अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को अचानक दिल्ली छोड़ कर जा रहे मजदूरों (Migrant Workers) का ख्याल आ गया है. कहने लगे हैं कि मजदूरों की हालत देख कर ऐसा लग रहा है जैसे सिस्टम फेल (System Failed) हो गया हो. अचानक मजदूरों का दर्द महसूस क्यों होने लगा है, समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.
सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल को भूखे-प्यासे सड़कों पर पैदल चलते देख तकलीफ महसूस होने लगी है, लेकिन इतने दिन बाद क्यों? देश में संपूर्ण लॉकडाउन के बाद जब ये मजदूर दिल्ली छोड़ रहे थे तो अरविंद केजरीवाल या उनके साथियों को क्यों नहीं दिखायी दिये? अब महीने भर बाद उन मजदूरों की हालत पर क्यों तरस आने लगा है.
असल बात तो ये है कि मजदूरों को लेकर अरविंद केजरीवाल का अफसोस जताना भी अफसोस के ही काबिल है - कुछ और नहीं!
क्या मजदूरों ने सिस्टम फेल किया?
खबरों के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल का नाम अभी तक देश के उन मुख्यमंत्रियों की सूची में तो नहीं दिखा जिन्होंने प्रवासी मजदूरों को लेकर योगी आदित्यनाथ या नीतीश कुमार से बात की हो. स्वार्थ वश ही सही लेकिन कई मुख्यमंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ को फोन कर यूपी के मजूदरों को अपने ही राज्यों में बने रहने देने की गुजारिश तो की ही है. ये मुख्यमंत्री भरोसा भी दिला रहे हैं कि वे अपने राज्यों में मजदूरों के सभी हितों का पूरा ख्याल रखेंगे. योगी आदित्यनाथ की तरह ही ऐसी अपीलें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक भी पहुंची हैं. तेलंगाना सरकार तो अपने खर्चे पर लौट चुके मजदूरों को वापस ले जाने की भी बात कर चुकी है.
अरविंद केजरीवाल का सड़क पर भूखे प्यासे भटकते मजदूरों की हालत पर दुख जताने का ये तरीका भी वैसा ही लगता है जैसे पांच साल पहले अपनी सभा में राजस्थान के एक किसान की खुदकुशी को लेकर अफसोस हो रहा था.
अप्रैल, 2015 में अरविंद केजरीवाल की जंतर मंतर पर किसान रैली हो रही थी तभी दौसा के किसान गजेंद्र सिंह ने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगा ली थी. बाद में जब अरविंद केजरीवाल मीडिया के सामने...
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) को अचानक दिल्ली छोड़ कर जा रहे मजदूरों (Migrant Workers) का ख्याल आ गया है. कहने लगे हैं कि मजदूरों की हालत देख कर ऐसा लग रहा है जैसे सिस्टम फेल (System Failed) हो गया हो. अचानक मजदूरों का दर्द महसूस क्यों होने लगा है, समझना थोड़ा मुश्किल हो रहा है.
सुन कर तो ऐसा ही लगता है जैसे अरविंद केजरीवाल को भूखे-प्यासे सड़कों पर पैदल चलते देख तकलीफ महसूस होने लगी है, लेकिन इतने दिन बाद क्यों? देश में संपूर्ण लॉकडाउन के बाद जब ये मजदूर दिल्ली छोड़ रहे थे तो अरविंद केजरीवाल या उनके साथियों को क्यों नहीं दिखायी दिये? अब महीने भर बाद उन मजदूरों की हालत पर क्यों तरस आने लगा है.
असल बात तो ये है कि मजदूरों को लेकर अरविंद केजरीवाल का अफसोस जताना भी अफसोस के ही काबिल है - कुछ और नहीं!
क्या मजदूरों ने सिस्टम फेल किया?
खबरों के मुताबिक, अरविंद केजरीवाल का नाम अभी तक देश के उन मुख्यमंत्रियों की सूची में तो नहीं दिखा जिन्होंने प्रवासी मजदूरों को लेकर योगी आदित्यनाथ या नीतीश कुमार से बात की हो. स्वार्थ वश ही सही लेकिन कई मुख्यमंत्रियों ने योगी आदित्यनाथ को फोन कर यूपी के मजूदरों को अपने ही राज्यों में बने रहने देने की गुजारिश तो की ही है. ये मुख्यमंत्री भरोसा भी दिला रहे हैं कि वे अपने राज्यों में मजदूरों के सभी हितों का पूरा ख्याल रखेंगे. योगी आदित्यनाथ की तरह ही ऐसी अपीलें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार तक भी पहुंची हैं. तेलंगाना सरकार तो अपने खर्चे पर लौट चुके मजदूरों को वापस ले जाने की भी बात कर चुकी है.
अरविंद केजरीवाल का सड़क पर भूखे प्यासे भटकते मजदूरों की हालत पर दुख जताने का ये तरीका भी वैसा ही लगता है जैसे पांच साल पहले अपनी सभा में राजस्थान के एक किसान की खुदकुशी को लेकर अफसोस हो रहा था.
अप्रैल, 2015 में अरविंद केजरीवाल की जंतर मंतर पर किसान रैली हो रही थी तभी दौसा के किसान गजेंद्र सिंह ने पेड़ पर चढ़ कर फांसी लगा ली थी. बाद में जब अरविंद केजरीवाल मीडिया के सामने आये तो सवालों पर झल्ला उठे, लेकिन फिर गलती भी मान ली थी. कहा भी कि उस वाकये के बाद मंच पर उनका भाषण जारी रखना गलती थी - और उसके लिए केजरीवाल ने माफी भी मांगी थी. ये भी माना कि घटना के बाद तत्काल रैली रोक देनी चाहिये थे. ये भी कहा कि वो उस घटना को पचा नहीं पाये और रात भर उनको नींद नहीं आयी.
अफसोस जताने और माफी मांगने से ही काम चल जाये और राजनीति सध जाये तो बाकी चीजें झेलने और उनसे जूझने की जरूरत भी क्या है. ये अरविंद केजरीवाल ही हैं जो अपनी 49 दिन की सरकार के लिए भगोड़ा कहे जाने पर भी माफी मांगे - और जब विरोधियों ने मानहानि के कई मुकदमे कर कोर्ट में घसीट डाला तब भी एक एक कर सभी से माफी मांग कर छुटकारा पाया.
कोरोना वायरस को लेकर दिल्ली सरकार के कामकाज का अपडेट देने को लेकर अपनी प्रेस कांफ्रेंस में अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अब भी प्रवासी मजदूर मजबूरी में दिल्ली छोड़ कर जाने की कोशिश कर रहे हैं.
बड़े अफसोस के साथ बोले, 'ये लोग पैदल निकल रहे हैं, बिना कुछ खाये कई किलोमीटर तक चलते हैं, जो ठीक नहीं है... देखकर ऐसा लग रहा है कि सारा सिस्टम फेल हो गया... सारी सरकारें फेल हो गई हैं.'
अब तो केजरीवाल कह रहे हैं, 'दिल्ली सरकार मजदूरों से विनती करती है कि ऐसे न जायें... सरकार उनके जाने का प्रबंध कर रही है.' दिल्ली के मुख्यमंत्री ने महीने भर पहले भी मीडिया और सोशल मीडिया के जरिये मजदूरों से न जाने की अपील की थी, लेकिन अब जो भरोसा दिलाने की कोशिश कर रहे हैं वैसे नहीं. वैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री किस सिस्टम के फेल होने की बात कर रहे हैं? किस सरकार के फेल होने की बात कर रहे हैं - बिहार, यूपी या दिल्ली सरकार की या फिर केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सरकार की?
ऐसा तो है नहीं कि देश में लॉकडाउन लागू है और मजदूरों ने ही सिस्टम फेल कर दिया हो? ऐसा भी नहीं कि मजदूरों की लापरवाही की वजह से सरकारें फेल हो रही हों. तो फिर किसने ये सिस्टम फेल किया - ये भी सवाल है और जवाब कौन देगा?
क्या मजदूरों की दिल्ली में भी वैसी कोई जरूरत है जैसी पंजाब, कर्नाटक या तेलंगाना जैसे राज्यों में है - या जैसे खबर आयी थी कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बिल्डरों से मुलाकात के बाद ट्रेन कैंसल कर दी वैसी ही कोई खबर केजरीवाल को लेकर भी आने वाली है?
मजदूरों के लिए तो जैसे केजरीवाल वैसे नीतीश कुमार
दिहाड़ी मजदूरों को लेकर अरविंद केजरीवाल ने अफसोस जताया है, लेकिन किराये को लेकर जिस तरीके से बिहार और दिल्ली सरकारों में तू-तू मैं-मैं हो रही है लगता तो यही है कि नीतीश कुमार की सरकार का रवैया भी मजदूरों के लिए वैसा ही है.
दोनों मुख्यमंत्रियों के बयानों में भी ज्यादा फर्क नहीं लगता. महीने भर पहले नीतीश कुमार ने कहा था मजदूरों नहीं माने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लॉकडाउन फेल हो जाएगा - और अब अरविंद केजरीवाल कह रहे हैं कि सिस्टम फेल हो गया है. ये तो नहीं पता कि केजरीवाल अपने मातहत आने वाले सिस्टम की बात कर रहे हैं या फिर वो जिसकी जिम्मेदारी प्रधानमंत्री की बनती है. या फिर यूपी या बिहार की सरकारों की.
एक दौर था जब नीतीश कुमार दिल्ली आने पर अरविंद केजरीवाल से मिलने तो खुशी खुशी जाते थे, लेकिन नरेंद्र मोदी मिलना पड़ा तो सरकारी रस्मअदायगी हुआ करती थी. वक्त बदला तो सब कुछ बदल गया. वो दोस्ती उस दिन दुश्मनी में बदल गयी जब दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार में नीतीश कुमार ने अमित शाह के साथ मंच साझा करते हुए अरविंद केजरीवाल के उम्मीदवार के खिलाफ वोट मांगा. नतीजा आया तो पता चला आम आदमी पार्टी का वही उम्मीदवार दिल्ली में सबसे ज्यादा वोटों के अंतर से जीता है.
लॉकडाउन के बाद जब दिल्ली से मजदूरों का काफिला निकल गया तो बिहार के साथ साथ यूपी सरकार के मंत्रियों ने भी अरविंद केजरीवाल की सरकार पर हमला बोला था. अब तो बिहार और दिल्ली सरकार के बीच तकरार नये नये रूप दिखाने लगी है.
नया बवाल तब शुरू हुआ जब दिल्ली सरकार ने दिल्ली से मुजफ्फरपुर जाने वाली श्रमिक स्पेशल के टिकट का किराया वहन करने की बात सोशल मीडिया पर शेयर की और वाहवाही लूटने लगी.
नीतीश कुमार के कैबिनेट साथी संजय झा को ये बात हजम नहीं हो पायी और दिल्ली सरकार के एक अधिकारी का पत्र खोज लाये जिसमें किराये की डिमांड थी. ये पत्र बिहार के आपदा राहत के प्रधान सचिव प्रत्यय अमृत को भेजा गया था और कहा गया कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जो पैसा मजदूरों को लौटाने की बात कर रहे थे वो दिल्ली सरकार को दे देंगे. दरअसल, रेलवे ने कह रखा है कि जिस राज्य से ट्रेन जाएगी वो सरकार किराये देगी - चाहे वो खुद दे, या जहां मजदूर जा रहे हैं उस राज्य सरकार से लेकर दे या कोई और उपाय करे.
राजनीति का अच्छा मौका देख केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव भी कूद पड़े. गिरिराज के निशाने पर अरविंद केजरीवाल थे तो तेजस्वी अपने तरीके से नीतीश कुमार को टारगेट कर रहे थे.
संजय झा के ट्वीट के बाद गोपाल राय फिर से मोर्चे पर आये - और माना भी कि दिल्ली सरकार की तरफ से बिहार सरकार से किराये दे देने की बात हुई थी और ये बिलकुल सच है - लेकिन एक सच ये भी है कि बिहार सरकार ने दिल्ली सरकार को पैसे दिये नहीं.
अपने घरों के लिए पैदल ही सड़क पर निकल पड़े मजदूरों की हालत पर अफसोस प्रकट करते वक्त अरविंद केजरीवाल जिस सिस्टम और सरकारों के फेल होने की बात कर रहे थे - आशय बिहार की नीतीश कुमार सरकार से ही तो नहीं था?
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