जिनके पास 65 विधायक हैं, वे विधानसभा में 4 विरोधी विधायकों को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते. और ये लोग लोकतंत्र की बात करते हैं. आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से दिल्ली विधानसभा में ईवीएम टेम्परिंग का मुद्दा उठाया है, उससे स्पष्ट है कि ये लोग सिर्फ़ आरोप लगाने की राजनीति करते हैं, किसी आरोप का जवाब देने का पुरुषार्थ इनके भीतर नहीं है.
ईवीएम मुद्दे पर अपनी बात 12 मई को चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई राजनीतिक दलों की बैठक में भी रखी जा सकती थी. विधानसभा के अंदर आम आदमी पार्टी के जो महान सॉफ्टवेयर वैज्ञानिक टेम्परिंग का लाइव डेमो दे रहे थे, वे चुनाव आयोग से भी कह सकते थे कि तीन घंटे के लिए मुझे एक ईवीएम दो, मैं अभी इसे टेम्पर करके दिखाता हूं. मेरा ख्याल है कि इसके लिए चुनाव आयोग भी तैयार हो जाता.
लेकिन ईवीएम पर लोगों के मन में संदेह बढ़ाने के लिए भी अरविंद केजरीवाल ने अपना वही घिसा-पिटा तरीका अपनाया. सॉफ्टवेयर भी उनका. मशीन भी उनकी. वैज्ञानिक भी उनका. कर दिया टेम्परिंग का लाइव डेमो. ईवीएम को इन्होंने बच्चों का खिलौना बना दिया. जैसे कार से लेकर हवाई जहाज तक सबके प्रतिरूप बाजार में बिकते हैं, वैसे ही ईवीएम का भी एक प्रतिरूप बनाकर अपने महान सॉफ्टवेयर वैज्ञानिक से इन्होंने उसकी टेम्परिंग का लाइव डेमो करा डाला.
दरअसल, ईवीएम के मुद्दे को उछालकर अरविंद केजरीवाल एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में हैं. मसलन,
1. कपिल मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोपों से मीडिया और जनता का ध्यान भटकाना.
2. अगर थोक के भाव संसदीय सचिव नियुक्ति मामले में चुनाव आयोग उनके विधायकों की सदस्यता खत्म कर दे, तो वे चुनाव आयोग पर ईवीएम का मुद्दा उठाने की वजह से बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगा सकें.
3. अपनी गिरती लोकप्रियता की मूल...
जिनके पास 65 विधायक हैं, वे विधानसभा में 4 विरोधी विधायकों को भी बर्दाश्त नहीं कर पाते. और ये लोग लोकतंत्र की बात करते हैं. आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से दिल्ली विधानसभा में ईवीएम टेम्परिंग का मुद्दा उठाया है, उससे स्पष्ट है कि ये लोग सिर्फ़ आरोप लगाने की राजनीति करते हैं, किसी आरोप का जवाब देने का पुरुषार्थ इनके भीतर नहीं है.
ईवीएम मुद्दे पर अपनी बात 12 मई को चुनाव आयोग द्वारा बुलाई गई राजनीतिक दलों की बैठक में भी रखी जा सकती थी. विधानसभा के अंदर आम आदमी पार्टी के जो महान सॉफ्टवेयर वैज्ञानिक टेम्परिंग का लाइव डेमो दे रहे थे, वे चुनाव आयोग से भी कह सकते थे कि तीन घंटे के लिए मुझे एक ईवीएम दो, मैं अभी इसे टेम्पर करके दिखाता हूं. मेरा ख्याल है कि इसके लिए चुनाव आयोग भी तैयार हो जाता.
लेकिन ईवीएम पर लोगों के मन में संदेह बढ़ाने के लिए भी अरविंद केजरीवाल ने अपना वही घिसा-पिटा तरीका अपनाया. सॉफ्टवेयर भी उनका. मशीन भी उनकी. वैज्ञानिक भी उनका. कर दिया टेम्परिंग का लाइव डेमो. ईवीएम को इन्होंने बच्चों का खिलौना बना दिया. जैसे कार से लेकर हवाई जहाज तक सबके प्रतिरूप बाजार में बिकते हैं, वैसे ही ईवीएम का भी एक प्रतिरूप बनाकर अपने महान सॉफ्टवेयर वैज्ञानिक से इन्होंने उसकी टेम्परिंग का लाइव डेमो करा डाला.
दरअसल, ईवीएम के मुद्दे को उछालकर अरविंद केजरीवाल एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में हैं. मसलन,
1. कपिल मिश्रा द्वारा लगाए गए आरोपों से मीडिया और जनता का ध्यान भटकाना.
2. अगर थोक के भाव संसदीय सचिव नियुक्ति मामले में चुनाव आयोग उनके विधायकों की सदस्यता खत्म कर दे, तो वे चुनाव आयोग पर ईवीएम का मुद्दा उठाने की वजह से बदले की कार्रवाई करने का आरोप लगा सकें.
3. अपनी गिरती लोकप्रियता की मूल वजहों से मीडिया और जनता का ध्यान भटकाना, ताकि पार्टी पर उनकी पकड़ ढीली न हो.
4. भारतीय लोकतंत्र और चुनाव-व्यवस्था के प्रति दुनिया के मन में संदेह पैदा करना. वे खुद भी मानते हैं कि वे अराजकतावादी हैं.
केजरीवाल की विशेषता ही यही है कि न वे स्वयं को गलत मान सकते हैं, न दूसरों को सही मान सकते हैं. उनकी नज़र में पूरी कायनात में अकेले वही सही हैं और बाकी सभी गलत हैं. दूसरों के लिए हमेशा वे एक आरोप गढ़ते हैं और उसे अंतिम सत्य की तरह पेश करते हुए येन-केन-प्रकारेण साबित करने में जुट जाते हैं. कोई और मौका होता, तो उनका यह घिसा-पिटा तरीका कारगर भी हो सकता था, लेकिन अब जब उनके अपने ही मंत्री ने उनपर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हैं और एसीबी से लेकर सीबीआई तक में इसकी शिकायत की है, तो ऐसी शुतुरमुर्गी नीति अपनाने से उनकी विश्वसनीयता और लोकप्रियता में और खरोंच ही आएगी.
केजरीवाल की यही समस्या है. इनकी काठ की हांडी एक बार चढ़ गई, तो इन्होंने जनता को बेवकूफ़ मान लिया, लेकिन जनता इनकी हिट एंड रन पॉलिटिक्स को अच्छी तरह से समझ चुकी है. दूसरों पर आरोप लगाकर आप भाग सकते हैं, लेकिन जब अपने ऊपर आरोप लग रहे हों, तो भागने का स्कोप नहीं होता. अपने दुलारे मंत्री जितेंद्र तोमर को भी तो भगाने की बहुत कोशिश की थी इन्होंने. उसके खिलाफ कार्रवाई को भी लोकतंत्र पर हमला और मोदी की साज़िश बताया था. लेकिन क्या हुआ अंत में? ऊंट को पहाड़ के नीचे आना ही पड़ा.
विधानसभा में केजरीवाल को निर्लज्जतापूर्वक हंसते हुए देखकर बहुत लोगों का दिल टूटा है. अगर अपने ऊपर लगे आरोपों का उन्होंने संतोषजनक जवाब दे दिया होता या फिर जांच होने तक पद छोड़ने का फैसला करके थोड़ी-सी नैतिकता भी दिखाई होती, तो उनके हंसने को लोग सहज भाव से लेते. लेकिन आज उनकी हंसी और उनके बचकाने व्यवहार को अधिकांश लोगों ने उसी तरह लिया, जैसे पकड़े जाने पर कोई पॉकिटमार पुलिस की मार खाकर भी दांत खिसोरता रहता है.
अरविंद केजरीवाल इस दशक की सबसे बड़ी राजनीतिक निराशा हैं. उन्हें देखकर लोगो के मन में राजनीति के प्रति घृणा और वितृष्णा बढ़ती ही जाती है. उनकी चर्चा का यह सबसे दुखद और हृदय को चोट पहुंचाने वाला पहलू है.
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