चाहे वह प्रधान मंत्री रहे हों या फिर सांसद, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ के आम लोगों के लिए सिर्फ 'अटल जी' थे. जहां रहकर न सिर्फ उन्होंने लोकसभा के लगातार 5 कार्यकाल पूरे किये बल्कि पूरे शहर को अपना मुरीद बना दिया.
वाजपेयी कई मायनों में अद्वितीय थे
1991 से 2009 तक जब अटल ने लखनऊ का प्रतिनिधित्व किया, उन्हें आम लोगों से खूब स्नेह मिला. अपनी पार्टी के कई नेताओं के विपरीत, अटल का समर्थन और सहयोग समाज के हर वर्ग ने किया. अटल को लेकर ये बात भी मशहूर है कि जिस तरह इन्हें लखनऊ की मुस्लिम आबादी के बीच हाथों हाथ लिया जाता था उसने पार्टी के कई शीर्ष नेताओं तक को हैरत में डाल दिया था. ध्यान रहे लखनऊ की स्थानीय मुस्लिम आबादी ने हमेशा ही अटल जी का सहयोग किया और वो उनके साथ खड़ी दिखी.
मुझे आज भी याद है कि, उस वक़्त मैं कितना आश्चर्य में पड़ा था जब मैंने 1999 में मुस्लिम युवाओं के एक समूह को अटल बिहारी वाजपेयी के लिए चुनाव प्रचार करते देखा. कुछ समय के लिए तो मुझे संदेह हुआ कि क्या वो युवक वाकई मुस्लिम हैं, जो इतनी निष्ठा से अटल के लिए प्रचार कर रहे हैं. मुझे इस बात को स्वीकार करने में बिल्कुल भी परहेज नहीं है कि उस वक़्त अपना संदेह दूर करने के लिए मैंने उन मुस्लिम युवाओं की डिटेल को क्रॉस चेक किया था. उसके बाद अटल जी के विश्वासपात्रों में शामिल और उनके मुख्य सहयोगी लाल जी टंडन मुझे कुछ वरिष्ठ मुस्लिम लोगों के पास ले गए जिन्होंने मुझे समझाया कि ये अटल जी का करिश्माई व्यक्तित्व और कार्य करने की शैली ही है जो अटल बिहारी वाजपेयी को आम मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय बनाती है.
एक किस्सा और है. एक बुज़ुर्ग मुस्लिम ने मुझे...
चाहे वह प्रधान मंत्री रहे हों या फिर सांसद, पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ के आम लोगों के लिए सिर्फ 'अटल जी' थे. जहां रहकर न सिर्फ उन्होंने लोकसभा के लगातार 5 कार्यकाल पूरे किये बल्कि पूरे शहर को अपना मुरीद बना दिया.
वाजपेयी कई मायनों में अद्वितीय थे
1991 से 2009 तक जब अटल ने लखनऊ का प्रतिनिधित्व किया, उन्हें आम लोगों से खूब स्नेह मिला. अपनी पार्टी के कई नेताओं के विपरीत, अटल का समर्थन और सहयोग समाज के हर वर्ग ने किया. अटल को लेकर ये बात भी मशहूर है कि जिस तरह इन्हें लखनऊ की मुस्लिम आबादी के बीच हाथों हाथ लिया जाता था उसने पार्टी के कई शीर्ष नेताओं तक को हैरत में डाल दिया था. ध्यान रहे लखनऊ की स्थानीय मुस्लिम आबादी ने हमेशा ही अटल जी का सहयोग किया और वो उनके साथ खड़ी दिखी.
मुझे आज भी याद है कि, उस वक़्त मैं कितना आश्चर्य में पड़ा था जब मैंने 1999 में मुस्लिम युवाओं के एक समूह को अटल बिहारी वाजपेयी के लिए चुनाव प्रचार करते देखा. कुछ समय के लिए तो मुझे संदेह हुआ कि क्या वो युवक वाकई मुस्लिम हैं, जो इतनी निष्ठा से अटल के लिए प्रचार कर रहे हैं. मुझे इस बात को स्वीकार करने में बिल्कुल भी परहेज नहीं है कि उस वक़्त अपना संदेह दूर करने के लिए मैंने उन मुस्लिम युवाओं की डिटेल को क्रॉस चेक किया था. उसके बाद अटल जी के विश्वासपात्रों में शामिल और उनके मुख्य सहयोगी लाल जी टंडन मुझे कुछ वरिष्ठ मुस्लिम लोगों के पास ले गए जिन्होंने मुझे समझाया कि ये अटल जी का करिश्माई व्यक्तित्व और कार्य करने की शैली ही है जो अटल बिहारी वाजपेयी को आम मुस्लिमों के बीच लोकप्रिय बनाती है.
एक किस्सा और है. एक बुज़ुर्ग मुस्लिम ने मुझे बताया कि, आप आज मुस्लिम समुदाय में जो आर्थिक सम्पन्नता देख रहे हैं उसका एक अहम कारण अटल बिहारी वाजपेयी हैं. 1977-80 के बीच जब वो विदेश मंत्री थे तो ये उनका ही प्रयास था जिसके चलते उन्होंने भारतीय मुस्लिमों के लिए मिडिल ईस्ट के द्वार खोले.
इस घटना के कुछ समय के बाद, पुनः वाजपेयी के चुनाव को कवर करते हुए मेरा सामना कुछ ऐसे मुस्लिम युवकों से हुआ. युवकों ने अपना जीवन और आर्थिक/ सामाजिक स्थिति सुधारने के लिए अटल जी का साधुवाद किया. खैर, ये वाजपेयी ही थे जिन्होंने लाल जी टंडन को आदेश दिया कि वो लखनऊ के कुछ खास हिस्सों का विकास कराएं. बता दें कि अटल के उस आदेश से पहले ऐसे हिस्सों की स्थिति बहुत दयनीय थी और जल निकासी, सड़कें, बिजली उन हिस्सों की कई दशकों से एक प्रमुख समस्या थी. हालांकि वाजपेयी आरएसएस से उठकर आए थे मगर उनका नरम बर्ताव, आसान पहुंच और द्वेष के प्रति स्वमताभिमान ने कभी उनकी छवि ऐसी नहीं बनने दी जिसके चलते कोई उन्हें एक कट्टर हिंदुत्व आइकन मानें.
बहुत ही सीमित संसाधनों में जीवन यापन करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी कुछ बहुत ज्यादा हासिल करने की इच्छा नहीं की. आज जब हम नेताओं को राज्य के खर्च पर तमाम तरह के यश और वैभव के साथ जीवन जीते और बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूमते देखते हैं. तो लगता है कि एक लम्बे समय तक लखनऊ की सेवा करने वाले और एक बड़ा नाम होने के बावजूद अटल बिहारी वाजपेयी ने कभी अपने आराम की परवाह ही नहीं की. न ही कभी उन्होंने अपने रहने के लिए बड़े और आलीशान बंगले की मांग की. बल्कि उन्होंने अपने रहने के लिए राज्य की राजधानी के एक बेहद साधारण से इलाके में 3 बेडरूम सेट का चयन किया. अटल जी के बारे में ये भी मशहूर है कि जब भी वो शहर में होते थे तो उनके घर के दरवाजे सभी के लिए खुले होते थे.
अपने लखनऊ आगमन पर कई मौके ऐसे आए हैं जब अटल जी को शहर के आम नागरिकों से बातचीत करते हुए देखा गया है. वो चाहे उनकी कविताएं हो या फिर मजाहिया वन लाइनर्स वो अक्सर उन्हें लोगों को सुनाते हुए पाए गए हैं. पत्रकारों को कभी उनसे मिलने के लिए अपॉइंटमेंट की जरूरत नहीं होती थी. वो सीधे आकर उनसे मिल सकते थे और अपनी बातें पूछ सकते थे. अपने मुख्य सहयोगी शिव कुमार का उन्होंने निर्देशित किया था कि उनके पास आने वाले जिस भी व्यक्ति को समस्या हो उसका निवारण किया जाए.
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि चाहे सत्ता में कोई भी बैठा हो, वाजपेयी की सिफारिशें - चाहे वो चिकित्सा उपचार के लिए गरीबों की मदद करना हो, या कुछ छोटी मोटी शिकायतों का निवारण. उन्होंने इसे कभी अनदेखा नहीं किया.
अटल बिहारी वाजपेयी की सबसे बड़ी खासियत ये भी थी कि भले ही वो मामलों के शीर्ष पर बैठे थे और मैक्रो स्तर पर योजनाओं के लिए प्लानिंग कर रहे थे. मगर वो जमीनी मुद्दों से जुड़े थे और माइक्रो लेवल के मुद्दों पर नजरें बनाए हुए थे. और निश्चित रूप से उनका संसदीय क्षेत्र इसमें शामिल था, जहां उन्हीं के कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण योजनाओं की शुरुआत की गई. बात अगर कुछ प्रमुख स्कीमों की हो तो लखनऊ की पहली रिंग रोड जिसे 'शहीद पथ' के नाम से जाना गया और कई आधुनिक सीवेज उपचार संयंत्र ये सब लखनऊ में अटल जी के ही कार्यकाल में बने.
अटल बिहारी वाजपेयी का शुमार उन चुनिन्दा व्यक्तियों में था जो सबके थे. बात अगर अटल बिहारी की सक्सेज स्टोरीज की हो तो, तमाम तरह के वैचारिक मतभेद होने के बावजूद जिस तरह वो लोगों को साथ लेकर चलते थे वो अपने आप में अतुलनीय है. अटल सबको साथ लेकर चलने की कला में पूर्ण रूप से सक्षम थे.'
इसके अलावा अटल बिहारी वाजपेयी की एक अन्य खासियत ये भी थी कि उन्होंने कभी इस बात को अपनी प्रतिष्ठा का मुद्दा नहीं बनाया जब किन्हीं कारणों से पार्टी नेताओं द्वारा उनकी बात नहीं सुनी गई. यदि इस बात को हमें समझना हो तो हम बाबरी मस्जिद विध्वंस की घटना या फिर 2002 के गुजरात दंगे देख लें. वाजपेयी कभी नहीं चाहते थे कि ऐसा कुछ हो जिससे देश की अखंडता पर आंच आए. जब भी मौका आया वाजपेयी ने बताया कि इन दोनों ही घटनाओं के होने से उन्हें कितना दुःख हुआ था.
वाजपेयी को लखनऊ से प्रेम था या फिर ये कि लखनऊ भी वाजपेयी से प्रेम करता था. मध्यप्रदेश के ग्वालियर निवासी अटल बिहारी वाजपेयी को जिस तरह लखनऊ और वहां की जनता ने हाथों हाथ लिया वो अपने आप में अद्भुत है. वाजपेयी ने भी हमेशा लखनऊ की गंगा-जमुनी तहजीब की चर्चा और प्रशंसा करने में कहीं कोई कमी नहीं छोड़ी.
वाजपेयी खाने और खिलाने के शौकीन थे.अपने इस गुण को संतुष्ट करने के लिए वो खुद कई बार लखनऊ के चौक स्थित राम आसरे की दुकान गए और अपनी पसंदीदा मिठाई खाई साथ ही चौक जाकर उन्होंने वहां 'राजा की ठंडई' पीने में भी संकोच नहीं किया.
अटल जी सक्रिय राजनीति से लम्बे समय से गायब थे. लखनऊ हमेशा अपने इस जननायक को याद रखेगा जो अपनी साफगोही और ईमानदारी के अलावा अपोनी इन कहानियों के लिए जाना जाता है.
ये भी पढ़ें -
'मेरे अटल जी', जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने दिवंगत नेता के बारे में लिखा
Atal Bihari Vajpayee Death: उनकी छवि में, हर शख्स की छवि है
क्यों अटल बिहारी वाजपेयी का पुनर्जन्म जरूरी है
इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.