पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने 'मिशन गुजरात' पर निकल चुके हैं. बीते दिनों आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ गुजरात का दो दिवसीय दौरा किया. इसी साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के तौर पर अरविंद केजरीवाल को भाजपा के साथ ही कांग्रेस को टक्कर देने का एक और मौका नजर आ रहा है. और, तिरंगा यात्रा के जरिये जनता तक पहुंचने की कोशिश करते हुए केजरीवाल ने एक मौका देने की अपील भी कर दी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के लगातार सिकुड़ने से बनने वाली खाली जगह को भरने की कोशिश में कोई कोताही बरतते नजर नहीं आते हैं. वहीं, तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी अभी भी पश्चिम बंगाल में ही व्यस्त नजर आ रही हैं. बीरभूम हिंसा मामले और भतीजे ने कहीं न कहीं ममता बनर्जी को बैकफुट पर डाल दिया है. इस स्थिति में गुजरात चुनाव की तैयारियों से अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की राजनीति का फर्क समझा जा सकता है.
कांग्रेस का विकल्प बनने की 'सफलतम' कोशिश
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में सफलता हासिल करने के साथ कम से कम इतना तो साबित ही कर दिया है कि जहां-जहां कांग्रेस कमजोर पर पड़ेगी, आम आदमी पार्टी वहां अपने लिए देर से ही सही जगह बना ही लेगी. पंजाब में भले ही भाजपा उसके निशाने पर न रही हो. लेकिन, शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के होते हुए एक तीसरे विकल्प के तौर पर जनता के बीच खुद को स्थापित कर लेना आम आदमी पार्टी के लिए छोटी उपलब्धि नही है. हालांकि, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव के नतीजे...
पंजाब विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल अपने 'मिशन गुजरात' पर निकल चुके हैं. बीते दिनों आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के सीएम भगवंत मान के साथ गुजरात का दो दिवसीय दौरा किया. इसी साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के तौर पर अरविंद केजरीवाल को भाजपा के साथ ही कांग्रेस को टक्कर देने का एक और मौका नजर आ रहा है. और, तिरंगा यात्रा के जरिये जनता तक पहुंचने की कोशिश करते हुए केजरीवाल ने एक मौका देने की अपील भी कर दी. आसान शब्दों में कहा जाए, तो अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के लगातार सिकुड़ने से बनने वाली खाली जगह को भरने की कोशिश में कोई कोताही बरतते नजर नहीं आते हैं. वहीं, तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी अभी भी पश्चिम बंगाल में ही व्यस्त नजर आ रही हैं. बीरभूम हिंसा मामले और भतीजे ने कहीं न कहीं ममता बनर्जी को बैकफुट पर डाल दिया है. इस स्थिति में गुजरात चुनाव की तैयारियों से अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी की राजनीति का फर्क समझा जा सकता है.
कांग्रेस का विकल्प बनने की 'सफलतम' कोशिश
आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और पंजाब में सफलता हासिल करने के साथ कम से कम इतना तो साबित ही कर दिया है कि जहां-जहां कांग्रेस कमजोर पर पड़ेगी, आम आदमी पार्टी वहां अपने लिए देर से ही सही जगह बना ही लेगी. पंजाब में भले ही भाजपा उसके निशाने पर न रही हो. लेकिन, शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस के होते हुए एक तीसरे विकल्प के तौर पर जनता के बीच खुद को स्थापित कर लेना आम आदमी पार्टी के लिए छोटी उपलब्धि नही है. हालांकि, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा विधानसभा चुनाव के नतीजे अरविंद केजरीवाल की महत्वाकांक्षा के हिसाब से नहीं आ सके. लेकिन, आम आदमी पार्टी ने इन राज्यों में अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. और, आगे भी ऐसा जारी रखेगी.
गुजरात विधानसभा चुनाव के मद्देनजर अरविंद केजरीवाल का दो दिवसीय गुजरात दौरा इसकी बानगी कहा जा सकता है. वैसे, आम आदमी पार्टी ने पिछले साल सूरत नगर निगम की 120 में से 27 सीटें जीतकर ही अपनी धमक दर्ज करा दी थी. क्योंकि, इनमें से ज्यादातर सीटें पाटीदार बहुल इलाकों की थीं. और, गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार समुदाय के समर्थन के बिना जीत असंभव है. इसे ध्यान में रखते हुए अरविंद केजरीवाल ने आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में पाटीदार समाज के बड़े नेता नरेश पटेल को साथ लाने की कवायद शुरू कर दी है. और, नरेश पटेल इससे पहले आम आदमी पार्टी की तारीफ भी कर चुके हैं. वैसे, नरेश पटेल के कांग्रेस में भी जाने की चर्चा है. लेकिन, राजनीति में कब क्या हो जाए, पहले से नहीं कहा जा सकता.
वहीं, तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी की बात की जाए, तो हालिया हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में उन्होंने गठबंधन से लेकर बड़े नेताओं को शामिल करने तक की हर संभव कोशिश की. लेकिन, वो इसे नतीजों में नहीं बदल सकीं. कहा जा सकता है कि ये सीधे तौर पर ममता बनर्जी के 'नेशनल प्लान' को झटका था. क्योंकि, अब 2024 तक ऐसे किसी भी राज्य में विधानसभा चुनाव नही हैं, जहां सीधे तृणमूल कांग्रेस के लिए रास्ता खुला हो. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ममता बनर्जी भले ही हिंदी बोलकर लोगों से जुड़ने की कोशिश करें. लेकिन, भाषाई तौर पर उनके सामने एक बड़ा बैरियर है, जिसे पार कर पाना टीएमसी सुप्रीमो के लिए संभव नहीं हो पा रहा है. और, अपनी टूटी-फूटी हिंदी के सहारे ममता बनर्जी के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव में राह आसान नहीं है.
रणनीति के मामले में ममता से कहीं आगे हैं केजरीवाल
रणनीति के मामले में अरविंद केजरीवाल और ममता बनर्जी के बीच जमीन-आसमान का अंतर साफ नजर आता है. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो कांग्रेस पर हमलावर होते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी खुलकर निशाना साधती हैं. आसान शब्दों में कहा जाए, तो ममता बनर्जी और कांग्रेस की विचारधारा में अंतर नजर नहीं आता है. क्योंकि, दोनों ही राजनीतिक दल सिर्फ पीएम नरेंद्र मोदी के विरोध को ही सियासत का हिस्सा मान चुके हैं. जबकि, अरविंद केजरीवाल किसी मंझे हुए राजनेता की तरह भाजपा और कांग्रेस का बराबर विरोध करते हैं. केजरीवाल के बयानों पर नजर डाली जाए, तो वह भले ही भाजपा को 'अहंकारी' बताएं. लेकिन, आम आदमी पार्टी ये बताना नहीं भूलती है कि गुजरात में कांग्रेस 1995 से लेकर अब तक भाजपा को हराने में असफल साबित हुई है.
वहीं, अरविंद केजरीवाल सीधे तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर राजनीतिक हमले नहीं करते हैं. क्योंकि, इससे उनकी छवि हिंदुत्व विरोधी बन सकती है. अरविंद केजरीवाल खुद को हनुमान भक्त और रामराज्य की परिकल्पना के दांव खेलने से भी नहीं चूकते हैं. वहीं, बीते महीने ही दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल ने दो विधायकों वाली भारतीय ट्राइबल पार्टी के नेता और डेडियापाडा विधायक महेश वसावा के साथ भी गठबंधन के समीकरण तलाशे थे. बहुत हद तक संभव है कि साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए भारतीय ट्राइबल पार्टी का आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन फाइनल हो जाए. वहीं, ममता बनर्जी अभी पश्चिम बंगाल में बीरभूम हिंसा के मामले पर ही घिरी नजर आ रही हैं.
अरविंद केजरीवाल ने अपने हालिया गुजरात दौरे पर कहा था कि 'मैं भाजपा या कांग्रेस को हराने के लिए नहीं, बल्कि गुजरात और गुजरातियों को जीतने आया हूं.' इस बयान की राजनीतिक भाषा को समझें, तो मतलब साफ है कि गुजरात में आम आदमी पार्टी की नजर भाजपा को हराने पर नही है. बल्कि, पंजाब की तरह ही अरविंद केजरीवाल चाहते हैं कि पहले आम आदमी पार्टी कम से कम मुख्य विपक्षी दल का दर्जा हासिल कर ले. हालांकि, ये इतना आसान होने वाला नहीं है. लेकिन, गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर केजरीवाल की सोच बहुत साफ है. क्योंकि, गुजरात जैसे राज्य में अगर केजरीवाल की इस छवि को स्वीकार कर लिया गया, तो उनकी इमेज 'पैन इंडिया' हो जाएगी. वहीं, ममता बनर्जी के लिए गुजरात में संगठन खड़ा करने में भी मुश्किल आने वाली है. जबकि, आम आदमी पार्टी ने 2013 में ही गुजरात इकाई को स्थापित कर दिया था.
'बी' टीम के आरोपों के बावजूद गुजरात में केजरीवाल की एंट्री
आमतौर पर किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक दलों द्वारा आम आदमी पार्टी जैसी सियासी पार्टियों पर एक-दूसरे की 'बी' टीम घोषित करने की होड़ लग जाती है. और, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर ये आरोप लंबे समय से लगते रहे हैं. बात हाल ही में हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की हो. तो, यहां भी आम आदमी पार्टी को इन आरोपों से दो-चार होना ही पड़ा था. इतना ही नहीं, केंद्रीय गृह मंत्री और भाजपा नेता अमित शाह द्वारा यूपी में सभी सीटों पर 'जमानत जब्त' होने वाले बयान का भी असर नहीं हुआ. कांग्रेस की ओर से भी आम आदमी पार्टी पर 'बी' टीम होने के आरोप लगाए जा रहे हैं. लेकिन, अरविंद केजरीवाल ने इन बयानों और आरोपों को बहुत ज्यादा गंभीरता से न लेते हुए पंजाब के जीत मिलने के बाद गुजरात में पार्टी के विस्तार को हवा दे दी है.
गुजरात विधानसभा चुनाव में अरविंद केजरीवाल का मुकाबला सीधे पीएम नरेंद्र मोदी से होगा. क्योंकि, गुजरात की राजनीति से दूर होने के बावजूद भी पीएम मोदी ही राज्य में भाजपा के रथ के अजेय बनाए रखने वाले नेता कहे जाते हैं. उनके एक इशारे पर गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर पूरी कैबिनेट तक बदल दी जाती है. वहीं, ममता बनर्जी के लिए गुजरात विधानसभा चुनाव के मैदान में अकेले दम पर उतरना नामुमकिन है. और, गुजरात में भाजपा और कांग्रेस के अलावा और कोई ऐसा राजनीतिक दल नहीं है, जिसके साथ वह अपनी उत्तर प्रदेश और गोवा में अपनाई गई गठबंधन की राजनीति को आगे बढ़ा सकें. तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो केवल नरेंद्र मोदी के विरोध के सहारे गुजरात विधानसभा चुनाव में नहीं उतर सकती हैं.
आसान शब्दों में कहा जाए, तो गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर केजरीवाल की सोच बिलकुल साफ है. वह अच्छी तरह से जानते हैं कि अगर गुजरात जैसे राज्य में आम आदमी पार्टी की स्वीकार्यता बन गई, तो केजरीवाल की इमेज अपने आप ही 'पैन इंडिया' हो जाएगी. जिसका फायदा अरविंद केजरीवाल को 2024 के लोकसभा चुनाव में भी मिलेगा. और, आगे होने वाले राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी आम आदमी पार्टी खुलकर कांग्रेस की जगह पर अपना दावा पेश कर सकेगी.
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