राम जन्म भूमि आंदोलन (Ram Janmabhoomi Movement) का शंखनाद करने वाली लालकृष्ण आडवाणी (LK Advani) की रथ यात्रा जारी थी, जो अब तीस साल बाद अपनी मंज़िल पर पंहुचेगी. इस रथ यात्रा में सारथी की भूमिका निभाने वाले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की ख़ामोशी भी अब टूटेगी. वो अयोध्या विवाद पर आज तक कुछ नहीं बोले. फल की चिंता किये बिना कर्म करते रहे. आख़िरकार फल मिल गया. अब अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर भव्य राम मंदिर निर्माण होगा. आडवाणी की रथ यात्रा तीस वर्ष पहले समाप्त हो गयी थी, किंतु अप्रत्यक्ष रूप ये रथ चलता रहा. सफर लम्बा था, इस दौरान आडवाणी लम्बी उम्र के पड़ाव में पंहुच गये पर उनका जोश-जज्बा, ऊर्जा और पवित्र उद्देश्य सार्थी नरेंद्र मोदी में समायोजित होता गया. रथ और समय का चक्र घूमता गया. नरेंद्र मोदी सोमनाथ की धरती गुजरात के कई बार मुख्यमंत्री बनें.फिर दूसरी बार प्रधानमंत्री भी बन गये.
वो धैर्य, संयम, प्रतिक्षा, प्रतिज्ञा और संघर्षों के पहियों वाले अपने रथ को चलाते रहे. अब पांच अगस्त 2020 के दिन ये रथ अयोध्या की पावन धरती पर थम जायेगा. ये तारीख इतिहास बनेगी. एक बार फिर सत्य की विजय हुई. पांच अगस्त 2020 बुधवार के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का शिलान्यास करते हुए भूमि पूजन करेंगे. हिंदू संस्कृति के इतिहात में पांच अगस्त 2020 की तारीख भी स्वर्णाक्षरों से लिखी जायेगी.
तारीख गवाह है कि महाभारत युद्ध 18 दिन में समाप्त हो गया था, लेकिन राम जन्मभूमि के धर्म युद्ध को पांच सौ वर्ष के अर्से के बाद सफलता हासिल हुई. महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सार्थी थे. राम जन्म भूमि को स्वतंत्र कराने के पांच सौ साल...
राम जन्म भूमि आंदोलन (Ram Janmabhoomi Movement) का शंखनाद करने वाली लालकृष्ण आडवाणी (LK Advani) की रथ यात्रा जारी थी, जो अब तीस साल बाद अपनी मंज़िल पर पंहुचेगी. इस रथ यात्रा में सारथी की भूमिका निभाने वाले नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की ख़ामोशी भी अब टूटेगी. वो अयोध्या विवाद पर आज तक कुछ नहीं बोले. फल की चिंता किये बिना कर्म करते रहे. आख़िरकार फल मिल गया. अब अयोध्या में राम जन्मभूमि स्थल पर भव्य राम मंदिर निर्माण होगा. आडवाणी की रथ यात्रा तीस वर्ष पहले समाप्त हो गयी थी, किंतु अप्रत्यक्ष रूप ये रथ चलता रहा. सफर लम्बा था, इस दौरान आडवाणी लम्बी उम्र के पड़ाव में पंहुच गये पर उनका जोश-जज्बा, ऊर्जा और पवित्र उद्देश्य सार्थी नरेंद्र मोदी में समायोजित होता गया. रथ और समय का चक्र घूमता गया. नरेंद्र मोदी सोमनाथ की धरती गुजरात के कई बार मुख्यमंत्री बनें.फिर दूसरी बार प्रधानमंत्री भी बन गये.
वो धैर्य, संयम, प्रतिक्षा, प्रतिज्ञा और संघर्षों के पहियों वाले अपने रथ को चलाते रहे. अब पांच अगस्त 2020 के दिन ये रथ अयोध्या की पावन धरती पर थम जायेगा. ये तारीख इतिहास बनेगी. एक बार फिर सत्य की विजय हुई. पांच अगस्त 2020 बुधवार के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम जन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का शिलान्यास करते हुए भूमि पूजन करेंगे. हिंदू संस्कृति के इतिहात में पांच अगस्त 2020 की तारीख भी स्वर्णाक्षरों से लिखी जायेगी.
तारीख गवाह है कि महाभारत युद्ध 18 दिन में समाप्त हो गया था, लेकिन राम जन्मभूमि के धर्म युद्ध को पांच सौ वर्ष के अर्से के बाद सफलता हासिल हुई. महाभारत के युद्ध में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के सार्थी थे. राम जन्म भूमि को स्वतंत्र कराने के पांच सौ साल चले महाभारत के अंतिम कालखंड (तीस वर्ष) में लाल कृष्ण आडवाणी के सारथी थे नरेंद्र मोदी.
कहा जा सकता है कि भगवान कृष्ण के अवतार में मोदी अप्रत्यक्ष रूप से ना सिर्फ गीता का उपदेश दे रहे थे बल्कि तीन दशक भगवान कृष्ण द्वारा दिये गए गीता के उपदेश का पालन भी कर रहे थे.
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन,
मा कर्मफलहेतुर्भुर्मा ते संगोऽस्त्वकर्मणि..
इस उपदेश का अर्थ यह है कि भविष्य की चिंता किए बिना जो आप काम कर रहे हैं उसे पूरी दृढ़ता से करते रहिए. यदि हम पूरे परिश्रम और लगन के साथ काम करेते रहेंगे तो बेहतर नतीजे आयेंगे. देश की जनता और करोड़ों राम भक्त बेसब्री से राम मंदिर के शिलान्यास का इंतजार कर रहे हैं.
लोगों को जिज्ञासा है कि प्रधानमंत्री इस ऐतिहासिक मौक़े पर अपने वक्तव्य में क्या बोलेंगे. अनुमान लगाया जा सकता है कि ये उदारवादी नेता शांति-सद्भावना के संदेश भी देंगे. उनका वक्तत्व श्री कृष्ण की तरह गीता के उपदेश जैसा होगा-
यो न हृष्यति न द्वेष्टि न शोचति न काङ्क्षति.
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः..
कोई भी खास काम के सफल होने पर ज्यादा उत्साहित नहीं होना चाहिए. ऐसा करने से गलती के होने की आशंका बढ़ जाती है. साथ ही हमें किसी दूसरे से जलन की भावना भी नहीं रखनी चाहिए. चंद दिनों बाद पांच अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राम मंदिर का शिलान्यास करते समय अपने वक्तव्य में देशवासियों को क्या संदेश देंगे ये तो समय ही बतायेगा. किंतु वर्तमान समय तीस वर्ष पूर्व के अतीत की याद दिला रहा है.
आडवाणी की रथयात्रा में हार्न पकड़े मोदी के संघर्षों की तस्वीर भुलाई नहीं जा सकती. महाभारत के धर्म युद्ध के अर्जुन जैसे योद्धा की तरह आडवाणी की रथ और उनके सारथी नरेंद्र मोदी. अब लगता है कि ये सारथी तो भगवान कृष्ण का अनुसरण कर रहा था. धैर्य और संयम के साथ प्रतिज्ञा के इस रथ को उसका सारथी मंजिल तक ले ही आया.
राम मंदिर आंदोलन के तमाम काल खंड रहे. इस दौरान सरयू में ख़ूब पानी बहा और राम भक्तों का ख़ून भी बहा. आईये फ्लैश बैक में पंहुचे. भाजपा के तत्कालीन फायर ब्रांड नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने राम जन्म भूमि आंदोलन को 1990 में एक नई दिशा दी. पच्चीस सितम्बर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर में पूजा अर्चना के बाद आडवाणी ने रथ यात्रा आरम्भ की. जो देशभर में दस हजार किलोमीटर का सफर तय करते हुए उत्तर प्रदेश के अयोध्या पंहुचना थी.
टोयोटा ट्रक को भगवा रंग के रथ का रूप दिया गया था. अयोध्या में राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण की अलख जगाने के भाषणों से गूंजती ये रथ यात्रा जिधर से गुजरती थी वहां राम भक्तों का हुजूम इकट्ठा हो जाता था. रथ पर सवार आडवाणी के बगल में बैठे थे भाजपा के तत्कालीन गुजरात संगठन सचिव नरेंद्र मोदी. जो सारथी जैसी भूमिका में नजर आते थे.
किसी को क्या मालूम था कि आडवाणी की रथयात्रा का ये सारथी ही भगवान कृष्ण की तरह इस महाभारत के धर्म युद्ध को अंतिम रूप देगा.
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