जिस होटल में कांग्रेस ने विधायकों (Congress MLA) को दो हफ्ते से रखा हो, अचानक वहां 50-60 लोग धावा बोल दें तो क्या हाल होगा? 27 जुलाई, 2020 को जयपुर के होटल के बाहर लोगों को आते देख अफरातफरी मच गयी. होटल के बाहर तैनात पुलिस और दूसरे सुरक्षाकर्मी अलर्ट मोड में आ गये - भीड़ में महिलाएं भी थीं और लोग हाथों में बैनर और तख्तियां लिये हुए थे. वे लोग नारेबाजी भी कर रहे थे.
जल्द ही मालूम हो गया कि वे लोग आदिवासी एकता मंच के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से मिलना चाह रहे थे. जब पता चला कि मुख्यमंत्री गहलोत विधायकों से मिलने होटल पहुंचे हैं तो वे सीधे वहीं पहुंच गये. फिर सुरक्षाकर्मियों ने सबको किनारे खड़ा कर नारेबाजी बंद करायी. हालांकि, लोगों की मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं हो पायी क्योंकि वो होटल से सीधे मुख्यमंत्री आवास रवाना हो गये.
लोगों की संख्या तो कम रही लेकिन इस वाकये ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ही उस बात की याद दिला दी जो उन्होंने राज्यपाल कलराज मिश्र (Kalraj Mishra) के विधानसभा सत्र न बुलाये जाने को लेकर कही थी - तब क्या होगा जब राजस्थान के लोग राजभवन को घेर लेंगे?
ताज्जुब की बात तो ये रही कि कांग्रेस ने देश भर में राजभवनों का घेराव किया, लेकिन जयपुर में हिम्मत पहले ही जवाब दे गयी. कितनी अजीब बात है जिस राज्यपाल से शिकायत है वहां घेराव करने की बजाये कांग्रेस नेता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करते रहे.
क्या गहलोत के दांव उलटे पड़ने लगे हैं?
मुलाकात के लिए होटल पहुंचे लोगों को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही वहां से निकल गये हों, लेकिन ऐसा कब तक संभव है? ये जरूर है कि विधानसभा नहीं चल रही है, लेकिन क्या कोरोना वायरस जैसी महामारी के दौरान विधायकों को अपने इलाके में नहीं होना चाहिये था? दो हफ्ते से वे किस नैतिक बल के बूते होटल में पड़े हुए हैं?
जैसे मुख्यमंत्री को खोजते खोजते लोग होटल पहुंच जा रहे हैं - क्या अपने विधायकों की तलाश में वे होटल नहीं...
जिस होटल में कांग्रेस ने विधायकों (Congress MLA) को दो हफ्ते से रखा हो, अचानक वहां 50-60 लोग धावा बोल दें तो क्या हाल होगा? 27 जुलाई, 2020 को जयपुर के होटल के बाहर लोगों को आते देख अफरातफरी मच गयी. होटल के बाहर तैनात पुलिस और दूसरे सुरक्षाकर्मी अलर्ट मोड में आ गये - भीड़ में महिलाएं भी थीं और लोग हाथों में बैनर और तख्तियां लिये हुए थे. वे लोग नारेबाजी भी कर रहे थे.
जल्द ही मालूम हो गया कि वे लोग आदिवासी एकता मंच के बैनर तले अपनी मांगों को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) से मिलना चाह रहे थे. जब पता चला कि मुख्यमंत्री गहलोत विधायकों से मिलने होटल पहुंचे हैं तो वे सीधे वहीं पहुंच गये. फिर सुरक्षाकर्मियों ने सबको किनारे खड़ा कर नारेबाजी बंद करायी. हालांकि, लोगों की मुख्यमंत्री से मुलाकात नहीं हो पायी क्योंकि वो होटल से सीधे मुख्यमंत्री आवास रवाना हो गये.
लोगों की संख्या तो कम रही लेकिन इस वाकये ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ही उस बात की याद दिला दी जो उन्होंने राज्यपाल कलराज मिश्र (Kalraj Mishra) के विधानसभा सत्र न बुलाये जाने को लेकर कही थी - तब क्या होगा जब राजस्थान के लोग राजभवन को घेर लेंगे?
ताज्जुब की बात तो ये रही कि कांग्रेस ने देश भर में राजभवनों का घेराव किया, लेकिन जयपुर में हिम्मत पहले ही जवाब दे गयी. कितनी अजीब बात है जिस राज्यपाल से शिकायत है वहां घेराव करने की बजाये कांग्रेस नेता पूरे देश में विरोध प्रदर्शन करते रहे.
क्या गहलोत के दांव उलटे पड़ने लगे हैं?
मुलाकात के लिए होटल पहुंचे लोगों को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भले ही वहां से निकल गये हों, लेकिन ऐसा कब तक संभव है? ये जरूर है कि विधानसभा नहीं चल रही है, लेकिन क्या कोरोना वायरस जैसी महामारी के दौरान विधायकों को अपने इलाके में नहीं होना चाहिये था? दो हफ्ते से वे किस नैतिक बल के बूते होटल में पड़े हुए हैं?
जैसे मुख्यमंत्री को खोजते खोजते लोग होटल पहुंच जा रहे हैं - क्या अपने विधायकों की तलाश में वे होटल नहीं पहुंच सकते? जनप्रतिनिधियों से इलाके के लोगों के अक्सर काम पड़ते रहते हैं. अगर वे विधानसभा में नहीं मिलेंगे, अपने इलाके में नहीं मिलेंगे तो लोग होटल नहीं पहुंचेंगे तो क्या करेंगे?
क्या अशोक गहलोत के दिमाग में कभी ये बात भी आयी होगी कि तब क्या होगा जब राजस्थान के लोग वो होटल घेर लें जहां विधायकों को रखा गया है?
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजभवन को लेकर धमकी तो इसी अंदाज में दी थी. अशोक गहलोत की धमकी पर तगड़ी प्रतिक्रिया भी हुई है. बीजेपी ने खुद तो रिएक्ट किया ही, राजभवन जाकर राज्यपाल कलराज मिश्र से मुलाकात भी की. बीजेपी ने तो राजभवन की सुरक्षा के लिए अर्ध सैनिक बलों को तैनात करने की भी मांग की है. गवर्नर कलराज मिश्र ने भी मुख्य सचिव और डीजीपी से मीटिंग में सुरक्षा को लेकर चिंता जतायी है.
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दांव उलटे पड़ने लगे हैं क्या - अगर ऐसा नहीं तो देश भर में राजभवनों पर विरोध प्रदर्शन करने और राजस्थान में खामोश रहने का क्या तुक बनता है? जहां दिक्कत है वहां कोई हरकत नहीं और पूरे देश में विरोध का ढिंढोरा पीटने का क्या मतलब है? ये तो बड़ा ही हास्यास्पद फैसला रहा!
राजभवन के मामले में ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में भी कांग्रेस को यू-टर्न लेते देखा गया. स्पीकर ने हाईकोर्ट के जिस निर्देश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, उसे भी वापस ले लिया - अगर ऐसा ही करना था तो जाने की ही जरूरत क्या थी? सुप्रीम कोर्ट ने तो पहले ही स्पीकर सीपी जोशी को ताकीद किया था - आपको आने की क्या जरूरत रही, आप तो न्यूट्रल हैं. स्पीकर की तरफ से वकील और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल ने तमाम दलीलें भी पेश की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर कोई रोक नहीं लगायी. हां, आखिरी फैसला खुद लेने की बात जरूर कही थी. सुनवाई के ऐन पहले ही स्पीकर पीछे हट गये.
सुनने में आया कि कांग्रेस में राजस्थान की लड़ाई को कानूनी तरीके से लड़ने को लेकर एक राय नहीं बन पा रही थी. एक धड़ा जरूर इसके पक्ष में रहा लेकिन दूसरा तो बिलकुल नहीं. वरना, जो कांग्रेस आधी रात को सुप्रीम कोर्ट के दरवाजे पर इंसाफ मांगने पहुंच जाये वो फैसले की घड़ी आने से ठीक पहले केस वापस ले ले, काफी अजीब लगता है. लगता तो यही है कि जो कांग्रेस का जो धड़ा कानूनी लड़ाई के खिलाफ रहा वो हकीकत का पहले ही अंदाजा लगा चुका होगा. ये भी हो सकता है, सुप्रीम कोर्ट जाने से किसी न किसी तरीके से मना भी किया हो, लेकिन उसकी परवाह नहीं की गयी हो. स्थिति की गंभीरता तब समझ आयी हो जब लगा हो कि रास्ता सही नहीं चुना जा सका है.
अशोक गहलोत के कहने के बाद कांग्रेस व्हिप की सलाह पर स्पीकर ने सचिन पायलट और उनके 18 साथियों को नोटिस थमा तो दिया, लेकिन हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक फजीहत ही झेलनी पड़ी है. गलती का एहसास होने पर सुधारने की कोशिश तो हो रही है, लेकिन क्या करेक्शन का मौका बचा भी है?
समझा गया है कि कांग्रेस ने राजस्थान में विरोध प्रदर्शन से इसलिए बचने का फैसला किया कि कहीं ये दांव भी उलटा न पड़ जाये. कहीं राज्यपाल संवैधानिक संकट के बीच कानून और व्यवस्था के सवाल पर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश न कर दें. मायावती तो पहले से ही ये मांग कर रही हैं. बीएसपी ने तो कांग्रेस में शामिल हो चुके विधायकों के लिए व्हिप जारी कर विश्वास प्रस्ताव की सूरत में कांग्रेस सरकार के खिलाफ वोट करने को कहा है. हालांकि, ये अलग राजनीति है और ये चर्चा का मुद्दा भी अलग है.
सुप्रीम कोर्ट से याचिका वापस लेने के बाद कांग्रेस ने राजस्थान की लड़ाई राजनैतिक तरीके से लड़ने का फैसला किया जरूर है, लेकिन अशोक गहलोत अब अपने ही बुने जाल में फंसते जा रहे लगते हैं. अशोक गहलोत सरकार की तरफ से विधानसभा का सत्र बुलाने को लेकर दूसरा प्रस्ताव भी राज्यपाल कलराज मिश्र ने खारिज कर दिया है - और कुछ सवालों के साथ एक नया पत्र भी लिखा है. ध्यान देने वाली बात ये है कि राज्यपाल के पत्र में इस बात का भी जिक्र है कि सत्र न बुलाये जाने जैसी उनकी कोई मंशा नहीं है. कांग्रेस की ओर से यही सवाल प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला उठा रहे हैं.
इस बीच, PA सरकार में कानून मंत्री रहे कांग्रेस के तीन नेताओं ने राज्यपाल कलराज मिश्र को पत्र लिख कर कहा है कि मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर विधानसभा का सत्र बुलाने में हो रही देर से जो संवैधानिक गतिरोध पैदा हुआ है उसे टाला जा सकता था. कपिल सिब्बल, सलमान खुर्शीद और अश्वनी कुमार ने पत्र के जरिये गुजारिश की है कि अशोक गहलोत मंत्रिमंडल की सिफारिश पर वो विधानसभा सत्र बुलाये - क्योंकि ऐसा नहीं हुआ तो संवैधानिक संकट पैदा होगा.
देर के आगे अंधेर है
अशोक गहलोत अपने समर्थक विधायकों को लेकर राजभवन पहुंचे तो थे, लेकिन चार-पांच घंटे में ही समझ आ गया कि वहां भी दांव उलटा पड़ सकता है. लिहाजा सबको लेकर फिर से होटल लौट गये. दरअसल, अब ये डर भी सताने लगा है कि देर होने से कहीं कोई दुर्घटना न हो जाये. बाकी सफर में देर करके दुर्घटना को टाला जा सकता है, लेकिन राजस्थान की मौजूदा राजनीति में बिलकुल उलटा भी हो सकता है. बाकी मामलों में भले ही देर के आगे अंधेर न हो, लेकिन यहां देर के आगे अंधेर भी है.
होटल में विधायकों की हौसलाअफजाई के मकसद से रणदीप सिंह सुरजेवाला ने एक महत्वपूर्ण जानकारी शेयर की की. बताया कि 48 घंटे में सचिन पायलट गुट के तीन विधायक अशोक गहलोत वाले खेमे में आने वाले हैं.
अभी 24 घंटे भी नहीं बीते कि सचिन पायलट गुट ने बड़ा दावा करते हुए एक वीडियो जारी कर दिया - 10 से 15 विधायक संपर्क में हैं.
सचिन पायलट गुट के विधायक हेमाराम चौधरी ने एक वीडियो बयान में कहा कि अशोक गहलोत खेमे के 10-15 विधायक उनके संपर्क में हैं जो आजाद होते ही उनका साथ छोड़ देंगे. हेमाराम चौधरी ने अशोक गहलोत को चुनौती देते हुए कहा है कि एक बार वो विधायकों पर लगा पहरा हटाकर तो देखें - साफ हो जाएगा कि उनके सपोर्ट में कितने विधायक हैं.
अशोक गहलोत ने एक महत्वपूर्ण जानकारी और भी दी है - वो ये कि राजस्थान के राजनीतिक संकट को लेकर उनकी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से फोन पर बात भी हुई है. इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी को राजस्थान के मामले में पत्र लिख चुके अशोक गहलोत की बातों से तो ऐसा ही लगता है कि उन्होंने राज्यपाल कलराज मिश्र की शिकायत की है. करीब करीब वैसे ही जैसे कुछ दिन पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने की थी, लेकिन उद्धव ठाकरे की तरह अशोक गहलोत ने ये नहीं बताया कि प्रधानमंत्री मोदी ने क्या कहा - 'देखते हैं', उद्धव ठाकरे से तो प्रधानमंत्री मोदी ने इतना ही कहा था और नतीजा भी देखने को मिला. अशोक गहलोत के मामले को भी उसी नजरिये से समझा जा सकता है.
इन्हें भी पढ़ें :
Ashok Gehlot की दिलचस्पी टकराव और टाइमपास में ज्यादा है, सत्र बुलाने में नहीं!
अशोक गहलोत की 3D पॉलिटिक्स ने जयपुर से दिल्ली तक तूफान मचा दिया
ddhav Thackeray को अशोक गहलोत जैसा अंजाम क्यों नजर आ रहा है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.