'काल के कपाल पर लिखने मिटाने वाले' एक ओजस्वी वक्ता और सर्वमान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे. अटल को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा, हर कोई इस महान आत्मा के अंतिम दर्शन करना चाहता था. विशाल जनसैलाब और अटल बिहारी वाजपेयी 'अमर रहें' के गगनचुंबी नारों के बीच लोगों का भारी हुजूम स्मृति स्थल की और बढ़ता चला जा रहा था. लोग अपनी भावनाओं को चाह कर भी काबू नहीं कर पा रहे थे.
अटल बिहारी वाजपेयी एक कालजयी नेता थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में कई बार मौत का नजदीक से दीदार किया था. लेकिन मौत के बारे में उनके विचार जानकर आप की नजरों में उनका सम्मान पहले से कई गुना बढ़ जायेगा. ऐसे तो उन्होंने मौत से हुई अपनी मुठभेड़ पर कई कविताएं लिखीं लेकिन एक कविता ऐसी है जिससे कोई भी उनके विराट व्यक्तित्व का मुरीद हो जाए. मौत पर मातम मनाने की परम्परा को छोड़कर उत्सव मनाने का संकल्प कोई महान आत्मा ही कर सकता है.
तन पर पहरा, भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।
जन्मदिवस पर हम इठलाते,
क्यों न मरण-त्योहार मनाते,
अंतिम यात्रा के अवसर पर,
आंसू का अपशकुन होता है।
अंतर रोए, आंख न रोए,
धुल जाएंगे स्वप्न संजोए,
छलना भरे विश्व में
केवल सपना ही तो सच होता है।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली-गली...
'काल के कपाल पर लिखने मिटाने वाले' एक ओजस्वी वक्ता और सर्वमान्य नेता अटल बिहारी वाजपेयी हमारे बीच नहीं रहे. अटल को अंतिम विदाई देने के लिए जनसैलाब उमड़ पड़ा, हर कोई इस महान आत्मा के अंतिम दर्शन करना चाहता था. विशाल जनसैलाब और अटल बिहारी वाजपेयी 'अमर रहें' के गगनचुंबी नारों के बीच लोगों का भारी हुजूम स्मृति स्थल की और बढ़ता चला जा रहा था. लोग अपनी भावनाओं को चाह कर भी काबू नहीं कर पा रहे थे.
अटल बिहारी वाजपेयी एक कालजयी नेता थे जिन्होंने अपनी जिंदगी में कई बार मौत का नजदीक से दीदार किया था. लेकिन मौत के बारे में उनके विचार जानकर आप की नजरों में उनका सम्मान पहले से कई गुना बढ़ जायेगा. ऐसे तो उन्होंने मौत से हुई अपनी मुठभेड़ पर कई कविताएं लिखीं लेकिन एक कविता ऐसी है जिससे कोई भी उनके विराट व्यक्तित्व का मुरीद हो जाए. मौत पर मातम मनाने की परम्परा को छोड़कर उत्सव मनाने का संकल्प कोई महान आत्मा ही कर सकता है.
तन पर पहरा, भटक रहा मन,
साथी है केवल सूनापन,
बिछुड़ गया क्या किसी का,
क्रंदन सदा करुण होता है।
जन्मदिवस पर हम इठलाते,
क्यों न मरण-त्योहार मनाते,
अंतिम यात्रा के अवसर पर,
आंसू का अपशकुन होता है।
अंतर रोए, आंख न रोए,
धुल जाएंगे स्वप्न संजोए,
छलना भरे विश्व में
केवल सपना ही तो सच होता है।
इस जीवन से मृत्यु भली है,
आतंकित जब गली-गली है।
मैं जब भी रोता आसपास जब
कोई कहीं नहीं होता है।
दूर कहीं कोई रोता है।
जन्मदिवस पर जब हम उत्सव मना सकते हैं तो मृत्यु दिवस को त्योहार की तरह क्यों नहीं मना सकते. वाजपेयी जी की ये कविता उनके अंतिम दर्शन में शामिल लोगों को भी एक भावनात्मक सन्देश देती है. अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी पूरी जिंदगी में कविताओं का विशाल संग्रह किया. मौत और अंतिम यात्रा को लेकर उनकी लिखी गयी ये कविता ही उनकी वसीयत है जो युगों-युगों तक उनकी मौजूदगी का एहसास कराती रहेगी.
कंटेंट- विकास कुमार (इंटर्न- आईचौक)
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