भारत के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी का महत्व तो देश के सभी नागरिक जानते हैं. लेकिन आज के लेख का मुद्दा बताने के लिए मैं एक छोटा-सा किस्सा साझा करना चाहता हूं. मैं पिछले दिनों अपने फ्रेंड के घर गया था तो वहां उसकी सिस्टर और ब्रदर-इन-लॉ भी थे और उनकी दो प्यारी बेटियां भी. बातों-बातों में दोस्त के जीजाजी ने बताया कि उनको बहुत प्राउड फील होता है, गर्व होता है अपने घर में जन्मदिन को लेकर. पता चला कि उनका खुद का बर्थडे 15 अगस्त को होता है, बड़ी बिटिया जन्मी है 26 जनवरी को और छोटी बिटिया का पूरा बर्थ-डेट ही है आज का मुद्दा – वो है 5 अगस्त 2019. आप कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि 5 अगस्त में ऐसी क्या खास बात? तब तो आपको इस लेख का मुद्दा गृह मंत्री के जरिये बताना पड़ेगा.
गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में कहा- 'महोदय, मैं संकल्प प्रस्तुत करता हूं कि ये सदन अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाने वाली निम्नलिखित अधिसूचनाओं की सिफारिश करता है- संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 खंड 1 के साथ पठित अनुच्छेद 370 के खंड 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति संसद की सिफारिश पर ये घोषणा करते हैं कि जिस दिन भारत के राष्ट्रपति द्वारा इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाएंगे और इसे सरकारी गैजेट में प्रकाशित किया जाएगा, उस दिन से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे, सिवाय खंड 1 के.'
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 खत्म करने का ये बड़ा महत्वपूर्ण फैसला लिया था. 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने...
भारत के लिए 15 अगस्त और 26 जनवरी का महत्व तो देश के सभी नागरिक जानते हैं. लेकिन आज के लेख का मुद्दा बताने के लिए मैं एक छोटा-सा किस्सा साझा करना चाहता हूं. मैं पिछले दिनों अपने फ्रेंड के घर गया था तो वहां उसकी सिस्टर और ब्रदर-इन-लॉ भी थे और उनकी दो प्यारी बेटियां भी. बातों-बातों में दोस्त के जीजाजी ने बताया कि उनको बहुत प्राउड फील होता है, गर्व होता है अपने घर में जन्मदिन को लेकर. पता चला कि उनका खुद का बर्थडे 15 अगस्त को होता है, बड़ी बिटिया जन्मी है 26 जनवरी को और छोटी बिटिया का पूरा बर्थ-डेट ही है आज का मुद्दा – वो है 5 अगस्त 2019. आप कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि 5 अगस्त में ऐसी क्या खास बात? तब तो आपको इस लेख का मुद्दा गृह मंत्री के जरिये बताना पड़ेगा.
गृह मंत्री अमित शाह ने 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में कहा- 'महोदय, मैं संकल्प प्रस्तुत करता हूं कि ये सदन अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत भारत के राष्ट्रपति द्वारा जारी की जाने वाली निम्नलिखित अधिसूचनाओं की सिफारिश करता है- संविधान के अनुच्छेद 370 (3) के अंतर्गत भारत के संविधान के अनुच्छेद 370 खंड 1 के साथ पठित अनुच्छेद 370 के खंड 3 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति संसद की सिफारिश पर ये घोषणा करते हैं कि जिस दिन भारत के राष्ट्रपति द्वारा इस घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए जाएंगे और इसे सरकारी गैजेट में प्रकाशित किया जाएगा, उस दिन से अनुच्छेद 370 के सभी खंड लागू नहीं होंगे, सिवाय खंड 1 के.'
मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 खत्म करने का ये बड़ा महत्वपूर्ण फैसला लिया था. 5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में गृह मंत्री अमित शाह ने दो संकल्प प्रस्तुत किए. पहले अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 खत्म करने का संकल्प पेश किया. दूसरा संकल्प उन्होंने जम्मू कश्मीर के पुनर्गठन विधेयक 2019 का पेश किया.
5 अगस्त 2019 को मैं भी सदन की कार्यवाही देख रहा था, वो जैसे जूलियस सीजर का अंग्रेजी में कोटेशन है... I came, I saw, I Conquered… कुछ इसी अंदाज में अमित शाह सदन में आए, सबको देखा और सबपर छा गए क्योंकि चंद मिनटों में उन्होंने जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने का ऐलान कर दिया. और साथ ही स्तब्ध कर दिया विपक्ष सहित पूरे देश को.
एक बारगी लोगों के मन में सवाल उठने लगे कि क्या वाकई 370 हटाना इतना आसान था कि एक दिन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एक गृह मंत्री सदन में उठ खड़ा होगा और यूं घोषणा कर देगा. सवाल चाहे लाख खड़े हुए हों लेकिन आज तक अटल सत्य तो यही है कि जम्मू-कश्मीर अब केंद्र शासित प्रदेश है, जहां जल्द ही चुनाव करवाए जाएंगे तो उसकी अपनी विधानसभा भी होगी. जबकि लद्दाख जम्मू-कश्मीर से अलग एक केंद्र शासित प्रदेश है लेकिन उसकी कोई विधानसभा नहीं है.
नरेंद्र मोदी सरकार के इस फैसले की वजह से धारा-35ए का वजूद भी खत्म हो गया, क्योंकि धारा-35ए, अनुच्छेद 370 का ही हिस्सा है. धारा 35ए जम्मू-कश्मीर विधानसभा को राज्य में स्थायी निवास और विशेषाधिकारों को तय करने का अधिकार देती थी. इन सब मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी हमारे इतिहास वाले सेगमेंट में लेकिन फिलहाल मुद्दा गर्म है अमित शाह का. वो आए, उन्होंने देखा-परखा और जीत कर चले गए वाला हाल केवल एक सदन में नहीं हुआ.
5 अगस्त 2019 के अगले दिन यानी 6 अगस्त 2019 को लोकसभा में जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर बहस करते हुए गृह मंत्री अमित शाह तो एग्रेसिव हो गए क्योंकि जब विपक्ष उन्हें टोकने लगा, एग्रेसिव क्यों हो, पूछने लगा तो उन्होंने कहा कि जम्मू-कश्मीर का ही हिस्सा है PoK और उसके लिए जान भी दे देंगे.
अब तो आप समझ ही गए होंगे मेरे दोस्त के जीजाजी के गर्व करने वाली बात. जब जनता देश की एकता और अखंडता वाली तारीखों का इतना महत्व समझती हो तो उस देश का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता. अब वक्त है ये समझने का कि इस पूरे मामले को अमली-जामा कैसे पहनाया गया और इसके पीछे क्या प्लानिंग रही होगी.
कुछ जानकारों का मानना है कि इसकी भी स्क्रिप्ट लिखी गई और वो लिखने की शुरुआत शायद तब हुई जब 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने अकेले 303 सीटें जीत लीं और बहुमत से NDA ने सदन पर अपना एकाधिकार जमा लिया. पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने बीजेपी और NDA की जीत और बहुमत में छिपी बातों को भी पढ़ लिया.
वैसे भी लगातार दूसरी बार केंद्र की सत्ता हासिल करना और वो भी प्रचंड जीत के साथ, तो उससे भी इन्सान में आत्मविश्वास तो और भी ज्यादा भर ही जाता है. पीएम मोदी और अमित शाह का मानना था कि कश्मीर की समस्या वहां के लोग नहीं बल्कि हुक्मरान थे और उसमें भी कुछ ऐसे नेता शामिल थे जिनकी विचारधारा अलगाववादियों से मिलती थी. इसलिए कश्मीर समस्या का इलाज आसान नहीं था.
साथ ही, इसका उपाय कहीं और नहीं बल्कि जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 में ही ढूंढा गया. जानकारों के मुताबिक अब इसका अमल कैसे हो इसके लिए जमीनी स्तर पर भी कार्यवाही करने की जरूरत थी. इस पूरी फिल्म में राइटर-डायरेक्टर मूल रूप से दो ही लोग थे – पीएम मोदी और गृह मंत्री शाह.
2019 में ‘मिशन – 370’! -
जून के तीसरे सप्ताह में, छत्तीसगढ़ कैडर के 1987 बैच के IAS अधिकारी बीवीआर सुब्रमण्यम को जम्मू-कश्मीर के नए मुख्य सचिव के रूप में भेजा गया.
बीवीआर सुब्रमण्यम पहले PMO में संयुक्त सचिव के रूप में काम कर चुके थे.
पूरे मामले के कानूनी प्रभाव की समीक्षा गृह मंत्री अमित शाह ने तत्कालीन कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और एक कोर टीम के साथ मिलकर की.
सरकार के कानूनी रूप से मजबूत होने के बाद बारी थी घाटी की कानून-व्यवस्था की स्थिति पर ध्यान केंद्रित करने की.
घाटी के हालात को जांचने के लिए जुलाई के तीसरे हफ्ते में NSA अजीत डोभाल खुद श्रीनगर पहुंचे और तीन दिन वहां रहे.
अजीत डोभाल लौटे और 27 जुलाई को CRPF की 100 कंपनियों को श्रीनगर भेजने का आदेश जारी हुआ.
सरकार के इतने सब कदमों के बाद सियासी हलकों में हलचल मचनी लाजिमी थी सो मची. कयासों का दौर शुरू हो गए. आपको याद हो तो इसके बाद एक घटना और हुई. अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को वापस लौटने को कह दिया गया था, ये कहकर कि आतंकी हमले की आशंका है. शैक्षिक संस्थाओं के छात्रों और राज्य में काम करने वाले बाहर के लोगों को निकालने का काम भी शुरू किया गया था.
इतना सब होने से लोगों को लगने लगा लगा था कि सरकार जम्मू-कश्मीर को लेकर कुछ बड़ा कदम उठाने जा रही है लेकिन वो क्या है इसकी भनक किसी को नहीं लग पा रही थी क्योंकि जैसा हमने जानकारों के हवाले से बताया कि इस कहानी के राइटर-डायरेक्टर-प्रोड्यूसर और सारी कमान संभालने वाले शायद सिर्फ दो ही लोग थे. जम्मू-कश्मीर के बड़े नेता फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती समेत कई नेताओं ने एकजुट होने की सोची लेकिन उनकी सोच के आगे पीएम मोदी और उनके चाणक्य अमित शाह बैठे थे.
रविवार 4 अगस्त 2019 की रात को राज्य के प्रमुख राजनेताओं की नजरबंदी कर दी गई, मोबाइल और लैंडलाइन सेवाएं भी बंद कर दी गईं. धारा-144 और घाटी में कर्फ्यू लागू कर दिया गया जिसके बाद लोगों को लगने लगा कि सोमवार का दिन जम्मू-कश्मीर के लिए विशेष होने वाला है, ऐतिहासिक होने वाला है. लेकिन मैं फिर भी यहीं कहूंगा कि किसी ने भी शायद ये नहीं सोचा होगा कि जम्मू-कश्मीर के लिए ऐतिहासिक बात वहां राज्य में नहीं बल्कि राजधानी दिल्ली में, संसद भवन में होने वाली है और उसकी घोषणा भी गृह मंत्री अमित शाह करेंगे. And then as we say in English.. Rest is history..
लीजिये हिस्ट्री की बात पर याद आया कि अब हमारे लेख में वक्त भी हो गया है 370 और इससे जुड़े मुद्दों के इतिहास को खंगालने का... जब भी कश्मीर की बात आती है तो आर्टिकल 370 आ ही जाता है. आपको याद होगा कि आम चुनाव 2014 और 2019 के घोषणा पत्र में बीजेपी ने आर्टिकल 370 हटाने की बात कही थी. दरअसल आर्टिकल 370 बीजेपी के लिए कोई सिर्फ कुछ सालों से मुद्दा नहीं था. बीजेपी, जनसंघ के संस्थापक डॉक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी के उस नारे को फॉलो करती आई है जिसमें कहा गया था कि 'एक देश में दो निशान, दो विधान और दो प्रधान नहीं चलेंगे.'
आर्टिकल 370 हटाने का फैसला आसान नहीं था...लेकिन बीजेपी के सत्ता में आने के बाद इस बात की अटकलें लगाई जा रही थी कि बीजेपी इस मुद्दे को लेकर चुप तो बिल्कुल नहीं बैठेगी. आखिरकार 2019 में बीजेपी को प्रचंड बहुमत दोबारा मिला, मई में सरकार बनी और अगस्त में वो गया, जिसके होने का बीजेपी सालों से इंतजार कर रही थी. आर्टिकल 370 भले ही बीजेपी का मुद्दा था लेकिन भारत की एक बड़ी आबादी भी ऐसा ही चाहती थी.
इस फैसले से कश्मीर ने क्या खोया और भारत सरकार और जश्न मना रहे लोगों को क्या मिला इस पर भी बात करेंगे लेकिन पहले बात उस कश्मीर की जहां कभी 370 हुआ करता था... सबसे पहले आपको ये बता दें कि धारा 370 के मसौदे को जम्मू-कश्मीर सरकार को सौंपा गया था. उस वक़्त ये संविधान की धारा 306A थी, जिसे संविधान सभा ने 27 मई 1949 को पारित किया. 17 अक्टूबर 1949 को धारा 370 को पूरी तरह संविधान में अंगीकृत कर लिया गया था. इसके तहत जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान बनाने की इजाज़त दी गई.
इस धारा के तहत भारतीय संसद में पारित कानून जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता था. भारत में शामिल होने के लिए महाराजा हरि सिंह ने अक्टूबर-नवंबर 1947 में जिस विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए थे उसमें जिन बातों का जिक्र था, उनके अलावा संसद से अगर किसी भी विषय पर कानून पारित होता था तो वो जम्मू-कश्मीर में सीधे तौर पर लागू नहीं होता था.
ये जम्मू-कश्मीर को लेकर अस्थाई प्रावधान था. अनुच्छेद 370 के तहत विदेश मामलों, रक्षा और संचार के अलावा जम्मू-कश्मीर को अपना कानून बनाने का हक था. इस धारा के तहत जम्मू-कश्मीर को अपना संविधान और अपना झंडा बनाने की अनुमति भी दी गई थी. महाराजा हरि सिंह ने जिस विलय पत्र पर हस्ताक्षर किया था, उसके उपबंध 5 में कहा गया है, 'मेरी विलय संधि में किसी भी तरह का संलेख धन नहीं हो सकता. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम के तहत इसमें कोई बदलाव तब तक नहीं हो सकता, जब तक ये मुझे मंजूर ना हो.'
उपबंध 7 में कहा गया है, 'भारत के भविष्य के संविधान को (हमारे यहां) लागू करने पर बाध्य नहीं किया जा सकता.' इसी विलय संधि की शर्तों के मुताबिक धारा 370 की व्यवस्था की गई थी. उस वक्त जम्मू-कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख अब्दुल्ला को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने चिट्ठी लिखकर कहा था कि सरदार पटेल के साथ उनकी सहमति बनी है कि जम्मू-कश्मीर के संविधान को लेकर संविधान सभा में बहस हो और इसमें वहां के लोगों को विशेषाधिकार दिए जाएं.
जम्मू- कश्मीर और धारा 370 की बात करें, उससे पहले थोड़ी बात संविधान की कर लेते हैं ताकि चीजें पूरी तरह से स्पष्ट हो जाएं.
संविधान का भाग 1 कहता है कि जम्मू-कश्मीर में संविधान की दो ही धारा लागू होंगी- धारा 1 और धारा 370.
धारा 370 में ये व्यवस्था है कि इसके जरिए देश के दूसरे कानून भी यहां लागू हो सकते हैं. यानी धारा 370 वो रास्ता थी जिसके जरिए भारत सरकार जम्मू-कश्मीर में केन्द्रीय कानून लागू करती थी.
केंद्र सरकार ने धारा 370 का कई बार अपने पक्ष में इस्तेमाल किया. इस धारा के तहत राष्ट्रपति को ये अधिकार हासिल था कि वो अपने आदेश के जरिए किसी कानून को जम्मू-कश्मीर में लागू कर सकते थे.
कश्मीर में धारा 370 हटने के पहले केंद्र सरकार ने करीब 46 बार इस धारा का इस्तेमाल कर भारतीय संविधान के प्रावधानों को जम्मू-कश्मीर में लागू किया था.
इसी धारा के इस्तेमाल के जरिए भारत ने केंद्र की सूची में शामिल 97 विषयों में से 94 को जम्मू-कश्मीर में लागू किया था. इसी तरह समवर्ती सूची के 47 विषयों में से 26 वहां लागू थे.
संविधान की 260 धाराएं जम्मू-कश्मीर में उसी तरह लागू थीं जैसे भारत के बाकी राज्यों में.
जम्मू-कश्मीर संविधान की धारा 3 में जम्मू-कश्मीर को भारत का अंदरूनी हिस्सा करार दिया गया था. इस संविधान में वहां के लोगों को ‘नागरिक’ के बजाए ‘स्थाई निवासी’ करार दिया गया था इसलिए जम्मू-कश्मीर के संविधान के साथ ताल-मेल के लिए धारा 370 को अहम माना जा रहा था.
आर्टिकल 370 के तहत जम्मू-कश्मीर को क्या विशेष छूट हासिल थी?
इस धारा के चलते केंद्र सरकार के ज्यादातर कानून वहां लागू नहीं होते थे.
अनुच्छेद 370 के निष्क्रिय होने के पहले राज्य का अपना झंडा होता था.
अनुच्छेद 370 और 35A के प्रावधानों के तहत जम्मू-कश्मीर के स्थायी निवासियों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त थे.
वहां की संपत्तियां खरीदने का अधिकार राज्य के बाहर के लोगों को नहीं था.
नागरिकता और संपत्ति के अधिकार समेत वहां के लोगों के मौलिक अधिकार भी अलग थे.
केंद्र सरकार वहां धारा 360 का इस्तेमाल करते हुए वित्तीय आपातकाल लागू नहीं कर सकती थी.
युद्ध और बाहरी आक्रमण के वक्त ही केंद्र सरकार को वहां आपातकाल लागू करने का अधिकार था.
आंतरिक अशांति के आधार पर भी केंद्र सरकार वहां आपातकाल लागू नहीं कर सकती थी.
धारा 370 के कश्मीर से हटने के बाद वहां के राजनीतिक दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी थी. महबूबा मुफ्ती ने कहा था कि भारत ने जिन्न को बोतल से बाहर निकाल दिया है... लेकिन मोदी-शाह की जोड़ी ने कश्मीर से धारा 370 हटाने के लिए कोई जादू नहीं किया था बल्कि मोदी सरकार ने धारा 370 से मिली शक्तियों का ही इस्तेमाल करके भारतीय संविधान को पूरी तरह से जम्मू-कश्मीर पर लागू कर दिया.
दिल्ली विश्वविद्यालय में इसी साल एक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा था ‘मोदी जी ने 5 अगस्त 2019 को चुटकी बजा कर 370 को खत्म कर दिया. मोदी सरकार की नीतियों के कारण खून की नदियां छोड़ो किसी में कंकड़ चलाने की भी हिम्मत नहीं है. धारा 370 को हटाना आसान नहीं था. अगर सिर्फ इस धारा को हटाया जाता तो विलय संधि की शर्तों के साथ ताल-मेल बैठाना आसान नहीं होता.ऐसा इसलिए क्योंकि वहां पर संविधान की धारा 1 के अलावा हर कानून 370 के रास्ते ही लागू होते थे. इसलिए राष्ट्रपति ने धारा 370 हटाने के साथ-साथ धारा 367 में नया उपबंध 4 जोड़ दिया.’ अब सवाल आता है कि कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद क्या बदलाव आया?
क्या अब वहां पत्थरबाजी नहीं होती जैसा की अमित शाह ने कहा था कि अब कश्मीर में किसी में पत्थर चलाने की हिम्मत भी नहीं है. क्या वाकई ऐसा है? इसकी भी पड़ताल करेंगे लेकिन पहले जानते हैं नए जम्मू-कश्मीर को जिसके बारे में संसद में अमित शाह ने कहा था—
प्रस्ताव किया गया है कि जम्मू-कश्मीर अब राज्य नहीं रहेगा.
जम्मू-कश्मीर की जगह अब दो केंद्र शासित प्रदेश होंगे.
एक का नाम जम्मू-कश्मीर, दूसरे का लद्दाख होगा.
जम्मू-कश्मीर की विधानसभा होगी जबकि लद्दाख का नहीं.
दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथ में होगा.
अनुच्छेद 370 का केवल एक खंड बाकी रखा गया है जिसके तहत राष्ट्रपति किसी बदलाव का आदेश जारी कर सकते हैं.
केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने का प्रस्ताव सुरक्षा और आतंकवाद की स्थिति को देखते हुए लिया गया.
केन्द्र सरकार कहती है कि जम्मू कश्मीर सरकार ने विभिन्न विभागों में करीब 1700 कश्मीरी पंडितों की नियुक्ति की है. इसके अलावा केन्द्र सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद अब तक कुल 439 आतंकी मारे गए हैं. केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय के मुताबिक 'जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद 5 अगस्त 2019 से 26 जनवरी 2022 तक 541 आतंकी घटनाएं हुईं. इसके साथ ही 439 आतंकवादी मारे गए. इन घटनाओं में 98 नागरिकों की मौत भी हुई जबकि देश के 109 जवान शहीद हो गए.’
ऐसे में क्या निष्कर्ष निकाला जाए? शायद यही कि, ये अगस्त का महीना है और 15 अगस्त आने ही वाला है. उधर बीजेपी का कहना है कि धारा 370 हटने के बाद हमारे 20 से ज्यादा नेता मारे गए हैं. पिछले कुछ दिनों से कश्मीर में टारगेट किलिंग को अंजाम दिया जा रहा है.. लोग जमीन भी खरीद रहे हैं, बाहर की कंपनियों का निवेश भी बढ़ा है लेकिन आतंकवाद का साया अभी भी है.अभी भी सेना सड़कों पर है.
दहशत में कमी भले आई हो लेकिन दहशत तो है. इसलिए ये कहना कि कश्मीर बेहतरी की तरफ बहुत ज्यादा बदल गया है. शायद थोड़ी जल्दबाजी होगी. अभी तो वहां सुचारू रूप से चुनाव भी होने हैं जिसके माध्यम से विधानसभा सदस्य चुने जाएंगे और फिर शायद वे अपने चुनाव क्षेत्रों को और ज्यादा खुशहाली प्रदान कर पायेंगे तब हम भी गृह मंत्री अमित शाह की तरह छाती ठोक के कह पाएंगे कि हां जम्मू-कश्मीर और घाटी में बेहतर बदलाव आया है.
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.