हिंदुत्व (Hindutva) के नाम पर कुछ बचा नहीं है. राम मंदिर पर फैसला (Ayodhya Ram Mandir verdict) आ ही गया. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अयोध्या की विवादित जमीन रामजन्मभूमि न्यास (Ram Janmabhumi Nyas) को दे दी गई है. ताकि यहां राम मंदिर बनाया जाए. 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Andolan) के साथ BJP और Shiv Sena का विस्तार हुआ था. अब जबकि यह मुद्दा नतीजे पर पहुंचने जा रहा है, तो इसके लिए जुड़ी रहने वाले दोनों पार्टियों के पास साथ रहने का कारण भी खत्म होता नजर आ रहा है. जैसा प्रसार देश की सियासत में भाजपा (BJP) का है शिवसेना (Shiv Sena) प्रमुख उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) इस बात से वाकिफ हैं कि ऐसे हालत में उनके लिए राजनीति करना और अपनी पार्टी को बचाए रखना बहुत मुश्किल है. महाराष्ट्र में सरकार कौन बनाएगा? (Maharashtra government formation) इसको लेकर खींचतान जारी है. ऐसे में उद्धव ठाकरे का सामने आना और तल्ख़ अंदाज में भाजपा की आलोचना कर सवालों के जवाब देना ये बताता है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) के बाद उद्धव ठाकरे ने अपना प्लान B तैयार कर लिया है. चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना-भाजपा का 30 साल पुराना साथ ख़त्म होने की कगार पर है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस्तीफा (Devendra Fadnavis resignation) दे चुके हैं. महाराष्ट्र के कार्यवाहक मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के रूप में उन्होंने जो आरोप लगाए उन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि, फडणवीस ने मुझ पर झूठ बोलने के आरोप लगाए हैं, जबकि 5 साल के काम का श्रेय खुद ले लिया. उद्धव का मानना है कि भाजपा ने पिछले 5 सालों में विकास नहीं, राजनीति ज्यादा की है.
हिंदुत्व (Hindutva) के नाम पर कुछ बचा नहीं है. राम मंदिर पर फैसला (Ayodhya Ram Mandir verdict) आ ही गया. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने अयोध्या की विवादित जमीन रामजन्मभूमि न्यास (Ram Janmabhumi Nyas) को दे दी गई है. ताकि यहां राम मंदिर बनाया जाए. 1990 के दशक में राम मंदिर आंदोलन (Ram Mandir Andolan) के साथ BJP और Shiv Sena का विस्तार हुआ था. अब जबकि यह मुद्दा नतीजे पर पहुंचने जा रहा है, तो इसके लिए जुड़ी रहने वाले दोनों पार्टियों के पास साथ रहने का कारण भी खत्म होता नजर आ रहा है. जैसा प्रसार देश की सियासत में भाजपा (BJP) का है शिवसेना (Shiv Sena) प्रमुख उद्धव ठाकरे (ddhav Thackeray) इस बात से वाकिफ हैं कि ऐसे हालत में उनके लिए राजनीति करना और अपनी पार्टी को बचाए रखना बहुत मुश्किल है. महाराष्ट्र में सरकार कौन बनाएगा? (Maharashtra government formation) इसको लेकर खींचतान जारी है. ऐसे में उद्धव ठाकरे का सामने आना और तल्ख़ अंदाज में भाजपा की आलोचना कर सवालों के जवाब देना ये बताता है कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव (Maharashtra Assembly Elections) के बाद उद्धव ठाकरे ने अपना प्लान B तैयार कर लिया है. चुनाव के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर शिवसेना-भाजपा का 30 साल पुराना साथ ख़त्म होने की कगार पर है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस इस्तीफा (Devendra Fadnavis resignation) दे चुके हैं. महाराष्ट्र के कार्यवाहक मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस के रूप में उन्होंने जो आरोप लगाए उन पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा कि, फडणवीस ने मुझ पर झूठ बोलने के आरोप लगाए हैं, जबकि 5 साल के काम का श्रेय खुद ले लिया. उद्धव का मानना है कि भाजपा ने पिछले 5 सालों में विकास नहीं, राजनीति ज्यादा की है.
मीडिया से हुई बातचीत में उद्धव ने भाजपा पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं और उसे झूठा कहा है. उद्धव ने कहा है कि भाजपा झूठी है. चुनाव से पहले हमसे मीठी-मीठी बातें की गईं. फडणवीस ही नहीं अमित शाह ने मुंबई आकर 50-50 का वादा किया था. शिवसेना प्रमुख ने कहा कि अब हम भाजपा के झांसे में नहीं आएंगे. पत्रकारवार्ता के दौरान जैसे तेवर उद्धव ठाकरे के थे अगर उनपर गौर किया जाए तो साफ़ पता चलता है कि वो कहीं से भी बैकफुट में नहीं हैं और आर पार की लड़ाई लड़ रही है.
उद्धव अपनी बात पर कायम हैं और कह रहे हैं कि मुख्यमंत्री शिवसेना का ही होगा. अपनी बातों में उद्धव ठाकरे ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी जिक्र किया. उन्होंने उन आरोपों को भी खारिज किया जिसमें कहा गया कि शिवसेना भाजपा की आलोचना कर रही है. इसपर दो टूक बात करते हुए उद्धव ने कहा है कि हमने कभी भी पीएम मोदी की आलोचना नहीं की, हमने सरकार की नीतियों की आलोचना की. उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि झूठा कहने वालों से रिश्ता नहीं रखूंगा. गंगा साफ करते-करते इनका दिमाग प्रदूषित हो गया है.
उध्दव की बातों से साफ़ है कि वो भाजपा से किनाराकशी करने को तैयार हैं. मामले पर जिस तरह उद्धव अड़े हैं और आर पार की लड़ाई लड़ रहे हैं. सवाल है कि आखिर 30 साल का साथ क्यों चंद दिनों में ही खात्मे की कगार पर आ गया है. तो वजह है शिवसेना का अस्तित्त्व. शिव सेना अपने अस्तित्त्व को बचाए रखने की लड़ाई लड़ रही है.
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के जो नतीजे आए हैं उससे अपने आप शिवसेना की स्थिति जाहिर हो जाती है. अब इसे मोदी लहर कहें या अमित शाह की रणनीति आज देश में जिस तेजी से भाजपा का प्रसार हुआ है उसने भी कहीं न कहीं भाजपा को ये सबक दिया है कि अगर अभी नहीं तो फिर कभी नहीं.
वर्तमान में जैसी स्थिति महाराष्ट्र की है साफ़ पता चल रहा है कि भाजपा ने हथियार डाला दिए हैं और बैकफुट पर आ गई है. चूंकि महाराष्ट्र में सरकार किसी भी सूरत में बननी है ऐसे में दूसरी बड़ी पार्टी होने के नाते शिवसेना के पास अहम मौका है. माना जा रहा है कि अपने मंसूबों को पूरा करने के लिए शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस को साथ ला सकती है और सरकार बना सकती है.
यदि ऐसा होता है तो इस पूरी प्रक्रिया में अगर सबसे ज्यादा फायदा किसी को होगा तो वो केवल और केवल एनसीपी है. राजनीतिक समझ रखने वाले लोगों के बीच माना यही जा रहा हो कि इस समय एनसीपी की हालत वैसी ही है जैसी चुनाव से पहले शिवसेना की थी. यानी भाजपा और शिवसेना के बीच की तल्खी का फायदा एनसीपी को मिलने वाला है जिसकी पांचों अंगुलियां घी और सिर कढ़ाई में है.
आगे बात करने से पहले हमारे लिए दोनों ही दलों की विचारधारा पर बात कर लेना भी बहुत जरूरी है. बात विचारधारा की हुई है तो भले ही शिवसेना और एनसीपी की विचारधारा में अंतर हो. मगर बात जब मराठा राजनीति की आती है तो दोनों ही दल एक साथ एक मंच पर दिखाई देते हैं. चूंकि महाराष्ट्र के ये दोनों ही दलों का आधार मराठा कार्ड है इसलिए यदि दोनों दलों में गठबंधन होगा तो ये जितना फायदेमंद उध्दव ठाकरे के लिए रहेगा उतना ही फायदा ये एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार को भी पहुंचाएगा.
बहरहाल बात सत्ता और कुर्सी की है. जब लड़ाई सत्ता और कुर्सी की होती है तो कोई किसी का सगा नहीं होता और ये बात किसी और ने नहीं बल्कि खुद शिवसेना ने हमें समझाई है इसलिए आने वाले वक़्त में शिवसेना एनसीपी और कांग्रेस के बीच सत्ता संघर्ष देखने को मिल सकता है. यदि निकट भविष्य में ऐसा हुआ तो इसका स्वरुप कर्नाटक से भी ज्यादा घिनौना रहेगा.
बाकी बात उद्धव के प्लान B से शुरू हुई है तो महाराष्ट्र के सन्दर्भ में वो दूध से जल चुके हैं और अब जब कभी भी उनके हाथों में छाछ आए उसे उन्हें फूंक फूंककर पीना चाहिए. साथ ही उसे याद रखना चाहिए कि महाराष्ट्र में मनसे की हालत कुछ अच्छी नहीं है. सूबे की राजनीति के लिए एक बढ़िया मौका है जिसमें उसे किसी भी सूरत में नहीं चूकना चाहिए.
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