आजम खान ने राजनीति की जगह बदल ली है, लेकिन तौर तरीका नहीं. आजम खान पहली बार दिल्ली पहुंचे हैं क्योंकि 1980 में जब से पहली बार विधायक बने रामपुर से लखनऊ तक ही उनकी राजनीति हो जाया करती थी. लोक सभा पहुंचे समाजवादी पार्टी के पांच सांसदों में एक आजम खान भी है. अब पार्टी की राजनीतिक मौजूदगी के लिए कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा. आजम खान वही तो कर रहे हैं.
ऐसे कई नेता हैं जिनकी राजनीति में बड़ा हिस्सा बयानों का होता है, आजम खान के केस में ये हिस्सा विवादित बयानों के नाम रहता आया है. आजम खान बुलंदशहर बलात्कार में भी राजनीतिक ऐंगल निकाल लिये थे और काफी दिन तक सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी फजीहत होती रही.
आम चुनाव में आजम खान ने अपने खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार जया प्रदा पर बड़ी ही भद्दी टिप्पणी की थी. एक बार फिर वैसा काम आजम खान में लोक सभा की स्पीकर पर की है - और दिलचस्प बात ये है कि उनके नेता अखिलेश यादव ने पहले की ही तरह बचाव किया है.
ध्यान देने वाली बात है कि ये सब तब हुआ है जब संसद में तीन तलाक पर बहस चल रही थी - दोनों में कोई कनेक्शन भी हो सकता है क्या?
आजम खान की टिप्पणी यूं ही तो होती नहीं
समाजवादी के टिकट पर मोहम्मद आजम खान पहली बार संसद पहुंचे हैं और मौका मिलते ही अपनी छाप छोड़ने में भी देर नहीं लगायी है. आजम खान की कम ही टिप्पणियां होती हैं जिन पर बवाल नहीं होता. चुनावों के पहले भी, चुनावों के दौरान भी और चुनावों के बाद भी - आजम खान का रवैया एक जैसा ही रहता है.
संसद में तीन तलाक पर बहस चल रही थी. जब आजम खान बोलने के लिए खड़े हुए तो चेयर पर बीजेपी सांसद रमा देवी स्पीकर की भूमिका में थीं. रमा देवी बिहार के शिवहर से लोक सभा पहुंची हैं.
आजम खान ने खड़े होते ही एक शेर ठोक दिया, 'तू इधर उधर की ना बात कर...'
स्पीकर के रोल में चेयर पर आसीन रमा देवी ने भी सवा-'शेर' जड़ दिया, 'आप भी इधर उधर मत देखिये, चेयर को देखकर ही बात रखिये...'
ये सुनते ही आजम खान अपने मूल रूप में प्रकट हो गये...
आजम खान ने राजनीति की जगह बदल ली है, लेकिन तौर तरीका नहीं. आजम खान पहली बार दिल्ली पहुंचे हैं क्योंकि 1980 में जब से पहली बार विधायक बने रामपुर से लखनऊ तक ही उनकी राजनीति हो जाया करती थी. लोक सभा पहुंचे समाजवादी पार्टी के पांच सांसदों में एक आजम खान भी है. अब पार्टी की राजनीतिक मौजूदगी के लिए कोई न कोई उपाय तो करना ही होगा. आजम खान वही तो कर रहे हैं.
ऐसे कई नेता हैं जिनकी राजनीति में बड़ा हिस्सा बयानों का होता है, आजम खान के केस में ये हिस्सा विवादित बयानों के नाम रहता आया है. आजम खान बुलंदशहर बलात्कार में भी राजनीतिक ऐंगल निकाल लिये थे और काफी दिन तक सुप्रीम कोर्ट में भी उनकी फजीहत होती रही.
आम चुनाव में आजम खान ने अपने खिलाफ बीजेपी उम्मीदवार जया प्रदा पर बड़ी ही भद्दी टिप्पणी की थी. एक बार फिर वैसा काम आजम खान में लोक सभा की स्पीकर पर की है - और दिलचस्प बात ये है कि उनके नेता अखिलेश यादव ने पहले की ही तरह बचाव किया है.
ध्यान देने वाली बात है कि ये सब तब हुआ है जब संसद में तीन तलाक पर बहस चल रही थी - दोनों में कोई कनेक्शन भी हो सकता है क्या?
आजम खान की टिप्पणी यूं ही तो होती नहीं
समाजवादी के टिकट पर मोहम्मद आजम खान पहली बार संसद पहुंचे हैं और मौका मिलते ही अपनी छाप छोड़ने में भी देर नहीं लगायी है. आजम खान की कम ही टिप्पणियां होती हैं जिन पर बवाल नहीं होता. चुनावों के पहले भी, चुनावों के दौरान भी और चुनावों के बाद भी - आजम खान का रवैया एक जैसा ही रहता है.
संसद में तीन तलाक पर बहस चल रही थी. जब आजम खान बोलने के लिए खड़े हुए तो चेयर पर बीजेपी सांसद रमा देवी स्पीकर की भूमिका में थीं. रमा देवी बिहार के शिवहर से लोक सभा पहुंची हैं.
आजम खान ने खड़े होते ही एक शेर ठोक दिया, 'तू इधर उधर की ना बात कर...'
स्पीकर के रोल में चेयर पर आसीन रमा देवी ने भी सवा-'शेर' जड़ दिया, 'आप भी इधर उधर मत देखिये, चेयर को देखकर ही बात रखिये...'
ये सुनते ही आजम खान अपने मूल रूप में प्रकट हो गये - 'मुझे आप इतनी अच्छी लगती हैं कि मेरा मन करता है कि आप की आंखों में आखें डाले रहूं.'
फिर क्या था, आजम के इतना कहते ही हंगामा होने लगा. हंगामा सत्ता पक्ष के सदस्य कर रहे थे. उसके बाद स्पीकर रमा देवी ने आजम खान के शब्दों को संसद की कार्यवाही से हटाने का आदेश दे दिया.
आजम खान की टिप्पणी पर रमा देवी बोलीं, 'ये बात करने का तरीका नहीं है. अपनी टिप्पणी से वापस लीजिए.'
आजम खान ने मामला तूल पकड़ते देख स्थिति को संभालने की कोशिश भी की, 'आप काफी सम्मानित हैं, आप मेरी बहन जैसी हैं.'
शोरगुल के बीच आजम खान कहे जा रहे थे, 'मैंने उन्हें बहन कहा था, अगर संसदीय गरिमा से बाहर कोई अपशब्द बोला हो तो मैं अपना इस्तीफा अभी रखता हूं. ऐसे अपमानित होकर बोलने से क्या फायदा?' ऐसे ही बोलते हुए आजम खान सदन से बाहर चले गये. समाजवादी पार्टी के लोग भी साथ हो लिये.
जैसे भी हो तरीका तो ये बहिष्कार का ही था, लेकिन क्या ये सब पहले से तय था. वैसे भी आजम खान तो किसी भी मामले में राजनीतिक ऐंगल खोज निकालने में माहिर हैं - बुलंदशहर रेपकांड तक में आजम खान ने एक राजनीतिक कोण ढूंढ निकाला था. फजीहत चाहे जितनी भी हुई समाजवादी पार्टी का बचाव तो हो ही गया - और शायद उसी एहसान का बदला अखिलेश यादव उनके बयानों का बचाव कर चुका रहे हैं.
आजम का बयान लगता तो बहाना ही है
आजम खान ने जिस अंदाज में इस्तीफे की बात की और सदन से निकल गये - ये कोई मामूली बात तो नहीं लगती. मायावती ने भी एक बार राज्य सभा में ऐसा ही किया था. फर्क बस ये है कि मायावती ने इस्तीफा दे दिया था और आजम खान ने हाफ-पेशकश के सीन से गायब हो लिये.
आखिर जुमा-जुमा हुए ही कितने दिन आजम खान को लोक सभा पहु्ंचे हुए - और इस्तीफे की बात करने लगे. ये सब अचानक हुआ तो नहीं लगता.
समाजवादी पार्टी ने एक दिन पहले ही APA बिल के विरोध में विपक्ष के साथ सदन का बहिष्कार किया था. ये बात अलग है कि बहिष्कार में समाजवादी पार्टी के संरक्षक और मैनपुरी से सांसद मुलायम सिंह यादव शामिल नहीं हुए.
ऐसा कैसे हो सकता है कि मुद्दा तीन तलाक पर बहस का हो और इस्तीफे की बात अपमानित होने के नाम पर होने लगे?
क्या तीन तलाक पर आजम खान कुछ बोलना नहीं चाहते थे? आखिर असदुद्दीन ओवैसी भी तो मुस्लिम नेता हैं और तीन तलाक उनके लिए भी बेहद अहम मुद्दा है - वो तो लगातार बोलते रहे. बीच बीच में बीजेपी को महिला नेताओं को शबरीमाला भेजने के लिए भी चैलेंज करते रहे. आखिर आजम खान ने तीन तलाक पर कुछ क्यों नहीं बोला?
वैसे आजम खान ने जो भी बोला उसका खुले तौर पर समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बचाव किया. आजम खान का समर्थन करते हुए अखिलेश यादव ने कहा, 'मुझे नहीं लगता कि आजम खान का आशय किसी का अपमान करना था, बीजेपी के सांसद काफी रूड हैं, वो कौन होते हैं उंगली उठाने वाले.'
अखिलेश यादव का लहजा वैसा ही रहा जैसे उन्होंने जया प्रदा पर बयान के बाद आजम खान का बचाव किया था. आम चुनाव के दौरान रामपुर में एक चुनावी रैली में आजम खान ने कहा था, 'जिसको हम उंगली पकड़कर रामपुर लाये, आपने 10 साल जिनसे अपना प्रतिनिधित्व कराया... उसकी असलियत समझने में आपको 17 बरस लगे, मैं 17 दिन में पहचान गया कि इनकी अंडरवियर खाकी रंग का है.'
तीन तलाक का मुद्दा सीधे सीधे समाजवादी पार्टी और आजम खान की राजनीति में बीजेपी की घुसपैठ है. आजमगढ़ की एक रैली में प्रधानमंत्री ने तीन तलाक को लेकर कांग्रेस पर हमला बोला था - क्या ये सिर्फ मुस्लिम पुरुषों की पार्टी है? चुनाव में कांग्रेस जितने तो नहीं, लेकिन बीजेपी को मुस्लिम वोट तो मिले ही. जाहिर है महिलाओं ने ही सपोर्ट किया होगा.
बीजेपी सरकार तीन तलाक बिल के जरिये मुस्लिम वोट में बंटवारे की कोशिश कर रही है. जो लोग मुस्लिम वोट बैंक की राजनीति करते हैं उनके लिए तो ये गहरा धक्का है. आजम खान और समाजवादी पार्टी की 'मुल्ला-मुलायम' छवि का तो अस्तित्व ही खत्म हो सकता है.
लगता तो ऐसा ही है जैसे समाजवादी पार्टी तीन तलाक पर पूरी तैयारी के साथ आयी थी - और आजम खान को लीड रोल देकर सदन में अपनी मौजूदगी का 'द एंड' कर दिया. अब चाहें तो तीन तलाक पर अपना स्टैंड अपने इलाके में अपने तरीके से समझा सकते हैं.
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