अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) महीने भर से बेहद आक्रामक नजर आये हैं - सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ साथ बीजेपी के खिलाफ भी. अब बाकियों की बारी है और अशोक गहलोत को चुप रह कर सुनना पड़ेगा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट को वापस जयपुर भेज कर अशोक गहलोत की जबान पर ताला लगा दिया है. उधर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मोर्चे पर लौट आयी हैं.
वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) भी अब अशोक गहलोत के खिलाफ हमलावर हो चुकी हैं. अशोक गहलोत का नाम तो वो अब भी नहीं ले रही हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार को जनता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का आरोप जरूर लगा रही हैं. वसुंधरा राजे उस बीजेपी विधायकों की बैठक में भी शामिल हुई हैं - और शिष्टाचार के नाते राज्यपाल कलराज मिश्र से भी मुलाकात कर चुकी हैं. कलराज मिश्रा के बीजेपी के सीनियर नेता होने के कारण शिष्टाचार की गुंजाइश तो है, लेकिन ऐसे माहौल में शिष्टाचार और राजनीतिक विमर्श में फर्क करना मुश्किल होता है.
विधानसभा सत्र शुरू होते ही बीजेपी के अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने के ऐलान के बावजूद अशोक गहलोत कह रहे हैं कि वो खुद विश्वास मत हासिल करेंगे - वैसे नंबर गेम में काफी पीछे होने के बावजूद बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव क्यों ला रही है अभी समझ से परे लगता है. अगर अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायकों के बीच परदे के पीछे कोई डील हो चुकी हो तो बात और है. ऐसे में ये कहना मुश्किल लग रहा है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के जयपुर लौट जाने के बाद अशोक गहलोत की सरकार से खतरा खत्म हो गया है.
बदले माहौल में अशोक गहलोत विधायकों का दिल जीतने की बात जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए अपने समर्थक विधायकों को आगे भी संतुष्ट रखना पहले के मुकाबले ज्यादा चुनौतीपूर्ण होने लगा है.
सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को लेकर अशोक गहलोत का एक बयान सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है, लेकिन उसमें कोई मैसेज भी छिपा लगता है. अशोक गहलोत ने कहा है कि वो 19 विधायकों के बगैर भी राजस्थान...
अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) महीने भर से बेहद आक्रामक नजर आये हैं - सचिन पायलट (Sachin Pilot) के साथ साथ बीजेपी के खिलाफ भी. अब बाकियों की बारी है और अशोक गहलोत को चुप रह कर सुनना पड़ेगा. राहुल गांधी और प्रियंका गांधी वाड्रा ने सचिन पायलट को वापस जयपुर भेज कर अशोक गहलोत की जबान पर ताला लगा दिया है. उधर, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी मोर्चे पर लौट आयी हैं.
वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) भी अब अशोक गहलोत के खिलाफ हमलावर हो चुकी हैं. अशोक गहलोत का नाम तो वो अब भी नहीं ले रही हैं, लेकिन कांग्रेस सरकार को जनता की उम्मीदों पर खरा न उतर पाने का आरोप जरूर लगा रही हैं. वसुंधरा राजे उस बीजेपी विधायकों की बैठक में भी शामिल हुई हैं - और शिष्टाचार के नाते राज्यपाल कलराज मिश्र से भी मुलाकात कर चुकी हैं. कलराज मिश्रा के बीजेपी के सीनियर नेता होने के कारण शिष्टाचार की गुंजाइश तो है, लेकिन ऐसे माहौल में शिष्टाचार और राजनीतिक विमर्श में फर्क करना मुश्किल होता है.
विधानसभा सत्र शुरू होते ही बीजेपी के अविश्वास प्रस्ताव लाये जाने के ऐलान के बावजूद अशोक गहलोत कह रहे हैं कि वो खुद विश्वास मत हासिल करेंगे - वैसे नंबर गेम में काफी पीछे होने के बावजूद बीजेपी अविश्वास प्रस्ताव क्यों ला रही है अभी समझ से परे लगता है. अगर अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बीजेपी और कांग्रेस के बागी विधायकों के बीच परदे के पीछे कोई डील हो चुकी हो तो बात और है. ऐसे में ये कहना मुश्किल लग रहा है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायकों के जयपुर लौट जाने के बाद अशोक गहलोत की सरकार से खतरा खत्म हो गया है.
बदले माहौल में अशोक गहलोत विधायकों का दिल जीतने की बात जरूर कर रहे हैं, लेकिन उनके लिए अपने समर्थक विधायकों को आगे भी संतुष्ट रखना पहले के मुकाबले ज्यादा चुनौतीपूर्ण होने लगा है.
सचिन पायलट के समर्थक विधायकों को लेकर अशोक गहलोत का एक बयान सुनने में बड़ा अजीब लग रहा है, लेकिन उसमें कोई मैसेज भी छिपा लगता है. अशोक गहलोत ने कहा है कि वो 19 विधायकों के बगैर भी राजस्थान विधानसभा में बहुमत साबित कर लेते - आखिर ये बयान किसके लिए मैसेज है?
अशोक गहलोत का मैसेज किसके लिए है
अव्वल तो सचिन पायलट कांग्रेस छोड़ कर कहीं गये भी नहीं थे, लेकिन पहले जयपुर और फिर मुख्यमंत्री आवास पहुंच कर अशोक गहलोत से मुलाकात को घर वापसी के तौर पर लिया जा रहा है. कोरोना वायरस के चलते अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों की मुलाकात तो मास्क पहने हुई, लेकिन दोनों के गले न मिलने की भी खूब चर्चा हो रही है. अगर इसकी वजह सोशल डिस्टैंसिंग है तो सचिन पायलट ने अशोक गहलोत से हाथ भी क्यों मिलाया - कोरोना काल में तो देश क्या दुनिया भर में सब लोग दूर से ही एक दूसरे को हाथ जोड़ कर नमस्ते कर रहे हैं. मीटिंग के लिए अशोक गहलोत समर्थक विधायक बस से जैसलमेर से जयपुर लाये गये थे और उसके बाद फिर से होटल भेज दिये गये. सचिन पायलट के साथ लौटे विधायक अपने घरों पर ही रह रहे हैं. मीटिंग में दोनों गुट के विधायकों का आमना सामना तो हुआ, लेकिन निगाहें सशंकित और गुस्से का इजहार कर रही थीं.
कहने को तो अशोक गहलोत ने सचिन पायलट गुट के विधायकों से कहा कि जो हुआ सो भूल जाओ क्योंकि अपने तो अपने होते हैं, लेकिन लगे हाथ एक ऐसी बात भी कर दी कि सबके मन में शक पैदा हो गया.
अशोक गहलोत ने बातों बातों में ही ये भी कह डाला कि वो तो 19 विधायकों के बगैर भी बहुमत साबित कर ही लेते!
ऐसा बोल कर अशोक गहलोत क्या सचिन पायलट पर तंज कस रहे हैं? या अशोक गहलोत गुटबाजी में बागी हुए विधायकों को किसी तरह की चेतावनी दे रहे हैं? या फिर ये बयान सचिन पायलट समर्थकों के लिए नहीं बल्कि खुद अशोक गहलोत समर्थक विधायकों के लिए है?
कांग्रेस ने दिल्ली में हुई सुलह के बाद भंवरलाल शर्मा सहित दो विधायकों का निलंबन वापस ले लिया है, लेकिन ये कदम अशोक गहलोत गुट के विधायकों को जरा भी अच्छा नहीं लगा है. दरअसल, अशोक गहलोत गुट के विधायक खुद को निष्ठावान कांग्रेसी मानते हैं और सचिन पायलट समर्थक विधायकों को अशोक गहलोत की तरह 'निकम्मा, नकारा और कांग्रेस की पीठ में छुरा घोंपने वाले' की तरह देख रहे हैं.
एक रिपोर्ट के अनुसार अशोक गहलोत समर्थक चाहते हैं कि सचिन पायलट गुट के विधायकों के खिलाफ एक्शन हो - और अगर ऐसा न हो सके तो विधानसभा के बचे कार्यकाल तक उनको न तो सरकार में और न ही संगठन में कोई पद दिया जाये.
क्या 19 विधायकों की अहमियत खारिज करने वाले अशोक गहलोत का बयान अपने समर्थक विधायकों का गुस्सा शांत करने के लिए हो सकता है?
अब तो चुनौतियां ही चुनौतियां हैं
अशोक गहलोत के समर्थन में होटल में बगैर इंटरनेट और फोन के दिन राज जैसे तैसे काट रहे कांग्रेस विधायकों का गुस्सा भी स्वाभाविक लगता है. विधायकों को उम्मीद रही होगी कि सचिन पायलट गुट के विधायकों के हिस्सा का मंत्री पद और दूसरे सरकारी पदों पर उनका कब्जा हो जाएगा, लेकिन दिल्ली में दो-तीन घंटे की मुलाकात ने सारी बाजी ही पलट दी है.
अभी ये तो तय नहीं हुआ है कि सचिन पायलट गुट के विधायकों के साथ कांग्रेस कैसा सलूक करेगी क्योंकि इस बारे में एक कमेटी बन रही है और वो ही उनके बारे में सलाह देगी. सलाह पर भी अमल हो पाएगा या नहीं अभी कुछ भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि वो सब भी राजनीतिक फायदे और नुकसान के हिसाब से ही तय होने वाला है. ऐसे में जबकि सचिन पायलट को भी सिर्फ कोरे आश्वासन मिले हों, विधायकों के हिस्से में क्या आएगा वे कैसे उम्मीद करें.
घर परिवार और सोशल मीडिया से दूर तमाम तकलीफें सहने के बावजूद कांग्रेस विधायकों को उम्मीदों के मुताबिक चीजें न मिलें - और मिलने का वक्त आये तो हिस्सेदारी के लिए लोग पहुंच जायें, भला कैसे बर्दाश्त करेंगे?
अशोक गहलोत गुट के विधायक जो सोच रहे हैं, देखा जाये तो गलत भी नहीं है. गहलोत गुट के विधायकों का ये सोचना भी गलत नहीं लगता कि 'जब 19 लोग मिल कर दबाव बना सकते हैं तो हमारी संख्या तो 100 से ऊपर है.'
ऐसी बातें जैसलमेर के होटल में कांग्रेस विधायकों के बीच अक्सर होती रही है. होटल में रह रहे विधायक राय मशविरा कर चुके हैं कि कांग्रेस नेतृत्व को उनकी भी बात सुननी पड़ेगी. जाहिर है अगर उनकी बातें नजरअंदाज की गयीं तो असंतोष बढ़ेगा ही. अगर ऐसा हुआ तो वहां भी बगावत देखने को मिल सकती है जो अशोक गहलोत के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी.
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