मां काली को शराब पीने और मांस खाने वाली देवी बताने वाली तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर लिखा कि 'सच कहा जाए, सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते में बदलाव लंबे समय से आत्मा में पूरा हो रहा है.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो नए संसद भवन की छत पर लगाए जाने वाले राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के अनावरण के बाद से ही अशोक स्तंभ के शेरों की सौम्यता को लेकर बौद्धिक जुगालियां चल रही हैं. वैसे, सवाल उठना लाजिमी है कि तुम्हारी काली शराब पी सकती है, हमारा शेर दहाड़ भी नहीं सकता?
छेड़छाड़ हुई है, लेकिन तस्वीर के साथ
अशोक स्तंभ विवाद में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह से छेड़छाड़ की बात कहते हुए इसे अपराध बताया जा रहा है. खैर, छेड़छाड़ तो की गई है. लेकिन, छेड़छाड़ इसकी तस्वीरों के एंगल के साथ हुई है. अशोक स्तंभ के शेरों की सोशल मीडिया पर जो तस्वीर वायरल हो रही है. वो नीचे की ओर से खींची गई है. जिससे राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के सिंहों का मुंह ज्यादा बड़ा और खुला हुआ नजर आ रहा है. जबकि, सामने से ली गई तस्वीरों और अशोक स्तंभ की अन्य कृतियों में भी शेरों का मुंह ऐसा ही है. आसान शब्दों में कहें, तो 'सौम्य' और 'शांत' शेरों की परिकल्पना वो वामपंथी कर रहे हैं, जो कहते हैं कि सत्ता हमेशा बंदूक की नली से निकलती है. खैर, शेर अपनी प्रकृत्ति के हिसाब से भी आक्रामक ही होता है.
सारनाथ और सेंट्रल विस्टा वाले अशोक स्तंभ में अंतर तो है, लेकिन...
नए संसद भवन पर लगाए जाने वाले अशोक स्तंभ को सारनाथ के स्तंभ के आधार पर बनाया गया है. सारनाथ का अशोक...
मां काली को शराब पीने और मांस खाने वाली देवी बताने वाली तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा ने ट्वीट कर लिखा कि 'सच कहा जाए, सत्यमेव जयते से सिंहमेव जयते में बदलाव लंबे समय से आत्मा में पूरा हो रहा है.' आसान शब्दों में कहा जाए, तो नए संसद भवन की छत पर लगाए जाने वाले राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के अनावरण के बाद से ही अशोक स्तंभ के शेरों की सौम्यता को लेकर बौद्धिक जुगालियां चल रही हैं. वैसे, सवाल उठना लाजिमी है कि तुम्हारी काली शराब पी सकती है, हमारा शेर दहाड़ भी नहीं सकता?
छेड़छाड़ हुई है, लेकिन तस्वीर के साथ
अशोक स्तंभ विवाद में राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह से छेड़छाड़ की बात कहते हुए इसे अपराध बताया जा रहा है. खैर, छेड़छाड़ तो की गई है. लेकिन, छेड़छाड़ इसकी तस्वीरों के एंगल के साथ हुई है. अशोक स्तंभ के शेरों की सोशल मीडिया पर जो तस्वीर वायरल हो रही है. वो नीचे की ओर से खींची गई है. जिससे राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह के सिंहों का मुंह ज्यादा बड़ा और खुला हुआ नजर आ रहा है. जबकि, सामने से ली गई तस्वीरों और अशोक स्तंभ की अन्य कृतियों में भी शेरों का मुंह ऐसा ही है. आसान शब्दों में कहें, तो 'सौम्य' और 'शांत' शेरों की परिकल्पना वो वामपंथी कर रहे हैं, जो कहते हैं कि सत्ता हमेशा बंदूक की नली से निकलती है. खैर, शेर अपनी प्रकृत्ति के हिसाब से भी आक्रामक ही होता है.
सारनाथ और सेंट्रल विस्टा वाले अशोक स्तंभ में अंतर तो है, लेकिन...
नए संसद भवन पर लगाए जाने वाले अशोक स्तंभ को सारनाथ के स्तंभ के आधार पर बनाया गया है. सारनाथ का अशोक स्तंभ करीब सवा दो मीटर का है. और, फिलहाल सारनाथ म्यूजियम में रखा हुआ है. वहीं, नए संसद भवन की छत पर स्थापित किए जाने वाले अशोक स्तंभ को 3D तकनीक से बनाया गया है. और, इसकी ऊंचाई 6.5 मीटर यानी करीब 21 फीट है. दरअसल, विपक्षी दल अशोक स्तंभ की 2D तस्वीरों से इसकी तुलना कर रहे हैं. वैसे, अशोक स्तंभ के शेरों की आकृति बड़ी हुई है, तो उनका मुंह भी बड़ा होगा. और, मुंह बड़ा होने पर शेरों के दांतों को यूं विपक्ष की आपत्ति पर हटाया नहीं जा सकता है.
सेंट्रल विस्टा का बायकॉट करने वाला विपक्ष अब लगा रहा न बुलाये जाने की रट
खैर, विपक्षी दलों ने अशोक स्तंभ को लेकर सियासी भूचाल लाने की हर संभव कोशिश शुरू कर दी है. विपक्षी दलों की ओर से कहा जा रहा है कि मोदी सरकार की ओर से किसी भी विपक्षी दल को आमंत्रित नहीं किया गया था. लेकिन, यहां बड़ी बात ये है कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के भूमिपूजन के कार्यक्रम में मोदी सरकार की ओर से बुलावा दिये जाने के बाद भी विपक्ष की ओर से कोई भी नेता कार्यक्रम में शामिल नही हुआ था. आसान शब्दों में कहा जाए, तो सेंट्रल विस्टा के कार्यक्रम का बायकॉट करने वाला विपक्ष अब केवल विरोध के लिए न बुलाये जाने की रट लगा रहा है.
परसेप्शन की छूट तो सभी को है
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी से लेकर अपने परसेप्शन और परिकल्पनाओं को संविधान की ओर से दिये गए अधिकार बताया जाता है. मां काली को शराब पीने वाली और मांस खाने वाली देवी बताने वाली महुआ मोइत्रा अपने इस परसेप्शन पर आखिरी दम तक टिकी रहने की बात कर रही हैं. रचनात्मक आजादी की बात करने वालों ने अपने परसेप्शन के हिसाब से ही मां काली को सिगरेट पीते और LGBTQ समुदाय का झंडा पकड़े दिखाया था. तो, अशोक स्तंभ को डिजाइन करने वाले कलाकार के लिए रचनात्मक आजादी को मजबूत किए जाने वाला ये परसेप्शन कहां गायब है?
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.