सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर रोजाना सुनवाई शुरू कर दी है. भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ इस मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की प्रक्रिया असफल होने के बाद ये सुनवाई शुरू की गई है. तीन सदस्यों वाले मध्यस्थता पैनल ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इस पैनल को 2 अगस्त को भंग कर दिया गया था.
अयोध्या मामला वो विवादित मामला है. विवाद उस भूमि के स्वामित्व पर है जिस पर बाबरी मस्जिद मौजूद थी और माना ये जाता है कि वो भगवान राम की जन्मभूमि है.
उच्च न्यायालय ने तीन पक्षों के बीच भूमि के त्रिपक्षीय विभाजन के लिए फैसला सुनाया था- उत्तर प्रदेश का सुन्नी वक्फ बोर्ड जो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, निर्मोही अखाड़ा जो हिंदुओं और राम लल्ला का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, वो मूर्ति जिसे भगवान राम का बाल रूप माना जाता है.
सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि विवादित भूमि का मालिक कौन है. और यह इस प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करता है- क्या बाबरी मस्जिद भगवान राम को समर्पित एक पुराने मंदिर के ऊपर बनाई गई थी?
बाबरी मस्जिद को सैकड़ों कारसेवकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जो 1992 में विश्व हिंदू परिषद के आह्वान और भारतीय जनता पार्टी के समर्थिन पर अयोध्या पहुंचे थे. उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती उनके नेता थे.
आखिरी फैसला
1949 में, फैजाबाद की एक अदालत (जिसे अयोध्या नाम दिया गया) ने पहला...
सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद पर रोजाना सुनवाई शुरू कर दी है. भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की पीठ इस मामले में 2010 के इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करेगी.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा मध्यस्थता की प्रक्रिया असफल होने के बाद ये सुनवाई शुरू की गई है. तीन सदस्यों वाले मध्यस्थता पैनल ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी. इस पैनल को 2 अगस्त को भंग कर दिया गया था.
अयोध्या मामला वो विवादित मामला है. विवाद उस भूमि के स्वामित्व पर है जिस पर बाबरी मस्जिद मौजूद थी और माना ये जाता है कि वो भगवान राम की जन्मभूमि है.
उच्च न्यायालय ने तीन पक्षों के बीच भूमि के त्रिपक्षीय विभाजन के लिए फैसला सुनाया था- उत्तर प्रदेश का सुन्नी वक्फ बोर्ड जो मुसलमानों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, निर्मोही अखाड़ा जो हिंदुओं और राम लल्ला का प्रतिनिधित्व करने का दावा करता है, वो मूर्ति जिसे भगवान राम का बाल रूप माना जाता है.
सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना होगा कि विवादित भूमि का मालिक कौन है. और यह इस प्रश्न के उत्तर पर निर्भर करता है- क्या बाबरी मस्जिद भगवान राम को समर्पित एक पुराने मंदिर के ऊपर बनाई गई थी?
बाबरी मस्जिद को सैकड़ों कारसेवकों द्वारा ध्वस्त कर दिया गया था, जो 1992 में विश्व हिंदू परिषद के आह्वान और भारतीय जनता पार्टी के समर्थिन पर अयोध्या पहुंचे थे. उस वक्त लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती उनके नेता थे.
आखिरी फैसला
1949 में, फैजाबाद की एक अदालत (जिसे अयोध्या नाम दिया गया) ने पहला फैसला अयोध्या टाइटल सूट पर दिया. अदालत ने आदेश दिया कि सभी तीनों पक्ष- मुसलमान, हिंदू और निर्मोही अखाड़ा तीनों राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद के संयुक्त धारक घोषित किए जाएं.
उच्च न्यायालय ने सितंबर 2010 में इस मामले पर अपना अंतिम फैसला दिया. इसने निचली अदालत के फैसले को व्यापक रूप से बरकरार रखा और तीनों पक्षों के बीच 2.77 एकड़ भूमि बांट दी. जबकि निचली अदालत का निर्णय काफी हद तक उपलब्ध भूमि के रिकॉर्ड और उस समय के सरकारी आदेश पर आधारित था, जबकि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश का एक और निर्धारक था. यह पुरातात्विक निष्कर्ष था.
2002 में, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने उस जगह का भूमिगत सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था जहां बाबरी मस्जिद पहले से खड़ी थी. ये सर्वेक्षण एक निजी फर्म द्वारा किया गया था. जिसने फरवरी 2003 में उच्च न्यायालय को अपनी रिपोर्ट में नीचे पहले बनी हुई संरचना की तरफ इशारा किया था. इस रिपोर्ट ने विवादित स्थल की खुदाई के लिए मार्च 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) को उच्च न्यायालय के आदेश का आधार बनाया ताकि यह पता लगाया जा सके कि बाबरी मस्जिद पहले से बने मंदिर पर बनाई गई थी या नहीं.
ASI ने अगस्त 2003 में अपनी रिपोर्ट पेश की जिसमें उच्च न्यायालय को बताया गया कि बाबरी मस्जिद भवन के नीचे उत्तर भारतीय मंदिर के समान संरचना का प्रमाण मिला है. ये रिपोर्ट के आधार पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने निष्कर्ष दिया कि विवादित स्थल पर बाबरी मस्जिद के निर्माण होने से पहले एक मंदिर मौजूद था.
हाईकोर्ट की तीन जजों की बेंच ने तब जमीन को तीन हिस्सों में बांटने का आदेश दिया. इस फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने 2010 में ही रोक लगा दी थी. अब, उच्च न्यायालय के फैसले को बरकरार रखने, खारिज करने या संशोधित करने से पहले एक ही मामले पर करीब 15 पक्षों को सुनना होगा.
क्या 17 नवंबर तक होगी रोजाना सुनवाई?
सुप्रीम कोर्ट में रोजाना सुनवाई का मतलब है कि हर हफ्ते सोमवार से शुक्रवार तक टाइटल सूट के पक्षकारों की दलीलें होंगी. अयोध्या विवाद की रोजाना सुनवाई के सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने अटकलों को जन्म दिया है कि सात दशक पुराना कानूनी मामला 17 नवंबर तक अपने निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा. यह वो तारीख है जब CJI रंजन गोगोई रिटायर होंगे.
परंपरा के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच जो एक मामले की सुनवाई करती है, उसी मामले में फैसला सुनाती है. अगर एक जज मामले पर निर्णय करने से पहले सेवानिवृत्त हो जाता है, तो एक नई पीठ गठित की जाती है और मामले को नए सिरे से सुना जाता है.
6 अगस्त से 17 नवंबर तक वीकेंड और छुट्टियों को छोड़कर CJI के नेतृत्व वाली बेंच के पास CJI गोगोई के रिटायर होने से पहले अयोध्या विवाद का निपटारा करने के लिए करीब 35 दिन हैं. CJI रंजन गोगोई मामलों को तुरंत निपटाने के लिए जाने जाते हैं, जिसका मतलब है कि ये 35 दिन अयोध्या टाइटल सूट में अंतिम निर्णय के लिए काफी हो सकते हैं.
क्या ये भी एक विरासत छोड़कर जाएंगे?
भारत के पिछले तीन मुख्य न्यायाधीश ऐसे निर्णय देकर रिटायर हुए जिन्हें उनकी विरासत के रूप में जाना जाता है. जस्टिस टीएच ठाकुर को जस्टिस लोढ़ा समिति के माध्यम से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) की सफाई के लिए याद किया जाता है.
उनके बाद न्यायमूर्ति जेएस खेहर की बेंच ने त्वरित ट्रिपल तालक को असंवैधानिक और निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित किया था. CJI रंजन गोगोई से पहले जस्टिस दीपक मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच का नेतृत्व किया जिसने सभी आयु-वर्ग की महिलाओं के लिए सबरीमाला मंदिर के द्वार खोल दिए थे.
अयोध्या टाइटल सूट CJI रंजन गोगोई के लिए ऐसा ही एक मामला हो सकता है. यह मामला अयोध्या के विवादित स्थल में राम मंदिर के निर्माण के मुद्दे को निश्चित रूप से प्रभावित करेगा जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के तीन प्रमुख हिंदुत्व एजेंडों में से एक है.
तीन एजेंडे
आरएसएस और बीजेपी उस स्थान पर राम मंदिर के निर्माण के लिए अभियान चला रहे हैं जहां 1992 तक बाबरी मस्जिद का अस्तित्व था. लंबे समय से चली आ रही अदालती लड़ाई, तमाम वाद-विवाद ने 2014-19 के दौरान भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार को राम मंदिर बनाने के लिए एक कानून बनाने से रोक दिया.
पार्टी के दो अन्य हिंदुत्व एजेंडे- समान नागरिक संहिता(uniform civil code) और अनुच्छेद 370 पर पिछले कुछ दिनों में सफलता मली है. संसद ने हाल ही में एक ट्रिपल तालक विधेयक पारित किया. इसे समान नागरिक संहिता की ओर एक कदम के रूप में देखा जा रहा है.
इसी तरह, धारा 370 पर मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिलाने के लिए उसी अनुच्छेद का इस्तेमाल किया. इस संबंध में राष्ट्रपति के आदेश के लिए प्रस्तावों को सोमवार को संसद के दोनों सदनों द्वारा स्वीकार कर लिया गया था. सरकार ने राज्य के दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख (विधायिका के बिना) और जम्मू और कश्मीर (विधायिका के साथ) को शुरू करने के लिए जम्मू और कश्मीर पुनर्गठन विधेयक भी लाया गया.
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