केंद्र सरकार ने 25 जुलाई को जम्मू कश्मीर में केंद्रीय अर्धसैनिकबलों की 100 अतिरिक्त कंपनियां भेजने का फैसला किया है. ये कंपनियां जल्द ही पहुंच जाएंगी. आदेश के अनुसार इन 100 कंपनियों में CRPF की 50, BSF-10, SSB-30 और ITBP की 10 कंपनियां हैं. बता दें कि हर एक कंपनी में 90 से 100 कर्मी मौजूद रहते हैं यानी कि प्रदेश में करीब 10 हजार अतिरिक्त जवान पहुंचेंगे. केंद्र के इस फैसले के बाद कश्मीर घाटी से तीव्र प्रतिक्रिया आ रही है जिससे ये साफ है कि वहां राजनीतिक दलों व अलगाववादियों में इस फैसले से हलचल जरूर मची है.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्मीर के तीन दिन के दौरे के बाद शुक्रवार को लौटे हैं जिसके बाद से ऐसा माना जा रहा है कि आर्टिकल 35 A को भंग करने से पहले ये केंद्र की तैयारी है तो वहीं कई इसे कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में तेजी लाने के लिहाज से लिया गया कदम मान रहे हैं.
वैसे इसके पीछे की वजह, पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू कश्मीर दौरे के दौरान राज्य प्रशासन द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर अतिरिक्त कंपनियां भेजने की मांग बताया जा रहा है. साथ ही इसे स्वतंत्रता दिवस व राज्य में विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने के लिए सामान्य प्रक्रिया भी बताया जा रहा है.
केंद्र के फैसले के बाद प्रदेश के राजनीतिक दलों ने जैसे सवाल उठाये हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि कहीं ना कहीं उनके मन में आर्टिकल 35 A को भंग किए जाने की आशंका है. उनका कहना है कि एक तरफ तो केंद्र सरकार और राज्यपाल सत्यपाल मलिक अक्सर दावा करते हैं कि कश्मीर में हालात सुधर गए हैं और जब हालात में सुधार है तो फिर यहां सुरक्षाबलों की संख्या क्यों बढ़ाई जा रही है. उनकी माने तो...
केंद्र सरकार ने 25 जुलाई को जम्मू कश्मीर में केंद्रीय अर्धसैनिकबलों की 100 अतिरिक्त कंपनियां भेजने का फैसला किया है. ये कंपनियां जल्द ही पहुंच जाएंगी. आदेश के अनुसार इन 100 कंपनियों में CRPF की 50, BSF-10, SSB-30 और ITBP की 10 कंपनियां हैं. बता दें कि हर एक कंपनी में 90 से 100 कर्मी मौजूद रहते हैं यानी कि प्रदेश में करीब 10 हजार अतिरिक्त जवान पहुंचेंगे. केंद्र के इस फैसले के बाद कश्मीर घाटी से तीव्र प्रतिक्रिया आ रही है जिससे ये साफ है कि वहां राजनीतिक दलों व अलगाववादियों में इस फैसले से हलचल जरूर मची है.
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल कश्मीर के तीन दिन के दौरे के बाद शुक्रवार को लौटे हैं जिसके बाद से ऐसा माना जा रहा है कि आर्टिकल 35 A को भंग करने से पहले ये केंद्र की तैयारी है तो वहीं कई इसे कश्मीर में आतंकरोधी अभियानों में तेजी लाने के लिहाज से लिया गया कदम मान रहे हैं.
वैसे इसके पीछे की वजह, पिछले दिनों गृह मंत्री अमित शाह के जम्मू कश्मीर दौरे के दौरान राज्य प्रशासन द्वारा सुरक्षा के मद्देनजर अतिरिक्त कंपनियां भेजने की मांग बताया जा रहा है. साथ ही इसे स्वतंत्रता दिवस व राज्य में विधानसभा चुनावों की जमीन तैयार करने के लिए सामान्य प्रक्रिया भी बताया जा रहा है.
केंद्र के फैसले के बाद प्रदेश के राजनीतिक दलों ने जैसे सवाल उठाये हैं उसे देखकर कहा जा सकता है कि कहीं ना कहीं उनके मन में आर्टिकल 35 A को भंग किए जाने की आशंका है. उनका कहना है कि एक तरफ तो केंद्र सरकार और राज्यपाल सत्यपाल मलिक अक्सर दावा करते हैं कि कश्मीर में हालात सुधर गए हैं और जब हालात में सुधार है तो फिर यहां सुरक्षाबलों की संख्या क्यों बढ़ाई जा रही है. उनकी माने तो इससे आम लोगों में डर पैदा हो रहा है.
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने केंद्र सरकार के फैसले पर सवाल उठाया है. मुफ्ती ने कहा कि केंद्र सरकार के फैसले से घाटी के लोगों में भय जैसा माहौल पैदा कर दिया है. उन्होंने कहा कि कश्मीर में सुरक्षा बलों की कोई कमी नहीं है. जम्मू-कश्मीर एक राजनीतिक समस्या है जो सैन्य साधनों से हल नहीं होगा. भारत सरकार को अपनी नीति पर पुनर्विचार और सुधार करने की आवश्यकता है.
वहीं पूर्व आईएएस अधिकारी और जम्मू-कश्मीर पीपल्स मूवमेंट (जेकेपीएम) के अध्यक्ष शाह फैसल ने भी अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती पर चिंता जताई है. शाह फैसल ने ट्वीट कर कहा, ‘घाटी में अचानक सुरक्षाबलों की 100 अतिरिक्त कंपनियों की तैनाती क्यों हो रही है, इसके बारे में किसी को जानकारी नहीं है. साथ ही उन्होंने कहा कि इस बात की अफवाह है कि घाटी में कुछ बड़ा भयानक होने वाला है. क्या यह अनुच्छेद 35ए को लेकर है?
बता दें कि अभी हाल ही में नेशनल कांफ्रेंस उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने भी केंद्र व राज्य प्रशासन पर अनुच्छेद 35 A को भंग किए जाने की आशंका को लेकर लोगों में भय पैदा करने का आरोप लगाया था.
क्या है आर्टिकल 35A
आर्टिकल 35A जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य के 'स्थायी निवासी' की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है. इसके तहत जम्मू-कश्मीर के नागरिकों को कुछ खास अधिकार दिए गए हैं. साल 1954 में इसे राष्ट्रपति के आदेश के माध्यम से संविधान में जोड़ा गया था. 35A के जरिए भारतीय नागरिकता को जम्मू-कश्मीर की राज्य सूची का मामला बना दिया. 35A ने स्थायी नागिरकों को कुछ खास अधिकार दिए हैं. अस्थायी निवासी को उन अधिकारों से वंचित किया गया है. अस्थायी नागरिक जम्मू-कश्मीर में न स्थायी रूप से बस सकते हैं और न ही वहां संपत्ति खरीद सकते हैं.
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