यूं तो देश में शांति है. मगर जब ट्विटर सरीखे प्लेटफॉर्म का रुख करते हैं तो वहां हालात जुदा हैं. चाहे आम आदमी हो या फिर ब्लू टिक वाले वेरिफाइड एकाउंट सबका अपना एजेंडा है और सब उसी के मद्देनजर काम कर रहे हैं. अजीब ये है कि आदमी पेशे के लिहाज से चाहे पत्रकार हो, वकील हो, डॉक्टर हो, समाज सेवी हो वो अपनी सुविधा और सुचिता के हिसाब से अपने तरकश में रखे बाण चला रहा है. हैरान करने वाली बात ये है कि उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उसकी करनी का सीधा असर एक समाज के रूप में हमपर क्या पड़ेगा.
उपरोक्त बातों को समझने के लिए यूं तो तमाम उदाहरण हैं लेकिन हम ऑल्ट न्यूज़ के सीओ फाउंडर मोहम्मद जुबैर को जरूर कोट करना चाहेंगे. आज भले ही जुबैर को जमानत मिल गयी हो और करीब 3 हफ्ते तिहाड़ में रहने के बाद वो बाहर आ गए हों. लेकिन अगर हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ी है. तो इसमें जुबैर और उनके जैसे अन्य लोगों का बहुत बड़ा योगदान है.
चाहे वो हिंदू मुस्लिम वाले ट्वीट हों या फिर मुद्दों के प्रति जुबैर जैसे लोगों का सिलेक्टिव अप्रोच इस बात में कोई शक नहीं है कि भले ही ये लोग अपनी गतिविधियों से अपने अपने खेमे को संतुष्ट कर रहे हों, मगर इस बात में भी कोई शक नहीं है कि एक समाज के रूप में हम सोशल मीडिया क्रांति का खामियाजा भुगत रहे हैं.
जिक्र ऑल्ट न्यूज़ के सीओ फाउंडर मोहम्मद ज़ुबैर का हुआ है तो हमें केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा संसद में कही उस बात को समझना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि फैक्ट चेकर और उसके नाम पर समाज में वैमनस्यता फैलाने वाले लोगों के बीच अंतर को समझना जरूरी...
यूं तो देश में शांति है. मगर जब ट्विटर सरीखे प्लेटफॉर्म का रुख करते हैं तो वहां हालात जुदा हैं. चाहे आम आदमी हो या फिर ब्लू टिक वाले वेरिफाइड एकाउंट सबका अपना एजेंडा है और सब उसी के मद्देनजर काम कर रहे हैं. अजीब ये है कि आदमी पेशे के लिहाज से चाहे पत्रकार हो, वकील हो, डॉक्टर हो, समाज सेवी हो वो अपनी सुविधा और सुचिता के हिसाब से अपने तरकश में रखे बाण चला रहा है. हैरान करने वाली बात ये है कि उसे इस बात से कोई मतलब नहीं है कि उसकी करनी का सीधा असर एक समाज के रूप में हमपर क्या पड़ेगा.
उपरोक्त बातों को समझने के लिए यूं तो तमाम उदाहरण हैं लेकिन हम ऑल्ट न्यूज़ के सीओ फाउंडर मोहम्मद जुबैर को जरूर कोट करना चाहेंगे. आज भले ही जुबैर को जमानत मिल गयी हो और करीब 3 हफ्ते तिहाड़ में रहने के बाद वो बाहर आ गए हों. लेकिन अगर हिंदू और मुसलमानों के बीच दूरी बढ़ी है. तो इसमें जुबैर और उनके जैसे अन्य लोगों का बहुत बड़ा योगदान है.
चाहे वो हिंदू मुस्लिम वाले ट्वीट हों या फिर मुद्दों के प्रति जुबैर जैसे लोगों का सिलेक्टिव अप्रोच इस बात में कोई शक नहीं है कि भले ही ये लोग अपनी गतिविधियों से अपने अपने खेमे को संतुष्ट कर रहे हों, मगर इस बात में भी कोई शक नहीं है कि एक समाज के रूप में हम सोशल मीडिया क्रांति का खामियाजा भुगत रहे हैं.
जिक्र ऑल्ट न्यूज़ के सीओ फाउंडर मोहम्मद ज़ुबैर का हुआ है तो हमें केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर द्वारा संसद में कही उस बात को समझना होगा जिसमें उन्होंने कहा था कि फैक्ट चेकर और उसके नाम पर समाज में वैमनस्यता फैलाने वाले लोगों के बीच अंतर को समझना जरूरी है.
दरअसल आरजेडी सांसद मनोज कुमार झा ने मोहम्मद जुबैर की गिरफ्तारी का हवाला देते हुए पूछा था कि समाज में नफरत फैलाने वाले लोगों से निपटने के लिए क्या प्रक्रिया है? सवाल का जवाब देते हुए अनुराग ठाकुर ने कहा कि, 'यह समझना जरूरी है कि फैक्टचेकर कौन है और कौन समाज में वैमनस्यता फैलाने का प्रयास करता है. यदि उनके खिलाफ शिकायत दर्ज होती है तो फिर कानून अपने मुताबिक काम करेगा.'
गौरतलब है कि फैक्ट चेक्स और मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ़्तारी पर मनोज झा ने संसद में कहा था कि, 'मैं कहना चाहूंगा कि जिन लोगों के भाषणों के चलते समाज में वैमनस्यता फैलती है, उनके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता है. लेकिन फैक्ट चेकर्स के खिलाफ कार्रवाई हो जाती है, जैसा हमने पिछले दिनों देखा है.'
मनोज की इन बातों के जवाब में अनुराग ठाकुर ने कहा कि अखबारों के खिलाफ कोई शिकायत दर्ज होने पर प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया की ओर से फैसला लिया जाता है. इसके अलावा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ऐंड आईटी मिनिस्ट्री की ओर से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रसारित कॉन्टेंट पर कार्रवाई की जाती है.
ठाकुर के अनुसार समाज में फैक्ट चेक के नाम पर वैमनस्यता फैलाने वाले लोगों पर कानून के तहत ऐक्शन हुआ है. इसमें मंत्रालय की कोई भूमिका नहीं है. वहीं एक अन्य सवाल का जवाब देते हुए अनुराग ठाकुर ने इस बात को भी स्वीकारा कि केंद्र सरकार ने 2021-22 में फेक न्यूज फैलाने वाले 94 यूट्यूब चैनलों, 747 यूआरएल और 19 सोशल मीडिया अकाउंट्स को ब्लॉक किया था.
मामले पर बोलते हुए जैसा अंदाज अनुराग ठाकुर का था. इस बात की तस्दीख स्वतः हो जाती है कि, सोशल मीडिया पर नफरत फैलाने वाले भले ही अपनी बातों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दे दें लेकिन सरकार और जांच एजेंसियां अब इन्हें हल्के में लेने के मूड में बिल्कुल भी नहीं हैं. एजेंडे के नामपर नफरत फैलाने वाले चाहे वो हिंदू हों या मुस्लिम कानून अपना काम करेगा और यदि वो दोषी पाए गए तो उन्हें उचित सजा भी दी जाएगी.
भले ही लोग ये कह दें कि जैसी मंशा सरकार की है उसके बाद शायद ही कोई फैक्ट चेक करने की हिम्मत कर पाए? ऐसे में हम बस इतना ही कहना चाहेंगे कि सबसे पहले तो हमें इस बात को समझना होगा कि वो व्यक्ति जो सोशल मीडिया पर अपने को फैक्ट चेकर बता रहा है वो वास्तव में फैक्ट चेक कर रहा है या फिर उसका मकसद झूठ फैलाना और तनाव पैदा करना है.
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