एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) खुद को 'राजनीति की लैला' और विरोधियों को मजनूं बताया करते हैं. मानिए या नहीं, लेकिन ओवैसी की ये पॉलिटिकल लाइन इस कदर हिट है कि मुस्लिम (Muslim) समुदाय में उनकी फैन फॉलोइंग बढ़ती ही जा रही है. खालिस तरीके से मुस्लिम राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी का नाम और काम बिहार विधानसभा चुनाव में अपना डंका बजा चुका है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (P Assembly Elections 2022) के मद्देनजर अब ओवैसी का सियासी कारवां उत्तर प्रदेश में दखल देने आ चुका है. लेकिन, राजनीति की ये लैला उत्तर प्रदेश में आकर 'चाचाजान' बन गई है. दरअसल, किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) इन दिनों मिशन यूपी के तहत भाजपा (BJP) के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हुए हैं. इसी क्रम में बागपत की एक सभा में राकेश टिकैत ने असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चाचाजान बता दिया. राकेश टिकैत ने कहा कि भाजपा के चाचा जान असदुद्दीन ओवैसी यूपी आ गए हैं. अगर ओवैसी भाजपा को गाली भी देंगे, तो भी उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी और ओवैसी एक ही टीम हैं.
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए उनके पिता मुलायम सिंह यादव को 'अब्बा जान' कहा था. हालांकि, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इसके बाद केवल इतना ही कहा था कि वो भी सीएम योगी के पिता के बारे में भी कुछ कह सकते है. जिसके बाद बात आया-गया में दर्ज मान ली गई. लेकिन, हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने फिर से अब्बा जान (Abbajaan) की तान छेड़ दी. और, इस तान के बाद अखिलेश यादव की ओर से केवल ध्रुवीकरण के आरोपों वाली ही प्रतिक्रिया आई. लेकिन, राकेश टिकैत जरूर भड़क गए. वैसे, राकेश टिकैत का गुस्सा सीएम योगी आदित्यनाथ पर निकलने की बजाय असदुद्दीन ओवैसी पर निकला. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर राकेश टिकैत असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चाचाजान क्यों साबित करना चाहते हैं और इसकी वजह क्या है?
एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवैसी (Asaduddin Owaisi) खुद को 'राजनीति की लैला' और विरोधियों को मजनूं बताया करते हैं. मानिए या नहीं, लेकिन ओवैसी की ये पॉलिटिकल लाइन इस कदर हिट है कि मुस्लिम (Muslim) समुदाय में उनकी फैन फॉलोइंग बढ़ती ही जा रही है. खालिस तरीके से मुस्लिम राजनीति करने वाले असदुद्दीन ओवैसी का नाम और काम बिहार विधानसभा चुनाव में अपना डंका बजा चुका है. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 (P Assembly Elections 2022) के मद्देनजर अब ओवैसी का सियासी कारवां उत्तर प्रदेश में दखल देने आ चुका है. लेकिन, राजनीति की ये लैला उत्तर प्रदेश में आकर 'चाचाजान' बन गई है. दरअसल, किसान आंदोलन का चेहरा बन चुके राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) इन दिनों मिशन यूपी के तहत भाजपा (BJP) के खिलाफ माहौल बनाने में जुटे हुए हैं. इसी क्रम में बागपत की एक सभा में राकेश टिकैत ने असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चाचाजान बता दिया. राकेश टिकैत ने कहा कि भाजपा के चाचा जान असदुद्दीन ओवैसी यूपी आ गए हैं. अगर ओवैसी भाजपा को गाली भी देंगे, तो भी उनके खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं होगा, क्योंकि बीजेपी और ओवैसी एक ही टीम हैं.
कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तंज कसते हुए उनके पिता मुलायम सिंह यादव को 'अब्बा जान' कहा था. हालांकि, अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने इसके बाद केवल इतना ही कहा था कि वो भी सीएम योगी के पिता के बारे में भी कुछ कह सकते है. जिसके बाद बात आया-गया में दर्ज मान ली गई. लेकिन, हाल ही में योगी आदित्यनाथ ने फिर से अब्बा जान (Abbajaan) की तान छेड़ दी. और, इस तान के बाद अखिलेश यादव की ओर से केवल ध्रुवीकरण के आरोपों वाली ही प्रतिक्रिया आई. लेकिन, राकेश टिकैत जरूर भड़क गए. वैसे, राकेश टिकैत का गुस्सा सीएम योगी आदित्यनाथ पर निकलने की बजाय असदुद्दीन ओवैसी पर निकला. इस स्थिति में सवाल उठना लाजिमी है कि आखिर राकेश टिकैत असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का चाचाजान क्यों साबित करना चाहते हैं और इसकी वजह क्या है?
फेल हो जाएगा राकेश टिकैत का 'अल्लाह हू अकबर'
बीती 5 सितंबर को देश के कई किसान संगठनों ने किसान संयुक्त मोर्चा के नेतृत्व में किसान महापंचायत की थी. इस किसान महापंचायत में राकेश टिकैत ने मिशन यूपी का बिगुल फूंकते हुए मंच से अल्लाह हू अकबर का नारा लगाया था. राकेश टिकैत के शब्दों के हिसाब से उन्होंने हिंदू-मुस्लिम के बीच सांप्रदायिक सद्भाव को बनाने के लिए मंच से ये नारा लगाया था. हालांकि, सही मायनों में ये पश्चिमी यूपी में जाट (हिंदू) और मुस्लिम के उस पुराने गठजोड़ को रिवाइव करने की कोशिश थी, जो 2013 में जाटों और मुस्लिमों के बीच हुए खूनी संघर्ष में पूरी तरह से टूट गया था. हालांकि, राजनीति की भाषा में इसे भी 'ध्रुवीकरण' की कोशिश ही कहा जाता है. लेकिन, राकेश टिकैत किसान नेता हैं, तो उनकी ये कोशिश सांप्रदायिक सद्भाव के खाते में ही जाना सुनिश्चित हुई थी.
खैर, सीएम योगी आदित्यनाथ ने अपने चिर-परिचित अंदाज में 'अब्बाजान' शब्द के सहारे मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर तंज कसा था. सीएम योगी ने कुशीनगर के रैली में कहा था कि पिछली सरकार में अब्बा जान कहने वाले गरीबों की नौकरी पर डाका डालते थे. पूरा परिवार (यादव कुनबा) झोला लेकर वसूली के लिए निकल पड़ता था. अब्बा जान कहने वाले राशन हजम कर जाते थे. राशन नेपाल और बांग्लादेश पहुंच जाता था. आज जो गरीबों का राशन निगलेगा, वह जेल चला जाएगा. योगी आदित्यनाथ के इस बयान को विपक्षी पार्टियों ने 'ध्रुवीकरण' की कोशिश बताया था. विपक्ष का कहना था कि मुस्लिम समुदाय को कटघरे में खड़ाकर भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण को हवा दे रही है. वैसे, इस बयान की आलोचना असदुद्दीन ओवैसी ने भी की थी.
दरअसल, राकेश टिकैत ने किसानों के मंच से अल्लाह हू अकबर कहकर जाटों और मुस्लिमों के बीच घुली कड़वाहट को खत्म करने की पहल की थी. लेकिन, इस पहल के निहितार्थ पहले से ही सबको मालूम हैं. राकेश टिकैत पश्चिमी यूपी की 136 विधानसभा सीटों पर भाजपा को हराने की कोशिशों में जुटे हैं. किसानों से अपील कर रहे हैं कि भाजपा को वोट नहीं देना है. बीते कुछ दिनों में असदुद्दीन ओवैसी की सक्रियता पश्चिमी यूपी में बहुत बढ़ी है. उनकी सभाओं में जुटने वाली भीड़ देखकर राकेश टिकैत की चिंता बढ़ना लाजिमी है. वो जिस जाट-मुस्लिम गठजोड़ को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे हैं, उसमें असदुद्दीन ओवैसी रोड़ा नहीं पहाड़ नजर आते हैं.
मुस्लिम वोटों में बिखराव से राकेश टिकैत को दिक्कत क्यों?
मुस्लिम मतदाताओं को लेकर कहा जाता है कि जो सियासी दल भाजपा को हराने की स्थिति में होता है, उनका वोट उसी पार्टी के खाते में जाता है. वहीं, उत्तर प्रदेश में मुस्लिम समुदाय से सपा,बसपा ने उचित दूरी बना रखी है. सॉफ्ट हिंदुत्व की राह चल रही सपा, बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार छिटककर असदुद्दीन ओवैसी के पाले में जाने की संभावनाएं काफी हद तक बढ़ी हैं. असदुद्दीन ओवैसी की पश्चिमी यूपी में बढ़ी सक्रियता से जाट-मुस्लिम एकता वाला समीकरण फेल होगा और मुस्लिम वोटों का छिटकना तय है. अगर ऐसा होता है, तो हालात भाजपा के लिए आसान हो जाएंगे. दरअसल, 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिमी यूपी की 136 सीटों में से 109 सीटें भाजपा के खाते में आई थीं. वहीं, सपा केवल 20, कांग्रेस 2 और बसपा 4 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. एक सीट पर आरएलडी प्रत्याशी भी जीता था, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गया.
जाट और मुस्लिम गठजोड़ के सहारे पश्चिमी यूपी में राकेश टिकैत भाजपा के खिलाफ 2013 से पहले वाला मजबूत वोट बैंक बनाने की कोशिश कर रहे हैं. अगर वो इसमें कामयाब हो गए, तो प्रदेश सरकार से साथ उसके सामने बैठकर अपनी शर्तें मनवा सकते हैं. लेकिन, अगर असदुद्दीन ओवैसी को भाजपा का एजेंट और एआईएमआईएम (AIMIM) को बीजेपी की बी टीम साबित नहीं कर सके, तो राकेश टिकैत के किसान आंदोलन की हवा निकल जाएगी. जो किसी भी हालत में राकेश टिकैत के लिए सही नही कहा जा सकता है. अगर असदुद्दीन ओवैसी की वजह से इस बार भी पश्चिमी यूपी में ध्रुवीकरण और मुस्लिम वोटों में बिखराव होता है, तो भाजपा को हराने के लिए हाड़-तोड़ मेहनत कर रहे राकेश टिकैत के लिए 'माया मिली न राम' वाली स्थिति हो जाएगी. कहना गलत नहीं होगा कि 'राजनीति की लैला' से 'चाचाजान' बन जाना यूपी में ओवैसी का बढ़ता प्रभाव ही दिखाता है.
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