चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद लालू प्रसाद को फिर से जेल जाना पड़ा है. लालू की पार्टी आरजेडी ने सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाते हुए इसका ठीकरा केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर फोड़ने की कोशिश की है. चारा घोटाले के देवघर कोषागार से करीब 90 करोड़ की निकासी के केस में लालू को दोषी ठहराया गया है.
सीबीआई की विशेष अदालत सजा का एलान अब 3 जनवरी को करने वाली है. ऐसे में लालू प्रसाद को नये साल के मौके पर जेल में ही रहना होगा. सवाल ये है कि लालू के जेल जाने के बाद उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का क्या होगा? कोर्ट के इस फैसले से क्या लालू प्रसाद की 2019 से जुड़ी सारी योजनाओं पर पानी फिर जाएगा?
लालू को जेल
लालू को विशेष अदालत अगले साल 3 जनवरी को सजा सुनाएगी. लालू के अलावा 15 अन्य आरोपियों को भी सजा सुनाई जाएगी. इस मामले में छह आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी हैं.
मई, 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले से जुड़े सभी मामलों में तेजी से सुनवाई करके नौ महीने के भीतर निपटारा करने को कहा था. तभी से तकरीबन 12 से 15 दिन हर महीने सुनवाई की गयी. लालू ने खुद को पॉलिटिकल आदमी बताते हुए निजी पेशी से छूट भी मांगी थी. तब लालू पटना रैली की तैयारी कर रहे थे लेकिन अदालत ने स्पीडी ट्रायल की बात पर नामंजूर कर दिया. इस दौरान लालू की ओर से अपने बचाव में 15 गवाह भी पेश किये गये.
सवाल है कि लालू प्रसाद को इस केस में कितनी सजा मिल सकती है?
लालू के वकील को लगता है कि उन्हें अधिकतम सात साल की और कम से कम एक साल की कैद की सजा हो सकती है. दूसरी तरफ, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई अधिकारियों को लगता है कि लालू को कम से कम दस साल और...
चारा घोटाले में दोषी करार दिये जाने के बाद लालू प्रसाद को फिर से जेल जाना पड़ा है. लालू की पार्टी आरजेडी ने सीबीआई की भूमिका पर सवाल उठाते हुए इसका ठीकरा केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी पर फोड़ने की कोशिश की है. चारा घोटाले के देवघर कोषागार से करीब 90 करोड़ की निकासी के केस में लालू को दोषी ठहराया गया है.
सीबीआई की विशेष अदालत सजा का एलान अब 3 जनवरी को करने वाली है. ऐसे में लालू प्रसाद को नये साल के मौके पर जेल में ही रहना होगा. सवाल ये है कि लालू के जेल जाने के बाद उनकी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल का क्या होगा? कोर्ट के इस फैसले से क्या लालू प्रसाद की 2019 से जुड़ी सारी योजनाओं पर पानी फिर जाएगा?
लालू को जेल
लालू को विशेष अदालत अगले साल 3 जनवरी को सजा सुनाएगी. लालू के अलावा 15 अन्य आरोपियों को भी सजा सुनाई जाएगी. इस मामले में छह आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया है जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र भी हैं.
मई, 2017 में ही सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले से जुड़े सभी मामलों में तेजी से सुनवाई करके नौ महीने के भीतर निपटारा करने को कहा था. तभी से तकरीबन 12 से 15 दिन हर महीने सुनवाई की गयी. लालू ने खुद को पॉलिटिकल आदमी बताते हुए निजी पेशी से छूट भी मांगी थी. तब लालू पटना रैली की तैयारी कर रहे थे लेकिन अदालत ने स्पीडी ट्रायल की बात पर नामंजूर कर दिया. इस दौरान लालू की ओर से अपने बचाव में 15 गवाह भी पेश किये गये.
सवाल है कि लालू प्रसाद को इस केस में कितनी सजा मिल सकती है?
लालू के वकील को लगता है कि उन्हें अधिकतम सात साल की और कम से कम एक साल की कैद की सजा हो सकती है. दूसरी तरफ, मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सीबीआई अधिकारियों को लगता है कि लालू को कम से कम दस साल और अधिकतम उम्रकैद की सजा हो सकती है. अब सवाल उठता है कि लालू के जेल चले जाने के बाद उनकी पार्टी आरजेडी और बेटों तेजस्वी यादव और तेज प्रताप का क्या हाल होगा?
आरजेडी का चेहरा तेजस्वी तो हैं, लेकिन...
लालू प्रसाद को जब भी जेल जाना होता है, पूरा इंतजाम करके ही जाते हैं. पहली बार तो लालू ने जेल जाने से पहले राबड़ी देवी की सीएम बना दिया लेकिन बाद में पार्टी के सत्ता में न होने पर अलग अनुभव हुए. आगे आने वाली चुनौतियों को देखते हुए ही लालू प्रसाद ने तेजस्वी को अपना वारिस घोषित कर दिया है. लालू ने पाया था कि पिछली बार जेल जाने पर पप्पू यादव जैसे नेता विरासत पर दावेदारी की तैयारी में जुटे हुए थे.
लगता है लालू ने कोर्ट के फैसले को भांप लिया था - और यही वजह है कि लालू ने संगठन का दोबारा चुनाव कराया और तीन साल के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी ले ली, लगे हाथ तेजस्वी यादव को पार्टी का मुख्यमंत्री चेहरा भी घोषित कर दिया.
जरूरी नहीं कि लालू के बाहर होते और जेल में रहते उनकी बातों का असर भी उतना ही हो. रघुवंश प्रसाद सिंह, जगदानंद सिंह जैसे सीनियर नेताओं ने राबड़ी देवी का नेतृत्व तो स्वीकार कर लिया था, लेकिन क्या तेजस्वी के प्रति भी वे उतने ही निष्ठावान रह पाएंगे? वो भी तब जब दूसरी छोर पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और बीजेपी हर मौके की ताक में बैठे हों.
लालू ने जब अब्दुल बारी सिद्दीकी को दरकिनार कर तेजस्वी को डिप्टी सीएम और तेज प्रताप को भी उनसे सीनियर मंत्री बनवाया तो वो खून का घूंट पीकर रह गये - क्या आगे भी उनकी सदाशयता वैसे ही बरकरार रहेगी?
बात सिर्फ इतनी ही रहती तो चल भी जाता. कुछ दिन पहले आरजेडी के कई नेताओं ने तेज प्रताप की गतिविधियों को लेकर लालू को चेताया था. कुछ आरजेडी नेताओं की राय रही कि तेज प्रताप काफी महत्वाकांक्षी नजर आ रहे हैं - और अभी से कंट्रोल नहीं किया गया तो हालात बेकाबू हो सकते हैं. ऊपर से तेज प्रताप ऊल जुलूल बयान भी देते रहते हैं. डिप्टी सीएम सुशील मोदी को घर में घुस कर मारने तक को कह डाला था, लेकिन लालू के समझाने पर कहने लगे - चाचा हमारे लिए भी दुल्हन खोज दो. जेल से लालू ऐसे मामलों को कैसे संभालेंगे?
वैसे शिवानंद तिवारी जैसे नेताओं का दावा है कि तेजस्वी के साथ न सिर्फ सारे सीनियर नेता बल्कि लालू प्रसाद का पूरा वोट बेस खड़ा है - और डिप्टी सीएम की कुर्सी संभालने के बाद बतौर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी खुद को साबित कर चुके हैं.
आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद ने लालू को सजा मिलने पर कहा कि ये नरेंद्र मोदी का खेल है. आरजेडी का सवाल है - एक ही मामले में जगन्नाथ मिश्र बरी और लालू प्रसाद दोषी कैसे? जेल जाते जाते लालू के ट्विटर अकाउंट से कई ट्वीट किये गये जिनमें वो बीजेपी पर बरसते दिखे.
बहरहाल, नीतीश कुमार को आज अपने फैसले पर नाज हो रहा होगा. वो तेजस्वी के खिलाफ एक एफआईआर पर ही आरजेडी से अलग हो गये और बीजेपी से हाथ मिला कर फिर से कुर्सी पर काबिज हो गये. जाहिर है लालू की सजा पर नीतीश को भी रिएक्ट करना ही पड़ता. अब तो जेडीयू चहक चहक कर कह रही है - लालू को मिला कानून का इंजेक्शन!
ये तो साफ है कि डिप्टी सीएम की कुर्सी छोड़ने के बाद तेजस्वी ने अपनी राजनीतिक परिपक्वता की छाप छोड़ी है. बिहार में घूम घूम कर तेजस्वी ने लोगों से अपनी बात तो कही ही, बाद में भी नीतीश कुमार पर वो लगातार हमलावर देखे गये. एक बार जब जेडीयू नेताओं ने एक लड़की के साथ फोटो को लेकर घेरने की कोशिश की तो बड़े ही धैर्य के साथ जवाब दिया. हालांकि, बाद में वो नीतीश कुमार पर निजी हमले भी खूब किये.
तेजस्वी अब तक जो कर रहे थे उसमें सलाह देने के लिए हर वक्त लालू मौजूद होते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. वैसे दिल्ली आकर राहुल गांधी के साथ लंच करने के बाद तेजस्वी ने ये जताने की भी कोशिश की कि वो गठबंधन की रस्म और अहमियत को भी समझते हैं - लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये सब 2019 तक कहां और किस रूप में खड़ा होगा?
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