आखिरकार जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की विदाई हो ही गई. सही मायनों में तो अब भी यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि जिस धारा 370 के बारे ऐसी भ्रांतियां फैला कर रखी गयी थीं कि शायद इस धारा का अंत कभी हो ही नहीं सकता, वो अचानक से एक झटके में अप्रासंगिक हो गई है. हालांकि अब धारा 370 के हट जाने के बाद उन लोगों के कलेजे पर सांप लोट गया है जिन्होंने अब तक इस मुद्दे पर जनता को गुमराह कर रखा था और अब वापस से धारा 370 के हट जाने के बाद लोगों को डराने में लग गए हैं.
धारा 370 के अप्रासंगिक होने के साथ ही जहां एक ओर देश भर में खुशी की लहर है तो वहीं एक ऐसा वर्ग भी है जो लोगों को यह बताने में लगा है कि आखिर धारा 370 हटना क्यों इतना खतरनाक है. खुद को ‘अभिजात्य’ समझने वाले यह लोग अब तक यह बताते आए थे कि धारा 370 या 35A को हटा पाना संभव ही नहीं है और यह डराते भी आए थे कि इसका हटना कश्मीर को भारत का हिस्सा भी नहीं रहने देगा. हालांकि वर्तमान सरकार ने जिस सफाई से इस धारा का अंत किया है वो वाकई काबिलेतारीफ है.
अब ऐसी सूरत में वही ‘अभिजात्य’ वर्ग वापस से लोगों को डराने के लिए निकल पड़ा है. इस बार इस वर्ग को लगता है कि धारा 370 का हट जाना भारत के संविधान के साथ खिलवाड़ है, यह उस कश्मीर की जनता के साथ छल है जो पिछले 7 दशकों से भारत के साथ है साथ ही केंद्र सरकार का यह कदम उस आने वाले खतरे का संकेत है जिसमें आने वाले समय में केंद्र सरकार कई राज्यों को केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर सकती है.
हालांकि वह यह बताना ही नहीं चाहते कि आखिर पिछले सात दशकों में किस प्रकार जम्मू-कश्मीर या देश के हित रहा है. अगर जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर नज़र डालें तो आज इस...
आखिरकार जम्मू-कश्मीर से धारा 370 की विदाई हो ही गई. सही मायनों में तो अब भी यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि जिस धारा 370 के बारे ऐसी भ्रांतियां फैला कर रखी गयी थीं कि शायद इस धारा का अंत कभी हो ही नहीं सकता, वो अचानक से एक झटके में अप्रासंगिक हो गई है. हालांकि अब धारा 370 के हट जाने के बाद उन लोगों के कलेजे पर सांप लोट गया है जिन्होंने अब तक इस मुद्दे पर जनता को गुमराह कर रखा था और अब वापस से धारा 370 के हट जाने के बाद लोगों को डराने में लग गए हैं.
धारा 370 के अप्रासंगिक होने के साथ ही जहां एक ओर देश भर में खुशी की लहर है तो वहीं एक ऐसा वर्ग भी है जो लोगों को यह बताने में लगा है कि आखिर धारा 370 हटना क्यों इतना खतरनाक है. खुद को ‘अभिजात्य’ समझने वाले यह लोग अब तक यह बताते आए थे कि धारा 370 या 35A को हटा पाना संभव ही नहीं है और यह डराते भी आए थे कि इसका हटना कश्मीर को भारत का हिस्सा भी नहीं रहने देगा. हालांकि वर्तमान सरकार ने जिस सफाई से इस धारा का अंत किया है वो वाकई काबिलेतारीफ है.
अब ऐसी सूरत में वही ‘अभिजात्य’ वर्ग वापस से लोगों को डराने के लिए निकल पड़ा है. इस बार इस वर्ग को लगता है कि धारा 370 का हट जाना भारत के संविधान के साथ खिलवाड़ है, यह उस कश्मीर की जनता के साथ छल है जो पिछले 7 दशकों से भारत के साथ है साथ ही केंद्र सरकार का यह कदम उस आने वाले खतरे का संकेत है जिसमें आने वाले समय में केंद्र सरकार कई राज्यों को केंद्रशासित प्रदेश घोषित कर सकती है.
हालांकि वह यह बताना ही नहीं चाहते कि आखिर पिछले सात दशकों में किस प्रकार जम्मू-कश्मीर या देश के हित रहा है. अगर जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति पर नज़र डालें तो आज इस प्रदेश का नाम आते ही कई खतरनाक हथियारों से लैस युवाओं की तस्वीरें जेहन में कौंध जाती हैं. यह उस प्रदेश की नई पहचान है जिसके बारे में यह कहा जाता रहा है कि धरती पर कहीं स्वर्ग है तो वो कश्मीर में ही है. हालांकि आज सत्ता में बैठे लोगों के ढुलमुल रवैये के कारण धरती के इस स्वर्ग में रहने वालों की स्थिति नारकीय हो गयी है.
घाटी में कॉलेज जाने वाली उम्र में युवाओं के हाथ में AK-47 थमा दिया जाता है जबकि स्कूल जाने वाली उम्र में बच्चों के हाथों में पत्थर. कश्मीर में रहने वाले युवाओं के पास ना तो मनोरंजन के पर्याप्त साधन हैं और ना ही खेलने को पर्याप्त मैदान. जाने-अनजाने घाटी के युवा दिग्भ्रमित होकर पाकिस्तान के ही एजेंडे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं. पिछले कुछ सालों में कश्मीर में युवाओं का आतंकवाद की तरफ भी खासा रुझान देखा जा रहा है. साल 2017 में जहां 131 युवाओं ने विभिन्न आतंकवादी संघठनों का दामन थामा तो वहीं 2018 में यह संख्या 200 के पार चली गयी. पिछले कुछ सालों के दौरान कई आतंकवादी संघठनों की गतिविधियों में काफी बढ़ोतरी देखने को मिली.
अगर बात जम्मू-कश्मीर के उद्योग-धंधे की की जाए तो साल 2017 में बिज़नेस टुडे की एक रिपोर्ट के अनुसार जम्मू-कश्मीर में कुल 86 मीडियम और लार्ज स्केल इन्डस्ट्री मौजूद हैं, जबकि इन उद्योगों ने कुल 19 हजार लोगों को रोजगार दिया है. जबकि इसकी तुलना में हिमाचल प्रदेश जैसे एक अन्य पहाड़ी राज्य में 500 से अधिक मीडियम और लार्ज स्केल इन्डस्ट्री मौजूद हैं, जिसमें 71 हजार लोगों को रोजगार मिला है. रिपोर्ट आगे बताती है कि केवल कश्मीर में 30 हजार से ज्यादा छोटे उद्योग हैं जिसमें 1 लाख 42 हज़ार लोगों को रोजगार मिला है. हालांकि इसका सबसे दुखद पहलू यह है कि 10 सालों में कश्मीर के लघु, मध्यम और बड़े उद्योगों को मिलाकर कुल 5 हजार के करीब ही रोजगार का सृजन हुआ है. यह आकंड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि आखिर कश्मीर में विकास कहां हुआ है.
हालांकि यह जान लेना भी जरूरी है कि पूरे राज्य में पैसे की कोई कमी ही नहीं है. एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2000 से 2016 के बीच केंद्र द्वारा राज्यों को मिलने वाले कुल फण्ड का 10 फीसदी हिस्सा केवल जम्मू कश्मीर को मिला है जबकि यहां की आबादी भारत के कुल आबादी के 1 फीसदी के करीब है. कश्मीर को इन 16 सालों में 1.14 लाख करोड़ केंद्रीय सहायता के रूप में प्राप्त हुआ है. हालांकि बावजूद इसके कश्मीर के नागरिक विकास की दौड़ में पीछे ही छूट गए. उन्हें ना तो कमाने के ही साधन दिए गए और ना ही पढ़ने के. हां इस दौरान उनकी मनोवृत्ति जरूर इतनी विकृत कर दी गई कि वो लोग बुरहान वानी और उस जैसे अन्य आतंकवादियों को अपना खुदा मान बैठे.
हालांकि इस दौरान भारत के टुकड़े करने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान के दलाल अलगाववादी नेताओं और कश्मीर को खुद की जागीर मानने वाले अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवारों का खूब विकास हुआ. इस दौरान जहां भारत के खिलाफ जहर उगलने वाले नेता भारतीय सरकार के पैसों पर राजाओं जैसी जिंदगी जीते रहे तो वहीं अब्दुल्ला और मुफ़्ती परिवार कश्मीर के लोगों को विकास का कोरा ख्वाब ही दिखाते रहे. हालात यहां तक पहुंच गए कि कश्मीर भारत की मुख्यधारा से दूर होता गया और साथ ही कश्मीर समस्या का हल दूर की कौड़ी लगने लगा.
हालांकि अब धारा 370 को अप्रासंगिक कर एवं जम्मू कश्मीर को केंद्रशासित प्रदेश बनाकर कश्मीर को मुख्य धारा में लाने की बेहतर पहल हो रही है जिसका निश्चित रूप से स्वागत किया जाना चाहिए. एक सवाल संविधान की दुहाई देने वाले लोगों से भी है कि क्या पाकिस्तान के कुचक्र में जकड़ा कश्मीर भारतीय संविधान की रक्षा के लिए जरूरी है?
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