महाराष्ट्र का वसूली कांड अब दिलचस्प मोड़ ले चुका है. 'ना ना करते प्यार हाय मैं कर गई कर गई कर गई' गाने की तर्ज पर वसूली के आरोप में घिरे महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे ही दिया. इससे पहले जब विपक्ष ने इस्तीफा मांगा तो उन्होंने इसे गैरजरूरी बता दिया था. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैसे ही इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी, देशमुख ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भेज दिया, उसके बाद उनके घर जाकर मुलाकात भी की है. इसके बाद देशमुख दिल्ली रवाना हो गए हैं. बताया जा रहा है कि वहां उनकी राकांपा चीफ शरद पवार से मुलाकात हो सकती है.
अनिल देशमुख ने अपने इस्तीफे में लिखा है, 'आज माननीय हाईकोर्ट की ओर से एडवोकेट जयश्री पाटिल की याचिका पर CBI जांच का आदेश दिया गया है. इसलिए मैं नैतिकता के आधार पर गृह मंत्री के पद से इस्तीफा देता हूं. मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं कि मुझे गृह मंत्री के पद से मुक्त किया जाए.' अब यहां दो प्रमुख सवाल खड़े होते हैं. पहला ये कि यदि इस्तीफा नैतिकता के आधार पर दिया गया, तो ऐसा पहले क्यों नहीं किया गया, जब उनके अधीन एजेंसियां ही उनके मामले की जांच कर रही थीं. इस केस को जब एक केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया गया, तब अनिल देशमुख को अचानक कौन सी नैतिकता याद आ गई?
दूसरी बात ये है कि क्या महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे के बाद यह मान लिया जाए कि अब उद्धव सरकार का संकट टल गया है? या फिर ये मुसीबतों की शुरूआत है, जिससे बचने की कोशिश में महाराष्ट्र सरकार एक के बाद एक अपने लोगों की बलि ले रही है. वैसे आपको बता दें कि उद्धव सरकार की उल्टी गिनती उसी दिन शुरू हो गई थी,...
महाराष्ट्र का वसूली कांड अब दिलचस्प मोड़ ले चुका है. 'ना ना करते प्यार हाय मैं कर गई कर गई कर गई' गाने की तर्ज पर वसूली के आरोप में घिरे महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने आखिरकार अपने पद से इस्तीफा दे ही दिया. इससे पहले जब विपक्ष ने इस्तीफा मांगा तो उन्होंने इसे गैरजरूरी बता दिया था. लेकिन बॉम्बे हाईकोर्ट ने जैसे ही इस केस की जांच सीबीआई को सौंपी, देशमुख ने अपना इस्तीफा मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भेज दिया, उसके बाद उनके घर जाकर मुलाकात भी की है. इसके बाद देशमुख दिल्ली रवाना हो गए हैं. बताया जा रहा है कि वहां उनकी राकांपा चीफ शरद पवार से मुलाकात हो सकती है.
अनिल देशमुख ने अपने इस्तीफे में लिखा है, 'आज माननीय हाईकोर्ट की ओर से एडवोकेट जयश्री पाटिल की याचिका पर CBI जांच का आदेश दिया गया है. इसलिए मैं नैतिकता के आधार पर गृह मंत्री के पद से इस्तीफा देता हूं. मैं आपसे विनम्र निवेदन करता हूं कि मुझे गृह मंत्री के पद से मुक्त किया जाए.' अब यहां दो प्रमुख सवाल खड़े होते हैं. पहला ये कि यदि इस्तीफा नैतिकता के आधार पर दिया गया, तो ऐसा पहले क्यों नहीं किया गया, जब उनके अधीन एजेंसियां ही उनके मामले की जांच कर रही थीं. इस केस को जब एक केंद्रीय जांच एजेंसी को सौंप दिया गया, तब अनिल देशमुख को अचानक कौन सी नैतिकता याद आ गई?
दूसरी बात ये है कि क्या महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे के बाद यह मान लिया जाए कि अब उद्धव सरकार का संकट टल गया है? या फिर ये मुसीबतों की शुरूआत है, जिससे बचने की कोशिश में महाराष्ट्र सरकार एक के बाद एक अपने लोगों की बलि ले रही है. वैसे आपको बता दें कि उद्धव सरकार की उल्टी गिनती उसी दिन शुरू हो गई थी, जिस दिन बीजेपी से अलग होकर शिवसेना ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ सत्ता साझेदारी की थी. इसके बाद से ही कहा जा रहा है कि येन-केन-प्रकारेण बीजेपी शिवसेना को सत्ता से बाहर करके ही दम लेगी. पहले सुशांत केस और अब सचिन वाझे प्रकरण, बीजेपी कोई मौका नहीं छोड़ना चाहती.
मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर परमबीर सिंह ने जब अपने ही बॉस अनिल देशमुख पर वसूली के सनसनीखेज आरोप लगाए, तो महाराष्ट्र के सियासी गलियारे में सनसनी फैल गई. उन्होंने कहा था कि देशमुख ने निलंबित API सचिव वझे को 100 करोड़ रुपए वसूली का टारगेट दिया था. परमबीर का दावा था कि उन्होंने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी ये बात बताई थी, लेकिन कुछ दिन बाद ही उनका ट्रांसफर कर दिया गया. परमबीर की मानें तो वसूली कांड के बारे में सूबे के सीएम उद्धव ठाकरे को पहले से ही पता था. एक इतने वरिष्ठ अफसर के इतने बड़े आरोप को कोई सीएम ऐसे कैसे दरकिनार कर सकता है, जबकि आरोप सीधे गृहमंत्री के ऊपर लगा हो.
ऐसे में उद्धव ठाकरे को अपने स्तर पर इस प्रकरण की जांच जरूर करानी चाहिए थी, बजाए कि क्लिनचिट देकर उल्टा आरोप लगाने वाले अफसर को ही कठघरे में खड़ा करने के. वहीं, इस मामले की जांच मुंबई पुलिस और महाराष्ट्र एटीएस कर रही थी, तो अनिल देशमुख को तभी अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए. क्योंकि ये जांच एजेंसियां तो उनके अंडर में आती थीं, ऐसे में जग जानता है कि जांच कैसी हो रही होगी और इसका परिणाम क्या आता. इस तरह दाल में कुछ काला नहीं है, बल्कि पूरी दाल ही काली नजर आ रही है. अब सीबीआई की जांच महाराष्ट्र के होम मिनिस्टर ऑफिस से होते हुए सीएम ऑफिस तक जाती हुई दिख रही है.
यदि सीबीआई ने ठीक से जांच की तो वसूली कांड का कनेक्शन मुकेश अंबानी के घर एंटिलिया से सीधे जुड़ सकता है. जैसा कि आरोप है कि सचिन वझे को 100 करोड़ रुपये वसूलने का हर महीने का टारगेट दिया गया था. एक होटल से वझे बकायादा वसूली रैकेट चलाता था. इसके लिए किसी को डराने, तो किसी को धमकाने, तो किसी को झूठे केस में फंसाने जैसे काम किए जा रहे थे. नेचुरल है, जब टारगेट बढ़ता है, तो कोशिश अधिक करनी पड़ती है. टारगेट पूरा करने के लिए बड़े 'टारगेट' करने पड़ते हैं. ऐसे में मुकेश अंबानी से बड़ा टारगेट क्या हो सकता था. यदि सारे आरोप सही हुए और जांच एजेंसियां सभी कड़ियों को जोड़ने में कामयाब हुईं, तो उद्धव सरकार गिर सकती है.
उद्धव ठाकरे सरकार के खिलाफ कोई भी मौका न गंवाने वाली बीजेपी एक बार फिर सक्रिय हो गई है. महाराष्ट्र के पूर्व CM देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि गृह मंत्री का यह इस्तीफा बहुत पहले आना चाहिए था, जब परमबीर सिंह के आरोप सामने आए और जब ट्रांसफर रैकेट का खुलासा हुआ था. सचिन वझे के मामले में जिस तरीके से खुलासे हुए साबित करते हैं कि महाराष्ट्र में एक सिंडिकेट राज चल रहा था. इस मामले के खुलासे के बाद CM को उनका इस्तीफा लेना चाहिए था, लेकिन उनसे इस्तीफा नहीं लिया गया और आखिरकार उच्च न्यायालय को इस मामले में हस्तक्षेप करना पड़ा. उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के कारण ही यह इस्तीफा हुआ है.
वैसे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे पर सवाल उठाया जाना लाजिमी भी है. सबसे पहले जब सचिन वझे का नाम केस में आया तो ठाकरे उसके बचाव में आए और कहा था कि वह कोई ओसामा बिन लादेन थोड़ी है, लेकिन जिस तरीके से NIA ने वझे के खिलाफ सबूत दिए, परमबीर सिंह ने गृह मंत्री के ऊपर आरोप लगाए और रश्मि शुक्ला ने ट्रांसफर पोस्टिंग को लेकर रिश्वतखोरी का खुलासा किया वह कई सवाल खड़े करता है. इसी वजह से बीजेपी पूरे मामले में महाराष्ट्र सरकार की भूमिका संदेहास्पद मान रही है. उसका कहना है कि सचिन वझे बहुत छोटा आदमी है और वह अकेले इस पूरे कारनामे को अंजाम नहीं दे सकता है. इस पूरे मामले में एक बड़ी पॉलिटिकल हैंडलिंग थी, जो बाहर आनी चाहिए. नहीं तो यह गुत्थी नहीं सुलझ सकती. अब गेंद सीबीआई और बॉम्बे हाईकोर्ट के पाले में है, देखते हैं परिणाम क्या होगा.
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