पाकिस्तानी फौजों की तरफ से बलूचिस्तान में किए जा रहे जुल्मों-सितम के खिलाफ आवाज उठाने वाली प्रखर महिला एक्टिविस्ट करीमा बलोच की हाल ही में कनाडा (Canada) में सुनियोजित निर्मम हत्या में पाकिस्तान (Pakistan) की धूर्त और शातिर इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई (ISI) का नाम सामने आ रहा है. बलोच पाकिस्तान सरकार, सेना और आईएसआई की आंखों की किरकिरी बन चुकी थीं. वह पाकिस्तान सरकार की काली करतूतों की कहानी लगातार दुनिया को बता रही थीं. इसीलिए उसे आईएसआई ने ठिकाने लगा दिया. बलोच के कत्ल ने साफ कर दिया है कि कनाडा एक अराजक मुल्क के रूप में आगे बढ़ रहा है. वहां पर खालिस्तानी तत्व तो पहले से ही जड़ें जमा ही चुके हैं. अब वहां पर आईएसआई भी सक्रिय हो गई है. उसकी तरफ से अब उन लोगों पर वार होते रहेंगे जो पाकिस्तान में मानवाधिकारों, जनवादी अधिकारों के हनन और बढ़ते कठमुल्लापन के खिलाफ बोलते हैं.
अराजकता की ओर बढ़ता कनाडा
गौर करें कि यह सब उसी कनाडा में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत सरकार को प्रवचन दे रहे हैं किसानों के आंदोलन को लेकर. जस्टिन ट्रूडो कह रहे हैं कि भारत सरकार अपने आंदोलनकारी किसानों की मांगों को माने। कहते हैं, जो शीशे के घरों में रहते हैं उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। जस्टिन ट्रूडो के अपने देश में जंगल राज वाली स्थितियां बन रहीं हैं, पर वे भारत के आंतरिक मामलों में बेशर्मी से हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आ रहे. उन्होंने अभी तक बलोच के कत्ल पर एक भी शब्द नहीं बोला है. क्यों? उन्हें इस सवाल का जवाब तो विश्व को देना ही होगा.
मोदी को भेजी राखी
करीमा बलोच को भारत से बहुत उम्मीदें थीं. वो...
पाकिस्तानी फौजों की तरफ से बलूचिस्तान में किए जा रहे जुल्मों-सितम के खिलाफ आवाज उठाने वाली प्रखर महिला एक्टिविस्ट करीमा बलोच की हाल ही में कनाडा (Canada) में सुनियोजित निर्मम हत्या में पाकिस्तान (Pakistan) की धूर्त और शातिर इंटेलिजेंस एजेंसी आईएसआई (ISI) का नाम सामने आ रहा है. बलोच पाकिस्तान सरकार, सेना और आईएसआई की आंखों की किरकिरी बन चुकी थीं. वह पाकिस्तान सरकार की काली करतूतों की कहानी लगातार दुनिया को बता रही थीं. इसीलिए उसे आईएसआई ने ठिकाने लगा दिया. बलोच के कत्ल ने साफ कर दिया है कि कनाडा एक अराजक मुल्क के रूप में आगे बढ़ रहा है. वहां पर खालिस्तानी तत्व तो पहले से ही जड़ें जमा ही चुके हैं. अब वहां पर आईएसआई भी सक्रिय हो गई है. उसकी तरफ से अब उन लोगों पर वार होते रहेंगे जो पाकिस्तान में मानवाधिकारों, जनवादी अधिकारों के हनन और बढ़ते कठमुल्लापन के खिलाफ बोलते हैं.
अराजकता की ओर बढ़ता कनाडा
गौर करें कि यह सब उसी कनाडा में हो रहा है जिसके प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो भारत सरकार को प्रवचन दे रहे हैं किसानों के आंदोलन को लेकर. जस्टिन ट्रूडो कह रहे हैं कि भारत सरकार अपने आंदोलनकारी किसानों की मांगों को माने। कहते हैं, जो शीशे के घरों में रहते हैं उन्हें दूसरों के घरों पर पत्थर नहीं फेंकने चाहिए। जस्टिन ट्रूडो के अपने देश में जंगल राज वाली स्थितियां बन रहीं हैं, पर वे भारत के आंतरिक मामलों में बेशर्मी से हस्तक्षेप करने से बाज नहीं आ रहे. उन्होंने अभी तक बलोच के कत्ल पर एक भी शब्द नहीं बोला है. क्यों? उन्हें इस सवाल का जवाब तो विश्व को देना ही होगा.
मोदी को भेजी राखी
करीमा बलोच को भारत से बहुत उम्मीदें थीं. वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपना भाई मानती थीं. दरअसल, साल 2016 के रक्षाबंधन पर करीमा बलोच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राखी भेजी थी और अपना भाई बनाया था. इस राखी के साथ ही करीमा बलोच ने मोदीजी से बलूचिस्तान की आजादी की गुहार लगाई थी. साल 2016 में करीमा बलोच ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक संदेश दिया था, जिसमें उन्होंने कहा था कि रक्षाबंधन के दिन एक बहन आपको भाई मानकर कुछ मांगना चाहती है. बलूचिस्तान में कितने भाई शहीद हो गए और वापस नहीं आए. बलूचिस्तान के लोग आपको मानते हैं, ऐसे में आप दुनिया के सामने हमारे आंदोलन की आवाज बनें.
दरअसल करीमा बलोच 2016 से ही कनाडा में शरण लेकर रह रही थीं. कनाडा के प्रधानमंत्री बताएं कि उन्होंने बलोच को पर्याप्त सुरक्षा क्यों नहीं दी.
हालांकि, कुछ वक्त पहले ही उन्होंने एक वीडियो संदेश में अपनी जान को खतरा होने की बात कही थी? करीमा बलोच की गिनती दुनिया की 100 सबसे प्रेरणादायी महिलाओं में की जाती थी. करीमा बलोच के कत्ल से समझ आ जाता है कि पाकिस्तान सरकार बलूचिस्तान में चल रहे अलगाववादी आंदोलन को लेकर कितनी परेशान है.
अंधकार में रहता बलूचिस्तान
बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे पिछड़ा हुआ सूबा है. विकास से कोसों दूर है बलूचिस्तान. बलूचिस्तान पाकिस्तान से शुरू से ही अलग होना चाहता है. कायदे से वह बंटवारे के समय भारत के साथ ही रहना चाहता था. स्वतंत्र राज्य था ही. पर पंडित नेहरु ने उसे उदारतापूर्वक पाकिस्तान को दान में दे दिया. वह तो आजादी के समय भी भारत का हिस्सा बनना चाहता था.बलूचिस्तान पाकिस्तान के पश्चिम का राज्य है जिसकी राजधानी क्वेटा है.
के पड़ोस में ईरान और अफगानिस्तान है. 1944 में ही बलूचिस्तान को आजादी देने के लिए माहौल बन रहा था. लेकिन, 1947 में इसे जबरन पाकिस्तान में शामिल कर लिया गया. तभी से बलूच लोगों का संघर्ष चल रहा है और उतनी ही ताकत से पाकिस्तानी सेना और सरकार बलूच लोगों को कुचलती रही है. पाकिस्तान सेना की ताकत ने ही उसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाकर रखा हुआ है. पर मजाल है कि जस्टिन ट्रूडो ने कभी एक शब्द भी बलूचिस्तान की स्थिति पर भी बोला हो.
पाकिस्तानी सेना स्वात घाटी और बलूचिस्तान में विद्रोह को दबाने के लिए आये दिन टैंक और लड़ाकू विमानों तक का इस्तेमाल करती है. जो पाकिस्तान बात-बात पर कश्मीर का रोना रोता होता है, उसने कभी भी बलूचिस्तान में कोई विकास कार्य नहीं किया. बलूचिस्तान कमोबेश अंधकार के युग में जी रहा है. क्या ये सब जस्टिन ट्रूडो को दिखाई नहीं देता? बलूचिस्तान में चल रहे सघन पृथकतावादी आंदोलन ने पाकिस्तान सरकार की नाक में दम कर रखा है, यह सब जानते हैं पर ट्रूडो अपनी अनभिज्ञता का स्वांग भर रहे हैं.
पाकिस्तान के चार सूबे हैं, पंजाब, सिंध, बलूचिस्तान और ख़ैबर-पख़्तूनख़्वा. इनके अलावा पाक अधिकृत कश्मीर और गिलगित-बल्टिस्तान भी पाकिस्तान द्वारा नाजायज ढंग से नियंत्रित हैं, जिसे पाकिस्तान ने अवैध रूप से भारत से हड़प रखा है. एक न एक दिन ये दोनों जिले भारत से मिलेंगे ही. पाकिस्तानी सेना बलूचिस्तान में महिलाओं के साथ आये दिन खुलेआम बलात्कार करती रहती है.
मर्दों को बड़ी बेरहमी और बेदर्दी से मारती है. बलूचिस्तान की जनता तब से पाकिस्तान से और भी दूर हो गया था जब कुछ साल पहले बलूचिस्तान के एकछत्र नेता नवाब अकबर खान बुगती की हत्या कर दी गई थी. उनकी हत्या में पाकिस्तान के पूर्व तानाशाह जनरल परवेज मुशर्रफ का हाथ बताया जाता है.
बहरहाल, बलूचिस्तान के अवाम का कहना है कि जैसे 1971 में पाकिस्तान से कटकर बांग्लादेश बन गया था उसी तरह एक दिन बलूचिस्तान अलग देश तो बन ही जाएगा. बलूचिस्तान के लोग किसी भी कीमत पर पाकिस्तान से अलग हो जाना चाहते हैं. करीमा बलोच की हत्या को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री भले ही न बोलें पर भारत को बलूचिस्तान की जनता के हक में अपनी आवाज बुलंद करनी ही होगी. बलोच की शहादत किसी भी सूरत में खाली नहीं जानी चाहिए.
इस बीच, भारतीय नागरिकों को, खासतौर पर पंजाब प्रांत से संबंध रखने वालों को, कनाडा को लेकर अपनी सोच बदलनी चाहिए. आप कभी मौका मिले तो सोमवार से शुक्रवार तक के बीच राजधानी के चाणक्यपुरी इलाके का चक्कर लगा लें. इधर सुबह से ही आपको बड़ी तादाद में महिलाएं, पुरुष और बच्चे तैयार घूमते हुए मिलेंगे. इन्हें देखकर लगता है, मानो ये सब सुबह ही किसी विवाह सामरोह में भाग लेने के लिए जा रहे हों.
ये अधिकतर कनाडा हाई कमीशन के आसपास घूम रहे होते हैं. ये अलग-अलग समूहों में खड़े होकर आपस में बतिया भी रहे होते हैं. वैसे तो कुछ और दूतावासों और उच्यायोगों के बाहर भी वीजा की चाहत रखने वाले खड़े होते है, पर कनाड़ा हाई कमीशन के तो क्या कहने. इधर आने वालों के चेहरे के भाव पढ़ेंगे तो लगेगा मानो वीजा की जगह भीख मांग रहे हों. क्या इन्हें उस देश में जाने के पहले सोचना नहीं चाहिए जहां पर भारत विरोधी गतिविधियां लगातार बढ़ रही हैं और जो अराजकता के जाल में फंस रहा है?
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