इन दिनों पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी AIIMS में भर्ती हैं. 66 साल के जेटली को सांस लेने में दिक्कत और बेचैनी की समस्या के बाद 9 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था. करीब 10 दिन बाद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि उनकी हालत और खराब सी होती जा रही है. इसी बीच एम्स ने ये साफ किया है कि अरुण जेटली की हालत में कोई सुधार नहीं है. उन्हें एक्स्ट्रा कारपोरल मेंब्रेन ऑक्सीजेनेशन (ECMO) और इंट्रा-अरॉटिक बलून पंप (IABP) सपोर्ट पर रखा गया है. यानी उन्हें Life Support System पर रखा गया है. आपको बता दें कि जब सांस लेने में मददगार कोई अंग काम करने की हालत में नहीं रहता है, तब व्यक्ति को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है.
इस लाइफ सपोर्ट सिस्टम के बारे में लोगों ने सुना तो कई बार है, लेकिन इसे गहराई से कम ही लोग समझते हैं. बहुत से लोग तो यह भी मानते हैं कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर आने की हालत हो जाने के बाद कोई जिंदा नहीं बच पाता है. ऐसे में आपको बता दें कि ये धारणा बिल्कुल गलत है. ना तो लाइफ सपोर्ट सिस्टम इस बात की गारंटी देता है कि कोई शख्स जिंदा बच जाएगा, ना ही उसका ये मतलब है कि अब उस शख्स का बचना मुश्किल है. दरअसल, लाइफ सपोर्ट सिस्टम के मायने सिर्फ इतने हैं कि वह व्यक्ति को सांस लेने में मदद करता है, ताकि शरीर में ऑक्सीजन जाती रहे और कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकलती रहे. चलिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम को अच्छे से समझते हैं.
क्या है लाइफ सपोर्ट सिस्टम?
फेफड़े किसी व्यक्ति को हवा से ऑक्सीजन लेने में मदद करते हैं और उसके शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर...
इन दिनों पूर्व वित्त मंत्री और भाजपा के दिग्गज नेता अरुण जेटली अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानी AIIMS में भर्ती हैं. 66 साल के जेटली को सांस लेने में दिक्कत और बेचैनी की समस्या के बाद 9 अगस्त को एम्स में भर्ती कराया गया था. करीब 10 दिन बाद भी उनकी हालत में कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि उनकी हालत और खराब सी होती जा रही है. इसी बीच एम्स ने ये साफ किया है कि अरुण जेटली की हालत में कोई सुधार नहीं है. उन्हें एक्स्ट्रा कारपोरल मेंब्रेन ऑक्सीजेनेशन (ECMO) और इंट्रा-अरॉटिक बलून पंप (IABP) सपोर्ट पर रखा गया है. यानी उन्हें Life Support System पर रखा गया है. आपको बता दें कि जब सांस लेने में मददगार कोई अंग काम करने की हालत में नहीं रहता है, तब व्यक्ति को लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है.
इस लाइफ सपोर्ट सिस्टम के बारे में लोगों ने सुना तो कई बार है, लेकिन इसे गहराई से कम ही लोग समझते हैं. बहुत से लोग तो यह भी मानते हैं कि लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर आने की हालत हो जाने के बाद कोई जिंदा नहीं बच पाता है. ऐसे में आपको बता दें कि ये धारणा बिल्कुल गलत है. ना तो लाइफ सपोर्ट सिस्टम इस बात की गारंटी देता है कि कोई शख्स जिंदा बच जाएगा, ना ही उसका ये मतलब है कि अब उस शख्स का बचना मुश्किल है. दरअसल, लाइफ सपोर्ट सिस्टम के मायने सिर्फ इतने हैं कि वह व्यक्ति को सांस लेने में मदद करता है, ताकि शरीर में ऑक्सीजन जाती रहे और कार्बन डाई ऑक्साइड बाहर निकलती रहे. चलिए लाइफ सपोर्ट सिस्टम को अच्छे से समझते हैं.
क्या है लाइफ सपोर्ट सिस्टम?
फेफड़े किसी व्यक्ति को हवा से ऑक्सीजन लेने में मदद करते हैं और उसके शरीर से कार्बन डाई ऑक्साइड को बाहर निकालते हैं. सांस लेने के सिस्टम में नाक, मुंह, सांस नली और फेफड़े होते हैं. अस्थमा होने या जहर खा लेने की स्थिति में फेफड़ों का इंफेक्शन हो जाता है. कई बार यह इतना अधिक हो जाता है कि व्यक्ति को जीवित रखने के लिए अतिरिक्त प्रणाली लगानी पड़ती है. एक लाइफ सपोर्ट सिस्टम में एक वेंटिलेटर होता है, जो सांस लेने में मदद करता है. जब किसी मरीज को खुद से सांस लेने में दिक्कत होती है तो उसे वेंटिलेटर पर डाला जाता है. कई बार व्यक्ति बिल्कुल सांस नहीं ले पाता और वह सिर्फ वेंटिलेटर के भरोसे ही जिंदा रहता है.
किसी को भी वेंटिलेटर पर तब रखा जाता है जब उसकी स्थिति लगातार बिगड़ती ही जाती है. इन चार में से कोई भी स्थिति होने पर मरीज को तुरंत वेंटिलेटर पर डाल दिया जाता है.
1- खुद से सांस लेने में दिक्कत
2- दिल की धड़कनों का अनियमित होना
3- किडनी से जुड़ी कोई दिक्कत हो जाना
4- आंतों का सही से काम ना करना
इन सभी प्रक्रियाओं का हमारे शरीर में होते रहना जरूरी है. एक में भी दिक्कत होने पर लाइफ सपोर्ट सिस्टम या यूं कहें कि वेंटिलेटर पर डाल दिया जाता है.
कई नेताओं की सेहत सस्पेंस से भरी रही
अरुण जेटली जिस दिन से एम्स में भर्ती हुए हैं, तब से लेकर अब तक उनके स्वस्थ्य में काफी गिरावट आई है, जिसके चलते उन्हें वेंटिलेटर पर रखना पड़ा है. जिस तरह इस समय जेटली के स्वास्थ्य को लेकर तरह-तरह की बातें हो रही हैं, लोग जानना चाह रहे हैं कि इस वक्त उनकी तबियत कैसी है, ऐसा पहले भी कई नेताओं के साथ हो चुका है. कुछ तो काफी दिनों तक वेंटिलेटर पर रहे थे, तो कुछ कई सालों तक कोमा में भी रहे.
1- नौ साल कोमा में रहे प्रिय रंजन दासमुंशी
1971 से लेकर 2004 तक प्रिय रंजन दासमुंशी ने 7 बार लोकसभा चुनाव लड़ा और 5 बार जीतकर सांसद बने. 12 अक्टूबर 2008 को उन्हें एक दौरा पड़ा और उनको लकवा मार गया. तुरंत ही उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया, जहां से उन्हें अपोलो अस्पताल में शिफ्ट कर दिया गया. उनके पूरे बाएं हिस्से ने काम करना बंद कर दिया था और उन्हें लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखना पड़ा. 10 अक्टूबर 2011 को उनके परिवार को डॉक्टर ने ये सलाह दी कि उन्हें अब घर ले जाया जाए. करीब 9 साल कोमा में रहने के बाद अपने 72वें जन्मदिन के एक हफ्ते बाद 20 नवंबर 2017 को प्रिय रंजन दासमुंशी का निधन हो गया.
2- आज तक कोमा से नहीं निकले हैं जसवंत सिंह
भारतीय सेना से रिटायर होने के बाद जसवंत सिंह ने भाजपा की सद्स्यता ले ली थी. वह 5 बार भाजपा की ओर से राज्यसभा के लिए चुने गए और चार बार लोकसभा चुनाव जीते. 2009 में भाजपा की हार के बार जवसंत सिंह की लिखी एक किताब सामने आई, जिसमें उन्होंने जिन्ना के लिए सहानुभूति जताई थी. इसकी वजह से पार्टी के लोग उनसे खफा हो गए. 2014 के चुनाव में उन्हें किसी भई सीट से नहीं लड़ाया और 29 मार्च 2014 को उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया. इसके कुछ ही हफ्तों बात 7 अगस्त 2014 को जसवंत सिंह अपने बाथरूम में गिर गए और उनके सिर में गंभीर चोट आई. इसके बाद उन्हें आर्मी के रिसर्च एंड रेफेरल अस्पताल में भर्ती कराया गया. तब से लेकर अब तक वह कोमा में हैं.
3- अटल बिहारी वाजपेयी वेंटिलेटर से गुजर कर भी घर पहुंचे थे
भारतीय राजनीति के भीष्म पितामह कहे जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी को 6 फरवरी 2009 को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी तबियत खराब होती देख उन्हें वेंटिलेटर पर रखा गया. हालांकि, उनकी तबियत में सुधार हुआ और फिर उन्हें डिस्चार्ज कर दिया गया. हालांकि, दौरे की वजह से उनकी बोलने की क्षमता जा चुकी थी. वह हर वक्त व्हील चेयर पर ही रहते थे और किसी को पहचान भी नहीं पाते थे. कई सालों तक वह किसी के सामने नहीं आए. 11 जून 2018 को उन्हें फिर से एम्स में भर्ती कराया गया, जहां किडनी इंफेक्शन का पता चला. 16 अगस्त 2018 को 93 साल की उम्र में उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.
4- जॉर्ज फर्नांडेज के 'अल्जाइमर' के चलते परिवार में चला कानूनी केस
रेल मंत्रालय से लेकर रक्षा मंत्रालय तक का पदभार संभाल चुके जॉर्ज फर्नांडेज की मौत भी काफी चर्चा में रही थी. इस चर्चा की एक वजह तो उनकी बीमारी ही थी और दूसरी वजह थी उनका परिवार. 2010 के दौरान ये बात सामने आई कि वह अल्जाइमर से पीड़ित हैं. आपको बता दें कि इसमें दिमाग की कोशिकाएं एक-एक कर के मरती जाती हैं. इसकी वजह से व्यक्ति कुछ भी सोचने-समझने की शक्ति खो देता है. उनके भाई माइकल फर्नांडेज ने बताया था कि उनकी स्थिति दिन-प्रतिदिन खराब ही होती जा रही थी, वह हर समय परेशान रहते थे. माइकल ने बताया कि जब भी वह जॉर्ज से मिलते थे, वह चिड़चिड़े दिखते थे. वह चाहते थे कि हम उन्हें उनकी पत्नी के चंगुल से छुड़ा कर अपने साथ ले जाएं.
इन सबकी एक बड़ी वजह थी उनके परिवार की कलह. पहले उनकी शादी लैला कबीर से हुई थी, जिससे उन्हें एक बेटा हुआ. 1980 के दशक में वह लैला कबीर से अलग हो गए और 1984 के बाद से ही जया जेटली उनकी पार्टनर थीं. उनकी इस हालत के दौरान लैला कबीर, जया जेटली और जॉर्ज फर्नांडेज के भाइयों के बीच कोर्ट में मुकदमा भी चला कि आखिर जॉर्ज फर्नांडेज की कस्टडी किसे मिलनी चाहिए. आखिरकार कोर्ट ने जया जेटली को उनकी कस्टडी दे दी थी. 88 साल की उम्र में 29 जनवरी 2019 को उनकी मौत हो गई.
5- जयललिता की मौत को लेकर आज भी रहस्य कायम !
अम्मा के नाम से पूरे तमिलनाडु में लोकप्रिय जयललिता के जीवन की कहानी जितनी दिलचस्प थी, उनकी मौत उतनी ही रहस्यमयी रही. कई दिनों तक इस बात को लेकर संदेह रहा कि उनकी मौत हो चुकी है या फिर वह जिंदा है. बीच में खबर आई थी कि उनकी हालत सुधर रही है और अगले ही पल ये पता चल कि उनकी मौत हो गई है. 2016 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जीतकर जयललिता एमजीआर के बाद पहली नेता बन गईं, जिन्हें जनता ने लगातार दोबारा चुना हो. 2016 सितंबर में ही वह गंभीर रूप से बीमार हुईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया. करीब 75 दिनों तक वह अस्पताल में भर्ती रहीं और इस पूरे समय में उनकी सेहत को लेकर तरह-तरह की बातें होती रहीं. उनकी सेहत को लेकर सस्पेंड 5 दिसंबर 2016 तक बना रहा, जब दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हुई. उनकी मौत को लेकर कई बार जांच तक कराए जाने की मांग उठी. आज भी उनकी मौत का रहस्य एक तरह से कायम ही है.
6- राजनीति से दूर हुए करुणानिधि तो बातें होने लगीं !
करुणानिधि की तबियत अक्टूबर 2016 में काफी खराब हो गई, जिसके बाद उन्होंने राजनीति से एक तरह का किनारा ही कर लिया. जनता के बीच वह काफी कम दिखने लगे. 28 जुलाई 2018 को करुणानिधि की सेहत ज्यादा खराब हुई तो उन्हें चेन्नई के कावेरी अस्पताल में भर्ती कराया गया. 7 अगस्त 2018 को मल्टिपल ऑर्गन फेल होने की वजह से उनकी मौत हो गई. 28 जुलाई से लेकर 7 अगस्त कर उनकी सेहत को लेकर काफी बातें होती रहीं. तरह-तरह के कयास लगाए जाते रहे और अफवाहें भी उड़ती रहीं.
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