देश के दानिशमंद मुस्लिम अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में नज़र आये. इन ख़ास लोगों का जैसा नज़रिया आम मुसलमानों का भी है, क्योंकि ये ख़ास नहीं आम हैं इसलिए इनका ख्याल मंजरे आम पर नहीं आ पा रहा है. राम मंदिर के पक्ष में मुस्लिम समाज के इस ख़ास और प्रबुद्ध वर्ग में कोई आईएएस है तो कोई ए एम यू का पूर्व वाइस चांसलर. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में इनके सहयोग की भावना दुनिया तक पंहुची क्योंकि ये खास लोग हैं. बुद्धिजीवी हैं. अयोध्या मसले पर इन गैर मामूली शख्सियतों का ख्याल मीडिया ने सारे जहान तक पंहुचाया. सोशल मीडिया ने सौहार्द की ये भावना वायरल की. किंतु इस मसले पर आम मुसलमानों का नर्म रुख़ दुनिया तक नहीं आ पा रहा है.
तमाम आम लोगों से बातचीत में पता चलता है कि मुस्लिम समाज अपने हिन्दू भाइयों की भावनाओं का एहसास कर रहा है. अकलियत (अल्पसंख्यक) वर्ग के आम लोगों मे भी इस तरह की राय सामने आने लगी है कि यदि मुस्लिम पक्ष के हक में भी अदालती फैसला आये तब भी मुस्लिम पक्ष राम मंदिर के भव्य निर्माण के लिए भूमि दे दें. सदियों पुराने इस विवाद ने दशक दर दशक नफरतों का कारोबार किया है.
अब कानून का फैसला विवाद के काले अध्याय को खत्म करने वाला है. इसी बीच हम मोहब्बत से नफरत के इस इतिहास को विदा करें.मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने वाले पेशे से पेंटर (पुताई करने वाले) मल्लन कहते हैं कि मस्जिदें तो लाखों है लेकिन राम जन्मभूमि तो एक ही है. जैसे हमारा काबा वैसे हिंदू भाइयो के लिए राम जन्म भूमि. इस्लाम दूसरे की भावनाओं की कद्र करने की तालीम देता है. इस्लाम कहता है कि यदि पड़ोसी भूखा है तो हमारा खाना जायज नहीं है. हम अपने पड़ोसी हिंदू भाइयों की धार्मिक भावनाओं...
देश के दानिशमंद मुस्लिम अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में नज़र आये. इन ख़ास लोगों का जैसा नज़रिया आम मुसलमानों का भी है, क्योंकि ये ख़ास नहीं आम हैं इसलिए इनका ख्याल मंजरे आम पर नहीं आ पा रहा है. राम मंदिर के पक्ष में मुस्लिम समाज के इस ख़ास और प्रबुद्ध वर्ग में कोई आईएएस है तो कोई ए एम यू का पूर्व वाइस चांसलर. अयोध्या में राम मंदिर निर्माण में इनके सहयोग की भावना दुनिया तक पंहुची क्योंकि ये खास लोग हैं. बुद्धिजीवी हैं. अयोध्या मसले पर इन गैर मामूली शख्सियतों का ख्याल मीडिया ने सारे जहान तक पंहुचाया. सोशल मीडिया ने सौहार्द की ये भावना वायरल की. किंतु इस मसले पर आम मुसलमानों का नर्म रुख़ दुनिया तक नहीं आ पा रहा है.
तमाम आम लोगों से बातचीत में पता चलता है कि मुस्लिम समाज अपने हिन्दू भाइयों की भावनाओं का एहसास कर रहा है. अकलियत (अल्पसंख्यक) वर्ग के आम लोगों मे भी इस तरह की राय सामने आने लगी है कि यदि मुस्लिम पक्ष के हक में भी अदालती फैसला आये तब भी मुस्लिम पक्ष राम मंदिर के भव्य निर्माण के लिए भूमि दे दें. सदियों पुराने इस विवाद ने दशक दर दशक नफरतों का कारोबार किया है.
अब कानून का फैसला विवाद के काले अध्याय को खत्म करने वाला है. इसी बीच हम मोहब्बत से नफरत के इस इतिहास को विदा करें.मुस्लिम समाज से ताल्लुक रखने वाले पेशे से पेंटर (पुताई करने वाले) मल्लन कहते हैं कि मस्जिदें तो लाखों है लेकिन राम जन्मभूमि तो एक ही है. जैसे हमारा काबा वैसे हिंदू भाइयो के लिए राम जन्म भूमि. इस्लाम दूसरे की भावनाओं की कद्र करने की तालीम देता है. इस्लाम कहता है कि यदि पड़ोसी भूखा है तो हमारा खाना जायज नहीं है. हम अपने पड़ोसी हिंदू भाइयों की धार्मिक भावनाओं का एहसास ना करके अपनी इबादत को कैसे अंजाम दे सकते हैं.
एक इमामबाड़े के मुतावल्ली रहे तूरज जैदी कहते हैं कि अयोध्या की इस विवादित भूमि की खुदाई में पुरात्तत्व विभाग ने मंदिर के अवशेष पाये हैं. बाबर के क्रूर व्यवहार के इतिहास और खुदाई में मिले सुबूत से अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां कभी मंदिर तोड़कर मस्जिद बनी होगी. इन प्रमाणों के मद्देनजर ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि हो सकता है कि राम मंदिर के हक में फैसला आये. और यदि मुस्लिम पक्ष के हक में भी फैसला आये तब भी देश की तरक्की, अमन चैन और भाइचारे की खातिर मुस्लिम समाज को चाहिए कि इस भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए दे दें.
क्योंकि देश-दुनिया के अरबों हिन्दू भाइयों का अक़ीदा (विश्वास) है कि इस स्थान पर ही मर्यादा पुरषोत्तम भगवान श्री रामचन्द्र जी का जन्म हुआ था. यानी ये राम जन्मभूमि है. और हर किसी का जन्म स्थान तो एक ही होता है. लखनऊ निवासी सय्यद ज़रग़ाम हुसैन ने कहा कि चंद मुसलमान ही राम मंदिर निर्माण के रास्ते की रुकावट बने हैं. जबकि अधिकांश मुसलमान तो ये चाहते हैं कि अयोध्या मामले पर यदि मुस्लिम पक्ष के हक़ में फैसला आये तब भी मुस्लिम समाज की तरफ से इस भूमि को राम मंदिर निर्माण के लिए गिफ्ट कर दें.
इस कुर्बानी से सदियों तक भारत के हिन्दू-मुसलमानों के बीच रिश्तों में मिठास घुली रहेगी. अमन-चैन रहेगा तो देश तरक्की की तरफ बढ़ेगा. देश आगे बढ़ेगा तो मुस्लिम समाज भी तरक्की करेगा.। मंदिर विरोधी चंद लोग ये तर्क दे रहे हैं कि बाबर के पास जमीन की कमी थोड़ी थी जो वो राम मंदिर तोड़ कर मस्जिद बनवाता.
ये तर्क गलत लगता है. क्योंकि इतिहास के वरक़और भी पीछे पलटये. इस्लाम की अवधारणा, तबलीग, विकास, प्रमोशन और उदय में मूर्तिपूजा के विरोध के प्रमाण मिलते हैं. हर मुसलमान स्वीकार करता है कि जिस स्थान पर काबा है वहां पहले बुत (मूर्तियां) रखे थे. बुतों को हटा कर खुदा का घर काबा विकसित हुआ था. इसलिए इसमें ताजुब नहीं कि बाबर ने मंदिर के स्थान पर मस्जिद बनायी हो.
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