आज़ादी के समय, पूर्वोत्तर भारत में असम मणिपुर और त्रिपुरा की रियासतें शामिल थीं. नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को 1963 और 1987 के बीच असम के बड़े क्षेत्र से अलग करके बनाया गया था. राज्यों को अलग उनके इतिहास और इन इकाइयों में रहने वाले लोगों की सांस्कृतिक पहचान के आधार पर किया गया था.
असम और मिजोरम लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं. मिजोरम में सीमावर्ती जिले आइजोल, कोलासिब और ममित हैं जबकि असम में वे कछार, करीमगंज और हैलाकांडी हैं.
औपनिवेशिक विरासत
विडंबना यह है कि असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद 1987 में तब नहीं उठा जब मिजोरम को अपनी वर्तमान पहचान मिली. यह विवाद 19वीं सदी में औपनिवेशिक काल का है.
उस समय, यह क्षेत्र ब्रिटिश शासकों के नियंत्रण में था, जिन्होंने लुशाई पहाड़ियों (जिसे उस समय मिजोरम के रूप में जाना जाता था) और कछार पहाड़ियों (असम में) के बीच की सीमा का सीमांकन किया था. इसके लिए 1873 में एक विनियमन या अधिसूचना जारी की गई थी.
इसे 1873 का बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (बीईएफआर) कहा गया, जिसने इनर लाइन रेगुलेशन को परिभाषित किया, जिसे इनर-लाइन परमिट (आईएलपी) सिस्टम के रूप में जाना जाता है.
जबकि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से बीईएफआर हटा लिया गया था, यह मिजोरम और नागालैंड में लागू रहा. मिजोरम ने 1993 की लुशाई हिल्स अधिसूचना की इनर लाइन के साथ इसका समर्थन किया. मिजोरम इस अधिसूचना को असम के साथ सीमा के परिसीमन के आधार के रूप में बनाने पर जोर देता है.
1873-विनियमन के आधार पर, मिजोरम 148 साल पहले अधिसूचित इनर-लाइन रिजर्व फ़ॉरेस्ट के 509-वर्ग-मील या लगभग 1,318 वर्ग किमी क्षेत्र का दावा करता...
आज़ादी के समय, पूर्वोत्तर भारत में असम मणिपुर और त्रिपुरा की रियासतें शामिल थीं. नागालैंड, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और मिजोरम को 1963 और 1987 के बीच असम के बड़े क्षेत्र से अलग करके बनाया गया था. राज्यों को अलग उनके इतिहास और इन इकाइयों में रहने वाले लोगों की सांस्कृतिक पहचान के आधार पर किया गया था.
असम और मिजोरम लगभग 165 किमी की सीमा साझा करते हैं. मिजोरम में सीमावर्ती जिले आइजोल, कोलासिब और ममित हैं जबकि असम में वे कछार, करीमगंज और हैलाकांडी हैं.
औपनिवेशिक विरासत
विडंबना यह है कि असम और मिजोरम के बीच सीमा विवाद 1987 में तब नहीं उठा जब मिजोरम को अपनी वर्तमान पहचान मिली. यह विवाद 19वीं सदी में औपनिवेशिक काल का है.
उस समय, यह क्षेत्र ब्रिटिश शासकों के नियंत्रण में था, जिन्होंने लुशाई पहाड़ियों (जिसे उस समय मिजोरम के रूप में जाना जाता था) और कछार पहाड़ियों (असम में) के बीच की सीमा का सीमांकन किया था. इसके लिए 1873 में एक विनियमन या अधिसूचना जारी की गई थी.
इसे 1873 का बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन (बीईएफआर) कहा गया, जिसने इनर लाइन रेगुलेशन को परिभाषित किया, जिसे इनर-लाइन परमिट (आईएलपी) सिस्टम के रूप में जाना जाता है.
जबकि असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों से बीईएफआर हटा लिया गया था, यह मिजोरम और नागालैंड में लागू रहा. मिजोरम ने 1993 की लुशाई हिल्स अधिसूचना की इनर लाइन के साथ इसका समर्थन किया. मिजोरम इस अधिसूचना को असम के साथ सीमा के परिसीमन के आधार के रूप में बनाने पर जोर देता है.
1873-विनियमन के आधार पर, मिजोरम 148 साल पहले अधिसूचित इनर-लाइन रिजर्व फ़ॉरेस्ट के 509-वर्ग-मील या लगभग 1,318 वर्ग किमी क्षेत्र का दावा करता है. मामले में दिलचस्प ये कि असम अपना कोई भी क्षेत्र छोड़ने को तैयार नहीं है.
1993 की अधिसूचना के बाद, विशेष रूप से 1995 के बाद सीमा विवाद को सुलझाने के लिए कई प्रयास किए गए, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण ये रहा कि ये अनसुलझे रहे. 2005 में, सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि विवाद को सुलझाने के लिए केंद्र सरकार एक सीमा आयोग का गठन करे.
मिजोरम सरकार ने एक सीमा आयोग का गठन किया है और इसके बारे में केंद्र को आधिकारिक रूप से सूचित किया है. मिजोरम का सीमा आयोग इस समय अपने मामले को मजबूत तरीके से पेश करने के लिए पुराने नक्शों और दस्तावेजों की गहनता से जांच कर रहा है ताकि विवाद का निपटारा जल्द से जल्द हो.
क्या है वर्तमान स्थिति
असम-मिजोरम सीमा क्षेत्र में वर्तमान तनाव जून में उत्पन्न हुआ जब असम और मेघालय सीमा को लेकर एक दूसरे से उलझे हुए थे. 30 जून को, मिजोरम ने असम पर सीमावर्ती जिलों में से एक - कोलासिब में अपनी भूमि पर अतिक्रमण करने का आरोप लगाया.
बदले में, असम ने मिजोरम पर अपने इलाके में अवैध निर्माण और सुपारी और केले के पौधे लगाने का आरोप लगाया था. असम ने कहा था कि मिजोरम ने इन गतिविधियों को असम के सीमावर्ती जिलों में से एक हैलाकांडी के दस किलोमीटर अंदर अंजाम दिया.
असम पुलिस को मिजोरम के कोलासिब जिले में वैरेंगटे से लगभग पांच किलोमीटर दूर एतलांग ह्नार पर नियंत्रण करने का आदेश दिया गया था. मिजोरम में अधिकारियों और आम लोगों ने असम के अधिकारियों को वापस लौटने के लिए मजबूर किया. तनाव बढ़ गया और वरिष्ठ अधिकारी मेज पर चर्चा के लिए उपस्थित हुए.
फिर 10 जुलाई को खबरें आईं कि असम के अधिकारियों ने मिजोरम के कोलासिब जिले के बुराचेप में 'अतिक्रमण विरोधी अभियान' चलाया. असम ने कहा कि यह उसकी सीमा के किनारे पर है. तनाव बढ़ गया और यहीं पर असम सरकार की एक टीम पर ग्रेनेड से हमला हुआ.
25 जुलाई को कथित तौर पर मिज़ो किसानों से संबंधित आठ झोपड़ियों को जला दिया गया. इससे तनाव बड़ी हिंसा में परिवर्तित हुआ और पूरे इलाके में फैल गया. परिणामस्वरूप हुई इस झड़प में असम के पांच पुलिस कर्मियों की मौत हो गई और 50 से अधिक पुलिसवाले घायल हो गए.
क्या कहते हैं नेता?
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा पूर्वोत्तर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक करने के दो दिन बाद हाल की झड़पें हुईं. बैठक में सीमा विवाद पर चर्चा हुई और नेताओं ने कहा कि अब वो समय आ गया है जब क्षेत्रीय विवादों को जल्द से जल्द सौहार्दपूर्ण ढंग से जल्द से जल्द सुलझा लिया जाए.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने अरुणाचल प्रदेश और मेघालय के साथ सौहार्दपूर्ण वार्ता की ओर इशारा किया. सरमा ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि मिजोरम के साथ असम का सीमा विवाद शांतिपूर्ण ढंग से सुलझा लिया जाएगा.
मिजोरम के मुख्यमंत्री ज़ोरमथांगा ने सीमा विवादों को औपनिवेशिक विरासत बताया और इस बात पर जोर दिया कि विवादों को हल किए बिना राज्यों के क्षेत्रों के बीच स्थायी शांति हासिल नहीं की जा सकती.
हिंसा के बाद, सरमा और जोरमथंगा दोनों ने ट्वीट कर असम-मिजोरम सीमा पर स्थिति के लिए दूसरे पक्ष को जिम्मेदार ठहराया. दोनों ने अमित शाह से हस्तक्षेप की मांग की.
राजनीतिक रूप से, भाजपा मुश्किल में पड़ सकती है क्योंकि वह असम और मिजोरम दोनों राज्यों में सरकार का हिस्सा है. असम में, भाजपा ने हाल ही में अपना दूसरा चुनाव जीता है. मिजोरम में, 40 सदस्यीय विधानसभा में एक विधायक वाली भाजपा मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) की सहयोगी है जो सरकार का नेतृत्व करती है.
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