आसाराम के चेहरे से भी आखिरकार नकाब उतर ही गया. ठीक वैसे ही जैसे पिछले साल कानून के शिकंजे में फंसने के बाद गुरमीत राम रहीम कोर्ट के कठघरे में नंगा हो गया था. मालूम नहीं अभी कितने ऐसे फर्जी बाबा नकाब लगाये भजन-कीर्तन और सत्संग के साये में भोले भाले लोगों को लगातार गुमराह किये जा रहे हैं.
कानून के इस भारी हथौड़े के वार के बाद उम्मीद की जानी चाहिये फर्जी बाबा सबक लेंगे और और अपनी हरकतों से बाज आने की कोशिश करेंगे. मगर, बड़ा सवाल तो ये है कि आसाराम बापू के भक्त मानने को तैयार ही नहीं हैं कि वो कुछ गलत कर सकता है. पता नहीं आसाराम ने अपने भक्तों को कौन सी पट्टी पढ़ाई है कि वे ऐसे ढोंगी के झांसे में आकर 'चढ़ै न दूजो रंग' वाली अवस्था को प्राप्त हो चले हैं.
लोगों की भावनाओं से खेलते हुए उसकी आड़ में अपनी हवस मिटाने वाले धर्म के ऐसे अपराधी इसीलिए अपनी दुकान चला पाते हैं कि एक तरफ उनके भक्तों की कतार है - और दूसरी तरफ माथा टेकते नेताओं की लाइन.
एक और बलात्कारी बाबा
आसाराम बापू के खिलाफ बलात्कार केस में जैसे जैसे फैसले की घड़ी नजदीक आ रही थी, जोधपुर पुलिस भी पंचकूला वाले खौफ से सिहर उठती थी. राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद हुए हर हलचल से अलर्ट जोधपुर पुलिस ने आसाराम केस में खास सतर्कता बरती. आसाराम को जेल में ही कोर्ट बनाकर सजा सुनाये जाने को लेकर पुलिस ने पहले से ही कोर्ट में दस्तक दे दी थी.
तय वक्त पर आसाराम को अदालत ने फैसला सुनाया - आसाराम को नाबालिग से बलात्कार का दोषी करार दिया गया. आसाराम के अलावा सजा पाने वाले चारों उसके सहयोगी हैं जो अपराध में भागी दार रहे - शिवा, शरतचंद्र, शिल्पी और प्रकाश.
1. शिवा : शिवा उर्फ सवाराम, आसाराम का...
आसाराम के चेहरे से भी आखिरकार नकाब उतर ही गया. ठीक वैसे ही जैसे पिछले साल कानून के शिकंजे में फंसने के बाद गुरमीत राम रहीम कोर्ट के कठघरे में नंगा हो गया था. मालूम नहीं अभी कितने ऐसे फर्जी बाबा नकाब लगाये भजन-कीर्तन और सत्संग के साये में भोले भाले लोगों को लगातार गुमराह किये जा रहे हैं.
कानून के इस भारी हथौड़े के वार के बाद उम्मीद की जानी चाहिये फर्जी बाबा सबक लेंगे और और अपनी हरकतों से बाज आने की कोशिश करेंगे. मगर, बड़ा सवाल तो ये है कि आसाराम बापू के भक्त मानने को तैयार ही नहीं हैं कि वो कुछ गलत कर सकता है. पता नहीं आसाराम ने अपने भक्तों को कौन सी पट्टी पढ़ाई है कि वे ऐसे ढोंगी के झांसे में आकर 'चढ़ै न दूजो रंग' वाली अवस्था को प्राप्त हो चले हैं.
लोगों की भावनाओं से खेलते हुए उसकी आड़ में अपनी हवस मिटाने वाले धर्म के ऐसे अपराधी इसीलिए अपनी दुकान चला पाते हैं कि एक तरफ उनके भक्तों की कतार है - और दूसरी तरफ माथा टेकते नेताओं की लाइन.
एक और बलात्कारी बाबा
आसाराम बापू के खिलाफ बलात्कार केस में जैसे जैसे फैसले की घड़ी नजदीक आ रही थी, जोधपुर पुलिस भी पंचकूला वाले खौफ से सिहर उठती थी. राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद हुए हर हलचल से अलर्ट जोधपुर पुलिस ने आसाराम केस में खास सतर्कता बरती. आसाराम को जेल में ही कोर्ट बनाकर सजा सुनाये जाने को लेकर पुलिस ने पहले से ही कोर्ट में दस्तक दे दी थी.
तय वक्त पर आसाराम को अदालत ने फैसला सुनाया - आसाराम को नाबालिग से बलात्कार का दोषी करार दिया गया. आसाराम के अलावा सजा पाने वाले चारों उसके सहयोगी हैं जो अपराध में भागी दार रहे - शिवा, शरतचंद्र, शिल्पी और प्रकाश.
1. शिवा : शिवा उर्फ सवाराम, आसाराम का निजी सचिव रहा है. शिवा ने ही पीड़ित छात्रा को शाहजहांपुर से दिल्ली और फिर दिल्ली से जोधपुर ले गया. शिवा ही वो शख्स है जिसने पीड़ित छात्रा को आसाराम से मिलवाया था.
2. शरत : शरत आसाराम के छिंदवाड़ा आश्रम का डायरेक्टर था जहां नाबालिग छात्रा पढ़ाई करती थी. शरत का भी इस अपराध में बड़ा रोल रहा. जब छात्रा बीमार हुई तो शरत ने उसका इलाज करने की जगह परिवारवालों को समझाया कि सिर्फ आसाराम ही उसे बीमारी से निजात दिला सकता है. शरत ने ही छात्रा के परिवारवालों को आसाराम के साथ पूरी रात के अनुष्ठान के लिए समझा बुझा कर तैयार किया था.
3. शिल्पी : शरत के साथ साथ शिल्पी भी छात्रा और उसके घरवालों को भूत प्रेत का डर दिखा कर आसाराम के पास भेजने में जुटी रही. तब शिल्पी छिंदवाड़ा आश्रम की वार्डन थी.
4. प्रकाश : प्रकाश हरदम शरत, शिल्पी और आसाराम के बीच अहम कड़ी बना रहा. प्रकाश के बारे में पता चला कि उसने जेल से जमानत इसलिए नहीं ली कि कहीं आसाराम को कोई दिक्कत न हो. प्रकाश, आसाराम का रसोइया रहा है और तब वो छिंदवाड़ा आश्रम के हॉस्टल में कुक था.
पुरानी तस्वीर पर कांग्रेस का निशाना
जब तक आसाराम जेल नहीं गया था उसके चमत्कार के कई किस्से उसके भक्त बड़े ही मन से सुनते और सुनाया करते थे. हालांकि, जेल जाने के बाद उसके चमत्कार ने काम करना बंद कर दिया था - तभी तो जमानत की 12 कोशिशें भी बिलकुल बेकार चली गयीं. जमानत के लिए आसाराम ने ट्रायल कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक दस्तक दी, लेकिन हर जगह उसे निराशा ही हाथ लगी. केस से जुड़े लोगों को धमकाये जाने और कइयों की मौत के चलते
अदालत के सामने कभी ऐसा मौका आया ही नहीं कि आसाराम की जमानत अर्जी पर सहानुभूति के साथ विचार करे. आसाराम कभी बीमारी तो कभी अपनी उम्र को लेकर हमेशा दुहाई देता रहा, लेकिन ऐसी बातों का अदालत पर कभी कोई असर न हुआ.
आसाराम के भक्त जहां सोशल मीडिया पर एक्टिव रहे और 'बापू कब बाहर आएंगे' ट्रेंड कराते रहे, तो वकील कोर्ट में अपने अपने हिसाब से दलीलें पेश करते रहे. आसाराम ने 30 से भी ज्यादा वकीलों की मदद ली लेकिन कोर्ट ने एक न सुनी. राम जेठमलानी, सलमान खुर्शीद, मुकुल रोहतगी, सोली सोराबजी और केटीएस तुलसी जैसे नामी गिरामी वकीलों ने आसाराम को जमानत दिलाने की कोशिश की लेकिन कोर्ट के सामने सभी की दलीलें एक एक कर ढेर होती गयीं.
बीबीसी की एक रिपोर्ट में आसाराम को लेकर उस चर्चा का भी जिक्र है जिसमें माना जाता है कि कारोबारियों का एक समूह नहीं चाहता था कि आसाराम कभी बाहर आयें. कई बार आसाराम केस से जुड़े गवाहों को धमकाने के मामले में भी ऐसे कारोबारियों के समूह पर शक जताया जाता रहा. आरोप है कि आसाराम से इन कारोबारियों ने काफी पैसे ले रखे हैं. आसाराम के बाहर आने की सूरते में पैसे वापस करने पड़ते - और इसीलिए वे आखिर तक आसाराम के खिलाफ लामबंद होकर जुटे रहे.
गुरमीत राम रहीम की ही तरह आसाराम के भी पॉलिटिकल कनेक्शन की शोहरत रही. आसाराम के अच्छे दिनों में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री रहते मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी आशीर्वाद लेने उनके आश्रम जाते रहे. जैसे ही आसाराम कानून के पेंच में फंसने लगे, नेताओं ने धीरे धीरे करने दूरी बनाना शुरू कर दिया.
आसाराम को सजा मिलने के बाद कांग्रेस को मोदी को टारगेट करने का बड़ा मौका मिल गया है. कांग्रेस ने ट्विटर पर प्रधानमंत्री मोदी और आसाराम का एक वीडियो शेयर किया है.
कांग्रेस का ये हमला बॉलीवुड एक्टर फरहान अख्तर को बेहद नागवार गुजरा है. फरहान अख्तर मोदी के बचाव में कूद पड़े हैं.
फरहान अख्तर के स्टैंड से कोई इत्तेफाक रखे या नहीं, लेकिन सच तो ये है कि आसाराम जैसे लोग किसी एक के साथ नहीं होते. ये कारोबारी हैं और जिस कनेक्शन से उनका काम बने वे आशीर्वाद जरूर देते हैं. सिक्के का दूसरा पहलू राजनेताओं पर भी लागू होता है - ये दिग्विजय सिंह के साथ आसाराम का ये वीडियो यही बता रहा है.
आसाराम जैसे बदनाम बाबाओं की फेहरिस्त बड़ी लंबी है. ये तो साफ है कि आसाराम को भी अब महसूस होने लगा है कि उसके कर्मों की सजा मिलने से कोई रोक नहीं सकता. तभी तो फैसला आने से पहले जब उससे मन की बात पूछी गयी तो उसका जबाव था - 'होइहें वही जो राम रचि राखा...' गुरमीत राम रहीम के बाद आसाराम का भी वही हाल हुआ, ये तो उसे समझ में आ ही गया. कानून का ये सबक बाकी ऐसे फर्जी बाबाओं को भी देर सबेर समझ में आएगा ही, ऐसा मान कर चलना चाहिये.
मुद्दे की बात तो ये है कि हमारा समाज इनके काम और कारनामे का फर्क कैसे समझेगा? राजनीतिक विरोधी एक दूसरे के काम और कारनामे का फर्क तो लोगों को चुनावों में समझा देते हैं - लेकिन चुनाव के वक्त इनके दरबार में माथा टेकने की बारी आती है तो सबके सब भक्ति में ऐसे लीन हो जाते हैं कि पाप और पुण्य का सारा फर्क भूल जाते हैं.
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