समाजवादी पार्टी में पिता बनाम पुत्र बनाम चाचा, भीतरी बनाम बाहरी, फलां बनाम फलां जंग छिड़ी हुई है. जाहिर तौर पर यह पार्टी को हांकने को लेकर मची पारिवारिक लड़ाई है. अब भले इसमें कथित तौर पर किसी 'बाहरी दलाल' या 'सीबीआई तोता' का हाथ हो लेकिन है तो यह पारिवारिक झगड़ा ही ना! ऐसे में भला हमें यूपी की आम जनता का इससे क्या लेना-देना हो सकता है? हमें तो इससे मतलब है कि विकास और शासन के मामले में सपा सरकार कहां खड़ी है. उस पर भी अगर विकास की कथित हवा में डर और नफरत हावी हो तो फिर कथित विकास कितनी अहमियत रखेगा. मुजफ्फरनगर दंगा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है.
ये भी पढ़ें-सपा के घमासान से यूपी में किस पार्टी को होगा फायदा
दंगे और सरकार..
सपा सरकार के शुरुआती साल को देखें तो अखिलेश यादव के पहले डेढ़ साल में ही 107 दंगे हो गए थे और उनमें 125 लोग मारे गए थे. ये आंकड़े इंडिया टुडे पत्रिका की अक्टूबर, 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हैं. ये वो दंगे थे जिनमें कम-से-कम तीन दिन या उससे ज्यादा कर्फ्यू लगा. इसके विपरीत पिछली मायावती सरकार के पूरे पांच साल के शासनकाल में ऐसे सिर्फ 6 दंगे हुए थे और उनमें 4 लोग मारे गए थे. इसी तरह एनसीआरबी 2015 की रिपोर्ट देखें तो उत्तर प्रदेश छोटे-बड़े कुल दंगों में देश में दूसरे नंबर पर है. इस साल कुल 6813 दंगे हुए थे जो साल 2014 से 375 ज्यादा हैं. वहीं सांप्रदायिक दंगों की बात करें तो फरवरी, 2016 में लोकसभा में एक सवाल पर सरकार ने बताया था कि 2015 में यूपी में सबसे ज्यादा 155 सांप्रदायिक दंगे हुए. जाहिर है, सपा सरकार दंगे रोकने में बुरी तरह नाकाम रही है.
समाजवादी पार्टी में पिता बनाम पुत्र बनाम चाचा, भीतरी बनाम बाहरी, फलां बनाम फलां जंग छिड़ी हुई है. जाहिर तौर पर यह पार्टी को हांकने को लेकर मची पारिवारिक लड़ाई है. अब भले इसमें कथित तौर पर किसी 'बाहरी दलाल' या 'सीबीआई तोता' का हाथ हो लेकिन है तो यह पारिवारिक झगड़ा ही ना! ऐसे में भला हमें यूपी की आम जनता का इससे क्या लेना-देना हो सकता है? हमें तो इससे मतलब है कि विकास और शासन के मामले में सपा सरकार कहां खड़ी है. उस पर भी अगर विकास की कथित हवा में डर और नफरत हावी हो तो फिर कथित विकास कितनी अहमियत रखेगा. मुजफ्फरनगर दंगा इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. ये भी पढ़ें-सपा के घमासान से यूपी में किस पार्टी को होगा फायदा दंगे और सरकार.. सपा सरकार के शुरुआती साल को देखें तो अखिलेश यादव के पहले डेढ़ साल में ही 107 दंगे हो गए थे और उनमें 125 लोग मारे गए थे. ये आंकड़े इंडिया टुडे पत्रिका की अक्टूबर, 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक हैं. ये वो दंगे थे जिनमें कम-से-कम तीन दिन या उससे ज्यादा कर्फ्यू लगा. इसके विपरीत पिछली मायावती सरकार के पूरे पांच साल के शासनकाल में ऐसे सिर्फ 6 दंगे हुए थे और उनमें 4 लोग मारे गए थे. इसी तरह एनसीआरबी 2015 की रिपोर्ट देखें तो उत्तर प्रदेश छोटे-बड़े कुल दंगों में देश में दूसरे नंबर पर है. इस साल कुल 6813 दंगे हुए थे जो साल 2014 से 375 ज्यादा हैं. वहीं सांप्रदायिक दंगों की बात करें तो फरवरी, 2016 में लोकसभा में एक सवाल पर सरकार ने बताया था कि 2015 में यूपी में सबसे ज्यादा 155 सांप्रदायिक दंगे हुए. जाहिर है, सपा सरकार दंगे रोकने में बुरी तरह नाकाम रही है.
इसी तरह एनसीआरबी के मुताबिक हत्या के अपराधों में यूपी देश में सबसे आगे (कुल 4732 हत्या) है. यह कुल किडनैपिंग और एबडक्शन मामले में भी 11,999 मामले के साथ सबसे आगे है. कुल गंभीर अपराधों में यह सबसे आगे है ही. बलात्कार के मामले में भले ही यूपी चौथे नंबर पर है लेकिन दहेज हत्याओं के मामले में यह 2335 हत्याओं के साथ सबसे आगे है. जाहिर है इस तरह के अपराधों में यूपी का शासन ठीक तो नहीं ही है. वहीं दलितों पर अपराध में भी यूपी 8358 मामलों के साथ सबसे आगे है. वैसे विभिन्न अपराधों के दर में दिल्ली जैसा छोटा-सा राज्य देश में सबसे आगे है. ये भी पढ़ें- क्या है मुलायम के सामने विकल्पः कैसे बचाएंगे पार्टी को टूटने से? हालांकि कुल अपराध, दलितों पर अपराध और दंगा के मामले को छोड़कर यूपी में 2014 की तुलना में कुछ अपराधों में मामूली कमी हुई है, लेकिन वह नाकाफी है. इसी तरह एक तर्क यह भी दिया जाता है कि चूंकि यूपी में आबादी सबसे ज्यादा है इसलिए वहां अपराध ज्यादा हैं. लेकिन इस तर्क से अपराधों को कमतर नहीं आंका जा सकता. जाहिर है, अब विधानसभा चुनाव भी नजदीक है, सो विकासयुक्त और अपराधमुक्त शासन कौन देगा, जनता यह देखेगी, उसे फैलिमी ड्रामे से क्या. और दंगा या अपराध ही न रूके तो फिर विकास कैसे मुमकिन है? इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है. ये भी पढ़ेंRead more! संबंधित ख़बरें |