दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल का कोटा फिर से पूरा हो गया है. सौरभ भारद्वाज और आतिशी मर्लेना को उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने शपथ भी दिला दी है. ये दोनों मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की जगह पर लाये गये हैं.
अभी नवंबर, 2022 में ही समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को विवादों में आने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. फिर उनकी जगह राज कुमार आनंद को दी गयी - देखें तो छह महीने के भीतर दिल्ली सरकार की आधी कैबिनेट बदल चुकी है. 70 विधानसभा सीटो वाली दिल्ली में मंत्रियों का कोट मुख्यमंत्री सहित सात का है.
असल में मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. अब तो सीबीआई के बाद ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने भी मनीष सिसोदिया को अरेस्ट कर लिया है.
मनीष सिसोदिया के डिप्टी सीएम रहते जिन चीजों को लेकर अरविंद केजरीवाल निश्चिंत रहा करते थे, उनकी गैरमौजूदगी में छोटी छोटी चीजें भी खुद ही मैनेज करनी पड़ रही हैं - और ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब कर्नाटक सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. 2024 के आम चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव के जरिये जगह जगह आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में लगे हुए हैं.
आतिशी और सौरभ वैसे तो अरविंद केजरीवाल के काफी भरोसेमंद हैं, लेकिन ये दोनों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की तरह अरविंद केजरीवाल को कब तक बेफिक्र कर पाएंगे, अभी देखना होगा. आतिशी पहले से ही मनीष सिसोदिया के साथ साथ शिक्षा संबंधी कामों में लगी रही हैं, इसलिए कामकाज संभल जाएगा - लेकिन सरकार के साथ साथ संगठन के भी काम तो होते ही हैं.
मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी तो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई है - और ऐसे मुश्किल दौर में विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से अरविंद केजरीवाल को जो सपोर्ट मिला है, वो लंबे समय तक याद जरूर रखेंगे. कभी नहीं भूल पाएंगे, ऐसा तो कोई भी नहीं कह सकता, क्योंकि ऐसे बहुत से लोग रहे हैं जिनकी बदौलत...
दिल्ली सरकार के मंत्रिमंडल का कोटा फिर से पूरा हो गया है. सौरभ भारद्वाज और आतिशी मर्लेना को उप राज्यपाल वीके सक्सेना ने शपथ भी दिला दी है. ये दोनों मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की जगह पर लाये गये हैं.
अभी नवंबर, 2022 में ही समाज कल्याण मंत्री राजेंद्र पाल गौतम को विवादों में आने के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. फिर उनकी जगह राज कुमार आनंद को दी गयी - देखें तो छह महीने के भीतर दिल्ली सरकार की आधी कैबिनेट बदल चुकी है. 70 विधानसभा सीटो वाली दिल्ली में मंत्रियों का कोट मुख्यमंत्री सहित सात का है.
असल में मनीष सिसोदिया के जेल चले जाने के बाद अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. अब तो सीबीआई के बाद ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय ने भी मनीष सिसोदिया को अरेस्ट कर लिया है.
मनीष सिसोदिया के डिप्टी सीएम रहते जिन चीजों को लेकर अरविंद केजरीवाल निश्चिंत रहा करते थे, उनकी गैरमौजूदगी में छोटी छोटी चीजें भी खुद ही मैनेज करनी पड़ रही हैं - और ये सब ऐसे वक्त हो रहा है जब कर्नाटक सहित कई राज्यों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. 2024 के आम चुनाव से पहले अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव के जरिये जगह जगह आम आदमी पार्टी को खड़ा करने में लगे हुए हैं.
आतिशी और सौरभ वैसे तो अरविंद केजरीवाल के काफी भरोसेमंद हैं, लेकिन ये दोनों मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन की तरह अरविंद केजरीवाल को कब तक बेफिक्र कर पाएंगे, अभी देखना होगा. आतिशी पहले से ही मनीष सिसोदिया के साथ साथ शिक्षा संबंधी कामों में लगी रही हैं, इसलिए कामकाज संभल जाएगा - लेकिन सरकार के साथ साथ संगठन के भी काम तो होते ही हैं.
मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद बीजेपी तो अरविंद केजरीवाल के खिलाफ भी हाथ धोकर पीछे पड़ी हुई है - और ऐसे मुश्किल दौर में विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से अरविंद केजरीवाल को जो सपोर्ट मिला है, वो लंबे समय तक याद जरूर रखेंगे. कभी नहीं भूल पाएंगे, ऐसा तो कोई भी नहीं कह सकता, क्योंकि ऐसे बहुत से लोग रहे हैं जिनकी बदौलत अरविंद केजरीवाल का सफर यहां तक पहुंच चुका है, लेकिन वे सभी पीछे छूटते गये.
मोदी सरकार पर जांच एजेंसियों के दुरुपयोग के आरोप तो सारे ही विपक्षी दल लगाते रहे हैं. एजेंसियों के एक्शन की स्थिति में कई बार तो विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से जोरदार विरोध सुनायी देता है, लेकिन कई बार ये आवाज धीमी होती है या फिर सेलेक्टिव होती है.
एक नयी बात देखने को मिली है कि मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद विपक्षी नेताओं का एक बड़ा तबका दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ खड़ा नजर आ रहा है. 9 विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से तो पहले ही एक पत्र लिखा जा चुका था - अब केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ऐसे दसवें नेता हैं जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई और ईडी के ऐक्शन का विरोध किया है.
विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से ऐसा ही एकजुट सपोर्ट सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) के मामले में भी देखा जा चुका है. जैसे विपक्षी दलों के नेताओं ने अभी प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखा है, तब सोनिया गांधी के समर्थन में साझा बयान जारी किया था. ये तभी की बात है जब प्रवर्तन निदेशालय ने नेशनल हेराल्ड केस में सोनिया गांधी को पूछताछ के लिए बुलाया था.
विपक्षी नेताओं को राजनीतिक नेतृत्व के इशारे पर एजेंसियों द्वारा टारगेट किये जाने का इल्जाम लगाये जाने या किसी एक्शन पर बयान देकर या सोशल मीडिया पर लिख कर अलग अलग विरोध जताने और एक औपचारिक रूप में संगठित विरोध जताने में काफी फर्क है. ध्यान देने वाली बात ये भी है कि ऐसा कदम सोनिया गांधी के बाद अरविंद केजरीवाल के सपोर्ट में ही उठाया गया है, वरना छापेमारी और गिरफ्तारियां तो और भी होती रही हैं.
थोड़ा ध्यान से देखें तो अरविंद केजरीवाल को विपक्ष की तरफ से ऐसा सपोर्ट मिला है जो अब तक राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को भी नहीं मिल सका है - क्या ये नये मिजाज के किसी गठबंधन का कोई बड़ा संकेत है, जिसमें राहुल गांधी बहुत फासले पर नजर आ रहे हैं?
एजेंसियों का एक्शन, विपक्ष का रिएक्शन!
केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन को विपक्षी दलों के सुर में सुर मिलाते कम ही देखा गया है. ऐसा इसलिए भी होता होगा क्योंकि लेफ्ट दलों के केंद्रीय नेता ही राष्ट्रीय राजनीति में हमेशा एक्टिव रहे हैं. कुछ दिन पहले तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव की रैली में पी. विजयन भी पहुंचे थे - और अरविंद केजरीवाल के साथ मंच भी शेयर किया था.
अब विजयन भी विपक्षी दलों के उन 10 नेताओं की सूची में शामिल हो गये हैं, जिनकी तरफ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिख कर जांच एजेंसियों के कामकाज पर सवाल उठाये गये हैं. विजयन से पहले विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से लिखे गये पत्र में केंद्रीय एजेंसियों की खराब होती छवि पर भी गहरी चिंता जतायी गयी थी.
प्रधानमंत्री मोदी को भेजे पत्र में केरल के मुख्यमंत्री विजयन लिखते हैं, 'पब्लिक डोमेन में मौजूद जानकारी के मुताबिक, सिसोदिया के मामले में कैश जैसा कुछ भी आपत्तिजनक सामान बरामद नहीं हुआ है.' विजयन की बात को समझने के लिए आप चाहें तो जुलाई, 2022 में पश्चिम बंगाल सरकार के तत्कालीन मंत्री और टीएमसी नेता पार्थ चटर्जी के केस को याद कर सकते हैं. ममता बनर्जी के लिए भी अपने पार्थ चटर्जी का बचाव करना मुश्किल हो गया था, और टीएमसी नेता ने फटाफट उनको मंत्रिमंडल और पार्टी दोनों से हटा दिया था.
केरल के मुख्यमंत्री विजयन का आरोप है कि मनीष सिसोदिया को राजनीतिक कारणों से टारगेट किया जा रहा है. अरविंद केजरीवाल सहित विपक्षी नेताओं के पत्र में भी ऐसी ही बातें हैं, और ये भी लिखा है कि मनीष सिसोदिया के खिलाफ हुई कार्रवाई से ऐसा लगता है जैसे हम लोकतंत्र से निरंकुशता के दौर में चले गये हैं.
मोदी को भेजे गये पत्र में अरविंद केजरीवाल के अलावा जिन नेताओं ने दस्तखत किये हैं, वे हैं - ममता बनर्जी, केसीआर, शरद पवार, उद्धव ठाकरे, फारूक अब्दुल्ला, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव और समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव.
ऐसे ही सोनिया गांधी से पूछताछ के दौरान विपक्षी दलों के नेताओं की तरफ से समर्थन जताया गया था. तब नेताओं ने प्रधानमंत्री को चिट्ठी तो नहीं लिखी थी, लेकिन एक साझा बयान जरूर जारी किया गया था.
जिन दो नेताओं ने साझा बयान से दूरी बना ली थी, वे रहे - अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी, लेकिन एक दर्जन से ज्यादा नेताओं ने साझा बयान पर हस्ताक्षर जरूर किये थे.
अरविंद केजरीवाल के मामले में भी नीतीश कुमार दूरी बनाते हुए नजर आ रहे हैं. सोनिया के लिए साझा बयान जारी किये जाने के वक्त तो नीतीश कुमार एनडीए में ही रहे, लेकिन महीने भर बाद ही वो पाला बदल कर महागठबंधन के नेता बन गये थे.
और अरविंद केजरीवाल के मामले में एक और खास बात है कि कांग्रेस ने भी बदला पूरा कर लिया है - और मौजूदा समीकरणों में आप देश के विपक्ष की ताजा तस्वीर देख सकते हैं.
क्या केजरीवाल विपक्ष की उम्मीद बन रहे हैं?
मनीष सिसोदिया के मामले में कांग्रेस शुरू से ही हमलावर रही है और विपक्षी नेताओं की चिट्ठी के बाद तो अपना स्टैंड भी साफ कर दिया है. मतलब, कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्षी खेमे से अरविंद केजरीवाल को अब भी बाहर रखने की एक बड़ी वजह ईडी के मामले में सोनिया गांधी को सपोर्ट न करना भी है.
ऐसे में जबकि सीबीआई के बाद अब ईडी ने भी मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया है, सीबीआई ने पहले पटना जाकर राबड़ी देवी और दिल्ली में लालू यादव से भी पूछताछ की है. और केसीआर की बेटी के. कविता को भी पूछताछ के लिए हाजिर होना है.
ये भी देखने में आया है कि मनीष सिसोदिया के खिलाफ सीबीआई एक्शन को तो अजय माकन जैसे कांग्रेस नेता सही ही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन वही सीबीआई जब लालू-राबड़ी के दरवाजे पर दस्तक देती है तो कांग्रेस फॉर्म में लौट आती है - बहरहाल, अब कांग्रेस ने ये भी साफ कर दिया है कि ऐसा वो क्यों करती है.
कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं, 'हम बिल्कुल कन्फ्यूज नहीं हैं... हमारा रुख साफ है... हम राबड़ी देवी के खिलाफ हुई कार्रवाई की निंदा करते हैं, क्योंकि ये कोई संयोग नहीं है कि 2014 के बाद ईडी के मामले चार गुना हो गये - और 95 फीसदी मामले विपक्ष के खिलाफ हैं!'
और फिर अरविंद केजरीवाल के प्रति भी कांग्रेस प्रवक्ता अपना स्टैंड साफ कर देती हैं, 'जब एजेंसियां विपक्ष के पीछे जाती हैं... फिर चाहे हमारे नेता हों या बिहार या महाराष्ट्र के नेताओं के खिलाफ मामला हो, आम आदमी पार्टी एक शब्द नहीं कहती... वे क्यों नहीं बोलते?'
सोनिया गांधी के मामले में अरविंद केजरीवाल के साथ न देने का मुद्दा उठाते हुए सुप्रिया श्रीनेत कहती हैं, 'जब ईडी हमारे नेताओं के खिलाफ साजिश कर रही थी तो पूरा विपक्ष हमारे साथ था, तो क्या यह पूछा गया कि आम आदमी पार्टी कहां थी?'
ये ठीक है कि अरविंद केजरीवाल को कांग्रेस का साथ नहीं मिल रहा है, लेकिन विपक्षी दलों के जिन नेताओं ने भी सपोर्ट किया है - वो बहुत बड़ी बात है. केजरीवाल को सपोर्ट करने वालों में ममता बनर्जी भी हैं, और केसीआर भी. ये दो नेता हैं जो विपक्षी दलों को बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ एकजुट कर रहे हैं.
विपक्ष की इस एकजुटता को तीसरे मोर्चे के तौर पर देखा जा रहा है. नीतीश कुमार भी तीसरे मोर्चे की जगह पहले मोर्चे की वकालत करते रहे हैं - और कांग्रेस के राष्ट्रीय अधिवेशन के मंच से भी विपक्षी दलों के लिए ऐसी चेतावनी जारी की गयी थी. साथ ही, सलाहियत रही कि जिनको भी 2024 में बीजेपी और प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ना है, वे कांग्रेस को नेता मान कर साथ आ जायें.
यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है विपक्षी दलों का ऐसा स्टैंड राहुल गांधी के मामले में भी नहीं देखा गया था. तब भी जबकि सोनिया गांधी से पहले ईडी ने राहुल गांधी से भी कई दिनों तक लंबी पूछताछ की थी - ये तो अरसे से देखा जा रहा है कि राहुल गांधी को विपक्षी खेमे के ज्यादातर नेता गंभीरता से नहीं लेते. मजबूरी की बात और है.
सोनिया गांधी की तरह विपक्ष का राहुल गांधी को समर्थन न मिलना और फिर अरविंद केजरीवाल के पीछे सपोर्ट में खड़े नजर आना बड़ा और मजबूत इशारा कर रहा है - तो क्या विपक्षी दलों के नेता अब कांग्रेस की ही तरह आम आदमी पार्टी में भी विपक्षी राजनीति का भविष्य देखने लगे हैं?
आखिर अरविंद केजरीवाल को भी सोनिया गांधी जैसा सम्मान दिया जाना क्या संकेत देता है - क्या क्षेत्रीय दलों की विचारधारा को लेकर राहुल गांधी का राजनीतिक दर्शन विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं आ रहा है?
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