भी करना है जल्दी हो वरना देर हो जाएगी. पटना रैली में नीतीश कुमार ने दावा किया था कि विपक्ष मिल कर चुनाव लड़े तो बीजेपी की सीटें 100 के आस पास ही सिमट जाएंगी.
कांग्रेस ने अपने राष्ट्रीय अधिवेशन से विपक्ष को साथ आने का न्योता तो दिया है, लेकिन शर्तें उसकी अपनी होंगी. ऐसी बातें राहुल गांधी भी पहले कर चुके हैं - और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी.
कांग्रेस ने अपनी तरफ से पूरी तरह साफ कर दिया है कि विपक्ष की सरकार बनी तो प्रधानमंत्री तो राहुल गांधी ही होंगे - और अमित शाह भी नीतीश कुमार को यही समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि 2024 में उनके (और किसी के लिए भी) लिए प्रधानमंत्री पद की कुर्सी खाली है ही नहीं.
अमित शाह समझाते हैं, पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनी... मगर हमने नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाया क्योंकि हमने वादा किया था... मगर नीतीश कुमार को हर तीन साल में प्रधानमंत्री बनने का सपना आता है.
कहते हैं, 'नीतीश बाबू आप प्रधानमंत्री बनने के लिए विकासवादी से अवसरवादी बने... कांग्रेस और आरजेडी की शरण में चले गये... आपकी इस मंशा ने बिहार का बंटाधार कर दिया, लेकिन उनको मालूम नहीं कि वहां वैकेंसी खीली नहीं है - 2024 में तो मोदी जी आने वाले हैं.'
बीजेपी नेता शाह लोगों से कहते हैं, जेपी... जयप्रकाश नारायण जिस कांग्रेस के खिलाफ लड़े... नीतीश कुमार ने जिस जंगलराज के खिलाफ लड़कर बीजेपी के साथ मिलकर सरकार बनाई... उन्हीं लालू यादव की गोद में जाकर बैठ गये हैं.'
और फिर, अमित शाह ये भी बता देते हैं कि बीजेपी उनके लिए नो-एंट्री का बोर्ड लगा चुकी है. कहते हैं, 'नीतीश बाबू बहुत आया राम-गया राम कर लिये हैं... बीजेपी के दरवाजे उनके लिए बंद हो गए हैं.'
अब तो नीतीश कुमार को भी समझ में आ ही गया होगा. लगातार पलटू राम बोल कर हमला बोलने वाला लालू परिवार जहर पीकर उनको दोबारा अपना सकता है, लेकिन बीजेपी इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं है. ये ठीक है कि लालू यादव की अपनी मजबूरी है, लेकिन बीजेपी को जरा भी परवाह नहीं है.
बीजेपी के सामने 2024 की भी चुनौती तो है ही, लेकिन 2025 में तो पहले ही बता चुकी है कि वो अपना ही प्रोडक्ट लॉन्च करेगी - सवाल है कि आम चुनाव में बीजेपी की सेहत पर कोई फर्क पड़ेगा भी या नहीं?
बिहार में 'हाफ-जंगलराज'!
बिहार में नये गवर्नर की नियुक्ति के बाद केंद्र की तरफ से नीतीश कुमार के पास अमित शाह का फोन आया था. नीतीश कुमार ने ये बात बड़े ही आत्मविश्वास के साथ मीडिया को बताया था. बताने का मकसद असल में बहुतों को मैसेज देना था. तब तक उपेंद्र कुशवाहा ने फिर से अपनी नयी पार्टी की घोषणा नहीं की थी - ये मैसेज कुशवाहा के साथ साथ उनके जैसे सभी पक्षों के लिए था.
और ऐसे पक्षों में से एक लालू परिवार भी रहा. अगर उपेंद्र कुशवाहा अपनी गतिविधियों से बीजेपी के संपर्क में होने का संकेत देते रहे, तो नीतीश कुमार बता देना चाहते थे कि उनकी भी अमित शाह से बात होती है - और उसी में लालू परिवार के लिए मैसेज ये रहा कि अमित शाह से अब भी उनकी बात होती है.
हाल के दिनों में जेडीयू के दो नेताओं के बयान भी आपने सुने ही होंगे. बात यहां जेडीयू अध्यक्ष राजीव रंजन यानी ललन सिंह की और प्रवक्ता केसी त्यागी की हो रही है. दोनों ही नेताओं ने एक जैसी बातें कीं - और जो बात हुई वो तेजस्वी यादव को लेकर नीतीश कुमार के बयान को वापस लेने जैसा ही रहा.
लालू यादव और आरजेडी नेताओं के दबाव में ही सही, नीतीश कुमार पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि 2025 में महागठबंधन के नेता तेजस्वी यादव होंगे. लेकिन नीतीश कुमार के इतना बोल देने के बाद भी आरजेडी नेता वैसा धैर्य नहीं दिखा पा रहे हैं जैसा तेजस्वी यादव के चेहरे पर नजर आता है.
जगदानंद सिंह और उनके बेटे सुधाकर सिंह लगातार नीतीश कुमार के खिलाफ आक्रामक बने हुए हैं, और अभी तक ऐसा कोई लक्षण तो नहीं ही दिखा है जिससे माना जा सके कि लालू यादव उनकी पीठ पर हाथ नहीं रखे हुए हैं. नीतीश कुमार के ऐतराज पर तेजस्वी यादव एक्शन का संकेत जरूर दे चुके हैं, लेकिन बात उससे आगे तो कभी बढ़ी नहीं.
अमित शाह ने बिहार जाकर अपने फोन को लेकर नीतीश कुमार ने जो मैसेज देने की कोशिश की थी, उसे न्यूट्रलाइज कर दिया है. जैसे पिछले दौरे में नीतीश कुमार के खिलाफ लालू परिवार को भड़का रहे थे, अमित शाह ने फिर से वैसा ही किया है. पिछली बार लालू यादव को अमित शाह समझा रहे थे कि नीतीश कुमार कभी भी धोखा दे सकते हैं.
अब अमित शाह का कहना है कि तेजस्वी यादव को नीतीश कुमार तारीख नहीं बता रहे हैं. मतलब, ललन सिंह और केसी त्यागी के बयानों से लालू परिवार के मन में जो आग लगी है, अमित शाह उसे और ज्यादा भड़काने की कोशिश कर रहे हैं.
ललन सिंह का कहना है कि महागठबंधन के नेतृत्व पर फैसला 2025 यानी अगले बिहार विधान सभा चुनाव के वक्त होगा. और लगे हाथ दावा कर रहे हैं कि 2025 तक नीतीश कुमार ही बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे.
केसी त्यागी तो और दो कदम बढ़ कर ही दावा कर रहे हैं. उनका कहना है, नीतीश कुमार 2025 की कौन सोचे, वो तो 2030 तक बिहार के मुख्यमंत्री बने रहेंगे - अमित शाह इसी बात को और उछाल कर पेश कर रहे हैं.
अमित शाह बीजेपी की रैली में कहते हैं, नीतीश कुमार ने लालू यादव के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का वादा किया है, लेकिन वो तारीख नहीं बता रहे हैं... लोकतंत्र में पारदर्शिता होनी चाहिये. अगर वादा किया है तो तेजस्वी यादव को तारीख बतायें कि कब मुख्यमंत्री बनाएंगे... आरजेडी के विधायक रोज मांग कर रहे हैं.
बीजेपी नेता का कहना है, लोकतंत्र में इतनी तो पारदर्शिता होनी चाहिये कि आप तारीख घोषित करें और बताएं कि बिहार में कब तक पूरा जंगलराज स्थापित करेंगे?
अपनी बात को समझाते हुए अमित शाह कहते हैं, बिहार में आधा जंगलराज तो आ ही गया है... तेजस्वी यादव के आने से बिहार में पूरा जंगलराज आ जाएगा. आगे बताते हैं, लालटेन से उठती लौ में पूरा बिहार धधक रहा है... राज्य अराजकता की चपेट में है - और यहां कानून और व्यवस्था ध्वस्त हो गई है.
जिस जंगलराज को लेकर नीतीश कुमार चुनाव दर चुनाव बीजेपी के साथ मिल कर बिहार के लोगों को डराते रहे, अमित शाह अब नीतीश कुमार को भी जंगलराज का हिस्सेदार बता कर पेश कर रहे हैं - विडंबना ये है कि बीजेपी को ऐसा बोलने का मौका भी तो नीतीश कुमार ने ही दिया है.
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