सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला (Supreme Court Ram Mandir verdict) सुनाया. इस फैसले के साथ ही सबसे पुराने विवाद का अंत होता दिखा. हालांकि, जिस तरह से मुस्लिम और हिंदू पक्ष विवादित जमीन (Ayodhya Ram Mandir Babri Masjid dispute) पर दावा करते आए उससे अंदेशा तो पहले से ही था कि आखिरी फैसले के बाद भी अयोध्या विवाद (Ayodhya Case) आसानी से हल नहीं होगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए फैसला सूझबूझ से सुनाया. अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है, तो उस फैसले से कुछ मुस्लिम पक्षकार संतुष्ट नहीं दिखे और उन्होंने रिव्यू पिटिशन (Review Petition Ram Mandir verdict) दाखिल करने का मन बना लिया.
यानी अब अयोध्या मामले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) कुछ मुस्लिम पक्षकारों की सहमति से रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा. वहीं, मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं करने का ऐलान कर चुका है. चूंकि अयोध्या विवाद कुछ सालों का नहीं, बल्कि 400 साल पहले का विवाद है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने काफी सूझबूझ के साथ अपना फैसला सुनाया और सुप्रीम फैसले पर देश के हिंदू, मुस्लिम और धर्मावलंबियों ने आपसी सौहार्द्य को बनाए रखने में समझादारी भी दिखाई.
अब सवाल है कि हम जिस संवैधानिक व्यवस्था के तहत रहते हैं, उसमें हमारी सर्वोच्च अदालत सहमति-असहमति का आखिरी दरवाजा है और सभी ने इसे स्वीकार भी किया है कि इसे मानकर चलेंगे. ऐसे में ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड इस...
सुप्रीम कोर्ट ने 9 नवंबर को अयोध्या मामले पर फैसला (Supreme Court Ram Mandir verdict) सुनाया. इस फैसले के साथ ही सबसे पुराने विवाद का अंत होता दिखा. हालांकि, जिस तरह से मुस्लिम और हिंदू पक्ष विवादित जमीन (Ayodhya Ram Mandir Babri Masjid dispute) पर दावा करते आए उससे अंदेशा तो पहले से ही था कि आखिरी फैसले के बाद भी अयोध्या विवाद (Ayodhya Case) आसानी से हल नहीं होगा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने दोनों पक्षों को ध्यान में रखते हुए फैसला सूझबूझ से सुनाया. अब जब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है, तो उस फैसले से कुछ मुस्लिम पक्षकार संतुष्ट नहीं दिखे और उन्होंने रिव्यू पिटिशन (Review Petition Ram Mandir verdict) दाखिल करने का मन बना लिया.
यानी अब अयोध्या मामले पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) कुछ मुस्लिम पक्षकारों की सहमति से रिव्यू पिटिशन दाखिल करेगा. वहीं, मुस्लिम पक्षकारों में इकबाल अंसारी और सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड (Sunni Waqf Board) ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटिशन दाखिल नहीं करने का ऐलान कर चुका है. चूंकि अयोध्या विवाद कुछ सालों का नहीं, बल्कि 400 साल पहले का विवाद है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने काफी सूझबूझ के साथ अपना फैसला सुनाया और सुप्रीम फैसले पर देश के हिंदू, मुस्लिम और धर्मावलंबियों ने आपसी सौहार्द्य को बनाए रखने में समझादारी भी दिखाई.
अब सवाल है कि हम जिस संवैधानिक व्यवस्था के तहत रहते हैं, उसमें हमारी सर्वोच्च अदालत सहमति-असहमति का आखिरी दरवाजा है और सभी ने इसे स्वीकार भी किया है कि इसे मानकर चलेंगे. ऐसे में ऑल इंडिया मुस्लिम पसर्नल लॉ बोर्ड इस फैसले को जीत-हार के नजरिये से तौलने पर क्यों उतारू है, हां ठीक है कि कानूनी रूप में रिव्यू पिटिशन दाखिल करने का अधिकार है, लेकिन क्या निर्णय कबूल ना करने का तेवर अधिक तीखा बनने का नहीं है. क्या उन्हें नहीं पता कि हिंदू पक्ष में इतना सब्र मंदिर बनाने की इजाजत मिलने की वजह से ही है, इसलिए उन्हें ये समझना चाहिए कि इस विवाद को छोड़ आगे निकले और लकीर खींचने से बचा जाए. बहरहाल, समाज में ऐसे तत्व भी हैं जो चिंगारी छिटकने और आग भड़कने की ताक में भी हैं. वहीं, रिव्यू पिटिशन दाखिल कर रहे पक्षकारों का ये भी कहना है कि इससे सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कोई बदलाव नहीं आएगा, लेकिन अदालत के फैसले में अंतर्विरोध और कई मामलों में भटकाव है, जिसे अदालत के सामने रखना चाहते हैं. लेकिन क्या ये नहीं सोचा जाना चाहिए कि सुप्रीम अदालत ने इस विवाद पर हमेशा के लिए समस्या को निपटाने की बहुत हद तक कोशिश की. और फिर सभी पक्षों ने सर्वाजनिक रूप से कहा भी था कि अदालत का जो फैसला होगा वो मंजूर होगा.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष गयूरुल हसन रिजवी ने मुस्लिम समाज को आगाह भी किया है कि रिव्यू पिटिशन मुस्लिम समाज के हित में नहीं होगा और इससे दो समुदायों के बीच एकता को नुकसान पहुंचेगा.
जब रिव्यू पिटिशन से नतीजतन बुनियाद में कोई बदलाव नहीं आएगा, तो क्या जिस फैसले की इतनी लंबी सुनवाई हुई, उसे यही खत्म नहीं कर देना चाहिए, क्या लकीर खींचना जरूरी है? क्या ये वक्त गांधी जी ने जिस आजाद भारत में धर्मों की जिस भूमिका को रेखांकित करने की कोशिश की थी, उस दिशा में मजबूती से आगे बढ़ने का नहीं है. बता दें कि अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में कुल 8 मुस्लिम पक्षकार थे. मुस्लिम पक्षकारों में सेंट्रल सुन्नी वक्फ बोर्ड, जमीयत उलेमा-ए-हिंद (हामिद मोहम्मद सिद्दीकी), इकबाल अंसारी, मौलाना महमूदुर्रहमान, मिसबाहुद्दीन, मौलाना महफूजुर्रहमान मिफ्ताही, मोहम्मद उमर, हाजी महबूब और मौलाना असद रशीदी शामिल थे. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस मामले में सीधे तौर पर शामिल नहीं था, लेकिन मुस्लिम पक्षकार की ओर से पूरा मामला उसी की निगरानी में चल रहा था.
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने फैसला देते हुए अयोध्या की विवादित जमीन को रामलला विराजमान का हक कहा और मुस्लिम पक्ष को अयोध्या में ही 5 एकड़ जमीन देने का आदेश दिया. यह फैसला चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की विशेष बेंच ने सर्वसम्मति से सुनाया गया था.
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