पश्चिम बंगाल चुनाव के नतीजे आने के ठीक एक साल बाद अमित शाह (Amit Shah) और प्रशांत किशोर दोनों ही अपने अपने मिशन पर एक साथ निकले हैं - प्रशांत किशोर पटना और अमित शाह कोलकाता. जैसे प्रशांत किशोर को बिहार की चिंता बढ़ गयी है, अमित शाह को भी बंगाल की फिर से फिक्र होने लगी है.
अमित शाह के निशाने पर स्वाभाविक तौर पर बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हैं और ठीक उसी तरह प्रशांत किशोर ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को टारगेट किया है. कांग्रेस के सात अखिल भारतीय पारी शुरू न हो पाने की वजह से प्रशांत किशोर तो बिहार तक सीमित हो गये लगते हैं, लेकिन अमित शाह के टारगेट एरिया में सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं लगतीं.
ऐसा लगता है जैसे अमित शाह और प्रशांत किशोर दोनों के कॉमन टारगेट नीतीश कुमार (Nitish Kumar) हैं - और अमित शाह का इरादा ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) और नीतीश कुमार के साथ साथ उन नेताओं को भी घेरने का है जो 2024 के आम चुनाव को देखते हुए विपक्षी खेमे से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुलांचे भर रहे हैं. ऐसे नेताओं की सूची में अभी तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ही टॉप पर चल रहे हैं.
तभी तो पश्चिम बंगाल दौरे में अमित शाह ने CAA का जोर देकर जिक्र किया है. अमित शाह का कहना है कि CAA को हर हाल में हकीकत बनाया जाएगा. लेकिन एहतियातन एक छोटा सा कंडीशन भी लगा रखा है - ऐसा होकर ही रहेगा, लेकिन कोविड 19 के खत्म हो जाने के बाद.
2019 का आम चुनाव जीत कर बीजेपी की सत्ता में वापसी के बाद मोदी सरकार की तरफ से संसद में बिल लाया गया और जनवरी, 2020 में CAA को लागू भी कर दिया गया. उसके बाद दिल्ली, फिर बिहार और 2021 में पश्चिम बंगाल के साथ पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की बारी आ गयी - और CAA जैसे होल्ड हो गया. उसके बाद भी यूपी और पंजाब सहित 5 और राज्यों में भी चुनाव हो चुके हैं, लेकिन CAA का नाम दूर दूर तक सुनायी नहीं दिया.
ये CAA का ही मुद्दा है जिस पर बयानबाजी के बाद नीतीश कुमार ने प्रशांत किशोर को जेडीयू से बाहर कर दिया था. लेकिन प्रशांत किशोर के कांग्रेस नेतृत्व और विपक्षी मुख्यमंत्रियों को ललकारने का असर ये हुआ कि सोनिया गांधी बच्चों के साथ राजघाट पहुंच कर संविधान की मूल अवधारणा का पाठ करने लगीं - और उसी माहौल में पीके अपने तात्कालिक क्लाइंट अरविंद केजरीवाल को चुनाव जिताने में सफल हो गये थे.
अभी ये तो नहीं मालूम कि प्रशांत किशोर बिहार में जो कुछ कर रहे हैं वो नीतीश कुमार के खिलाफ है या फेवर में या किसी और के लिए, लेकिन ये तो साफ हो चुका है कि अमित शाह 2024 के मिशन पर निकल चुके हैं - क्योंकि भोपाल में यूनिफॉर्म सिविल कोड और कोलकाता में CAA जुड़वें भाइयों के किसी उत्सव जैसा ही लगता है.
बंगाल की फिक्र तो बीजेपी के लिए बड़ी है
2021 के बंगाल विधानसभा चुनाव ने बीजेपी का आत्मविश्वास हिला कर रख दिया है. यूपी सहित चार राज्यों में चुनाव जीत कर सरकार बनाने के बाद दर्द थोड़ा कम तो हुआ है, लेकिन 2024 के आम चुनाव में 2019 जैसे नतीजे लाने का दबाव तो है ही. 2019 में बीजेपी ने बंगाल की 34 में से 18 सीटें झटक ली थी, लेकिन बाबुल सुप्रियो को इग्नोर करना बहुत भारी पड़ा और शत्रुघ्न सिन्हा के मैदान में उतर जाने से बीजेपी ने आसनसोल गंवा कर एक नंबर काम कर लिया है.
सीएए तो वास्तविकता बनने से ज्यादा प्रभाव आभासी रूप में ही दिखा चुका है, लेकिन चुनावी तैयारियों के लिए ठीक है!
साल भर शांत रहने के बाद अमित शाह ने एक बार फिर पश्चिम बंगाल का रुख किया है क्योंकि लोक सभा की तरह विधानसभा सीटें भी घट गयी हैं. अमित शाह कह रहे हैं कि बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के अत्याचारी शासन को उखाड़ कर लोकतंत्र को बहाल करने तक बीजेपी चैन से नहीं बैठेगी. ‘कट मनी’, भ्रष्टाचार और राजनीतिक हिंसा के खिलाफ बीजेपी लड़ाई जारी रखेगी - और फिर, साल भर बाद ही सही, बंगाल के लोगों का आभार भी जताते हैं, ‘मैं बंगाल विधानसभा में बीजेपी के सदस्यों की संख्या तीन से बढ़ाकर 77 तक पहुंचाने के लिये उत्तर बंगाल के लोगों का शुक्रिया अदा करना चाहता हूं.’
भाषण देते वक्त अमित शाह भूल जाते हैं कि बीते एक साल में उनके सात विधायक बीजेपी छोड़ कर तृणमूल कांग्रेस में लौट चुके हैं. बंगाल बीजेपी का अंदरूनी कलह कम करने के लिए बीजेपी ने दिलीप घोष को हटाकर सुकांत मजूमदार को कमान सौंपी है, लेकिन नेताओं की बीजेपी से नाराजगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है.
भला ममता बनर्जी कहां मौका चूकने वाली हैं. CAA का नाम सुनते ही उनका खून खौल उठता है. अमित शाह को आगाह करते हुए कहती हैं, 'आग से मत खेलो, लोग करारा जवाब देंगे.' साथ ही सलाह भी देती हैं, ‘मेरा मार्गदर्शन न करें या बीएसएफ को राज्य पर शासन करने के लिए न कहें... देश के लोकतांत्रिक ढांचे को ध्वस्त करने के लिए कुछ भी न करें.'
TMC सरकार पर आरोपों की बौछार के बाद, अमित शाह अपनी तरफ से ममता बनर्जी को भी साफ कर देते हैं, 'तृणमूल कांग्रेस अफवाह फैलाती है कि सीएए जमीन पर लागू नहीं होगा... कोरोना की लहर खत्म होने के बाद सीएए को पूरी तरह लागू किया जाएगा... कान खोलकर के टीएमसी वाले सुन लें कि सीएए वास्तविकता है, था और रहेगा... बंगाल से घुसपैठ खत्म करेंगे.'
दरअसल, अमित शाह को ये सब बीजेपी के भरोसेमंद वोट बैंक मतुआ समुदाय को आश्वस्त करने के लिए कहना पड़ रहा है - मतुआ समुदाय ने बीजेपी को लेकर कुछ ज्यादा ही उम्मीदें पाल रखी थी, लेकिन निराशा हाथ लगी.
बीजेपी की मुश्किलें और मतुआ समुदाय की नाराजगी
CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून बीजेपी ने खास मकसद से लाया था और निश्चित तौर बंगाल के मतुआ समुदाय के लोग भी ध्यान में रहे. CAA में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आये गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है. इन तीन देशों से 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को इस कानून के तहत भारतीय नागरिकता दी जानी है - जिनमें हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोग शामिल हैं.
बीजेपी के नागरिकता देने के वादे पर खरा न उतरने के कारण मतुआ समुदाय के लोगों में नाराजगी है, जाहिर है सीधा असर नेताओं पर भी पड़ना ही है. जनवरी, 2022 में ही बंगाल से आने वाले केंद्रीय मंत्री शांतनु ठाकुर सहित मतुआ समुदाय के 40 नेताओं की एक बैठक हुई थी. बैठक में तय किया गया कि अगर सीएए को अमली जामा नहीं पहनाया गया तो वे सड़कों पर उतरेंगे. मतुआ नेताओं की नाराजगी तब भी देखी गयी जब कमान बदलने के बाद बंगाल में बीजेपी की नयी राज्य कमेटी बनायी गयी. विरोध में मतुआ समुदाय के कई नेताओं ने बीजेपी के महत्वपूर्ण व्हाट्सऐप ग्रुप छोड़ दिये थे - और उनमें एक नाम शांतनु ठाकुर का भी रहा.
बंगाल दौरे में अमित शाह के साथ रहे, शांतनु ठाकुर ने CAA पर उनके नये वादे का स्वागत किया है. इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में शांतनु ठाकुर कहते हैं, 'सीएए वास्तविकता के धरातल पर उतरेगा. हमे लगता है कि ये 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले वास्तविकता बन जाएगा.' शांतनु ठाकुर का कहना है कि वो तारीख तो नहीं बता सकते, लेकिन उम्मीद जरूर करते हैं कि अमित शाह जो वादा कर रहे हैं, पूरा भी होगा.
ममता से ज्यादा अलग नहीं है नीतीश का रिएक्शन
ममता बनर्जी के बाद अगर किसी ने अमित शाह के देश में CAA को वास्तविकता का रूप देने के नये वादे पर रिएक्ट किया है तो वो हैं - बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार. हालांकि, नीतीश कुमार ने अमित शाह के लहजे में ही उनको अपना संदेश देने का प्रयास किया है.
याद करें तो संसद में जेडीयू ने नागरिकता संशोधन विधेयक का समर्थन किया था. वोटिंग भी पक्ष में की थी, लेकिन बाद में जब इसका विरोध होने लगा तो पल्ला झाड़ लिया. जेडीयू नेता भी नेतृत्व की आलोचना करने लगे और सरेआम कहने लगे कि पार्टी से गलती हो गयी है.
सीएए को लेकर पूछे जाने पर नीतीश कुमार कहते हैं कि कोरोना संक्रमण फिर से बढ़ने लगा है और ऐसे में ज्यादा चिंता ये है कि लोगों की जान कैसे बचाई जाये? ज्यादा कुरेदने पर भी बस इतना ही कहते हैं, देखिए अब जो भी केंद्र का निर्णय होगा... अभी कोविड-19 का दौर फिर से बढ़ने लगा है... मेरी ज्यादा चिंता है लोगों की रक्षा करने में... कोई पॉलिसी की बात होगी, हम उसको अलग से देखेंगे... अभी हमने देखा नहीं है.'
देखा जाये तो नीतीश कुमार ने अपने हिसाब से साफ कर दिया है कि वो सीएए के पक्ष में अब नहीं हैं, लेकिन वो सीधे सीधे कोई बयान देकर मुसीबत भी नहीं मोल लेना चाहते. बिहार में इफ्तार पार्टियों को लेकर पहले से ही नीतीश कुमार बीजेपी नेतृत्व की नजर में चढ़े हुए हैं, वरना प्रोटोकॉल तोड़ कर अमित शाह से मिलने के लिए पटना एयरपोर्ट जाने की क्या जरूरत थी.
नीतीश कुमार की राय अपनी जगह है, लेकिन अमित शाह के ऐलान के बाद बीजेपी के कई नेता और मंत्री बिहार में भी सीएए को लेकर बयान देने लगे हैं. बीजेपी कोटे से नीतीश कुमार सरकार में मंत्री जनक राम का कहना है कि सीएए बीजेपी का एजेंडा है और इसे बिहार में भी लागू किया जाएगा. बीजेपी से ही एक और मंत्री प्रमोद कुमार कहते हैं कि बंगाल में अगर सीएए हकीकत बनेगा तो ये नहीं कि बिहार में ऐसा नहीं होगा. प्रमोद कुमार का कहना है, हम चाहते हैं कि ये नागरिकता कानून बिहार में भी वास्तविकता बने.
नीतीश कुमार की प्रतिक्रिया से ये पूरी तरह साफ हो गया है कि अमित शाह ने सीएए का जिक्र नये सिरे से सिर्फ बंगाल के लिए ही नहीं छेड़ा है. बंगाल के साथ बिहार और महाराष्ट्र जैसे राज्य भी अमित शाह की निगाह में टिके लगते हैं.
शिवसेना का भी सीएए को लेकर ताजा रुख जेडीयू जैसा ही है. लोकसभा में शिवसेना ने नागरिकता संशोधन बिल के समर्थन में वोट किया था, लेकिन राज्य सभा में वोटिंग के दौरान दूरी बना ली थी. जैसे ही सीएए को लेकर विरोध प्रदर्शन होने लगे, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे कहने लगे कि ये कानून लाकर बीजेपी वीर सावरकर का अपमान कर रही है.
लाउडस्पीकर को लेकर महाराष्ट्र में जो कुछ हो रहा है, पूरा देश देख रहा है. अभी कुछ ही दिन पहले अमित शाह भोपाल में कह रहे थे कि उत्तराखंड में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया गया यूनिफॉर्म सिविल कोड देश के उन सभी राज्यों में लागू किया जाएगा जहां बीजेपी की सरकारें हैं - जाहिर है जाहिर है बीजेपी नेतृत्व के निशाने पर विपक्षी खेमे के कद्दावर नेता हैं जो 2024 में अपने अपने इलाके में बीजेपी के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं.
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