भारतीय राजनीति (Indian politics) में कई ऐसी महिला नेता (female politicians) हैं जिन्होंने जाति-बंधन तोड़कर प्रेम- विवाह (love marriage) किया है. जाति-धर्म में भेदभाव न मानने की बातें सिर्फ कहने के लिए अच्छी नहीं लगतीं, असल में बात तो तब हो जब कोई इन्हें अपनी निजी जिंदगी में भी अपनाएं.
हम जिन महिला नेताओं की बात कर रहे हैं वे जाति-धर्म में भेदभाव नहीं करतीं और इन्होंने शादी भी दूसरे जाति-धर्म में किया है. हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका राजनीति की दुनिया में काफी बोल बाला है और उनकी लव मैरिज परिवार की रजामंदी के साथ हुई है जो सफल साबित हुई है.
अपर्णा यादव (Aparna Yadav)
आज राजनीति की दुनिया में इस नाम की काफी चर्चा है क्योंकि अपर्णा यादव ने परिवार की तरफ से विरासत में मिली राजनीति की दुनिया यानी सपा का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं. अपर्णा यादव ने मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव से प्रेम विवाह किया है. इनकी मुलाकात प्रतीक यादव से लखनऊ में स्कूल के दिनों में हुई थी. उस वक्त दोनों एक स्कूल में नहीं पढ़ते थे लेकिन इंटर स्कूल फंक्शन्स में मिला करते थे.
उस वक्त अपर्णा को पता भी नहीं था कि वे मुलामय सिंह यादव के परिवार से हैं. साल 2001 में एक बर्थडे पार्टी में प्रतीक ने उनसे मेल आईडी मांगी थी. तब मोबाइल का जमाना जो नहीं था. जब अपर्णा ने अपना मेल देखा तो इनका...
भारतीय राजनीति (Indian politics) में कई ऐसी महिला नेता (female politicians) हैं जिन्होंने जाति-बंधन तोड़कर प्रेम- विवाह (love marriage) किया है. जाति-धर्म में भेदभाव न मानने की बातें सिर्फ कहने के लिए अच्छी नहीं लगतीं, असल में बात तो तब हो जब कोई इन्हें अपनी निजी जिंदगी में भी अपनाएं.
हम जिन महिला नेताओं की बात कर रहे हैं वे जाति-धर्म में भेदभाव नहीं करतीं और इन्होंने शादी भी दूसरे जाति-धर्म में किया है. हम जिनकी बात कर रहे हैं उनका राजनीति की दुनिया में काफी बोल बाला है और उनकी लव मैरिज परिवार की रजामंदी के साथ हुई है जो सफल साबित हुई है.
अपर्णा यादव (Aparna Yadav)
आज राजनीति की दुनिया में इस नाम की काफी चर्चा है क्योंकि अपर्णा यादव ने परिवार की तरफ से विरासत में मिली राजनीति की दुनिया यानी सपा का दामन छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गई हैं. अपर्णा यादव ने मुलायम सिंह यादव के छोटे बेटे प्रतीक यादव से प्रेम विवाह किया है. इनकी मुलाकात प्रतीक यादव से लखनऊ में स्कूल के दिनों में हुई थी. उस वक्त दोनों एक स्कूल में नहीं पढ़ते थे लेकिन इंटर स्कूल फंक्शन्स में मिला करते थे.
उस वक्त अपर्णा को पता भी नहीं था कि वे मुलामय सिंह यादव के परिवार से हैं. साल 2001 में एक बर्थडे पार्टी में प्रतीक ने उनसे मेल आईडी मांगी थी. तब मोबाइल का जमाना जो नहीं था. जब अपर्णा ने अपना मेल देखा तो इनका मेलबॉक्स प्रतीक के मैसेज से भरा था. जिसमें उन्होंने अपने प्यार का इजहार किया था. दोनों एक-दूसरे के दोस्त बने रहे. दोनों ने 10 सालों बाद 2011 में सगाई की और फिर परिवार की मर्जी से साल 2012 में शादी कर ली. अपर्णा राजपूत परिवार से हैं जबकि पति प्रतीक, यादव हैं.
डिंपल यादव (Dimple yadav)
अब बात करते हैं यूपी के भईय़ा-भाभी यानी डिंपल यादव और अखिलेश यादव की जिनकी प्रेम कहानी की शुरुआत इंजीनियरिंग कॉलेज से हुई. सबसे पहले यह बता दें कि मुलायम सिंह यादव को डिंपल अपने बेटे के लिए पहले पसंद नहीं थी. अखिलेश यादव ने बड़ी मिन्नतें और जिंद करके पिता को इस शादी करने के लिए राजी किया था. असल में डिंपल राजपूत परिवार से हैं औऱ उत्तराखंड के निवासी रहे लेफ्टिनेंट कर्नल एससी रावत की बेटी हैं.
दोनों की मुलाकात एक कॉमन फ्रेंड के घर पर हुई थी तब अखिलेश महज 21 साल के थे और डिंपल 17 साल की. इसके बाद दोनों में दोस्ती हुई जो बाद में और बाद में प्यार में बदल गई. सुनीता एरन की किताब 'अखिलेश यादव- बदलाव की लहर' के अनुसार, अखिलेश जब हाई एजुकेशन के लिए ऑस्ट्रेलिया चले गए थे तब भी ने लागातार डिंपल के संपर्क में रहे. अखिलेश डिंपल को लव लेटर्स और ग्रीटिंग कार्ड्स भी भेजा करते थे. यह सिलसिला लगभग चार सालों तक चलता रहा. वहीं जब अखिलेश अपनी पढ़ाई पूरी कर उत्तर प्रदेश लौटे तो डिंपल से शादी करने का मन लगभग बना लिया था.
पिता मुलायम सिंह यादव बड़ी सोच-विचार के बाद इस शादी के लिए तैयार हुए. साल 1999 में 24 नवंबर को दोनों शादी के बंधन में बंध गए. शादी के बाद डिंपल भी राजनीति में सक्रिय हो गई. वह कन्नौज से लगातार दो बार सांसद रह चुकी हैं. यूपी 2017 विधान सभा चुनाव में उन्होंने कई रैलियां की थीं. जिनकी चर्चा हुई थी. डिंपल अपने पति और यूपी के पूर्व सीएम का हमेशा साथ देती हैं और उनकी हिम्मत बढ़ाती हैं.
स्मृति ईरानी (Smriti Irani)
इस नाम को कौन नहीं जानता? एक दमदार महिला नेता जिसके नाम का डंका राजनीति में बजता है. जो किसी भी मुद्दे पर खुलकर अपनी बात रखने की हिम्मत रखती हैं. स्मृति ईरानी वह मजबूत महिला जिसने अपनी शर्तों पर जिंदगी जीने की ठानी और वह मुकाम हांसिल किया जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी. जिंदगी के संघर्ष, गरीबी को मात देकर एक्टिंग से लेकर सियासत की दुनिया में अपनी पहचान बनाई. वे एक सफल मां, पत्नी, नेता और एक महिला है. स्मृति ईरानी ने जुबिन ईरानी ने लव मैरिज की है. स्मृति का परिवार संस्कृति और संस्कारों में काफी विश्वास रखने वाला है.
असल में स्मृति कुछ रोल्स के लिए जब ऑडिशंस दे रही थीं तभी उनकी दोस्ती होती है एक पारसी बिज़नेसमैन जुबिन ईरानी से हुई. एक समय में स्मृति 'क्योंकि सास भी कभी बहू थी' और 'रामायण' जैसे टीवी शोज की बदौलत सफलता के शिखर पर थीं. उसी वक्त दोनों ने अपनी दोस्ती को एक नया रूप देने का फैसला किया. जुबिन ने खुद अपनी मां के हाथों स्मृति को शादी का प्रपोजल भेजा था. साल 2001 में दोनों एक-दूसरे के साथ शादी के बन्धन में बंध गए. दोनों हर जाति-धर्म से परे जिन्दगी भर के लिए एक-दूजे के हो गए.
एक इंटरव्यू के दौरान स्मृति ने कहा था कि "मैंने जुबिन से शादी की, क्योंकि मुझे उनकी जरुरत थी. मैं उनसे सलाह लेती थी, उनसे बात करती थी, हम रोज मिलते थे. तो हमने सोचा कि क्यों ना हम एक-दूसरे से शादी कर लें और हमेशा के लिए एक अच्छे दोस्त और शादीशुदा कपल बन जाएं. मेरे और उनके, दोनों के घर वाले हमारी शादी से खुश थे और उन्होंने हमें अपना आशीर्वाद भी दिया. मैं कभी भी अपने घर वालों के खिलाफ जाकर शादी नहीं करना चाहती थी, क्योंकि मेरा हमेशा से यह मानना था कि अपनी फैमिली को दुख देकर शादी करने से कोई भी कपल कभी खुश नहीं रह पाता और उनकी शादी भी बर्बाद हो जाती है."
दोनों आज एक बेहद सफल कपल के रूप में जाने जाते हैं, जबकि जुबिन का पहले तलाक हो चुका था. दोनों ने यह साबित कर दिया कि अगर जीवन साथी एक-दूसरे का सपोर्ट करें तो दोनों ही अपनी जिंदगी में साथ में आग बढ़ सकते हैं. स्मृति राजनीति में नाम कमा रही हैं तो वहीं जुबिन एक सफल बिजनेस हैं. स्मृति कई बार इस बात का जिक्र कर चुकी हैं कि उनकी सफलता में उनके पति का कितना सहयोग हैं.
महिलाएं किसी से कम नहीं होती हैं. उन्हें किसी के सहारे की नहीं बल्कि साथ की जरूरत होती हैं. आजकल जहां फिल्मी गलियारें में रिश्तों की कोई अहमियत नहीं है. एक के बाद एक लगातार तलाक हो रहे हैं. वहीं इन महिला नेताओं ने बता दिया है कि देश और रिश्ते को एक साथ कैसे संभाला जाता है. राजनीति में भी नेता बहुत व्यस्त रहते हैं लेकिन परिवार की अहमियत हो भी समझते हैं. इन महिला नेताओं ने साबित किया है कि एक नारी कुछ भी कर सकती है और कोई भी रिश्ता हर जाति-धर्म से बढ़कर होता है, बेशक अगर आप उसे निभाना चाहें तों...ये नए जमाने की महिला नेता अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेती हैं और आत्मनिर्भर हैं.
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