दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Election 2020) भी बीजेपी राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ ही लड़ रही है. पहले महाराष्ट्र-हरियाणा और फिर झारखंड के नतीजों के चलते माना जाने लगा था कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) दिल्ली के लिए कोई और रणनीति अपनाएंगे - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लगातार तीन राज्यों में चुनावी नुकसान उठाने के बावजूद राष्ट्रवाद के एजेंडे से अमित शाह का यकीन कम नहीं हुआ है. अब तो ऐसा लगता है जैसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को बगैर वक्त गंवाये लागू किये जाने में भी एक बड़ी भूमिका दिल्ली विधानसभा चुनाव की ही रही होगी - अमित शाह (Amit Shah focus on Shaheen Bagh protest) ने पहले से ही सोच रखा होगा कि दिल्ली में एक एक चुनावी चाल कैसे चलनी है.
दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी काम के बल चुनाव मैदान में है, लेकिन बीजेपी का पूरा अमला बारी बारी वीडियो जारी कर 'काम' को 'कारनामा' बताने और 'शाहीन बाग' को मुख्य चुनावी मुद्दा साबित करने में जुटा हुआ है - फर्ज कीजिये अगर CAA लागू नहीं हुआ होता तो क्या शाहीन बाग की तरफ किसी का ध्यान भी जाता?
चाहे कश्मीर में धारा 370 का मसला रहा हो या कोई और, अमित शाह का जोर हमेशा बरसों पुरानी स्थापित मान्यताओं को पीछे कर नयी अवधारणा की स्थापना में रही है - क्या ऐसा नहीं लगता जैसे अमित शाह कह रहे हों, 'राष्ट्रवाद चुनावी एजेंडा था, है और रहेगा भी!'
Delhi election में भी राष्ट्रवाद ही BJP का एजेंडा क्यों?
दिल्ली बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलीला मैदान में धन्यवाद रैली करायी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने बाकी चीजों के अलावा दिल्ली में पानी का मुद्दा उठाया, लेकिन ऐसा संदेश गया जैसे वो CAA पर सफाई पेश कर रहे हों - और सरकार उसे कुछ दिन के लिए होल्ड भी कर सकती है. मोदी के भाषण के बाद ही चर्चा होने लगी कि एक ही मुद्दे पर अमित शाह और मोदी की बातों में फर्क क्यों समझ में आ रहा है.
फिर अमित शाह मैदान में उतरे और घोषणा की कि नागरिकता संशोधन...
दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Election 2020) भी बीजेपी राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ ही लड़ रही है. पहले महाराष्ट्र-हरियाणा और फिर झारखंड के नतीजों के चलते माना जाने लगा था कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह (Amit Shah) दिल्ली के लिए कोई और रणनीति अपनाएंगे - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. लगातार तीन राज्यों में चुनावी नुकसान उठाने के बावजूद राष्ट्रवाद के एजेंडे से अमित शाह का यकीन कम नहीं हुआ है. अब तो ऐसा लगता है जैसे नागरिकता संशोधन कानून (CAA) को बगैर वक्त गंवाये लागू किये जाने में भी एक बड़ी भूमिका दिल्ली विधानसभा चुनाव की ही रही होगी - अमित शाह (Amit Shah focus on Shaheen Bagh protest) ने पहले से ही सोच रखा होगा कि दिल्ली में एक एक चुनावी चाल कैसे चलनी है.
दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की आम आदमी पार्टी काम के बल चुनाव मैदान में है, लेकिन बीजेपी का पूरा अमला बारी बारी वीडियो जारी कर 'काम' को 'कारनामा' बताने और 'शाहीन बाग' को मुख्य चुनावी मुद्दा साबित करने में जुटा हुआ है - फर्ज कीजिये अगर CAA लागू नहीं हुआ होता तो क्या शाहीन बाग की तरफ किसी का ध्यान भी जाता?
चाहे कश्मीर में धारा 370 का मसला रहा हो या कोई और, अमित शाह का जोर हमेशा बरसों पुरानी स्थापित मान्यताओं को पीछे कर नयी अवधारणा की स्थापना में रही है - क्या ऐसा नहीं लगता जैसे अमित शाह कह रहे हों, 'राष्ट्रवाद चुनावी एजेंडा था, है और रहेगा भी!'
Delhi election में भी राष्ट्रवाद ही BJP का एजेंडा क्यों?
दिल्ली बीजेपी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रामलीला मैदान में धन्यवाद रैली करायी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने बाकी चीजों के अलावा दिल्ली में पानी का मुद्दा उठाया, लेकिन ऐसा संदेश गया जैसे वो CAA पर सफाई पेश कर रहे हों - और सरकार उसे कुछ दिन के लिए होल्ड भी कर सकती है. मोदी के भाषण के बाद ही चर्चा होने लगी कि एक ही मुद्दे पर अमित शाह और मोदी की बातों में फर्क क्यों समझ में आ रहा है.
फिर अमित शाह मैदान में उतरे और घोषणा की कि नागरिकता संशोधन कानून लागू होकर ही रहेगा. उसके तत्काल बाद ही कानून लागू करने को लेकर अधिसूचना भी जारी हो गयी. अभी तो ऐसा लगता है जैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनाव के प्रचार के मामले में फिलहाल बैकसीट पर हैं - और फ्रंट सीट खुद अमित शाह संभाल रहे हैं. अमित शाह दिल्ली चुनाव में बीजेपी के लिए रोजाना 3 से 4 रैलियां तक कर रहे हैं - और साथ में रोड शो भी अलग से. सुना है रात के 2 बजे तक वो बीजेपी ऑफिस में कार्यकर्ताओं से आगे की रणनीति पर चर्चा करते हैं - और हर उस शख्स से सीधे संपर्क में रहते हैं जिसकी चुनाव प्रचार में अहम भूमिका है.
अमित शाह की रैलियां चाहे जितनी भी हों, भाषण कुछ ही की-वर्ड के इर्द-गिर्द घूमता रहता है - और लब्बोलुआब राष्ट्रवाद ही निकलता है. शुरू में केजरीवाल और उनके साथियों को घेरने के लिए बीजेपी के प्रमुख नाम कन्हैया कुमार हुआ करते थे. अब इसमें शरजील इमाम का नाम भी शुमार हो चुका है. शाहीन बाग तो लगातार ट्रेंड कर ही रहा है.
अमित शाह एक रैली में कहते हैं - 'शरजील को हमने पकड़ लिया है पर उन पर केस चलाने की परमीशन नही देंगे ये. कन्हैया और उमर खालिद, केजरीवाल के क्या लगते हैं?'
सीपीआई नेता और जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे, कन्हैया कुमार के खिलाफ देशद्रोह के केस में दिल्ली सरकार की भूमिका को लेकर बीजेपी लगातार हमलावर रही है - और शरजील के मामले में भी उसी लाइन को आगे बढ़ाया जा रहा है.
बातों के बीच ही अमित शाह चर्चा को शाहीन बाग से भी जोड़ देते हैं - 'दिल्ली में दंगे हुए. सिसोदिया कहते हैं कि हम शाहीन बाग के साथ हैं.'
अमित शाह के बताये हुए रास्ते पर चलते हुए दिल्ली से सांसद प्रवेश वर्मा अरविंद केजरीवाल को 'आतंकवादी' तक बता डालते हैं. दिल्ली की एक जनसभा में प्रवेश वर्मा कहते हैं, ‘…केजरीवाल जैसे नटवरलाल... केजरीवाल जैसे आतंकवादी देश में छुपे बैठे हैं. हमें तो सोचने पर मजबूर होना पड़ता है हम कश्मीर में पाकिस्तानी आतंकवादियों से लड़ें या फिर केजरीवाल जैसे आतंकवादियों से इस देश में लड़ें’.
प्रवेश वर्मा के इसी बयान पर संज्ञान लेते हुए चुनाव आयोग ने सांसद को स्टार प्रचारकों की सूची से बाहर कर दिया है. याद रहे अमित शाह के एक बयान के बाद से प्रवेश वर्मा दिल्ली में मुख्यमंत्री पद के दावेदार समझे जाते रहे हैं. अमित शाह ने मनोज तिवारी की मौजूदगी में केजरीवाल को प्रवेश वर्मा से कहीं भी बहस कर लेने की चुनौती दी थी.
बीजेपी सांसद प्रवेश वर्मा के बयान पर अफसोस जाहिर करते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कहते हैं, '5 साल दिन रात मेहनत कर के दिल्ली के लिए काम किया. दिल्ली के लोगों के लिए अपना सब कुछ त्याग दिया. राजनीति में आने के बाद बहुत कठिनाइयों का सामना किया ताकि लोगों का जीवन बेहतर कर सकूं. बदले में आज मुझे भारतीय जनता पार्टी आतंकवादी कह रही है. बहुत दुख होता है.'
बीजेपी एक तरफ तो केजरीवाल और उनके साथियों को अपने पसंदीदा मुहावरे 'टुकड़े-टुकड़े गैंग' के साथ सहानुभूति रखनेवाला सिद्ध करने का प्रयास कर रही है, ठीक उसी वक्त AAP की दिल्ली सरकार के कामों को कारनामा भी साबित करने की कोशिश कर रही है. ट्विटर पर पोस्ट किया गया ये वीडियो उसी मुहिम का हिस्सा है -
CAA न होता तो 'शाहीन बाग' भी नहीं होता!
देखा जाये तो दिल्ली में बीजेपी के पास कोई दूसरा रास्ता भी न था. महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में बीजेपी की सरकारें रहीं और बताने के लिए बीजेपी के पास उनकी थोड़ी बहुत उपलब्धियां रहीं. दिल्ली में मोदी सरकार के काम और केजरीवाल सरकार का अड़ंगा. जो काम पहले केजरीवाल करते रहे, बीजेपी ने वही दांव आप सरकार के खिलाफ चल दी - 'वो परेशान करते रहे, हम काम करते रहे'. कहने को तो MCD चुनाव भी बीजेपी ने किसी राष्ट्रीय चुनाव की तरह लड़ा और जीता भी, लेकिन गुजरते वक्त के साथ वहां भी केजरीवाल सरकार की उपलब्धियों के मुकाबले बताने को कुछ खास नहीं रहा - और ऊपर से सत्ता विरोधी फैक्टर का डर भी रहा होगा. ऐसे में बीजेपी के पास शाहीन बाग ही बेस्ट ऑप्शन रहा - और अमित शाह और उनके साथी उसी को भुनाने की हर संभव और असंभव कोशिश कर रहे हैं.
अनुराग ठाकुर और प्रवेश वर्मा पर एक्शन के बाद आम आदमी पार्टी चाहती है कि अमित शाह के चुनाव प्रचार पर भी 48 घंटे की पाबंदी लगे. आप के राज्य सभा सांसद संजय सिंह ने दिल्ली के स्कूलों पर बीजेपी के वीडियो को फेक बताते हुए चुनाव आयोग से इस पर रोक लगाने की मांग की है. आप ने इसे इसे गलत तरीके से दिल्ली के लोगों को अपमानित करने से जोड़ने की कोशिश की है.
नागरिकता संशोधन कानून लागू होने के खिलाफ 15 दिसंबर से ही दिल्ली के शाहीन बाग इलाके में विरोध प्रदर्शन हो रहा है जहां प्रदर्शनकारी 24 घंटे डटे हुए हैं और उनमें मुस्लिम महिलाओं की तादाद ज्यादा है.
दिल्ली चुनाव में बीजेपी ने 'शाहीन बाग' को मुख्य चुनावी मुद्दा बनाने की हर मुमकिन कोशिश की है. हालत ये हो चुकी है कि शाहीन बाग को लेकर एक एक कर बीजेपी नेता सारी हदें लांघते जा रहे हैं. बीजेपी के नेता तरुण चुघ ने शाहीन बाग को शैतान बाग बताया है - और दावा कर रहे हैं कि 'हम लोग दिल्ली को सीरिया नहीं बनने देंगे'. केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने तो एक रैली में ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो...’ के नारे भी लगवार डाले. प्रवेश वर्मा तो अनुराग ठाकुर से भी दो कदम आगे नजर आये, ‘दिल्ली में कश्मीर जैसी स्थिति बन रही है... वहां बैठे लाखों लोग आपके घर में घुस जाएंगे और मां-बहनों का रेप करेंगे... हत्या कर देंगे’.
सवाल ये है कि अगर CAA लागू नहीं हुआ होता तो क्या शाहीन बाग में लोग इकट्ठा होकर प्रदर्शन कर रहे होते? और अगर लोग वहां प्रदर्शन नहीं कर रहे होते तो क्या बीजेपी नेताओं को 'शाहीन बाग' को चुनावी मुद्दे के तौर पर पेश करने का मौका मिला होता?
शाहीन बाग पर केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश करते हुए अमित शाह पूछते हैं - 'दिल्ली के शाहीन बाग में इतना बड़ा प्रदर्शन हो रहा है लेकिन CM साहब न तो वहां गये, न ही उस प्रदर्शन को लेकर कोई बात की... मैं उनसे पूछना चाहता हूं कि आखिर वो इस प्रदर्शन को लेकर अपनी राय क्यों नहीं रखते हैं.'
साथ ही, अमित शाह बीजेपी की तरफ से अपनी मांग भी रख देते हैं, 'मैं चाहता हूं कि आप शाहीन बाग को लेकर अपना स्टैंड साफ करें... दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया कहते हैं कि वो शाहीन बाग के साथ हैं. मैं सीएम साहब से भी अनुरोध करता हूं कि वो भी इसे लेकर अपनी बात साफ तौर पर रखें.'
रैलियों में अमित शाह मंच से एक सवाल जरूर पूछते हैं - 'क्या आप लोग केजरीवाल के वोट बैंक हो?'
भीड़ की ओर से जवाब आता है - 'नहीं'
अगला सवाल होता है - 'तो फिर केजरीवाल का वोट बैंक कौन है?'
भीड़ के सामने तस्वीर साफ हो चुकी होती है, इसलिए जवाब आता है - 'शाहीन बाग'
भला और क्या चाहिये? राष्ट्रवाद का एजेंडा अपना असर दिखाने लगा है. अमित शाह चाहते भी तो यही थे. वो कहते हैं दिल्ली के लोग अपने विधायक ढूंढ रहे हैं. कहते हैं, 'पूरी सरकार का रिमोट आपके हाथ में है. आप यहां हिसाब कर दो, सरकार का हिसाब हो जाएगा.'
आखिर में सबसे कारगर सलाह भी दे देते हैं - 'बटन आप यहां दबाना करंट शाहीन बाग में लगना चाहिए.'
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