पावन नगरी अयोध्या की रामजन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा. मंदिर निर्माण के लिए मर्यादा पुरषोत्तम श्री रामचंद्र जी को उनकी जन्मभूमि मिल गई. राम जीत गये और सियासी रावण हार गये. दशकों से अयोध्या विवाद पर सियासत करने वाले सियासी रावणों की शिकस्त हो गई. अब कोई राजनीति दल राम मंदिर पर सियासत नहीं चमका सकेगा. और ना ही कोई राजनीतिक पार्टी राम मंदिर बनवाने का श्रेय ले सकेगी. हां यदि संसद में कानून पास करवा के जिस पार्टी की सरकार मंदिर बनवाती वो पार्टी मंदिर निर्माण का श्रेय जरूर ले सकती थी. लोकतंत्र के सबसे बड़े तंत्र न्यायालय की न्यायव्यवस्था ने राम मंदिर विवाद पर अंतिम फैसला सुनाकर सियासी मंसूबों का राम नाम सत्य कर दिया.
वैसे तो ये विवाद सैकड़ों वर्ष पुराना था लेकिन तीन दशक से अधिक समय से अयोध्या मसले को भुनाने के लिए राजनीतिक दल समय-समय पर सियासत करते रहें हैं. धार्मिक भावनाओं को भड़कानें, देश की अखंडता, एकता, समरसता, शांति-सौहार्द और हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना को चुनौती देने के लिए गंदी सियासत ने लम्बे समय तक अयोध्या मुद्दे को समय समय पर भुनाया. इस सियासी खेल में किसी को फर्श पर पंहुचा दिया था तो कोई अर्श की ऊंचाइयों को छूने लगा. ताला खुलवाने से लेकर अयोध्या ढांचे को तोड़े जाने से कांग्रेस को सियासी नुकसान हुआ था जबकि भाजपा और समाजवादी पार्टी को इस विवाद ने ऊंचाइयों पर पंहुचा दिया था.
इसके बाद दशकों से भाजपा हर चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण का जिक्र करती रही. आज राम मंदिर के पक्ष में आये फैसले के बाद इस विवाद पर मोहर लग गयी दिखती है. कश्मीर में 370 और तीन तलाक की तरह यदि भाजपा सरकार राम...
पावन नगरी अयोध्या की रामजन्म भूमि पर भव्य राम मंदिर का निर्माण होगा. मंदिर निर्माण के लिए मर्यादा पुरषोत्तम श्री रामचंद्र जी को उनकी जन्मभूमि मिल गई. राम जीत गये और सियासी रावण हार गये. दशकों से अयोध्या विवाद पर सियासत करने वाले सियासी रावणों की शिकस्त हो गई. अब कोई राजनीति दल राम मंदिर पर सियासत नहीं चमका सकेगा. और ना ही कोई राजनीतिक पार्टी राम मंदिर बनवाने का श्रेय ले सकेगी. हां यदि संसद में कानून पास करवा के जिस पार्टी की सरकार मंदिर बनवाती वो पार्टी मंदिर निर्माण का श्रेय जरूर ले सकती थी. लोकतंत्र के सबसे बड़े तंत्र न्यायालय की न्यायव्यवस्था ने राम मंदिर विवाद पर अंतिम फैसला सुनाकर सियासी मंसूबों का राम नाम सत्य कर दिया.
वैसे तो ये विवाद सैकड़ों वर्ष पुराना था लेकिन तीन दशक से अधिक समय से अयोध्या मसले को भुनाने के लिए राजनीतिक दल समय-समय पर सियासत करते रहें हैं. धार्मिक भावनाओं को भड़कानें, देश की अखंडता, एकता, समरसता, शांति-सौहार्द और हिन्दू-मुस्लिम सद्भावना को चुनौती देने के लिए गंदी सियासत ने लम्बे समय तक अयोध्या मुद्दे को समय समय पर भुनाया. इस सियासी खेल में किसी को फर्श पर पंहुचा दिया था तो कोई अर्श की ऊंचाइयों को छूने लगा. ताला खुलवाने से लेकर अयोध्या ढांचे को तोड़े जाने से कांग्रेस को सियासी नुकसान हुआ था जबकि भाजपा और समाजवादी पार्टी को इस विवाद ने ऊंचाइयों पर पंहुचा दिया था.
इसके बाद दशकों से भाजपा हर चुनावी घोषणा पत्र में राम मंदिर निर्माण का जिक्र करती रही. आज राम मंदिर के पक्ष में आये फैसले के बाद इस विवाद पर मोहर लग गयी दिखती है. कश्मीर में 370 और तीन तलाक की तरह यदि भाजपा सरकार राम मंदिर निर्माण के लिए संसद में कानून पास करवा कर मंदिर निर्माण करवाती तो भाजपा को इसका बेहद सियासी फायदा मिलता.
आज के फैसले से पहले ही मुस्लिम समाज के बुद्धिजीवी समाज में ये आवजे बुलंद होने लगीं थी कि यदि मुस्लिम पक्ष के पक्ष में फैसल आये तब भी ये भूमि राम मंदिर के लिए हिन्दू पक्ष को गिफ्ट कर दी जाये. और आज फैसला आने के बाद साम्प्रदायिक सौहार्द बना हुआ है. मुस्लिम समाज में भी फैसले का खुले दिल से स्वागत किया जा रहा है. यानी सियासी रोटियां सेकने के लिए हिन्दू-मुस्लिम गर्माहट की कोई गुंजाइश नहीं बची.
सही मायने में देखिए तो अयोध्या विवाद का मुकदमा ही साम्प्रदायिक सौहार्द और हिन्दू-मुसलमानों के बीच गंगा-जमुनी तहज़ीब की कहानी बयां कर गया. मुस्लिम पक्ष के मुख्य अधिवक्ता हिन्दू थे. और हिन्दू पक्ष ने राम मंदिर का जो मुकदमा जीता है उसका सबसे बड़ा हीरो मुस्लिम है. पुरातत्व विभाग का वो अधिकारी जिसने खदाई से मंदिर के प्रमाण ढूंढे वो शख्स मुसलमान है. पुरातत्व विभाग की इस रिपोर्ट को हिंदू पक्ष का सबसे बड़ा आधार माना है.
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