न्यूजीलैंड आतंकी हमला एक ऐसा घाव अपने पीछे छोड़ गया है जिसने कई नए सवाल खड़े कर दिए हैं. इसमें सबसे अहम सवाल इस्लामोफोबिया (Islamophobia) से जुड़ा हुआ जो 9/11 हमले के बाद से ही किताबों और किस्सों का हिस्सा नहीं बल्कि असल जिंदगी का हिस्सा बन गया है. न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में दो मस्जिदों में हुए कत्लेआम को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है. जिस हमलावर ने प्रार्थना कर रहे लोगों पर गोलियां बरसाईं वो ऑस्ट्रेलियन था. जहां तक जातिवाद का सवाल है तो ऑस्ट्रेलिया को कई बार कटघरे में खड़ा किया जा चुका है. आलम ये है कि ऑस्ट्रेलिया के नेता भी जातिवादी टिप्पणियां करने से बाज़ नहीं आ रहे. अगर आपको लग रहा है कि इससे हमें क्या तो मैं आपको बता दूं कि अब न्यूजीलैंड में जिन लोगों की मौत हुई थी उनकी संख्या 50 हो गई है. और उनमें से 5 भारतीय हैं. अभी भी 4 अन्य भारतीयों का पता नहीं कि वो घायलों की लिस्ट में हैं या नहीं.
हाल ही में ऑस्ट्रेलियन सीनेटर फ्रेसर एनिंग के सिर पर कच्चा अंडा फोड़ दिया गया. ये घटना तब हुई जब वो मीडिया से बात कर रहे थे. कारण? वो मुस्लिम अप्रवासियों पर ही न्यूजीलैंड शूटिंग का ठीकरा फोड़ रहे थे. ठीक वैसे ही जैसे पुलवामा आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान ने कहा था कि भारत खुद एक आतंकी देश है और ये हमला तो उसकी गलती से ही हुआ है. तो जाहिर सी बात है कि जैसे पाकिस्तान पर भारतीयों को गुस्सा आया था वैसे ही किसी एक भले मानुस को उस नेता पर गुस्सा आ गया. सीनेटर फ्रेसर ने अपने ट्विटर अकाउंट से जितनी भी ट्वीट्स की हैं वो सभी मुस्लिम विरोधी हैं. जी हां, न्यूजीलैंड में 15 मार्च को हुए हमले के बाद भी सीनेटर के अनुसार मुस्लिम ही जिम्मेदार थे. उनके अनुसार मुस्लिम वहां गए और इसलिए उनपर हमला हुआ. यानी यहां भी आतंकवाद अगर कोई गोरा करे तो उसका ठीकरा भी मुसलमानों पर फोड़ दो. ये कुछ और नहीं बल्कि 'Typical Pakistan Mentality' (ठेठ पाकिस्तान मानसिकता) की तरह ही है कि अपने कट्टरवाद के आगे कुछ दिखेगा ही नहीं.
फ्रेसर के ट्विटर अकाउंट पर सिर्फ एंटी मुस्लिम ट्वीट ही मिलेंगी.
सीनेटर फ्रेसर पर अंडा फेंकने वाला एक 17 साल का लड़का था जिसे इस कट्टरवादी सोच से ही समस्या थी. हमला करने वाला लड़का अब हीरो कहला रहा है और उसकी हिम्मत की तारीफ की जा रही है जो उस नेता के खिलाफ कुछ कर पाया. सीनेटर फ्रेसर पर हमला करने वाले लड़के को अब Egg Boy के नाम से मश्हूर किया जा रहा है और ट्विटर पर काफी लोग उसके सपोर्ट में आ गए हैं. उस लड़के को तत्कालीन तौर पर गिरफ्तार कर लिया गया था, लेकिन फिर छोड़ दिया गया. ऑस्ट्रेलिया की संसद में फ्रेसर के खिलाफ एक निंदा पत्र भी जारी करने का फैसला किया गया है. ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने भी कहा कि वो फ्रेसर के विचारों से सहमत नहीं हैं. चलिए कम से कम ऑस्ट्रेलिया की बाकी पार्टियों ने तो इसके खिलाफ आवाज़ उठाई, लेकिन जहां तक कट्टरपंथ की बात है तो ऑस्ट्रेलिया में इसकी कमी तो नहीं हैं.
भले ही राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ऑस्ट्रेलिया की कट्टरपंथी सोच की बेइज्जती के कारण फिलहाल ऑस्ट्रेलिया की पार्टियों ने फ्रेसर की टिप्पणी को खराब बताया हो, लेकिन सच्चाई तो यही है कि ऑस्ट्रेलिया हमेशा से ही कट्टरपंथ की ओर बढ़ता हुआ देश था. ऑस्ट्रेलिया में सिर्फ इस्लामोफोबिया ही नहीं है बल्कि किसी भी तरह के माइग्रेंट के खिलाफ जातिवादी अपराध आम हैं. कुछ समय पहले जब ऑस्ट्रेलिया में रह रहे भारतीयों के खिलाफ अपराध शुरू हुए थे तब भी वहां की राजनीति की काफी फजीहत हुई थी.
ऑस्ट्रेलिया पार्टी जो इस्लामोफोबिया की प्रचारक है...
ऑस्ट्रेलिया की पार्टी है वन नेशन (Pauline Hanson's One Nation) ये पार्टी ऑस्ट्रेलिया का राइट विंग ही है. इस पार्टी की संस्थापक पॉलीन हैनसन को ऑस्ट्रेलियाई लिब्रल पार्टी से निकाल दिया गया था जब उन्होंने नेटिव ऑस्ट्रेलियन पर कोई टिप्पणी की थी. ऑस्ट्रेलिया की ये पार्टी और इसके नेता हमेशा ये ही एंटी इमिग्रेंट्स रहे हैं और इनकी सोच का अंदाजा भारतीय राइट विंग से लगाया जा सकता है.
ये कट्टरपंथ केवल पब्लिक में दिए गए भाषणों तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि अपनी बात समझाने के लिए इस पार्टी में संसद में भी हंगामा किया जाता है.
जब ऑस्ट्रेलियाई संसद में एक बुर्के ने हंगामा मचा दिया था...
पॉलीन हैनसन वो महिला हैं जो पिछले 20 सालों से ऑस्ट्रेलिया की राजनीति में सक्रीय हैं और किसी न किसी तरह वो फ्रंट पेज न्यूज बन ही जाती हैं. आलम ये है कि पॉलीन 2017 में बुर्का पहन कर संसद में गई थीं. एंटी मुस्लिम कैंपेन के साथ-साथ पॉलीन एंटी बुर्का कैंपेन भी चला रही थीं.
वो अगस्त 2017 में एक दिन संसद में बुर्का पहन कर आईं. पूरी तरह उन्होंने खुद को ढंक रखा था. जब उनसे पूछा गया कि वो ऐसा क्यों कर रही हैं तो उन्होंने कहा कि वो एक मैसेज देना चाहती थीं और वो बुर्का बैन को लेकर एक सवाल पूछना चाहती थीं.
उनकी इस हरकत पर उन्हें कड़ी प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा और कई लोगों ने उसने इस स्टंट को सिर्फ आडंबर ही कहा था. वन नेशन पार्टी की ये सिनेटर और इसके लोग भी कट्टरपंथ के साथी हैं और एशिया से आने वाले लोगों के हमेशा खिलाफ ही रही हैं. वैसे तो वन नेशन पार्टी की काफी कम सीटें ऑस्ट्रेलियाई संसद में हैं, लेकिन एक तरह से इनकी कट्टरपंथी सोच का साथ देने वाले कई लोग इनके साथ हैं.
ये दोनों ही किस्से ऑस्ट्रेलिया के हैं जिसे एक विकसित देश कहा जाता है, जहां अप्रवासियों की संख्या काफी ज्यादा है. अकेले मुसलमानों की संख्या ही 5 लाख से ज्यादा है. ऐसे में इस देश में अगर ऐसी कट्टरपंथ की सोच फैलाई जाएगी तो क्यों नहीं वहां के लोग व्हाइट रैडिकलिज्म (White radicalism) की तरफ जाएंगे और क्यों नहीं कट्टर लोगों की संख्या ज्यादा बढ़ेगी.
एक ऑस्ट्रेलियाई युवक न्यूजीलैंड में जाकर हमला करता है और 50 लोगों को मौत के घाट उतार देता है. ये युवक अपनी कट्टरपंथी सोच का परिचय देता है और अपनी चरम सोच को सही बताता है. ये उस तरह का आतंकवाद है जिसकी कोई ज्यादा चर्चा नहीं करता. ये वो आतंकवाद है जिसे हमेशा दबाया जाता है और इस आतंकवाद की शुरुआत ऐसे ही कट्टरपंथी सोच के नेताओं से होती है. जरा सोचिए कि अगर यही काम पाकिस्तान का कोई नेता कर रहा होता तो क्या उसपर आतंकवाद फैलाने का इल्जाम नहीं लगता? क्या भारत का कोई नेता ऐसा कर रहा होता तो उसपर नफरत फैलाने का इल्जाम नहीं लगता? पर ये विदेशी नेता कर रहे हैं तो उन्हें सिर्फ हेट स्पीच की हेडलाइन मिलती है. ठीक उसी तरह जैसे कई विदेशी मीडिया साइट्स ने न्यूजीलैंड की हरकत को सिर्फ Mass Shooting कहा था और उसे आतंकवाद से नहीं जोड़ा था.
ऑस्ट्रेलिया के ये नेता साबित करते हैं कि कट्टरपंथ हर देश में है और इस तरह का कट्टरपंथ सिर्फ आतंकवाद को ही जन्म देता है.
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