राजस्थान (Rajasthan Politics) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिख कर अपनी शिकायत दर्ज करायी है - "चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है."
अशोक गहलोत के पत्र को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जो शिकायत वो पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कर चुके हैं, करीब करीब वहीं बातें प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में भी हैं. क्या दोनों ही मामलों में अशोक गहलोत का भाव और राजनीतिक मकसद भी एक जैसा हो सकता है?
अशोक गहलोत ने चाहे जिस भाव से या जिस मकसद से मोदी को पत्र लिखा हो, लेकिन इसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा से जोड़ते हुए देखा जाना चाहिये - भले ही ये थानेदार के साथियों के खिलाफ उसी थाने में तहरीर देने जैसा लगता हो - लेकिन ये एक नये मिजाज की राजनीति की तरफ भी इशारा करता है जिसमें प्रधानमंत्री पद को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर देने की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिये.
लोकतंत्र के लिए ये अच्छा संकेत है
अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है, आम तौर पर ऐसे शिकायती पत्र राष्ट्रपति को भेजे जाते हैं और एक्शन लेने की गुहार लगायी जाती है - क्योंकि राष्ट्रपति को देश की दलीय राजनीति से दूर रख कर सम्मान दिया जाता है. भले ही राष्ट्रपति बनने से पहले वो किसी पार्टी के नेता रहे हों. भले राष्ट्रपति चुनाव में किसी राजनीतिक दल के उम्मीदवार रहे हों - लेकिन राष्ट्रपति भवन में वो सभी के राष्ट्रपति होते हैं. देश का प्रथम नागरिक.
अशोक गहलोत का पत्र भी प्रधानमंत्री को उसी नजरिये से देखने की सलाह देता हुआ लगता है. अशोक गहलोत की सरकार पर मंडराते खतरे के बीच उनकी छटपटाहट को समझते हुए भी ये पत्र कम से कम दो पहलुओं की तरफ ध्यान तो खींचता ही है. एक, अशोक गहलोत के मन में ऐसी उम्मीद जगी हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दखल से उनकी सरकार बच सकती है. दो, ये भी हो सकता है कि अशोक गहलोत को सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से मिलने वाला सपोर्ट नाकाफी लगने लगा हो या फिर...
राजस्थान (Rajasthan Politics) के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को पत्र लिख कर अपनी शिकायत दर्ज करायी है - "चुनी हुई सरकार को गिराने की कोशिश की जा रही है."
अशोक गहलोत के पत्र को पढ़ने के बाद ऐसा लगता है कि जो शिकायत वो पहले सोनिया गांधी और राहुल गांधी से कर चुके हैं, करीब करीब वहीं बातें प्रधानमंत्री मोदी को लिखे पत्र में भी हैं. क्या दोनों ही मामलों में अशोक गहलोत का भाव और राजनीतिक मकसद भी एक जैसा हो सकता है?
अशोक गहलोत ने चाहे जिस भाव से या जिस मकसद से मोदी को पत्र लिखा हो, लेकिन इसे प्रधानमंत्री पद की गरिमा से जोड़ते हुए देखा जाना चाहिये - भले ही ये थानेदार के साथियों के खिलाफ उसी थाने में तहरीर देने जैसा लगता हो - लेकिन ये एक नये मिजाज की राजनीति की तरफ भी इशारा करता है जिसमें प्रधानमंत्री पद को दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर देने की कोशिश के तौर पर देखा जाना चाहिये.
लोकतंत्र के लिए ये अच्छा संकेत है
अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री को जो पत्र लिखा है, आम तौर पर ऐसे शिकायती पत्र राष्ट्रपति को भेजे जाते हैं और एक्शन लेने की गुहार लगायी जाती है - क्योंकि राष्ट्रपति को देश की दलीय राजनीति से दूर रख कर सम्मान दिया जाता है. भले ही राष्ट्रपति बनने से पहले वो किसी पार्टी के नेता रहे हों. भले राष्ट्रपति चुनाव में किसी राजनीतिक दल के उम्मीदवार रहे हों - लेकिन राष्ट्रपति भवन में वो सभी के राष्ट्रपति होते हैं. देश का प्रथम नागरिक.
अशोक गहलोत का पत्र भी प्रधानमंत्री को उसी नजरिये से देखने की सलाह देता हुआ लगता है. अशोक गहलोत की सरकार पर मंडराते खतरे के बीच उनकी छटपटाहट को समझते हुए भी ये पत्र कम से कम दो पहलुओं की तरफ ध्यान तो खींचता ही है. एक, अशोक गहलोत के मन में ऐसी उम्मीद जगी हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दखल से उनकी सरकार बच सकती है. दो, ये भी हो सकता है कि अशोक गहलोत को सोनिया गांधी और राहुल गांधी की तरफ से मिलने वाला सपोर्ट नाकाफी लगने लगा हो या फिर वो कांग्रेस नेतृत्व के रवैये से नाउम्मीद हो चुके हों. मालूम हुआ था कि सचिन पायलट को नोटिस भेजने और सरकार गिराने की डील में शामिल होने जैसा आरोप लगाने के बाद राहुल गांधी ने अशोक गहलोत को सार्वजनिक बयान न देने को कहा था. ये बात अलग है कि अशोक गहलोत ने उसकी जरा भी परवाह नहीं की है.
अशोक गहलोत को पहले मुख्यमंत्री नहीं हैं, बल्कि देश के ऐसे तीसरे मुख्यमंत्री हैं जो अपनी कुर्सी को लेकर चिंतित हैं और उस चिंता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अवगत करा रहे हैं. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी ऐसा कर चुके हैं. उद्धव ठाकरे अपनी कुर्सी बचाने के लिए प्रधानमंत्री से मदद मांग चुके हैं और ममता बनर्जी अपनी सरकार के साथ हो रहे भेदभाव की शिकायत कर चुकी हैं.
पहले उद्धव ठाकरे, फिर ममता बनर्जी और अब अशोक गहलोत ने जिस तरीके से प्रधानमंत्री मोदी से मदद मांगी है, वो एक अच्छी परंपरा का द्योतक है और देश के स्वस्थ और मजबूत लोकतंत्र की बानगी पेश करता है. तीनो ही मुख्यमंत्रियों ने अपनी जो भी पीड़ा साझा किया है, उसमें एक कॉमन बात है - तीनों को ही अपने अपने राज्यों में या राज्यों के प्रति बीजेपी नेताओं से ही शिकायत होना.
उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री मोदी को फोन कर महाराष्ट्र में एक संभावित संवैधानिक संकट की तरफ ध्यान दिलाया था. उद्धव ठाकरे को फोन पर प्रधानमंत्री ने बस इतना ही कहा - देखते हैं. असर ये हुआ कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा और आयोग ने विधान परिषद की खाली पड़ी 9 सीटों पर चुनाव करा दिये. आयोग ने कोरोना वायरस और लॉकडाउन के चलते चुनाव टाल दिये थे. अगर चुनाव नहीं कराया जाता तो उद्धव ठाकरे को राज्य के किसी भी सदन का सदस्य होने के चलते मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ता.
ममता बनर्जी ने लॉकडाउन को लेकर बुलायी गयी मुख्यमंत्रियों की भरी मीटिंग में ही प्रधानमंत्री से अपनी शिकायत दर्ज करायी थी. ममता की शिकायत रही कि संकट की घड़ी में पश्चिम बंगाल के साथ केंद्र सरकार राजनीतिक भेदभाव कर रही है. ममता बनर्जी का इशारा केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की तरफ था. सबसे दिलचस्प बात ये रही कि ममता बनर्जी ने अपनी शिकायत भी अमित शाह की मौजूदगी में ही दर्ज करायी थी. कुछ ही दिन बाद पश्चिम बंगाल में अम्फान तूफान आया और ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मोदी से हालात का जायजा लेने और मदद की अपील की. प्रधानमंत्री मोदी ने फौरन कार्यक्रम बनाया और कोलकाता पहुंच गये. कोरोना वायरस और लॉकडाउन की वजह से काफी दिनों बाद मोदी प्रधानमंत्री आवास से कहीं बाहर निकले थे. प्रधानमंत्री मोदी ने मदद की घोषणा तो की ही, ममता बनर्जी की तारीफ भी की जिसके लिए उनके कान अरसे से तरस गये होंगे - 'ममता बनर्जी कोरोना वायरस और अम्फान तूफान से एक साथ दो अलग अलग लड़ाइयां लड़ रही हैं' - और भरोसा दिलाया कि केंद्र सरकार का सपोर्ट भी कदम कदम पर मिलेगा.
राजस्थान के मामले में अशोक गहलोत की शिकायतों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी क्या फैसला लेते हैं, देखना होगा. अब तक तो यही देखने को मिला है कि प्रधानमंत्री मोदी ने उद्धव ठाकरे और ममता बनर्जी दोनों के ही केस में एक स्टेट्समैन की तरह पेश आये हैं - जिसे थोड़ा आगे बढ़ कर सोचें तो राजधर्म निभाने जैसा भी समझ सकते हैं.
सबसे दिलचस्प बात ये है कि ये कांग्रेस के ही एक मुख्यमंत्री का पत्र है, जिसका नेतृत्व कर रहे राहुल गांधी और सोनिया गांधी सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री के बयान पर भी शक जताते हैं - और फिर पार्टी प्रवक्ता की तरफ से ट्विटर पर सवालों की फेहरिस्त पेश कर दी जाती है. नौबत यहां तक आ जाती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय को प्रधानमंत्री मोदी के बयान पर सफाई देनी पड़ती है. भारत और चीन तनाव के बीच अशोक गहलोत खुद भी कई बार प्रधानमंत्री मोदी पर हमले बोल चुके हैं - 'जिस रूप में प्रधानमंत्री ने विपक्षी पार्टियों के साथ बैठक के दौरान कहा था कि चीन हमारी जमीन पर आया ही नहीं है, न हमारी किसी चौकी पर उसका कब्जा है, वो उन्होंने बड़ी भूल की है.'
एक दिलचस्प बात ये भी है कि ये उसी पार्टी के एक मुख्यमंत्री की चिट्ठी है जिसका नेता सरेआम कहता फिरता है - 'देखना छह महीने बाद युवा मोदी को डंडे मारेंगे...' और उसमें भी दिलचस्प ये जानना है कि कैसे अशोक गहलोत एक राजनीतिक बयान की व्याख्या व्याकरण के आधार पर साहित्यिक तरीके से करते हैं -
अभी तक तो यही मालूम था कि अशोक गहलोत पेशे से जादूगर हैं और उनकी राजनीति में उसका असर भी देखने को मिलता रहा है, लेकिन अब तो लगता है वो शब्दों के जरिये भी जादू का मायाजाल रचने में भी माहिर हैं. कहीं प्रध्रानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखा अशोक गहलोत का पत्र भी उनके जादू के पिटारे से निकला कोई राजनीतिक दांव तो नहीं है?
अशोक गहलोत की चिट्ठी
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे पत्र में सरकार गिराने के लिए बने दलबदल को लेकर दो पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी का जिक्र किया है. अशोक गहलोत लिखते हैं - पूर्व पीएम राजीव गांधी की सरकार द्वारा 1985 में बनाये गये दलबदल निरोधक कानून और अटल बिहारी वाजपेयी सरकार द्वारा किये गये संशोधन की भावनाओं और जनहित को दरकिनार करके पिछले कुछ समय से लोकतांत्रित तरीके से चुनी गई राज्य सरकारों को अस्थिर करने का प्रयास किया जा रहा है. ये जनमत का घोर अपमान और संवैधानिक मूल्यों की खुली अवहेलना है.
अपने पत्र में अशोक गहलोत ने लिखा है - राज्य सरकार को अस्थिर करने की कोशिश में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, बीजेपी के कई नेता और हमारी पार्टी के अति महत्वाकांक्षी नेता भी शामिल हैं.'
अशोक गहलोत ने कांग्रेस विधायक भंवर लाल शर्मा का नाम भी पत्र में लिखा है. कांग्रेस का दावा है कि भंवर लाल शर्मा और बीजेपी नेता के बीच ही डील हो रही थी - और एक वायरल ऑडियो क्लिप के आधार पर केस भी दर्ज कराया गया है जिसकी जांच के लिए SIT बना दी गयी है. बीजेपी नेता इस मामले की सीबीआई से जांच कराने की मांग कर रहे हैं.
भंवर लाल शर्मा को कांग्रेस ने सस्पेंड कर दिया है. अशोक गहलोत पत्र में प्रधानमंत्री मोदी को याद दिला रहे हैं कि भंवर लाल शर्मा वही नेता हैं जो कभी भैरों सिंह शेखावत की सरकार गिराने के लिए विधायकों की खरीद फरोख्त की कोशिश कर चुके हैं. देश के उपराष्ट्रपति रह चुके भैरों सिंह शेखावत बीजेपी की सरकार में राजस्थान के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं.
अशोक गहलोत ने पत्र के जरिये प्रधानमंत्री मोदी से ये भी कहा है कि हो सकता है ऐसी बातों की आपको पूरी जानकारी न हो - या फिर सभी चीजों की आपको ठीक ठीक जानकारी नहीं दी गयी हो. मतलब, अशोक गहलोत को लगता है कि प्रधानमंत्री मोदी को पूरा मामला अच्छी तरह मालूम होता या बीजेपी के लोग उनको सही जानकारी दिये होते तो राजस्थान में बीजेपी की तरफ से जिस चीज की उनको आशंका है वो सब नहीं होता. अगर ऐसा है तो आज के जमाने में ये दुर्लभ विश्वास है - और ऐसा नहीं है तो अशोक गहलोत की ओर से एक और राजनीतिक चाल समझा जा सकता है.
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