कांग्रेस के खिलाफ मायावती के सख्त रूख अपनाने के बाद से अखिलेश यादव खामोश हो चुके हैं. उसके पहले अखिलेश यादव कांग्रेस को लेकर उठते सवालों पर सभी के साथ साथ होने की बात कहते रहे.
सपा-बसपा गठबंधन में दबदबा तो शुरू से ही बीएसपी नेता का देखा गया, अब तो लगता है वीटो भी मायावती के ही पास है. राहुल गांधी भले ही मायावती और अखिलेश यादव के प्रति सम्मान भाव प्रकट करते रहे हों, लेकिन बीएसपी नेता ने एक झटके में कांग्रेस के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये - ये कह कर कि बीएसपी देश में कहीं भी कांग्रेस के साथ न कोई समझौता करेगी न गठबंधन.
सपा-बसपा गठबंधन पर दबाव बनाने की शुरुआत कांग्रेस ने बदायूं सीट पर उम्मीदवार उतार कर की. बदायूं से मुलायम परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव सांसद हैं और कांग्रेस ने उनकी सीट से सलीम शेरवानी को उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
कांग्रेस की इस कोशिश को गठबंधन के खिलाफ प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति के तहत सियासी दांव माना गया. इसमें पहले समाजवादी पार्टी को टारगेट किया गया. उसके बाद तो बीएसपी की बारी थी.
प्रियंका गांधी वाड्रा का मेरठ के अस्पताल पहुंच कर भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण से मिलना उसी प्रेशर पॉलिटिक्स का अगला कदम रहा. प्रियंका वाड्रा के ताजा यूपी दौरे से पहले कांग्रेस ने यूपी गठबंधन को 'दलित की बेटी' बनाम 'दलित का बेटा' की लड़ाई में उलझाने की रणनीतिक कोशिश है.
यूपी में प्रेशर पॉलिटिक्स
सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली की दो सीटें छोड़ रखी है. प्रियंका वाड्रा और चंद्रशेखर की मुलाकात के बाद एक चर्चा को हवा दी जाने लगी कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ भी गठबंधन के उम्मीदवार उतर सकते हैं. चंद्रशेखर से मिल कर प्रियंका वाड्रा ने गठबंधन पर जो दबाव बढ़ाने की कोशिश की थी ये उसी का जवाबी हमला रहा. जिस वक्त प्रियंका वाड्रा चंद्रशेखर से मुलाकात करने पहुंची थीं उसी आस पास अखिलेश यादव भी मायावती के साथ मीटिंग कर रहे थे.
बदायूं सीट को लेकर भी अखिलेश यादव की...
कांग्रेस के खिलाफ मायावती के सख्त रूख अपनाने के बाद से अखिलेश यादव खामोश हो चुके हैं. उसके पहले अखिलेश यादव कांग्रेस को लेकर उठते सवालों पर सभी के साथ साथ होने की बात कहते रहे.
सपा-बसपा गठबंधन में दबदबा तो शुरू से ही बीएसपी नेता का देखा गया, अब तो लगता है वीटो भी मायावती के ही पास है. राहुल गांधी भले ही मायावती और अखिलेश यादव के प्रति सम्मान भाव प्रकट करते रहे हों, लेकिन बीएसपी नेता ने एक झटके में कांग्रेस के लिए सारे दरवाजे बंद कर दिये - ये कह कर कि बीएसपी देश में कहीं भी कांग्रेस के साथ न कोई समझौता करेगी न गठबंधन.
सपा-बसपा गठबंधन पर दबाव बनाने की शुरुआत कांग्रेस ने बदायूं सीट पर उम्मीदवार उतार कर की. बदायूं से मुलायम परिवार के सदस्य धर्मेंद्र यादव सांसद हैं और कांग्रेस ने उनकी सीट से सलीम शेरवानी को उम्मीदवार घोषित कर दिया है.
कांग्रेस की इस कोशिश को गठबंधन के खिलाफ प्रेशर पॉलिटिक्स की रणनीति के तहत सियासी दांव माना गया. इसमें पहले समाजवादी पार्टी को टारगेट किया गया. उसके बाद तो बीएसपी की बारी थी.
प्रियंका गांधी वाड्रा का मेरठ के अस्पताल पहुंच कर भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद रावण से मिलना उसी प्रेशर पॉलिटिक्स का अगला कदम रहा. प्रियंका वाड्रा के ताजा यूपी दौरे से पहले कांग्रेस ने यूपी गठबंधन को 'दलित की बेटी' बनाम 'दलित का बेटा' की लड़ाई में उलझाने की रणनीतिक कोशिश है.
यूपी में प्रेशर पॉलिटिक्स
सपा-बसपा गठबंधन ने कांग्रेस के लिए अमेठी और रायबरेली की दो सीटें छोड़ रखी है. प्रियंका वाड्रा और चंद्रशेखर की मुलाकात के बाद एक चर्चा को हवा दी जाने लगी कि राहुल गांधी और सोनिया गांधी के खिलाफ भी गठबंधन के उम्मीदवार उतर सकते हैं. चंद्रशेखर से मिल कर प्रियंका वाड्रा ने गठबंधन पर जो दबाव बढ़ाने की कोशिश की थी ये उसी का जवाबी हमला रहा. जिस वक्त प्रियंका वाड्रा चंद्रशेखर से मुलाकात करने पहुंची थीं उसी आस पास अखिलेश यादव भी मायावती के साथ मीटिंग कर रहे थे.
बदायूं सीट को लेकर भी अखिलेश यादव की नाराजगी की बात सामने आयी है. कांग्रेस की ओर से भी संकेत दिये जाने लगे हैं कि बदायूं से सलीम शेरवानी की उम्मीदवारी वापस हो सकती है. साथ ही, मुलायम सिंह यादव और डिंपल यादव के खिलाफ भी कांग्रेस ने उम्मीदवार न खड़ा करने को सोच रही है.
लेकिन कांग्रेस का ये कदम अमेठी और रायबरेली में गठबंधन का उम्मीदवार न होने की गारंटी तो है नहीं?
अभी तक कांग्रेस की ओर से अखिलेश यादव की नाराजगी दूर करने की कोशिश दिख रही है - लेकिन मायावती का गुस्सा? मायावती को तो प्रियंका वाड्रा और चंद्रशेखर की मुलाकात को लेकर ही गुस्सा है.
मायावती का गुस्सा खत्म करने के लिए कांग्रेस क्या करेगी? क्या चंद्रशेखर आजाद और प्रियंका वाड्रा की मुलाकात सिर्फ हालचाल पूछे जाने तक ही रह जाएगी? या आगे भी बढ़ेगी?
प्रियंका वाड्रा फिर से यूपी के दौरे पर हैं. बतौर कांग्रेस महासचिव ये उनका दूसरा दौरा है. प्रियंका ने यूपी के लोगों के नाम एक चिट्ठी भी लिखी है - और उसमें राजनीति में परिवर्तन लाने का वादा किया है.
पिछला दौरा पुलवामा हमले के कारण उन्हें बीच में ही रद्द करना पड़ा था. पहले दौरे में तो उन्हें बोलने तक का मौका नहीं मिल पाया था. प्रियंका गांधी रोड शो में शामिल हुईं और कार्यकर्ताओं से लंबी मीटिंग भी करती रहीं, लेकिन लोगों से न तो मीडिया के जरिये और न ही सीधे ही को कोई संवाद कर पायीं. नयी पारी में प्रियंका गांधी की पहली रैली यूपी में न होकर गुजरात में हो पायी.
यूपी का नया दौरा शुरू करने से पहले प्रियंका गांधी ने पहले से ही माहौल बना लिया है. कांग्रेस की ओर से अभी सिर्फ ये जताने की कोशिश हुई है कि गठबंधन ने ज्यादा नखरे दिखाये तो 'दलित की बेटी' मायावती के खिलाफ कांग्रेस 'बहुजन का बेटा' चंद्रशेखर आजाद रावण को भी मोर्चे पर तैनात कर सकती है.
'बहुजन का बेटा' VS 'बहुजन की बेटी'
भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद रावण का कहना है कि वो राजनीतिज्ञ नहीं बनना चाहते, बल्कि 'बहुजन का बेटा' ही बने रहना चाहते हैं. चंद्रशेखर की अपनी दलील भी है. चंद्रशेखर कहते हैं, 'अगर सांसद बनना ही मकसद होता तो मैं कोई सुरक्षित सीट से चुनाव जीतने की कोशिश करता.' 2018 के विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने गुजरात वाली टीम को मध्य प्रदेश में भी मोर्चे पर तैनात करने की कोशिश की थी. गुजरात में राहुल गांधी की कोर टीम के अलावा तीन युवा नेताओं हार्दिक पटेल, जिग्नेश मेवाणी और अल्पेश ठाकोर की बड़ी भूमिका रही. अल्पेश ने तो तभी कांग्रेस ज्वाइन कर लिया था. हार्दिक पटेल अभी अभी कांग्रेस में शामिल हुए हैं जबकि जिग्नेश मेवाणी अपनी अलग पहचान लिए कांग्रेस के साथ नजर आते हैं. बाद में कांग्रेस ने ये आइडिया ड्रॉप कर दिया. हो सकता है इनका बाहरी होना भी इसमें आड़े आया हो.
चंद्रशेखर आजाद रावण के साथ अच्छी बात ये है कि वो यूपी के ही हैं और खुद के बूते युवा दलित नेता के तौर पर उभरे हैं. मायावती का चंद्रशेखर से रिश्ता होने से इंकार करना भी इसी बात का संकेत है कि वो अपने वोट बैंक में कोई साझेदारी नहीं चाहतीं. गठबंधन और सीटों पर समझौते की बात और है.
कांग्रेस चंद्रशेखर की इसी खासियत का इस्तेमाल करना चाहती है. अब तक मायावती को जब भी पीड़ित बन कर राजनीति करनी पड़ती है खुद के दलित की बेटी होने की दुहाई देने लगती हैं. यही सोच कर कांग्रेस अब उनके सामने बहुजन का बेटा बनाकर चंद्रशेखर को पेश करने का संकेत दे रही है. कांग्रेस को चंद्रशेखर आजाद से बड़ा फायदा भले न मिले, लेकिन पार्टी मायावती पर दबाव तो बना ही सकती है. ऊपर से चंद्रशेखर द्वारा वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात करना भी कांग्रेस के लिए फायदेमंद ही है. वाराणसी भी तो प्रियंका वाड्रा के कार्यक्षेत्र में ही आता है. इस हिसाब से चंद्रशेखर को कांग्रेस नेतृत्व किसी दुधारी तलवार जैसा ही मान कर चल रहा होगा.
वैसे अभी चंद्रशेखर ने ये ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि वो किन शर्तों पर कांग्रेस के साथ होंगे? हो सकता है चंद्रशेखर वैसी डील सोच रहे हों जैसा पहले हार्दिक पटेल गुजरात में कांग्रेस के साथ करना चाहते थे. ऐसा मुमकिन तो नहीं लगता क्योंकि वो विधानसभा चुनाव था, ये लोक सभा का चुनाव है जिसमें सीटों पर समझौते की बहुत कम गुंजाइश होती है.
कांग्रेस की यूपी में अगली चाल जो भी हो, प्रियंका वाड्रा ने फिलहाल अपनी ओर से गठबंधन पर दबाव बनाने की कोशिश तो की ही है - और उसका असर भी समझ में आने लगा है. अब आगे कांग्रेस चाहती है कि यूपी में 'दलित की बेटी' और 'बहुजन का बेटा' जैसी कोई जंग शुरू हो जाये.
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