यूपी में चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो और अयोध्या और राम जन्मभूमि मंदिर चर्चा में न आए...ऐसा कैसे हो सकता है. अयोध्या, रामलला और बाबरी मस्जिद विवाद एक बार फिर चर्चा में है. एक किताब आई है 'अयोध्या रीविजिटेड' (Ayodhya Revisited). इसे लिखा है किशोर कुणाल ने. उन्होंने अपनी इस किताब में राम मंदिर से लेकर बाबरी मस्जिद और फिर उसके ढांचे के ध्वंस तक के एतिहासिक तथ्यों पर खुल कर बात की है और कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
कौन हैं किशोर कुणाल
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल साल 1990 से लेकर 1992 के बीच गृह मंत्रालय में विशेष पदस्थ अधिकारी थे और चंद्रशेखर सरकार के दौरान मंदिर-मस्जिद विवाद सुलझाने को लेकर दोनों समुदायों के बीच बातचीत में उन्होंने अहम भूमिका भी निभाई थी. उनके किताब की सबसे खास बात ये है कि उन्होंने उन बातों को तथ्यों के साथ सामने रखा है जिसका अब तक कोई जिक्र भी नहीं होता था. कुणाल की ये किताब उनलोगों पर तमाचा है जो वर्षों से चली आ रही कुछ मनगढंत कहानियों को इतिहास का मुखौटा पहनाते हैं और फिर उस पर सियासी रोटियां सेंकते हैं.
क्यों खास है किशोर कुणाल की किताब 'अयोध्या रीविजिटेड'
- किताब का फॉर्वर्ड भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेबी पटनायक ने लिखा है और बकौल लेखक फॉर्वर्ड लिखने के लिए उन्होंने 14 महीने का समय लिया. फॉर्वर्ड लिखने से पहले जेबी पटनायक की शर्त थी कि वे मैनुस्क्रिप्ट पूरी पढ़ेंगे और तथ्यों की छानबीन से संतुष्ट होने के बाद ही लिखेंगे. किताब के फॉर्वर्ड में जस्टिस पटनायक लिखते हैं कि 'अयोध्या रीविजिटेड' हिंदुस्तान के लिए महान धरोहर जैसी है और इस किताब से दोनों समुदायों के बीच मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने में मदद मिलेगी.
- करीब 20 साल के रिसर्च के बाद लिखी इस किताब में कुणाल का दावा है कि मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दरअसल एक ऐतिहासिक भूल है. मस्जिद ना तो बाबर ने बनवाई और ना ही राम मंदिर ध्वंस किया....
यूपी में चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो और अयोध्या और राम जन्मभूमि मंदिर चर्चा में न आए...ऐसा कैसे हो सकता है. अयोध्या, रामलला और बाबरी मस्जिद विवाद एक बार फिर चर्चा में है. एक किताब आई है 'अयोध्या रीविजिटेड' (Ayodhya Revisited). इसे लिखा है किशोर कुणाल ने. उन्होंने अपनी इस किताब में राम मंदिर से लेकर बाबरी मस्जिद और फिर उसके ढांचे के ध्वंस तक के एतिहासिक तथ्यों पर खुल कर बात की है और कई चौंकाने वाले खुलासे किए हैं.
कौन हैं किशोर कुणाल
रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी किशोर कुणाल साल 1990 से लेकर 1992 के बीच गृह मंत्रालय में विशेष पदस्थ अधिकारी थे और चंद्रशेखर सरकार के दौरान मंदिर-मस्जिद विवाद सुलझाने को लेकर दोनों समुदायों के बीच बातचीत में उन्होंने अहम भूमिका भी निभाई थी. उनके किताब की सबसे खास बात ये है कि उन्होंने उन बातों को तथ्यों के साथ सामने रखा है जिसका अब तक कोई जिक्र भी नहीं होता था. कुणाल की ये किताब उनलोगों पर तमाचा है जो वर्षों से चली आ रही कुछ मनगढंत कहानियों को इतिहास का मुखौटा पहनाते हैं और फिर उस पर सियासी रोटियां सेंकते हैं.
क्यों खास है किशोर कुणाल की किताब 'अयोध्या रीविजिटेड'
- किताब का फॉर्वर्ड भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जेबी पटनायक ने लिखा है और बकौल लेखक फॉर्वर्ड लिखने के लिए उन्होंने 14 महीने का समय लिया. फॉर्वर्ड लिखने से पहले जेबी पटनायक की शर्त थी कि वे मैनुस्क्रिप्ट पूरी पढ़ेंगे और तथ्यों की छानबीन से संतुष्ट होने के बाद ही लिखेंगे. किताब के फॉर्वर्ड में जस्टिस पटनायक लिखते हैं कि 'अयोध्या रीविजिटेड' हिंदुस्तान के लिए महान धरोहर जैसी है और इस किताब से दोनों समुदायों के बीच मंदिर-मस्जिद को लेकर चल रहे विवाद को सुलझाने में मदद मिलेगी.
- करीब 20 साल के रिसर्च के बाद लिखी इस किताब में कुणाल का दावा है कि मस्जिद का नाम बाबरी मस्जिद दरअसल एक ऐतिहासिक भूल है. मस्जिद ना तो बाबर ने बनवाई और ना ही राम मंदिर ध्वंस किया. ये करतूत औरंगजेब के गवर्नर की थी.
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- किताब के अनुसार 1813 में एक शिया धर्म गुरू ने शिलालेख में हेरफेर किया था. तभी से ये बात चली आ रही है कि बाबर के कहने पर मीर बाकी ने ये मस्जिद बनाई थी. कुणाल इस शिलालेख को फर्जी बताते हैं. वे इस किताब में हर बात के समर्थन में प्रमाण भी देते चलते हैं.
- ऐतिहासिक दस्तावेजों और तत्कालीन साहित्यकारों के लिखे साहित्य के आधार पर कुणाल साबित करने की कोशिश करते हैं कि बाबर सर्वधर्मसमभाव मानने वाला शासक था. वह हिंदु साहित्यकारों/कलाकारों की आर्थिक सहायता भी करता था. तथ्य ये भी है अयोध्या में राममंदिर गिराना और मस्जिद बनवाना तो दूर, बाबर कभी अयोध्या गया ही नहीं.
मंदिर-मस्जिद के विवाद में कैसे उलझ गई अयोध्या नगरी |
- कुणाल वैज्ञानिक तरीके से साक्ष्यों और ऐतिहासिक तथ्यों को आधार बनाकर ये भी साबित करते हैं कि वहां राम मंदिर था. इस तथ्य को साबित करने के लिए 11 ऐतिहासिक प्रमाण दिए गए हैं. अब तक मंदिर-मस्जिद विवाद को लेकर जो भ्रांति का शिकार रहे हैं, उनके लिए इस किताब में बहुत कुछ है. खास बात ये है कि स्वयं कुणाल राम मंदिर के निर्माण के पक्ष में हैं. - इस किताब में कुणाल बताते हैं कि 1949 में निर्जन मस्जिद में राम लला की मूर्ति रखने वाले बाबा अभिरामदासजी को 1955 में बाराबंकी के एक मुस्लिम जमींदार कय्यूम किदवई ने 50 एकड़ जमीन दान दी थी. तब दोनों समुदायों में कोई विवाद भी नहीं हुआ था.
बहरहाल, स्कॉलर्स और आम लोगों से कहीं ज्यादा इस किताब का प्रयोग मंदिर-मस्जिद की राजनीति को पुनर्जीवित करने में हो सकता है क्योंकि किताब में आए कई तथ्य इस पूरे मामले को नयी रोशनी में देखते हैं. बताया जा रहा है कि 600 पन्ने की इस किताब का दूसरा भाग भी इसी साल आने की उम्मीद है जिसका फोकस होगा अयोध्या में पिछले तीन दशकों से चल रही मंदिर-मस्जिद की राजनीति. फिलहाल तो इस किताब ने अयोध्या के इतिहास को एक नया आयाम दे ही दिया है.
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