खबर आई कि हरियाणा सरकार शिक्षकों को पुजारी की ट्रेनिंग दे रही है. और जो इस ट्रेनिंग में नहीं जा रहे हैं, उनको सजा मिल रही है. फिर क्या था, कुछ लोगों ने इस हरियाणा की बीजपी सरकार को भगवा एजेंडा बता डाला. कुछ ने तो इसे शिक्षा के भगवाकरण से भी जोड़ दिया.
बस फिर क्या था बवाल कटना था सो कटा और ऐसा कटा कि कांग्रेस पार्टी इस बहती गंगा में पूरी डुबकी लगाने लग गई. सबसे पहले टाइम्स नाऊ ने इस खबर को चलाया और कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने इसे ट्वीट कर दिया और हरियाणा सरकार पर शिक्षा के भगवाकरण का आरोप लगाया.
हालांकि खट्टर सरकार ने ऐसे किसी आदेश से इंकार कर दिया है. मामले में भाजपा नेता जवाहर यादव ने सफाई देते हुए कहा कि- "सरकार के आदेश को गलत समझा गया है. सरकार ने शिक्षकों के पुजारी बनने का कोई आदेश नहीं दिया. बल्कि शिक्षकों को सिर्फ प्रसाद वितरण का काम दिया गया था."
30 अक्टूबर से राज्य के यमुनानगर में 6 दिवसीय सालाना 'कपाल मोचन' महोत्सव के सिलसिले में एक तुगलकी फरमान जारी किया है. सरकार ने सभी सरकारी शिक्षकों को पुजारी की ड्यूटी के लिए ट्रेनिंग लेने और प्रसाद बांटने का आदेश दिया था. जो शिक्षक इसमें शामिल नहीं हुए उनके लिए कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया.
इंडियन एक्सप्रेस ने मामले की पड़ताल करते हुए बताया है कि 2013 में कांग्रेस के शासन के समय ही 130 शिक्षकों को पुजारी के रूप में मेला ड्यूटी में लगाया गया था. तभी से ऐसा लगातार किया जा रहा है. शिक्षकों को पूजा कराने के लिए नहीं बल्कि प्रसाद बांटने के लिए नियुक्त किया गया था." वहीं हरियाणा बीजेपी के मीडिया इंचार्ज राजीव जैन तर्क देते हैं कि कपाल मोचन' महोत्सव में साल में एक बार होने वाली इस पूजा के लिए सरकार कोई स्थायी नियुक्ति नहीं कर सकती.
शिक्षकों को पुजारी तो कांग्रेस सरकार भी बनाती थी (फोटो साभार- इंडियन एक्सप्रेस)
उधर कांग्रेस की हरियाणा सरकार में 2009 से अक्टूबर 2014 तक शिक्षा मंत्री रही गीता भुक्कल ने इस बात से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने भाजपा पर आरोप लगाते हुए कहा- "मेरे शिक्षा मंत्री रहते ऐसी कोई भी व्यवस्था मेरी जानकारी में नहीं आई थी. ये सिर्फ शिक्षा व्यवस्था के भगवाकरण का प्रयास है. शिक्षक पहले से ही योगा डे, स्वच्छता अभियान, बेटी बचाओ कैंपेन, मैराथन रेस, बच्चे पीएम के 'मन की बात' सुन सकें इसके लिए रेडियो की व्यवस्था करने के बोझ से दबे हैं. हरियाणा में वैसे भी शिक्षकों की भारी कमी है."
चलिए ये तो हुई आरोप-प्रत्यारोप की बात. लेकिन गीता भुक्कल जी और सुरजेवाला साहब से मेरा एक सवाल है. अगर वो इसका जवाब देंगे तो अच्छा होगा. भाजपा की शिकायत जायज है कि हरियाणा के स्कूलों में शिक्षकों की कमी है, ऐसे में इस तरह के सरकारी प्रायोजनों में उनको लगाना छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करना है. लेकिन इस हिसाब से तो फिर शिक्षकों का चुनावी ड्यूटी लगाना, पोलियो ड्रॉप पिलाने की ड्यूटी लगाना, जनगणना, मतदाता पहचान पत्र बनवाने इत्यादि हर काम के लिए उनकी नियुक्ति गलत है. फिर कांग्रेस की सरकार क्यों सालों से शिक्षकों को ये काम सौंपती रहती थी. क्या तब कांग्रेस शिक्षा का 'मजदूरीकरण' नहीं कर रही थी? दूसरी बात कि किसी भी विभाग के आदेश को सरकार का आदेश बिलकुल माना जा सकता है. क्योंकि कोई भी सरकारी विभाग शासन की मंशा के विपरीत फैसले नहीं ले सकता है. लेकिन शिक्षकों को पुजारी की ड्यूटी लगाने के मामले में यह पहल कांग्रेस शासन के समय ही हुई थी.
मेरे भईया हमेशा कहा करते थे- "अरे लड़की लोग के लिए सबसे अच्छा जॉब होता है टीचिंग. एकदम आराम चैन की जिंदगी होती है. सुबह 8 बजे जाना है और 2 बजे घर. मन हो तो बच्चा लोग को पढ़ाओ न मन हो मत पढ़ाओ. कोई चिकचिक-झिकझिक नहीं." फिर एक दिन हमारे घर का दरवाजा बजा, भइया ने दरवाजा खोला. देखा दो महिलाएं खड़ी हैं. उनमें से एक बोलीं- "हम लोग मिडिल स्कूल के टीचर हैं. आपके घर कोई बच्चा है? हमलोग पोलियो का ड्रॉप पिलाने आए हैं 5 साल से कम उम्र के बच्चों को." इसी तरह एक दिन शिक्षक की चुनाव ड्यूटी लग गई. तो कभी जन गणना के अलावे जानवरों की गणना के लिए भी लगा दिया गया. कभी राशन कार्ड वेरिफिकेशन कराने का काम दे दिया गया. कभी फोटो पहचान पत्र का काम थमाया गया. तो कुल मिलाकर मामला ये समझ आया कि टीचर का मतलब सिर्फ बच्चों को पढ़ाना ही नहीं है.
अब शिक्षक यदि इसी क्रम में पुजारी बनाए जा रहे हैं तो यह इस देश का दुर्भाग्य ही है. कांग्रेस ने यदि गलत परंपरा शुरू की थी, तो हरियाण्ाा की बीजेपी सरकार के पास मौका है कि वह शिक्षकों को इस तरह के फिजूल काम से मुक्ति दिला दे.
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