अन्ना हजारे ने अपना अनशन फिर से शुरू करने की बातें बहुत बार की. आखिरकार 23 मार्च की तारीख फाइनल हुई. तय तारीख पर अन्ना ने अनशन शुरू किया. वही तारीख जो अंग्रेजों के जमाने में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिये जाने की बरसी के तौर पर मनायी जाती है. ये तारीख कुछ सोच समझ कर ही चुनी गयी होगी.
अन्ना का आंदोलन हफ्ते भर चला और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कर कमलों से खत्म भी हो गया. बताया गया कि सरकार ने तकरीबन सारी मांगें मान लीं, सिर्फ लोकपाल की नियुक्ति के लिए दोनों पक्षों के बीच छह महीने की मोहलत का लेन देन हुआ है.
अन्ना के नये आंदोलन में भीड़ की भारी कमी सबसे ज्यादा चर्चा में रही. अन्ना का ये आंदोलन खत्म और शुरू कुछ ऐसे हुआ है कि कई सवाल खड़े हो गये हैं. या तो अन्ना की मांगों में दम नहीं रहा? या फिर मोदी सरकार अन्ना के आंदोलन से मनमोहन सरकार से भी ज्यादा डर गयी? या फिर मोदी राज में अन्ना को कुछ ज्यादा ही भाव मिला?
अन्ना के आंदोलन की 'एकांत-कथा'
धूमिल की नजरों से देखें तो अन्ना हजारे के आंदोलन में 'उत्तेजित' होने के लिए कुछ भी नहीं था. 'एकान्त-कथा' में धूमिल ने कहा है, "मेरे पास उत्तेजित होने के लिए / कुछ भी नहीं है / न कोकशास्त्र की किताबें / न युद्ध की बात..."
अन्ना के नये आंदोलन में भी ऐसा एक्साइटिंग कुछ भी नहीं था - पिछली बार जैसा ड्रामा, थ्रिल या एक्शन. कुछ भी नहीं. न वीकेंड पर तफरीह के लिए निकली भीड़, न कैमरे की चकाचौंध. न किसी स्वामी और मंत्री की बातचीत का वायरल वीडियो. न ही सांसों को ठहरा देने वाली कोई मेडिकल बुलेटिन.
आखिर ऐसा क्या था? सात साल बाद अन्ना का आंदोलन सातवें दिन खुशी खुशी खत्म हो गया. जो...
अन्ना हजारे ने अपना अनशन फिर से शुरू करने की बातें बहुत बार की. आखिरकार 23 मार्च की तारीख फाइनल हुई. तय तारीख पर अन्ना ने अनशन शुरू किया. वही तारीख जो अंग्रेजों के जमाने में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दिये जाने की बरसी के तौर पर मनायी जाती है. ये तारीख कुछ सोच समझ कर ही चुनी गयी होगी.
अन्ना का आंदोलन हफ्ते भर चला और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कर कमलों से खत्म भी हो गया. बताया गया कि सरकार ने तकरीबन सारी मांगें मान लीं, सिर्फ लोकपाल की नियुक्ति के लिए दोनों पक्षों के बीच छह महीने की मोहलत का लेन देन हुआ है.
अन्ना के नये आंदोलन में भीड़ की भारी कमी सबसे ज्यादा चर्चा में रही. अन्ना का ये आंदोलन खत्म और शुरू कुछ ऐसे हुआ है कि कई सवाल खड़े हो गये हैं. या तो अन्ना की मांगों में दम नहीं रहा? या फिर मोदी सरकार अन्ना के आंदोलन से मनमोहन सरकार से भी ज्यादा डर गयी? या फिर मोदी राज में अन्ना को कुछ ज्यादा ही भाव मिला?
अन्ना के आंदोलन की 'एकांत-कथा'
धूमिल की नजरों से देखें तो अन्ना हजारे के आंदोलन में 'उत्तेजित' होने के लिए कुछ भी नहीं था. 'एकान्त-कथा' में धूमिल ने कहा है, "मेरे पास उत्तेजित होने के लिए / कुछ भी नहीं है / न कोकशास्त्र की किताबें / न युद्ध की बात..."
अन्ना के नये आंदोलन में भी ऐसा एक्साइटिंग कुछ भी नहीं था - पिछली बार जैसा ड्रामा, थ्रिल या एक्शन. कुछ भी नहीं. न वीकेंड पर तफरीह के लिए निकली भीड़, न कैमरे की चकाचौंध. न किसी स्वामी और मंत्री की बातचीत का वायरल वीडियो. न ही सांसों को ठहरा देने वाली कोई मेडिकल बुलेटिन.
आखिर ऐसा क्या था? सात साल बाद अन्ना का आंदोलन सातवें दिन खुशी खुशी खत्म हो गया. जो थोड़े बहुत लोग आये थे, अपने अपने ठिकाने की ओर हंसते गाते चल पड़े - एक नयी तारीख याद करते हुए. अगस्त में काम नहीं हुआ तो सितंबर में फिर क्रांति होगी!
तब एक और क्रांति होगी! तब तक चुनावों की महफिल फिर से सज चुकी होगी. राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ में जंग की तैयारी चल रही होगी. 2019 के लिए रिहर्सल चल रहा होगा. राष्ट्रवाद पर बहस चरम पर होगी और एक बार फिर रामलीला मैदान में देशभक्ति का ऑकेस्ट्रा बज रहा होगा. अन्ना का आंदोलन बिलकुल म्युजिकल नोट्स के हिसाब से चलता नजर आया. कोई दो हाथ उपर नीचे लहराते हुए, लेकिन हाथों में तिरंगा थामे वो किरण बेदी नहीं थीं. फिर भी लगा जैसे सारे म्युजिशियन अपने अपने साज पहले ही ट्यून कर आये हों - 'सी-शार्प' स्केल में. जैसे संगीत के साथ साथ सारे हाव भाव की स्क्रिप्ट भी बहुत पहले ही फाइनल हो चुकी हो. हद से ज्यादा उम्दा और बेशक बेस्ट कि मौके पर किसी भी हेरफेर का कोई लोचा ही न हो. क्या अन्ना के इस आंदोलन की स्क्रिप्ट बहुत पहले फाइनल हो चुकी थी? क्या उससे भी पहले जब ट्रेलर के साथ 23 मार्च की रिलीज डेट बतायी गयी थी? फिर प्रोड्यूसर कौन था? शो का डायरेक्टर कौन था? प्रोडक्शन कोऑर्डिनेटर कौन था?
ऐसा क्यों लगता है जैसे सब कुछ फिक्स था. आंदोलनकारियों से एफिडेविट लिया जाना. खुद अन्ना के मुहं से अरविंद केजरीवाल को ही भ्रष्ट बता दिया जाना. संपर्क और संचार भी सिर्फ सरकारी महकमे के लोगों और सत्ताधारी नेताओं के साथ. किसी को मालूम है ये पूरी पटकथा किसने लिखी थी? या फिर सब कुछ इतने अच्छे से होता गया जैसे मैजिक रियलिज्म का अहसास हो रहा हो.
अन्ना का सोशल स्टेटमेंट
जब अन्ना अनशन पर बैठे तो बहुत गुस्से में दिखे. मोदी सरकार के प्रति गहरी नाराजगी भी जतायी. बोले - चार साल में 43 चिट्ठियां भेजीं और एक भी जवाब नहीं मिला. हर साल 10 के औसत से.
बाद में अन्ना ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा, "कई दिनों से देख रहा हूं कि कई लोग मेरी आलोचना कर रहे हैं और मुझ पर झूठे आरोप लगाकर मुझे बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं. मैंने जीवन में बहुत आलोचना सहन की है और मुझे इससे कभी डर नहीं लगता ना ही मैं उससे दुखी होता हूं. मुझे देश हित के सिवा कुछ नहीं चाहिए, मुझे ना किसी से वोट मांगने हैं, ना कुछ और. दुख केवल इस बात का है कि मेरी आलोचना करने वाले सिर्फ झूठ बोलते हैं और उस पर बात नहीं करते जो मुद्दे मैंने आंदोलन में उठाए. फिर भी भगवान उनका भला करे."
अन्ना की मांगें
अन्ना की मांगों में पहले लोकपाल की नियुक्ति सबसे ऊपर हुआ करती थी. इस बार उनके एजेंडे में किसानों का मुद्दा भी शुमार हो गया था. अन्ना की मुख्य तौर पर ये मांगे रहीं.
1. किसानों के कृषि उपज की लागत के आधार पर डेढ़ गुना ज्यादा दाम मिले.
2. खेती पर निर्भर 60 साल से ऊपर उम्र वाले किसानों को प्रतिमाह 5 हजार रुपये पेंशन.
3. कृषि मूल्य आयोग को संवैधानिक दर्जा तथा सम्पूर्ण स्वायत्तता मिले.
4. लोकपाल विधेयक पारित हो और लोकपाल कानून तुरंत लागू किया जाए.
5. लोकपाल कानून को कमजोर करने वाली धारा 44 और धारा 63 का संशोधन तुरंत रद्द हो.
6. हर राज्य में सक्षम लोकायुक्त नियुक्त किया जाए.
7. चुनाव सुधार के लिए सही निर्णय लिया जाए.
केंद्र सरकार की ओर से अन्ना से बात करने के लिए महाराष्ट्र के मंत्री गिरीश महाजन को भेजा गया. मुलाकात के बाद महाजन ने बताया, "अन्ना ने 11 मुद्दे उठाए थे जिनमें से 7-8 पर सहमति बन गई है... लोकपाल की नियुक्ति पर समय सीमा तय करने को लेकर समस्या आ गई है." इस बाबत महाजन ने बताया कि जो बात अटक गयी है उसके लिए वो दोबारा प्रधानमंत्री कार्यालय से बात कर बताएंगे.
Breaking News:Noted social activist #AnnaHazare ends his fast in presence of Maharashtra CM @Dev_Fadnavis , nion Minister Gajendra Singh Shekhawat, Maharashtra Minister Girish Mahajan at Ramleela ground, New Delhi..@gssjodhpur pic.twitter.com/dQqXHZefAD
— CMO Maharashtra (@CMOMaharashtra) March 29, 2018
अनशन खत्म करने के बाद अन्ना ने कहा, "सरकार ने किसानों से संबंधित सभी मांगें मान ली है. अभी लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त का गठन नहीं हुआ है. सरकार ने हमसे छह महीने का समय मांगा है. हम उन्हें समय देते हैं. सरकार ने हमारी मांगों को पूरी करने का आश्वासन दिया है."
ऐसा विरोधाभास क्यों?
भीड़ कम होने को लेकर अन्ना हजारे ने दो कारण बताये थे. एक, मोदी सरकार ने ट्रेन और बसों को रोककर किसानों का रास्ता रोक दिया ताकि वो दिल्ली से दूरे रहें. दूसरी, इस आंदोलन में लोग राजनीतिक नहीं थे. अन्ना के पिछले आंदोलन में भी कोई राजनीतिक व्यक्ति नहीं था. किसी की मंशा क्या थी और मकसद क्या रहा, ये बात अलग है. मगर, तब तो अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया भी राजनीतिक नहीं थे. योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण भले ही अब स्वराज पार्टी चला रहे हों तब बस अपनी अपनी फील्ड के महारथी थे. किरण बेदी ने भी तब बीजेपी नहीं ज्वाइन किया था. अनुपम खेर भी पॉलिटिकली इस कदर एक्टिव नहीं थे.
हां, तब सत्ता पर काबिज कांग्रेस के नेता ये जरूर कहते रहे कि अन्ना के आंदोलन के पीछे आरएसएस का हाथ है. बाद में ऐसी बातें भी सुनी गयीं कि आंदोलन में पहुंचने वालों की मदद के लिए बतौर कारसेवक संघ कार्यकर्ताओं की हिस्सेदारी जरूर रही. अरसे बाद , अन्ना पिछले आंदोलन में राजनीतिक लोगों की भागीदारी की बात कर रहे हैं तो क्या कांग्रेस नेताओं के उन आरोपों और अन्ना की मौजूदा बातों में कोई कनेक्शन है?
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