अपर्णा यादव (Aparna Yadav) ने अपने ससुर मुलायम सिंह यादव से आशीर्वाद लेने की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की है. ये अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद की तस्वीर है और ये बात भी मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ने ही बतायी है.
अपर्णा यादव को अपने पाले में ले लेने का बाद बीजेपी की तरफ से एक पोस्टर जारी किया गया है. पोस्टर में ऊपर सुरक्षा चक्र लिखा है और नीचे - 'सुरक्षा जहां बेटियां वहां'. पोस्टर में अपर्णा के अलावा दूसरी तस्वीर संघमित्रा मौर्य की है. संघमित्रा, दरअसल, बीजेपी छोड़ कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर चुके स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं. पोस्टर देख कर विपक्ष ने तो हमला बोला ही है, बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य ने भी खुद और अपर्णा को लेकर हुए भेदभाव को जातीय रंग देते हुए सवाल खड़ा किया है कि 'बहू और बेटियों में फर्क क्यों?'
बीजेपी का पोस्टर तो अपनी जगह है, अपर्णा यादव के फोटो पर भी लोग 'जय श्रीराम' के नारे से लेकर 'आएगा तो योगी ही' हैशटैग के साथ रिएक्ट कर रहे हैं. 2019 के आम चुनाव में ऐसा ही हैशटैग चला था - 'आएगा तो मोदी ही'.
अपर्णा यादव की शेयर की हुई तस्वीर और उसमें 'आशीर्वाद' लेने के जिक्र ने सोलहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन की याद दिला दी है. सदन का वो नजारा जब मुलायम सिंह यादव सरेआम, सोनिया गांधी सहित तमाम विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दे रहे थे - और जब प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही खास तौर पर जिक्र किया कि उनको तो मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद मिल ही गया है.
जरा सोचिये, अपर्णा यादव को आशीर्वाद देते वक्त भी मुलायम सिंह यादव की जबान पर या मन में सरस्वती बैठीं हुई हों तो खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? बेटे...
अपर्णा यादव (Aparna Yadav) ने अपने ससुर मुलायम सिंह यादव से आशीर्वाद लेने की तस्वीर ट्विटर पर शेयर की है. ये अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन करने के बाद की तस्वीर है और ये बात भी मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू ने ही बतायी है.
अपर्णा यादव को अपने पाले में ले लेने का बाद बीजेपी की तरफ से एक पोस्टर जारी किया गया है. पोस्टर में ऊपर सुरक्षा चक्र लिखा है और नीचे - 'सुरक्षा जहां बेटियां वहां'. पोस्टर में अपर्णा के अलावा दूसरी तस्वीर संघमित्रा मौर्य की है. संघमित्रा, दरअसल, बीजेपी छोड़ कर समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर चुके स्वामी प्रसाद मौर्य की बेटी हैं. पोस्टर देख कर विपक्ष ने तो हमला बोला ही है, बदायूं से बीजेपी सांसद संघमित्रा मौर्य ने भी खुद और अपर्णा को लेकर हुए भेदभाव को जातीय रंग देते हुए सवाल खड़ा किया है कि 'बहू और बेटियों में फर्क क्यों?'
बीजेपी का पोस्टर तो अपनी जगह है, अपर्णा यादव के फोटो पर भी लोग 'जय श्रीराम' के नारे से लेकर 'आएगा तो योगी ही' हैशटैग के साथ रिएक्ट कर रहे हैं. 2019 के आम चुनाव में ऐसा ही हैशटैग चला था - 'आएगा तो मोदी ही'.
अपर्णा यादव की शेयर की हुई तस्वीर और उसमें 'आशीर्वाद' लेने के जिक्र ने सोलहवीं लोकसभा के अंतिम सत्र के आखिरी दिन की याद दिला दी है. सदन का वो नजारा जब मुलायम सिंह यादव सरेआम, सोनिया गांधी सहित तमाम विपक्षी नेताओं की मौजूदगी में, नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को दोबारा प्रधानमंत्री बनने की शुभकामनाएं दे रहे थे - और जब प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण की शुरुआत में ही खास तौर पर जिक्र किया कि उनको तो मुलायम सिंह यादव का आशीर्वाद मिल ही गया है.
जरा सोचिये, अपर्णा यादव को आशीर्वाद देते वक्त भी मुलायम सिंह यादव की जबान पर या मन में सरस्वती बैठीं हुई हों तो खामियाजा किसे भुगतना पड़ेगा? बेटे अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ही तो भुगतेंगे, जिनके लिए वक्त आने पर मुलायम ने शिवपाल सिंह यादव जैसे भाई और अपर्णा जैसी बहू से भी मुंह मोड़ लिया - और अखिलेश यादव को भरपूर मनमानी करने की छूट दे डाली. मजबूरन ही सही, शिवपाल यादव तो पांच साल भटकने के बाद कुछ हद तक लौट भी आये, लेकिन बहू तो सीधे उनकी विरासत के दुश्मन के पाले में जा मिली.
अपर्णा को आशीर्वाद तो अखिलेश के लिए क्या समझा जाये?
अपर्णा यादव ने ये तो नहीं बताया है कि मुलायम सिंह ने आशीर्वाद में उनसे क्या कहा - लेकिन तस्वीर देख कर अखिलेश यादव भी तो मन ही मन समझ ही रहे होंगे कि कैसे समाजवादी विचारधारा का विस्तार हो रहा है!
अपर्णा यादव को लेकर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव का दावा है कि मुलायम सिंह यादव ने अपनी छोटी बहू को समझाने की काफी कोशिश की थी, लेकिन वो नहीं मानीं. अपर्णा के बीजेपी में जाने को लेकर मुस्कुराते हुए अखिलेश यादव ने ये भी जोड़ दिया था कि ऐसा होने से समाजवादी विचारधारा का विस्तार ही हो रहा है.
किसके हिस्से में क्या आया: अपर्णा यादव ने ट्विटर पर मुलायम सिंह यादव के साथ अपनी तस्वीर शेयर करते हुए बस इतना ही लिखा है - 'भारतीय जनता पार्टी की सदस्यता लेने के पश्चात लखनऊ आने पर पिताजी/नेताजी से आशीर्वाद लिया.' समाजवादी पार्टी में मुलायम सिंह यादव को नेताजी कह कर ही संबोधित किया जाता है.
आप देख रहे हैं कि अपर्णा यादव ससुर के पांव छूकर आशीर्वाद ले रही हैं - और ऐसा भी नहीं कि मुलायम सिंह के चेहरे पर कोई अलग भाव हैं. नाराजगी या गुस्से वाला भाव. पिछले पांच साल या उसके कुछ पहले की भी तस्वीरें देखें तो मुलायम सिंह यादव के चेहरे पर ऐसा ही भाव नजर आता है. भले ही वो अखिलेश यादव को आगाह कर रहे हों, सलाह दे रहे हों या फिर भरी सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कान में कुछ कह रहे हैं - मन की बात तो मुलायम सिंह ही जानें, लेकिन देखने वाले तो यही बताते हैं कि उम्र के इस पड़ाव पर पहुंचे मुलायम के चेहरे के भाव में फर्क बहुत कम ही देखने को मिलता है. ये अंदर की बात छुपा लेने का हुनर भी हो सकता है.
तस्वीर का संदेश कहां तक पहुंचा: असल बात जो भी हो, तस्वीर के जरिये अपर्णा यादव को बीजेपी नेतृत्व के साथ साथ अखिलेश यादव और समाजवादी पार्टी के समर्थकों को जो मैसेज देना थो - वो अपना संदेश शिद्दत से पहुंचा चुकी हैं. वैसे भी बीजेपी के लिए अपर्णा यादव का इस्तेमाल भी इतना ही है.
अगर अपर्णा यादव की ये तस्वीर स्वामी प्रसाद मौर्य के पाला बदल लेने के बाद गैर-यादव ओबीसी वोटर और यादव-ओबीसी वोटर के बीच अपनी बात पहुंचा देती है तो मिशन पूरा समझा जाना चाहिये - बीजेपी का बदला भी और अपर्णा यादव के बीजेपी में आने का मकसद भी.
बाकी किसी पर असर हो न हो, जो वोटर बीजेपी और समाजवादी पार्टी को लेकर उधेड़बुन में अब भी है, उसे तो ये तस्वीर कन्फ्यूज करेगी ही - और थोड़ा भी संदेह बीजेपी के लिए बड़े काम का होगा. आखिर अपर्णा यादव के रूप में बीजेपी को एक यादव-ओबीसी चेहरा स्टार प्रचारक के तौर पर तो मिल ही गया है.
अपर्णा परिवार को लेकर चुप हैं: अपर्णा यादव पहले के मुकाबले परिवार को लेकर कम बोल रही हैं, बनिस्बत उनकी ही तरह सपा छोड़ कर बीजेपी में जाने वाले प्रमोद गुप्ता की तरह. हाल तक शिवपाल यादव के साथ रहे प्रमोद गुप्ता तो आरोप लगा रहे हैं कि उनके साढ़ू मुलायम सिंह यादव को अखिलेश यादव और उनके लोगों ने बंधक बना रखा है. कुछ तो कहना ही था. अपने को सही साबित करने के लिए कुछ दिन पहले लालू यादव को लेकर तेज प्रताप यादव भी तेजस्वी यादव और कुछ आरजेडी नेताओं पर ऐसे ही इल्जाम लगा रहे थे.
अपर्णा यादव के बीजेपी ज्वाइन कर लेने के बाद अखिलेश यादव को लेकर सवाल पूछे गये थे, लेकिन वो या तो चुप रहीं या फिर टाल गयीं. वो पहले की तरह शिकायतें नहीं कर रही हैं. अपर्णा पहले कहा करती थीं कि उनको लखनऊ कैंट की वो सीट दी गयी जहां समाजवादी पार्टी कमजोर थी. यहां तक कहा कि जहां उनके अपने लोगों के वोट थे वे भी नहीं मिले - नाम भले ही कभी नहीं लिया, लेकिन इशारा तो यही रहा कि न तो उनको ऐसी सीट से टिकट दिया गया जहां से वो जीत सकें और न ही अखिलेश यादव और डिंपल यादव की तरफ से ऐसी कोई कोशिश ही हुई जिससे वो चुनाव जीत सकें.
मुलायम का आशीर्वाद अखिलेश को भारी पड़ रहा
2019 के आम चुनाव में जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'जय श्रीराम' की गूंज के बीच भाषण देने के लिए उठे तो मुलायम सिंह यादव का हाथ जोड़ कर अभिवादन किया - और बोले, "...मुलायम सिंह जी ने मुझे आशीर्वाद दे दिया है."
1. मोदी को प्रधानमंत्री बनने का आशीर्वाद: प्रधानमंत्री मोदी से पहले मुलायम सिंह ने कहा था, 'मैं प्रधानमंत्री जी को बधाई देना चाहता हूं... प्रधानमंत्री जी आपने भी सबसे मिल जुल कर... सबका काम किया है... ये सही है कि हम जब-जब मिले... किसी काम के लिए कहा तो आपने उसी समय आर्डर किया... प्रधानमंत्री जी ने सबको साथ लेकर चलने का पूरा प्रयास किया.'
और जो सबसे बड़ी बात मुलायम सिंह यादव ने कही वो सुन कर तो विपक्षी खेमे के नेताओं के पैरों तले जमीन ही खिसक गयी होगी. जब ये सब चल रहा था तो सोनिया गांधी मौजूद थीं - और खामोशी के साथ नजारा देखने के अलावा कोई चारा भी न था.
मुलायम सिंह बोले जा रहे थे और पूरा विपक्ष हक्का बक्का हो कर चुपचाप देख रहा था, 'मेरी कामना है कि जितने माननीय सदस्य हैं... दोबारा फिर जीत जायें... मैं ये भी चाहता हूं... हम लोग तो बहुमत से नहीं आ सकते हैं, प्रधानमंत्री जी मेरी ये भी कामना है कि आप फिर से प्रधानमंत्री बनें...'
2. हर फन के माहिर हैं मुलायम: भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद से मुलायम सिंह यादव लंबे अरसे से केंद्रीय जांच एजेंसियों के रडार पर रहे हैं - और अक्सर कीमत भी चुकानी पड़ती रही है. केंद्र में यूपीए की सरकार रही तब भी, दस साल बाद एनडीए की सरकार आ गयी तब भी - मुलायम सिंह के लिए तो जैसे कुछ भी नहीं बदला. मुलायम सिंह के कई बयान और संसद में विपक्ष के कदमों से इतर उनके स्टैंड अक्सर झलकियां भी दिखाते रहे हैं.
अनुभवी राजनीतिज्ञ होने के नाते मुलायम सिंह बड़ी बड़ी मुश्किलों को चुटकी बजाते मैनेज भी कर लेते हैं. हाल ही में मुलायम सिंह यादव की संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ एक तस्वीर काफी चर्चा में रही. कहां अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए आंदोलन चलाने वाले संघ के नेता और कहां वो जो बार बार याद दिलाता रहा हो कि अयोध्या में कारसेवकों पर उनके आदेश पर ही गोलियां चलायी गयी थीं - मुलायम सिंह की सियासी सेहत पर बहुत फर्क भी नहीं पड़ता. वरना, गोलियां चलवाने के बाद मुख्यमंत्री बने मुलायम सिंह यादव की तारीफ करने के लिए उनका हिंदी और स्वदेशी प्रेम तो संघ ने खोज ही लिया था.
2017 में योगी आदित्यनाथ के शपथग्रहण के मौके की एक तस्वीर भी खासी चर्चा में रही थी - क्योंकि मंच पर ही मुलायम सिंह यादव को प्रधानमंत्री मोदी के कान में कुछ कहते हुए देखा गया था. पीछे अखिलेश यादव भी खड़े नजर आये थे.
3. जब संसद में बैठा रहता था मुलायम परिवार: 2014 की मोदी लहर में अखिलेश यादव के यूपी के मुख्यमंत्री रहते भी तकरीबन पूरी समाजवादी पार्टी साफ हो गयी, लेकिन मुलायम सिंह यादव के परिवार के जितने सदस्य रहे किसी पर भी आंच नहीं आयी. बल्कि, खुद मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ के साथ साथ मैनपुरी से भी चुनाव जीते थे.
जब संसद सत्र शुरू हुआ तो अक्सर देखने को मिला कि किसी भी मुद्दे पर विपक्ष के बहिष्कार के बावजूद मुलायम सिंह पूरे परिवार के साथ सदन में ही बैठे रहते - अब चाहे ये केंद्रीय एजेंसियों की दहशत की वजह से हो या फिर परदे के पीछे हुई किसी सियासी सौदेबाजी का हिस्सा, लेकिन देखने को तो यही मिला.
संसद में आशीर्वाद के जिक्र की ही तरह, एक रैली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुल कर मुलायम सिंह यादव की तारीफ की थी, 'मुलायम सिंह विपक्ष में हैं... वो हमारी आलोचना करते हैं, पर लोकतंत्र को बचाने के लिए उन्होंने हर संभव कोशिश की.'
तस्वीरें बोलती हैं, लेकिन अपवाद भी तो होते हैं. छोटी बहू अपर्णा यादव को दिये आशीर्वाद में मुलायम सिंह यादव ने कहा क्या ये तो नहीं मालूम, लेकिन भरी संसद में मुलायम सिंह के जिस बयान को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आशीर्वाद के तौर पर स्वीकार किया था, अखिलेश यादव के लिए तो आम चुनाव में घातक ही साबित हुआ.
अखिलेश यादव ने मायावती के साथ हाथ मिलाने के साथ बहुत चीजें प्लान की थी. आइडिया ये था कि मायावती अगर दिल्ली शिफ्ट हो जायें तो यूपी में उनके लिए राजनीति काफी आसान हो जाएगी, लेकिन जब नतीजे आये तो मालूम हुआ कि मायावती ने तो दस सीटें जीत ली, लेकिन उनके हिस्से में महज पांच सीटें ही आयीं - और अखिलेश यादव के लिए सबसे बड़ी तकलीफ तो पत्नी डिंपल यादव की हार रही.
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