मुलायम सिंह यादव को सात साल की सजा से बचाने वाले अमर सिंह दल से निकाले जाने के बाद - दिल से भी निकल चुके हैं. अपने मन की लेटेस्ट बात में अमर ने कटाक्ष किया कि सबने उनका इस्तेमाल किया. अखिलेश यादव के हिसाब से देखें तो ये अमर सिंह ही रहे जिन्होंने समाजवादी पार्टी और परिवार दोनों को तोड़ने की कोशिश की.
अब अखिलेश यादव के सामने वैसी ही नयी चुनौती पेश कर रही हैं मुलायम परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव. बड़ी ही संजीदगी से अपर्णा याद दिला रही हैं कि अब अखिलेश भैया को अपना वादा पूरा करना चाहिये और अध्यक्ष की गद्दी नेताजी को सौंप देनी चाहिये. तो क्या अपर्णा यादव अब उन्हीं कामों को आगे बढ़ा रही हैं जिन्हें अमर सिंह अधूरा छोड़ कर चले गये?
वादा तो निभाना... भैया मेरे!
आम तौर अखिलेश यादव अप्रैल में बच्चों के साथ छुट्टियां मनाते हैं, लेकिन चुनावी शिकस्त के बाद इन दिनों पूरा वक्त हार की समीक्षा में दे रहे हैं. समीक्षा के साथ साथ आगे की रणनीति भी बना रहे होंगे. अगर अमर सिंह को बाहर करने के बाद अखिलेश यादव सिर्फ बीजेपी के खिलाफ दिमाग लगा रहे हों तो अब मालूम हो जाना चाहिये कि अपर्णा यादव उनके लिए नयी चुनौती के तौर पर उभर रही हैं.
अपर्णा ने जो बात कही है उससे तो यही लगता है कि वो मुलायम सिंह के अपमान का बदला लेकर रहेंगी. अब तो मुलायम भी सार्वजनिक रूप से अखिलेश के बारे में कह ही चुके हैं - 'जो अपने बाप का न हुआ वो... '
टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में अपर्णा ने कहा है, "इसी साल जनवरी में अखिलेश भैया ने वादा किया था कि विधानसभा चुनावों के बाद वो नेताजी को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद वापस कर देंगे. उन्होंने कहा था कि वह अपने वादों को पूरा करते हैं. मुझे...
मुलायम सिंह यादव को सात साल की सजा से बचाने वाले अमर सिंह दल से निकाले जाने के बाद - दिल से भी निकल चुके हैं. अपने मन की लेटेस्ट बात में अमर ने कटाक्ष किया कि सबने उनका इस्तेमाल किया. अखिलेश यादव के हिसाब से देखें तो ये अमर सिंह ही रहे जिन्होंने समाजवादी पार्टी और परिवार दोनों को तोड़ने की कोशिश की.
अब अखिलेश यादव के सामने वैसी ही नयी चुनौती पेश कर रही हैं मुलायम परिवार की छोटी बहू अपर्णा यादव. बड़ी ही संजीदगी से अपर्णा याद दिला रही हैं कि अब अखिलेश भैया को अपना वादा पूरा करना चाहिये और अध्यक्ष की गद्दी नेताजी को सौंप देनी चाहिये. तो क्या अपर्णा यादव अब उन्हीं कामों को आगे बढ़ा रही हैं जिन्हें अमर सिंह अधूरा छोड़ कर चले गये?
वादा तो निभाना... भैया मेरे!
आम तौर अखिलेश यादव अप्रैल में बच्चों के साथ छुट्टियां मनाते हैं, लेकिन चुनावी शिकस्त के बाद इन दिनों पूरा वक्त हार की समीक्षा में दे रहे हैं. समीक्षा के साथ साथ आगे की रणनीति भी बना रहे होंगे. अगर अमर सिंह को बाहर करने के बाद अखिलेश यादव सिर्फ बीजेपी के खिलाफ दिमाग लगा रहे हों तो अब मालूम हो जाना चाहिये कि अपर्णा यादव उनके लिए नयी चुनौती के तौर पर उभर रही हैं.
अपर्णा ने जो बात कही है उससे तो यही लगता है कि वो मुलायम सिंह के अपमान का बदला लेकर रहेंगी. अब तो मुलायम भी सार्वजनिक रूप से अखिलेश के बारे में कह ही चुके हैं - 'जो अपने बाप का न हुआ वो... '
टाइम्स ऑफ इंडिया के साथ एक इंटरव्यू में अपर्णा ने कहा है, "इसी साल जनवरी में अखिलेश भैया ने वादा किया था कि विधानसभा चुनावों के बाद वो नेताजी को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद वापस कर देंगे. उन्होंने कहा था कि वह अपने वादों को पूरा करते हैं. मुझे लगता है कि अब उन्हें अपने वादे को पूरा करना चाहिए."
मतलब मतदान के वक्त मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना यादव ने जिस आग का इशारा किया ता उसके धुएं उठने लगे हैं. साधना ने कहा था कि अब बहुत अपमान सह लिया आगे नहीं सहेंगी.
तो क्या साधना यादव ने उस वक्त खोया हुआ सम्मान वापस पाने के इसी तरीके के संकेत दिये थे. अपर्णा साधना के बेटे प्रतीक यादव की पत्नी हैं इसलिए मुलायम परिवार की छोटी बहू हैं.
रह रह कर सुनने को मिलता है कि साधना चाहती हैं उनके बेटे प्रतीक को भी राजनीति में हिस्सेदारी मिले. मुश्किल ये है कि प्रतीक को राजनीति से ज्यादा बॉडी बिल्डिंग और अपनी महंगी कार में मजा आता है. लगता है बेटा तैयार नहीं हुआ तो बहू को ही आगे करने का फैसला हुआ. क्योंकि बेटे की बात और होती है और बहू की और. खैर, बहुत जिद करेंगी तो कभी न कभी समाजवादी पार्टी प्रतीक राज्य सभा भेज ही देगी - और संभव न हो पाया तो अगली बार मुलायम सिंह अपनी जीती हुई दूसरी सीट प्रतीक को भी गिफ्ट कर देंगे.
तो क्या अखिलेश यादव के खिलाफ नयी मोर्चेबंदी की कमान साधना यादव संभाल रही हैं और सलाहकार शिवपाल यादव हैं? और अपर्णा यादव को इस मैदान में आगे कर दिया गया है? हालात तो यही इशारा करते हैं, हकीकत कुछ और हो सकती है.
अपर्णा का जवाबी हमला
माना जाता है कि मुलायम के ही कहने पर अखिलेश ने अपर्णा यादव को टिकट दिया था. असल में अपर्णा को शिवपाल खेमे का माना जाता है, लेकिन चुनाव के दौरान वो इस बात से साफ इंकार करती रहीं. जब भी पूछा जाता तो बोलतीं - 'हम चाहते हैं कि परिवार एक रहे.'
चुनाव के दौरान जिस तरह के हमले अखिलेश और डिंपल मिल कर करते रहे - अब अपर्णा उन्हें उसी अंदाज में जवाब भी देने लगी हैं. एक रैली में तो अखिलेश ने साफ साफ कहा था कि जिन लोगों ने उनके और उनके पिता मुलायम के बीच खाई पैदा की इटावा के लोग उन्हें सबक सिखायें. उनका इशारा शिवपाल यादव और उनके समर्थकों की ओर था. एक अन्य रैली में डिंपल यादव की बातों का भी लब्बोलुआब यही रहा. हालांकि, मुलायम के साथ साथ अखिलेश और अपर्णा दोनों ने अपर्णा के लिए चुनाव प्रचार किया था.
लाइन वही है. अपर्णा अब उन्हीं बातों को आधार बना कर जवाबी हमला कर रही हैं. लखनऊ में अपनी हार के लिए अपर्णा समाजवादी पार्टी के कुछ सीनियर नेताओं को जिम्मेदार बता रही हैं.
टाइम्स ऑफ इंडिया के इंटरव्यू में अपर्णा कहती हैं, "मैंने उस सीट से चुनाव लड़ा, जहां से समाजवादी पार्टी कभी जीत नहीं पाई थी. हमने एक टीम भी बनायी थी लेकिन अहम के टकराव के चलते ये सही से काम नहीं कर पाया. मैंने इस मुद्दे को नेताजी और अखिलेश भैया के सामने भी उठाया, लेकिन कुछ भी हो नहीं पाया."
मुश्किलें और खतरे
धीरे धीरे कर के लगभग पूरा मुलायम परिवार यूपी के सीएम आदित्यनाथ योगी से मिल चुका है. खुद मुलायम और अखिलेश तो शपथग्रहण के मौके पर ही मिल लिये थे - और मौका निकलते ही मुलायम ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कान में भी कुछ कह ही दिया. योगी से शिष्टाचार मुलाकात अपर्णा यादव और प्रतीक यादव के बाद शिवपाल यादव भी कर चुके हैं. अपर्णा की शिष्टाचार मुलाकात की परिणति के रूप में योगी उनके गोशाला का दौरा भी कर चुके हैं - शिवपाल की मुलाकात का प्रतिफल अभी सामने नहीं आया है. अब तक अगर किसी के योगी से मुलाकात की खबर नहीं है तो वो हैं - डिंपल यादव.
अपर्णा ने तो यूपी में समाजवादी शासन के दौर से ही मोदी फैन की अपनी छवि बना रखी है और अब मुख्यमंत्री योगी से भी बढ़िया रैपो बन चुका है. समाजवादी पार्टी में तब तक उनका कोई बाल बांका नहीं कर सकता जब तक मुलायम सिंह यादव का दबदबा कायम है - और फिलहाल इस पर कोई खतरा भी नजर नहीं आता.
अपर्णा फिलहाल जिस तरह की राजनीति कर रही हैं उसमें उनके लिए स्कोप भी बहुत है और खतरे भी. स्कोप ये है कि समाजवादी पार्टी के उस धड़े का नेतृत्व कर सकती हैं जिन पर अखिलेश को भरोसा नहीं होता. चुनाव में 40 के आस पास सीटों पर अखिलेश ने मुलायम के कहने पर टिकट दिये थे. वे नेता चुनाव भले ही हार गये हों, लेकिन अखिलेश को शायद ही कभी उन पर भरोसा बन पाये क्योंकि उनकी निष्ठा शिवपाल के प्रति ज्यादा मानी जाती है. एक वक्त ये भी कयास लगाये जा रहे थे कि अगर वे चुनाव जीत जाते तो उनकी बदौलत शिवपाल यादव दबाव की राजनीति जरूर करते. लेकिन बदकिस्मती से ऐसा हो नहीं पाया.
एक संभावना ये बनती है कि अपर्णा ऐसे नेताओं की अगुवाई करें. दूसरी स्थिति ये है कि जब बात न बने तो अपर्णा ऐसे समर्थकों के साथ बीजेपी का दामन थाम लें, जिसकी फिलहाल कोई जल्दबाजी नहीं है. अगर ऐसी कोई सूरत बनती है तो जाहिर है बीजेपी उन्हें हाथों हाथ लेगी और जब तक नहीं हो पाता तब तक तो कोशिश यही होगी कि अखिलेश यादव को जितना डैमेज संभव हो किया जाये. बिहार में नीतीश के खिलाफ बीजेपी जीतन राम मांझी का इसी तरह खूब इस्तेमाल किया था.
अपर्णा यादव के लिए सबसे बड़ा खतरा यही है कि ये दोनों पक्ष कहीं उनका इस्तेमाल न करें और आखिर में उन्हें कुछ भी हासिल न हो पायें.
इन्हें भी पढ़ें :
अपर्णा यादव की मेनका गांधी से तुलना की वजह बहुत वाजिब है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.