अब कहां ढूंढने जाओगे, हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्जाम, हमी पर रख दो.
मशहूर शायर राहत इंदौरी ने ये शेर शायद ईवीएम (EVM) के लिए ही लिखा होगा. ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों के आरोपों को देखते हुए यही सही भी लगता है. आम दिनों में चुनाव के बाद नतीजे आने पर हारने वाले राजनीतिक दलों का सीधा टार्गेट ईवीएम होती है. ईवीएम के साथ हारने वाले राजनीतिक दल ऐसा व्यवहार करते हैं कि अगर गलती से ईवीएम कोई शख्स होता, तो शायद बार-बार की इस प्रताड़ना से बचने के लिए आत्महत्या कर लेता. वैसे ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों (भाजपा भी शामिल है) का दृष्टिकोण बद से बदतर है. ये राजनीतिक दल किसी दूसरे राज्य में चुनाव जीतते हैं, तो ईवीएम सही है. वहीं, हारने पर इसी ईवीएम पर सवाल उठाए जाने लगते हैं. हाल ही में असम में भाजपा उम्मीदवार से जुड़ी एक गाड़ी में ईवीएम मिलने पर बवाल मचा हुआ है. चुनाव आयोग ने इस मामले में ईवीएम ले जा रही पूरी टीम को निलंबित कर दिया है. किसी भी तरह की आशंका को खत्म करने के लिए उस बूथ पर फिर से मतदान कराने की घोषणा कर दी है. इन सबके बावजूद राजनीतिक दलों और कथित पत्रकारों के निशाने पर फिर से ईवीएम आ गई है. चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण और विश्वनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
लोकतंत्र में संविधान के हिसाब से सबको हर चीज करने और कहने की आजादी है. सोशल मीडिया के इस दौर में किसी भी मामले में 'कमजोर कड़ी' के सहारे उस पूरी घटना का पोस्टमार्टम कर दिया जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा उम्मीदवार ने गलती (वह खुद कार में मौजूद नहीं थे) की थी. उनके ड्राइवर ने पोलिंग पार्टी को कार में लिफ्ट दी, जिसकी वजह से पोलिंग पार्टी की कथित मदद...
अब कहां ढूंढने जाओगे, हमारे कातिल
आप तो कत्ल का इल्जाम, हमी पर रख दो.
मशहूर शायर राहत इंदौरी ने ये शेर शायद ईवीएम (EVM) के लिए ही लिखा होगा. ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों के आरोपों को देखते हुए यही सही भी लगता है. आम दिनों में चुनाव के बाद नतीजे आने पर हारने वाले राजनीतिक दलों का सीधा टार्गेट ईवीएम होती है. ईवीएम के साथ हारने वाले राजनीतिक दल ऐसा व्यवहार करते हैं कि अगर गलती से ईवीएम कोई शख्स होता, तो शायद बार-बार की इस प्रताड़ना से बचने के लिए आत्महत्या कर लेता. वैसे ईवीएम को लेकर राजनीतिक दलों (भाजपा भी शामिल है) का दृष्टिकोण बद से बदतर है. ये राजनीतिक दल किसी दूसरे राज्य में चुनाव जीतते हैं, तो ईवीएम सही है. वहीं, हारने पर इसी ईवीएम पर सवाल उठाए जाने लगते हैं. हाल ही में असम में भाजपा उम्मीदवार से जुड़ी एक गाड़ी में ईवीएम मिलने पर बवाल मचा हुआ है. चुनाव आयोग ने इस मामले में ईवीएम ले जा रही पूरी टीम को निलंबित कर दिया है. किसी भी तरह की आशंका को खत्म करने के लिए उस बूथ पर फिर से मतदान कराने की घोषणा कर दी है. इन सबके बावजूद राजनीतिक दलों और कथित पत्रकारों के निशाने पर फिर से ईवीएम आ गई है. चुनाव आयोग के स्पष्टीकरण और विश्वनीयता पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं.
लोकतंत्र में संविधान के हिसाब से सबको हर चीज करने और कहने की आजादी है. सोशल मीडिया के इस दौर में किसी भी मामले में 'कमजोर कड़ी' के सहारे उस पूरी घटना का पोस्टमार्टम कर दिया जाता है. इसमें कोई शक नहीं है कि भाजपा उम्मीदवार ने गलती (वह खुद कार में मौजूद नहीं थे) की थी. उनके ड्राइवर ने पोलिंग पार्टी को कार में लिफ्ट दी, जिसकी वजह से पोलिंग पार्टी की कथित मदद अब उनके ही गले की फांस बन गई है. तमाम मीडिया रिपोर्ट्स में सामने आया है कि जिस कार में ईवीएम पाई गई वह करीमगंज जिले के पथरकांडी विधानसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल की पत्नी की थी. लेकिन, इन्हीं रिपोर्ट्स में ये भी कहा गया है कि ईवीएम भाजपा प्रत्याशी के पथरकांडी विधानसभा क्षेत्र से न जुड़ी होकर रताबारी विधानसभा क्षेत्र की थी. अगर इस पर बात की जाएगी, तो चुनाव आयोग और ईवीएम पर सवाल कैसे उठाए जाएंगे. उनकी साख पर बट्टा कैसे लगाया जाएगा.
चुनाव आयोग की फैक्ट रिपोर्ट में साफ किया गया है कि पोलिंग अफसरों ने बिना गाड़ी के मालिक की जानकारी किए लिफ्ट लेने की गलती करी. चुनाव आयोग को भेजी गई अपनी रिपोर्ट में स्पेशल जनरल ऑब्जर्वर ने कहा है कि पोलिंग पार्टी की लापरवाही और मूर्खता की वजह से यह घटना हुई है. लेकिन, राजनीतिक दलों के लिए यह बयान कहां मायने रखता है. अगर इस रिपोर्ट पर ध्यान देंगे, तो राजनीति कैसे की जा पाएगी. विपक्षी दल पर आरोप कैसे लगाए जाएंगे. वैसे, गाड़ी में तोड़-फोड़ और उत्पात मचाने वाली भीड़ में शामिल लोग एआईयूडीएफ और कांग्रेस के समर्थक थे. पोलिंग पार्टी के लोगों को जान बचाने के लिए ईवीएम छोड़कर वहां से भागना पड़ा. क्या इस मामले पर ये सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए कि भीड़ ने इस कथित धांधली के लिए अपने नेताओं या पुलिस अधिकारियों से संपर्क करने की बजाय खुद से ही फैसला करने की क्यों ठान ली.
भारत में सबसे आसान चीज है, किसी पर भी सवाल उठा देना. असम के करीमगंज जिले में पथरकांडी से भाजपा प्रत्याशी कृष्णेंदु पॉल ने एक बयान में कहा है कि उनके ड्राइवर ने मानवता के नाते पोलिंग पार्टी की मदद की थी. अगर राजनीतिक दल और कथित पत्रकार भीड़ को 'बेनिफिट ऑफ डाउट' देने को राजी हैं, तो उस ड्राइवर को क्यों नहीं दे रहे हैं. राजनीतिक चश्मा हटाकर देखेंगे, तो आपको समझ आ जाएगा कि एक आम आदमी ने कुछ लोगों को फंसा देखा और उनकी मदद कर दी. लेकिन, राजनीतिक चश्मे के साथ ये आदमी 'भाजपा' प्रत्याशी का ड्राइवर हो जाता है. मामला बहुत ही साफ है, लेकिन ईवीएम से जुड़ा है, तो इसे पेचीदा बनाया जाना लाजिमी है. आखिर चुनावी हार-जीत के बाद कोई तो होना ही चाहिए, जिस पर इल्जाम थोपा जा सके.
हाल ही में एक फिल्म 'रॉकेट्री' का ट्रेलर रिलीज हुआ है. इसमें अभिनेता आर. माधवन एक डायलॉग कहते नजर आते हैं कि किसी को बर्बाद करना हो, तो एलान कर दो वो देशद्रोही है. फिल्म इसरो (ISRO) के पूर्व वैज्ञानिक नंबी नारायण की कहानी पर बनी है. वैसे, भारत की स्वायत्त संस्थाओं पर भी तकरीबन ऐसे ही हमले किए जा रहे हैं. ईवीएम के साथ तो ये हर बार होता ही है. इस बार एक आम सा ड्राइवर (जो गलती और संयोग से भाजपा नेता का था) मदद के नाम पर इस झमेले में फंस गया है. इसके बाद अब ये ड्राइवर गलती से भी राह चलते किसी की मदद करने की कोशिश नहीं करेगा. कुल मिलाकर इस पूरे मामले को देखकर ये कहा जा सकता है कि ईवीएम के मामले में जो बवाल मचा है, उस पर सवाल तो उठने ही चाहिए, लेकिन थोड़े अलग.
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