अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी अब अपना नाम उस स्पेशल क्लब में दर्ज करा लिया है, जिसमें राहुल गांधी अकेले मिसाल बनते रहे हैं. सरकारी कागज फाड़ कर विरोध जताने के मामले में अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बराबरी कर ली है. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में तीन कृषि कानूनों की कॉपी (Farm Laws copies) फाड़ कर अपना विरोध प्रकट किया - और अपने लंबे चौड़े भाषण में केंद्र की मोदी सरकार को तरह तरह से नसीहतें भी दी.
अरविंद केजरीवाल ने किसानों के विरोध प्रदर्शन की तुलना 1907 के 'पगड़ी संभाल जट्टा' आंदोलन से की है - और केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है. ये जगजाहिर है कि अरविंद केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी के दिल्ली से बाहर विस्तार के लिए प्रयासरत हैं - और आने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में शिद्दत से जुटे हुए हैं, लेकिन संसद में पास हुए कानून की कॉपी को सदन (Delhi Assembly Session) के भीतर फाड़ कर विरोध प्रकट करने के तरीके को क्या वास्तव में जायज ठहराया जा सकता है?
'पगड़ी सम्भाल जट्टा' 2.0 ?
दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ किया उससे पहले आम आदमी पार्टी के दो विधायकों ने उसकी झलकियां पेश कीं - जिसे ट्रेलर के तौर पर समझा जा सकता है. बाद में पूरी फिल्म दिखायी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने. पूरे एपिसोड के सूत्रधार भी - और लीड किरदार भी खुद ही निभाये.
पहले आम आदमी पार्टी के दो विधायकों सोमनाथ भारती और महेंद्र गोयल ने कृषि कानूनों की कॉपी को सदन में रखा और फिर उनको टुकड़े टुकड़े कर दिया. फिर बोले, 'हम इन काले कानूनों को नकारते हैं जो किसानों के खिलाफ हैं.'
सदन के भीतर के विरोध प्रकट करने के तरीके का दायरा थोड़ा थोड़ा बढ़ाते हुए आम आदमी पार्टी के विधायकों ने विधानसभा के बाहर तीनों कृषि कानूनों की प्रतिया पहले फाड़ी और फिर आग के हवाले कर दिया - सदन के भीतर ऐसा करना...
अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने भी अब अपना नाम उस स्पेशल क्लब में दर्ज करा लिया है, जिसमें राहुल गांधी अकेले मिसाल बनते रहे हैं. सरकारी कागज फाड़ कर विरोध जताने के मामले में अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी कांग्रेस नेता राहुल गांधी की बराबरी कर ली है. अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में तीन कृषि कानूनों की कॉपी (Farm Laws copies) फाड़ कर अपना विरोध प्रकट किया - और अपने लंबे चौड़े भाषण में केंद्र की मोदी सरकार को तरह तरह से नसीहतें भी दी.
अरविंद केजरीवाल ने किसानों के विरोध प्रदर्शन की तुलना 1907 के 'पगड़ी संभाल जट्टा' आंदोलन से की है - और केंद्र की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार से तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग की है. ये जगजाहिर है कि अरविंद केजरीवाल अपनी आम आदमी पार्टी के दिल्ली से बाहर विस्तार के लिए प्रयासरत हैं - और आने वाले विधानसभा चुनावों की तैयारी में शिद्दत से जुटे हुए हैं, लेकिन संसद में पास हुए कानून की कॉपी को सदन (Delhi Assembly Session) के भीतर फाड़ कर विरोध प्रकट करने के तरीके को क्या वास्तव में जायज ठहराया जा सकता है?
'पगड़ी सम्भाल जट्टा' 2.0 ?
दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जो कुछ किया उससे पहले आम आदमी पार्टी के दो विधायकों ने उसकी झलकियां पेश कीं - जिसे ट्रेलर के तौर पर समझा जा सकता है. बाद में पूरी फिल्म दिखायी मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने. पूरे एपिसोड के सूत्रधार भी - और लीड किरदार भी खुद ही निभाये.
पहले आम आदमी पार्टी के दो विधायकों सोमनाथ भारती और महेंद्र गोयल ने कृषि कानूनों की कॉपी को सदन में रखा और फिर उनको टुकड़े टुकड़े कर दिया. फिर बोले, 'हम इन काले कानूनों को नकारते हैं जो किसानों के खिलाफ हैं.'
सदन के भीतर के विरोध प्रकट करने के तरीके का दायरा थोड़ा थोड़ा बढ़ाते हुए आम आदमी पार्टी के विधायकों ने विधानसभा के बाहर तीनों कृषि कानूनों की प्रतिया पहले फाड़ी और फिर आग के हवाले कर दिया - सदन के भीतर ऐसा करना जोखिम भरा होता, शायद इसीलिए ऐसे विरोध प्रदर्शन के लिए अलग वेन्यू चुना गया होगा!
दिल्ली विधानसभा में कानूनों की कॉपी फाड़ते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी तकलीफ भी शेयर की, 'तीनों कानूनों को फाड़ते हुए दर्द हो रहा है, लेकिन देश का किसान ठंड में सड़कों पर है तो मैं उनकी पीड़ा के साथ खड़ा हूं... 20 से ज्यादा किसान आंदोलन में शहीद हो चुके हैं... केंद्र से पूछना चाहता हूं - और कितनी जान आप लोगे उसके बाद देश के किसानों की बात सुनोगे?'
अरविंद केजरीवाल ने किसानों के आंदोलन की तुलना करीब सौ साल पहले के आंदोलन से की, '1907 में हूबहू ऐसा ही आंदोलन हुआ था - पगड़ी सम्भाल जट्टा. 9 महीने तक ये आंदोलन अंग्रेजों की खिलाफ चला था... उस आंदोलन की लीडरशिप भगत सिंह के पिता और चाचा ने की थी... उस वक्त भी अंग्रेज सरकार ने कहा था इसमे थोड़े बदलाव कर देंगे, लेकिन किसान डटे रहे - भगत सिंह ने भी क्या इसीलिए कुर्बानी दी थी कि आजाद भारत में किसानों को इस तरह आंदोलन करना पड़ेगा?'
क्या अरविंद केजरीवाल अपने इस कृत्य को पगड़ी संभाल जट्टा 2.0 के रूप में स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं?
अगर अरविंद केजरीवाल के ठीक ऐसे ही विचार हैं तो नेक नहीं माने जाएंगे. संविधान से मिले विरोध के हक के हिसाब से नहीं, बल्कि संविधान की शपथ लेकर संवैधानिक कुर्सी पर बैठे हुए एक ऐसा काम करने के लिए जो किसी भी दलील के बूते संविधान के सम्मान को बनाये रखने के दावे को बेमानी साबित करता है.
राजनीतिक विचारधारा के चलते विरोध प्रकट करने के अधिकार के तहत जैसे राज्य सरकारें केंद्र सरकार पर संघीय ढांचे से छेड़छाड़ की कोशिश का इल्जाम लगाती रहती हैं - क्या अरविंद केजरीवाल का ये एक्ट उसी पैमाने पर फिट नहीं बैठ रहा है? ये भी तो संघीय ढांचे में व्यवस्था के नैतिक मूल्यों को चैलेंज ही कर रहा है.
आखिर संसद के दोनों सदनों से पास किसी कानून का उसी संविधान के तहत बने किसी व्यवस्थागत मंच पर अपमानित करने का क्या तुक है?
विचारधारा अलग होने के चलते विरोध की बात और है, लेकिन एक संवैधानिक व्यवस्था का माखौल उड़ाना कहां तक उचित माना जा सकता है?
विरोध के तमाम तरीके हैं और कानून को भी चुनौती देने के लिए स्थापित संवैधानिक फोरम है. विरोध प्रकट करने की जगह और तरीका भी बनाया गया है जिसका हक भी संविधान से ही मिला हुआ है - और किसी भी कानून को चैलेंज करने के लिए सुप्रीम कोर्ट है. किसी को ऐसे विरोध की छूट इसलिए नहीं मिल सकती क्योंकि वो सुप्रीम कोर्ट में भी किसानों के सपोर्ट में हाजिरी लगा चुका है.
सुप्रीम कोर्ट में अरविंद केजरीवाल की दिल्ली सरकार के वकील ने किसानों के प्रदर्शन को उचित ठहराने की कोशिश की और कहा कि किसान कोई अपनी इच्छा से सिंघु बॉर्डर पर नहीं बैठे हैं... बैठने के लिए मजबूर किया गया है - क्योंकि किसानों की मांगों को कोई तवज्जो नहीं दिया जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि ये कानून भी हड़बड़ी में पास कराये गये, '70 सालों के इतिहास में शायद पहली बार हुआ होगा कि राज्य सभा में तीन कानूनों को बिना वोटिंग के पास कर दिया गया - राज्यसभा उप सभापति ने पास-पास-पास कह कर पास कर दिया.'
किसानों या आने वाले चुनावों के लिए?
राहुल गांधी ने भी ऐसे ही एक सरकारी कागज फाड़ कर दागी नेताओं वाले ऑर्डिनेंस का विरोध किया था, लेकिन दोनों में बहुत बड़ा फर्क है - राहुल गांधी ने ये काम एक प्रेस कांफ्रेंस में किया था और अरविंद केजरीवाल ने ये विधानसभा में किया है और वो भी खुद संवैधानिक पद पर रहते हुए.
ऐसा भी नहीं कि ये सब सिर्फ दो ही बार हुआ है. ऐसे सरकारी कागज संसद में भी सदस्यों की तरफ से फाड़ कर अक्सर ही विरोध प्रकट किया जाता रहा है, लेकिन उसकी अहमियत इस बात से तय होती है कि ऐसे काम करने वाला व्यक्ति कौन है?
राहुल गांधी ने जो कागज फाड़ा था वो कैबिनेट की बैठक में मंजूर किया हुआ एक ऑर्डिनेंस था जिसकी अपनी अहमियत होती है - और वो भी एक खास अवधि के लिए कानून जितना ही प्रभावी होता है.
लेकिन अरविंद केजरीवाल ने भरी विधानसभा में जो कॉपी फाड़ी है वो संसद में पेश बिल को पास कर बनाया हुआ कानून है - जिसे राष्ट्रपति ने दस्तखत करके मंजूरी भी दे दी है - और भारत के राजपत्र में भी अधिसूचित कर दिया गया है.
विरोध का हक सबको है, लेकिन सवाल ये है कि विरोध का तरीका क्या अराजक होना चाहिये?
वैसे 'अराजक' शब्द केजरीवाल को शुरू से ही बहुत ज्यादा पसंद है. ठीक वैसे ही जैसे विश्व हिंदू परिषद वाले नारे लगाते हैं - 'गर्व से कहो हम हिंदू हैं', अरविंद केजरीवाल अराजक होने को लेकर भी वैसे ही भाव व्यक्त करते हैं.
अरविंद केजरीवाल आंदोलन के रास्ते राजनीति में आये और दिल्ली की सड़कों पर इलाके के कुछ पुलिस वालों को सस्पेंड कराने के लिए रात भर धरना भी दे चुके हैं - और धरना स्थल को ही मुख्यमंत्री के कैंप ऑफिस के रूप में काम भी किया है. अरविंद केजरीवाल ने राजनीति की शुरुआत भी ऐसे ही की थी - बिजली के मीटर कनेक्शन काट कर. 2013 में बिजली का एक कनेक्शन जोड़ने के लिए खंभे पर भी चढ़ गये थे.
ये तभी की बात है जब वो ताबड़तोड़ कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे, लेकिन जब अदालत में अपने आरोपों को साबित नहीं कर पाये तो भाग खड़े हुए - और वैसे ही ताबड़तोड़ माफी मांग कर मामले निबटा भी दिये.
सवाल है कि केजरीवाल की माफी का मतलब क्या ये समझा जाये कि जो आरोप लगाये थे वे झूठे थे?
किसानों को लेकर अरविंध केजरीवाल और पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के बीच भी तीखी नोक झोंक हो चुकी है. अरविंद केजरीवाल ने एक दिन उपवास भी रखा है - और किसानों से मिल कर खुद के उनका सेवादार होने का दावा किया है.
कैप्टन अमरिंदर सिंह की ही तरह बीजेपी ने भी केजरीवाल के स्टैंड पर सवाल उठाया है. केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने उनकी बीती हुई बातों की याद दिलाते हुए सवाल पूछा है -
दिल्ली के मुख्यमंत्री ने विधानसभा में कहा - "तीनों कानूनों को मैं सदन के सामने फाड़ रहा हूं... मैं केंद्र से अपील करता हूं कि वो अंग्रेजों से भी बदतर न बने."
अगर अरविंद केजरीवाल ने ये काम आम आदमी पार्टी के नेता के रूप में सड़क पर किया होता या फिर उनके विधायकों ने सदन के भीतर भी कर दिया होता तो भी कोई बात नहीं होती - एक मुख्यमंत्री जिसने संविधान की शपथ ली है वो सदन के भीतर ऐसा कैसे कर सकता है? अरविंद केजरीवाल ये सब किसानों के लिए कर रहे हैं या फिर आम आदमी पार्टी खातिर आने वाले चुनावों के लिए?
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