'आज मंगलवार है और हनुमान जी का दिन है. हनुमान जी ने दिल्ली पर कृपा बरसाई है. मैं इसके लिए हनुमान जी को भी धन्यवाद देता हूं. हम प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी हमें सही रास्ता दिखाते रहें ताकि हम अगले पांच वर्षों तक लोगों की सेवा करते रहें - अरविंद केजरीवाल
11 फ़रवरी 2020. दिन मंगलवार. होने को तो 11 फ़रवरी एक साधारण सी तारीख है मगर इसे इसलिए भी याद रखा जाएगा क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इतिहास रचा है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी 70 में से 62 सीटें जीती (Delhi Election results 2020) हैं इसलिए भविष्य में जब जब ये तारीख आएगी केजरीवाल की इस ऐतिहासिक जीत को याद रखा जाएगा. दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Election) में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम मुद्दे तो थे ही मगर केजरीवाल की इस प्रचंड जीत में हनुमान (Hanuman) जी की भूमिका को भी खारिज नहीं किया जा सकता.
दिल्ली विधानसभा चुनाव ने केजरीवाल को बतौर हनुमान भक्त स्थापित किया है. केजरीवाल की इस जीत से हमें ये संदेश भी मिला कि राजनेता जब जब जब निर्णायक पड़ावों पर अपना बैलेंज खोएंगे या फिर उनमें ढील देखने को मिलेगी वो भगवान का साथ ही होगा जो अधर में फंसी उस राजनेता की नैया को पार लगाएगा. दिल्ली चुनाव से पहले शायद ही कभी किसी ने केजरीवाल के इस अवतार की कल्पना की हो.
चुनाव आया तो विपक्ष विशेषकर भाजपा ने केजरीवाल पर 'सेक्युलर' हिंदू विरोधी...
'आज मंगलवार है और हनुमान जी का दिन है. हनुमान जी ने दिल्ली पर कृपा बरसाई है. मैं इसके लिए हनुमान जी को भी धन्यवाद देता हूं. हम प्रार्थना करते हैं कि हनुमान जी हमें सही रास्ता दिखाते रहें ताकि हम अगले पांच वर्षों तक लोगों की सेवा करते रहें - अरविंद केजरीवाल
11 फ़रवरी 2020. दिन मंगलवार. होने को तो 11 फ़रवरी एक साधारण सी तारीख है मगर इसे इसलिए भी याद रखा जाएगा क्योंकि दिल्ली में आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने इतिहास रचा है. दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की पार्टी 70 में से 62 सीटें जीती (Delhi Election results 2020) हैं इसलिए भविष्य में जब जब ये तारीख आएगी केजरीवाल की इस ऐतिहासिक जीत को याद रखा जाएगा. दिल्ली विधानसभा चुनावों (Delhi Assembly Election) में बिजली, पानी, शिक्षा, स्वास्थ्य जैसे तमाम मुद्दे तो थे ही मगर केजरीवाल की इस प्रचंड जीत में हनुमान (Hanuman) जी की भूमिका को भी खारिज नहीं किया जा सकता.
दिल्ली विधानसभा चुनाव ने केजरीवाल को बतौर हनुमान भक्त स्थापित किया है. केजरीवाल की इस जीत से हमें ये संदेश भी मिला कि राजनेता जब जब जब निर्णायक पड़ावों पर अपना बैलेंज खोएंगे या फिर उनमें ढील देखने को मिलेगी वो भगवान का साथ ही होगा जो अधर में फंसी उस राजनेता की नैया को पार लगाएगा. दिल्ली चुनाव से पहले शायद ही कभी किसी ने केजरीवाल के इस अवतार की कल्पना की हो.
चुनाव आया तो विपक्ष विशेषकर भाजपा ने केजरीवाल पर 'सेक्युलर' हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त, शाहीन बाग़ के हिमायती होने के आरोप मढ़ दिए. 2020 के इस दिल्ली विधानसभा चुनावों में केजरीवाल ने अपने सुर बदले थे उन्होंने हनुमान जी को बतौर ट्रम्प कार्ड इस्तेमाल किया. हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना करती केजरीवाल की तस्वीरें आईं. देश की जनता ने वायरल हुए वीडियो में केजरीवाल को हनुमान चालीसा पढ़ते देखा.
साफ़ था कि अपने इस बदले हुए रूप से केजरीवाल ने भाजपा को बताया कि जितने हिंदू भाजपा के लोग हैं उतने ही हिंदू वो भी हैं. तमाम राजनेताओं के बाद ताजे ताजे हिंदू बने केजरीवाल कितनी दूर जाते हैं इसपर अभी कुछ कहना जल्दबाजी है मगर इतना तो है कि देवी-देवताओं की पॉलिटिक्स ने कई पार्टियों की दिशा बदली है.
तो आइये नजर डालते हैं देश की उन 4 पार्टियों पर जिनका उदय तो किसी और मुद्दे से हुआ था मगर जब ये देवी देवताओं की पॉलिटिक्स के फेर में पड़े तो इनकी दिशा ही बदल गई.
आम आदमी पार्टी
आम आदमी पार्टी प्रचंड बहुमत के साथ दिल्ली में चुनाव जीती है साथ ही हनुमान फैक्टर भी लोगों की जुबान पर है तो सबसे पहले जिक्र आम आदमी पार्टी का. अन्ना आंदोलन क बाद अस्तित्व में आई और 26 नवंबर 2012 को स्थापित आम आदमी पार्टी का शुरूआती एजेंडा भ्रष्टाचार था. पार्टी पॉवर में आई तो कहा गया कि भ्रष्टाचार पर बड़ा प्रहार होगा और देश से भ्रष्टाचार ख़त्म होगा. देश की सक्रिय राजनीति में आए हुए पार्टी को लगभग 8 साल हो गए हैं और इन 8 सालों में पार्टी का फोकस अब पब्लिक डिलिवरी पर आकर रुक गया है.
2020 के इस चुनाव को देखें और इसका अवलोकन करें तो मिलता है कि केजरीवाल ने ये 2020 का ये दिल्ली विधानसभा चुनाव काम पर लड़ा है. दिल्ली विधानसभा चुनावों के प्रचार के दौरान केजरीवाल ने इस बात को स्वीकार किया था कि अगर जनता को लगता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने काम किया है तभी वो आप को वोट दें अन्यथा वो कमल का बटन दबाने के लिए स्वतंत्र हैं.
केजरीवाल ने काम के दावे किये मगर इतिहास गवाह है सिर्फ काम के बल पर राजनीति नहीं होती. हिंदुस्तान में तो बिलकुल नहीं होती. केजरीवाल का भी मामला कुछ ऐसा ही था. हम पहले ही इस बात को बता चुके हैं कि अपने चुनाव प्रचार में भाजपा ने केजरीवाल पर तमाम गंभीर आरोप लगाए उन्हें 'सेक्युलर' हिंदू विरोधी और मुस्लिम परस्त, शाहीन बाग़ का हिमायती कहा.
वो केजरीवाल जिन्होंने देश से भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए राजनीति में एंट्री की थी और जो काम के आधार पर दिल्ली की जनता से वोट मांग रहे थे उन्होंने हनुमान की क्षरण ले ली और अपने को हनुमान भक्त बता दिया. यानी वो केजरीवाल जो किसी और चीज को लेकर राजनीति में आए थे उनका धर्म की तरफ झुक जाना ये बताता है कि उन्होंने अपनी दिशा बदल ली है.
बदली हुई इस दिशा में केजरीवाल की राजनीति कितनी सार्थक होगी ये बाद की चीज है लेकिन विपक्ष इसपर भी राजनीति करेगा और इसकी शुरुआत हो चुकी है. भाजपा के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने दिल्ली जीतने पर केजरीवाल को बधाई दी है और एक ट्वीट किया है.
विजयवर्गीय ने लिखा है कि @ArvindKejriwal जी को जीत की बधाई ! निश्चित ही जो हनुमानजी की शरण में आता है उसे आशीर्वाद मिलता है. अब समय आ गया है कि हनुमान चालीसा का पाठ दिल्ली के सभी विद्यालयों, मदरसो सहित सभी शैक्षणिक संस्थानों में भी जरूरी हो. बजरंगबली की कृपा से अब 'दिल्लीवासी' बच्चे क्यों वंचित रहे ?
कैलाश विजयवर्गीय के इस ट्वीट के पीछे की मंशा क्या है ये किसी से छुपी नहीं है. लेकिन अब अरविंद केजरीवाल को ये समझना होगा कि जैसे जैसे वो आगे जाएंगे वो इस ट्रैप में जकड़ते चले जाएंगे. हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि केजरीवाल के सॉफ्ट हिंदुत्व के मुकाबले भाजपा का हिंदुत्व कहीं स्पष्ट है और जिसमें कोई लाघ लपेट नहीं है. साथ ही भाजपा तमाम मौकों पर ये साबित भी कर चुकी है कि वो इस खेल में बहुत अच्छी है.
बीजेपी
जब विषय पॉलिटिक्स में देवी देवताओं को लाना और उससे दिशा का बदल जाना हो तो किसी भी सूरत में भाजपा को खारिज नहीं किया जा सकता. आज राम भाजपा के लिए सब कुछ हैं. राम से ही भाजपा की राजनीति है. राम ही भाजपा की राजनीति का आधार हैं. ऐसा बिलकुल भी नहीं था भाजपा ने राम को लिया और अपनी धर्म या ये कहें कि हिंदुत्व की राजनीति को आधार दिया.
भाजपा के साथ भी ये सब इत्तेफाकन हुआ वरना हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद उसका मूल था. भाजपा के शुरूआती दिनों को देखें और उनपर गौर करें तो मिलता है कि पहले जनंघ और फिर भाजपा अपनी सारी राजनीति हिंदू सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के इर्द गिर्द ही रचती थी. भाजपा को हिंदुत्व खासकर राम नाम की राजनीति करने के लिए कंटेंट खुद कांग्रेस ने मुहैया कराया.
1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा शाह बानो केस में सुप्रीम कोर्ट को फैसले को संसद के जरिये पलटा गया था. राजीव गांधी की इस दरियादिली से मुसलमान बहुत खुश हुए. देश के मुसलमानों को लगा कि ये कांग्रेस ही है जो उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और उसे इंसाफ दिला सकती है.वहीं इससे पहले 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी विवादित स्थल का ताला खुलवा चुके थे जिस कारण उनकी हिंदूवादी नेताओं तक से खूब तारीफ हुई थी. यानी दो काम करके राजीव गांधी हिंदू और मुसलमानों के करीब आ गए थे.
क्योंकि कांग्रेस का अप्रोच हमेशा ही लिबरल रहा इसलिए उसने राम या ये कहें कि हिंदुत्व को कोई तरजीह नहीं दी. इस समय तक भाजपा यूं ही भटक रही थी और राजीव गांधी को राम मंदिर का ताला खोलते देख उसे इस मुद्दे में ग्रेविटी दिखी उसने राम को ले लिया. फिर बाद में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं में शुमार लाल कृष्ण आडवाणीने रथ यात्रा की और फिर 92 में समय वो आया जब इसे देश ने ढांचा गिरते हुए देखा. वो दिन है और आज का दिन है भाजपा ने न सिर्फ राम और हिंदुत्व की राजनीति को उठाया बल्कि उसका भरपूर लाभ लिया.
राम को लेकर भाजपा में ढंका छुपा कुछ नहीं है. जो है वो देश की जनता के सामने शीशे की तरह साफ़ है. आज पार्टी का शुमार एक ऐसी पार्टी के रूप में होता है जो अपनी विचारधारा को लेकर बहुत कट्टर है साथ ही उसे ये बात भी भली प्रकार पता है कि कैसे इस कट्टर विचारधारा के बल पर उसे वोट हासिल करने हैं और चुनाव जीतना है.
कांग्रेस
आम आदमी पार्टी और भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी अपना मूल छोड़ा है और अपना सारा फोकस देवी-देवताओं की पॉलिटिक्स रखा हुआ है. कांग्रेस ने हमेशा ही संविधान की बात की है. देश की एकता और एकजुटता की बात की और अपने को सेक्युलर बताया. लेकिन इंदिरा गांधी तक आते आते कांग्रेस को भी इस बात का एहसास हो गया था कि तमाम मुद्दों के अलावा अगर धर्म पर बात न हो तो राजनीति अधूरी है. आज भी हमें तमाम ऐसी तस्वीरें दिख जाएंगी जिनमें हम इंदिरा गांधी को रुद्राक्ष धारण किये हुए बड़ी ही आसानी के साथ देख सकते हैं.
चूंकि बात मूल से वर्तमान की हो रही है तो किसी ज़माने में धर्म निरपेक्षता के नाम पर अपनी राजनीति की शुरुआत करने वाली कांग्रेस आज अपने को भगवान शिव के करीब समझती है. हालिया वर्षों में ऐसे तमाम मौके आए हैं जब पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी न सिर्फ हमें मंदिर मंदिर घूमते दिखे बल्कि हमने उन्हें एक जनेऊ धारी शिवभक्त के रूप में भी जाना.
2014 में भाजपा के सत्ता में आने से लेकर अबतक कई ऐसे मौके आए हैं जब हम शिवभक्त राहुल गांधी का हिंदू अवतार देख चुके हैं. सवाल होगा कि आखिर राहुल गांधी ने अपने को शिवभक्त बताने के बारे में कैसे सोचा तो कारण है 2017 का गुजरात चुनाव 2014 से 17 तक कांग्रेस लगातार अलग अलग राज्यों में हार रही थी उधर भाजपा हिंदुत्व की राजनीति कर रही थी.
राहुल गांधी ने भाजपा को उसी के अंदाज में जवाब देने पर विचार किया और अपना वो रूप दुनिया के सामने रखा जिसकी कल्पना ही शायद कभी किसी ने की हो. इस बीच पार्टी के प्रवक्ताओं ने भी अपनी पत्रकार वार्ता में बार बार यही साबित किया कि वो भी एक विराट हिंदू हैं. कह सकते हैं कि इतनी हारों से सबक लेते हुए राहुल गांधी इस बात को समझ चुके हैं कि वो राजनीति में तभी सफल हो सकते हैं जब वो हिंदू धर्म के आस पास रहें. यदि उन्होंने इसका दामन छोड़ा तो उनका वही हाल होगा जो मौजूदा वक़्त में दिल्ली में कांग्रेस का हुआ है.
तृणमूल कांग्रेस
आम आदमी पार्टी, भाजपा और कांग्रेस की ही तरह देवी देवताओं को लेकर तृणमूल कांग्रेस और ममता बनर्जी भी इससे अछूती नहीं हैं. देवी देवताओं की एंट्री इनके दल में भी हुई है. अगर तृणमूल के उदय पर बात की जाए तो मिलता है कि वामदलों के विरोध में इस पार्टी का उदय हुआ. अपनी उत्पत्ति से पहले पार्टी ने वामदलों पर तेवर तल्ख़ किये और सीधा हमला कांग्रेस पर किया और पार्टी पर कई गंभीर आरोप लगाए.
बाकी जिस तरह की राजनीति तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी करती हैं उसमें एक समुदाय के प्रति उनका झुकाव हमें साफ़ तौर पर दिखाई देता है, इन चीजों को लेकर ममता पर आरोप भी खूब लगे. बात बीते दिनों की है मुहर्रम और नवमीं एक दिन पड़ने के कारण ममता बनर्जी ने एक फैसला लिया और ये फैसला मुस्लिम हितों को लेकर था.
अपने इस निर्णय में ममता ने हिंदू भावनाओं का कोई सम्मान नहीं किया. मामला प्रकाश में आने के बाद ममता की खूब आलोचना हुई और वो मौके भी आए जब पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के काफिले के आगे जय श्री राम के नारे लगे जिनपर ममता बनर्जी ने कड़ा एतराज जताया.
इसके बाद फिर मामता की आलोचना हुई और उन्हें हिंदू विरोधी कहा गया. इन आरोपों से बचते हुए ममता मां दुर्गा की क्षरण में चली गईं. मां दुर्गा का प्रेम ममता बनर्जी में किस हद तक जागा इसे हम उन तस्वीर से भी समझ सकते हैं जो उन्होंने अपनी ट्विटर प्रोफाइल पर एक लंबे समय तक रखी. बाद में ममता ने बंगाल में राम को खारिज किया और दुर्गा की भक्ति को तरजीह दी.
ध्यान रहे कि ममता बनर्जी की राजनीति का शुरूआती एजेंडा एंटी लेफ्ट था और यदि आज हम टीएमसी की राजनीति पर नजर डालें तो इन्हें लेफ्ट से कोई मतलब नहीं है. अब यहे जो कुछ भी कर रही हैं वो इनकी पार्टी के मूल से कहीं से भी मैच नहीं करता.
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