यूपी के जांघिया छाप नेता क्या जानें अंडरवियर के बारे में. वो सिर्फ बकवास करके दूसरे नेताओं की बेइज्जती तो कर सकते हैं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र में एक चड्डी की फैक्ट्री नहीं लगवा सकते. भारत में इनरवियर का मार्केट 28 हजार करोड़ रुपए से आगे निकल गया है. इसमें महिलाओं के इनरवियर की हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ से ज्यादा की और पुरुषों के इनरवियर का मार्केट 9 हजार करोड़ से कुछ ज्यादा का बैठता है. बाकी करीब हजार करोड़ के बाजार पर बच्चों के इनरवियर का दबदबा है. टोटल अपैरल मार्केट में इनरवियर की हिस्सेदारी 2017 में ही 10 परसेंट से ज्यादा की हो गई थी और ये लगातार बढ़ती जा रही है. ब्रांडेड इनरवियर का मार्केट करीब 40 फीसदी बैठता है और बढ़ते मध्यमवर्ग के चलते इसके सालों-साल बढ़ने की गुंजाइश भी ज्यादा है. भारत में 2027 तक इनरवियर मार्केट 74 हजार करोड़ रुपए के पार निकल जाएगा.
दरअसल इनरवियर का मार्केट मंदी-प्रूफ कारोबारों में गिना जाता है. चड्डी का बाजार भारत क्या पूरी दुनिया में इतना बड़ा है कि इसकी दुकानें फुटपाथ से लेकर मॉल्स तक में मिलती हैं. हां भारत की कंपनियां अभी इंटरनेशनल मार्केट में वो स्थान नहीं बना पाई हैं जो केल्विन कीन जैसी शीर्ष कंपनियों को हासिल है. इनरवियर के रंगों को लेकर लोगों की पसंद के बारे में कई सर्वे हो चुके हैं और लब्लोलुआब ये है कि नेताओं के पसंदीदा सफेद रंग के अलावा काला और नीला महिलाओं-पुरुषों को काफी पसंद आता है. खाकी नहीं. पर नेताओं के दिमाग से खाकी कभी उतरता ही नहीं है. सत्ता में रहते हैं तो खाकी का दुरुपयोग उनका शगल होता है और सत्ता से बाहर होने पर खाकी को गाली देते हैं. यानी उनको एक तरह से खाकी का नशा होता है.
खैर अब बात अंडरवियर...
यूपी के जांघिया छाप नेता क्या जानें अंडरवियर के बारे में. वो सिर्फ बकवास करके दूसरे नेताओं की बेइज्जती तो कर सकते हैं लेकिन अपने संसदीय क्षेत्र में एक चड्डी की फैक्ट्री नहीं लगवा सकते. भारत में इनरवियर का मार्केट 28 हजार करोड़ रुपए से आगे निकल गया है. इसमें महिलाओं के इनरवियर की हिस्सेदारी 18 हजार करोड़ से ज्यादा की और पुरुषों के इनरवियर का मार्केट 9 हजार करोड़ से कुछ ज्यादा का बैठता है. बाकी करीब हजार करोड़ के बाजार पर बच्चों के इनरवियर का दबदबा है. टोटल अपैरल मार्केट में इनरवियर की हिस्सेदारी 2017 में ही 10 परसेंट से ज्यादा की हो गई थी और ये लगातार बढ़ती जा रही है. ब्रांडेड इनरवियर का मार्केट करीब 40 फीसदी बैठता है और बढ़ते मध्यमवर्ग के चलते इसके सालों-साल बढ़ने की गुंजाइश भी ज्यादा है. भारत में 2027 तक इनरवियर मार्केट 74 हजार करोड़ रुपए के पार निकल जाएगा.
दरअसल इनरवियर का मार्केट मंदी-प्रूफ कारोबारों में गिना जाता है. चड्डी का बाजार भारत क्या पूरी दुनिया में इतना बड़ा है कि इसकी दुकानें फुटपाथ से लेकर मॉल्स तक में मिलती हैं. हां भारत की कंपनियां अभी इंटरनेशनल मार्केट में वो स्थान नहीं बना पाई हैं जो केल्विन कीन जैसी शीर्ष कंपनियों को हासिल है. इनरवियर के रंगों को लेकर लोगों की पसंद के बारे में कई सर्वे हो चुके हैं और लब्लोलुआब ये है कि नेताओं के पसंदीदा सफेद रंग के अलावा काला और नीला महिलाओं-पुरुषों को काफी पसंद आता है. खाकी नहीं. पर नेताओं के दिमाग से खाकी कभी उतरता ही नहीं है. सत्ता में रहते हैं तो खाकी का दुरुपयोग उनका शगल होता है और सत्ता से बाहर होने पर खाकी को गाली देते हैं. यानी उनको एक तरह से खाकी का नशा होता है.
खैर अब बात अंडरवियर के लोकल मार्केट की. भारत में कानपुर, कोलकाता, समेत दक्षिण के कई शहरों में पट्टेदार कपड़े का स्थानीय जांघिया बनता है लेकिन शायद ही किसी नेता ने इसकी फैक्टरी या इकाई लगाई हो क्योंकि ठेकेदारी के मुकाबले ये बहुत फायदे का बिजनेस नहीं होता. नेताओं को चड्डी के बारे में बोलने में ज्यादा फायदा नजर आता है. हालांकि इसके लिए उनको आयोग का डंडा भी भी झेलना पड़ता है लेकिन बदनाम होंगे तो नाम होगा को वे सत्य मानते हैं.
नेता हमेशा चर्चा में रहना चाहते हैं और चुनाव के दौरान तो खासतौर पर इसलिए कुछ भी बोल रहे हैं. नेताओं की औकत उनके कर्मों से ही जनता तय करती है ऐसी धारणा है. जब नेता ही चड्डी छाप हो जाएगा, चड्डी का ब्रांड एंबेसडर बनने की कोशिश करेगा तो उसकी औकात उसी के मुताबिक होगी. बॉलीवुड के तमाम अभिनेता इनरवियर के विज्ञापन करते हैं. यही नहीं टीवी पर समाचार चैनलों के बुलेटिन की प्रायोजक भी बड़ी संख्या में चड्डी कंपनियां हैं. शायद अभिनेताओं को चुनौती देने के लिए नेताजी के श्रीमुख से ये शब्द निकाल हो.
वो चड्डी की पताका फहराना चाहते हैं लेकिन जानते नहीं कि राजनीति में ढीली अंडरवियर उनकी अपनी इज्जत का फालूदा बनाकर रख देगी. नेताजी अपना लक पहनकर चल रहे हैं और मई की भरी गर्मी में उनकी किस्मत का फैसला होने वाला है. जो माहौल है उसके मुताबिक, चुनाव खास दो रंगों में बंट चुका है. एक हार का और एक जीत का है. चड्डी पहनकर फूल खिल सकता है और बिना चड्डी के सिवाय बेइज्जती के कुछ हासिल नहीं होता. चालाकियां काम नहीं आतीं. सार्वजनिक तौर पर माफी मांग लेंगे तो नेताजी बच भी सकते हैं लेकिन वो तो नेताजी की पार्टी की लुटिया डुबाने में लगे हैं. ठीक दूसरे चरण में ऐसी गलीच हरकत से उनके दिमाग के बजबजाते गटर का अंदाजा लगता है. जाति-धर्म का गणित लगाकर चुनाव तो जीते जा सकते हैं लेकिन चरित्र और संस्कार पैदा होने में कई पीढ़ियों की मेहनत लगती है तब जाकर प्रतिष्ठा पैदा होती है. भैंस चोरी हो जाए तो पुलिस को लगाकर ढूंढने से आपके दिमाग का गोबर सामने आता है.
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