Loksabha Election results 2019 के Exit Poll 2019 के लिए मीडिया को वोटिंग खत्म हो जाने का इंतजार रहा. नेताओं का Exit Poll पहले ही शुरू हो गया. Exit Poll में जो बातें मीडिया और सर्वे एजेंसियां लोगों से पूछ कर बताती हैं, नेताओं ने इसे अपने हाव भाव से बताना पहले ही शुरू कर दिया - सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक दूसरे को टक्कर देने लगे. वैसे तो देश की नजर टीवी चैनलों पर टिकी है, जो लोकसभा चुनाव नतीजों का पूर्वानुमान एग्जिट पोल के जरिए बताने वाले हैं.
बीजेपी की तरह पूरे विपक्ष को एक साथ प्रेस कांफ्रेंस का मौका नहीं बन पाया तो मुलाकातों का सिलसिला चला कर मैसेज देने की कोशिश की गयी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ पहुंच कर अपने समर्थकों को खास संदेश देने की कोशिश कर रहे थे, तो चंद्रबाबू नायडू की ताबड़तोड़ मुलाकातें मीडिया का ध्यान खींच रही हैं. लब्बोलुआब यही है कि सत्ता पक्ष निश्चिंतता के प्रदर्शन से आश्वस्ति का भाव प्रकट करना चाहता है तो विपक्ष ये जताने की कि वे मैदान से बाहर तो बिलकुल नहीं है - ये नेताओं का एग्जिट पोल ही तो है.
ये छुट्टी नहीं, ब्रेक है!
वोटिंग के पहले कत्ल की रात होती है तो नतीजे आने के पूर्व कर्मों के फल का इंतजार रहता है. बीजेपी नेतृत्व ने चुनाव प्रचार के खत्म होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर लोगों को समझाने की कोशिश की कि नतीजों को लेकर पार्टी आश्वस्त है. बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने सवालों का जवाब भले ही अमित शाह से दिलवाया हो, लेकिन उसके बाद से लगातार यही जताने की कोशिश कर रहे हैं कि छुट्टी तो वो अब भी नहीं लेने वाले, लेकिन 23 मई के बाद की तैयारी के लिए मेडिटेशन ब्रेक ले रहे हैं. केदारनाथ की गुफा में मोदी का मेडिटेशन विपक्ष को फूटी आंख नहीं सुहाया, लेकिन मजबूरी ये कि कहे तो क्या कहे.
मोदी के केदारनाथ में मेडिटेशन के खिलाफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस चुनाव आयोग गयी भी तो शिकायत मीडिया से दर्ज करा पायी. ममता बनर्जी की शिकायत है कि प्रधानमंत्री मोदी की केदारनाथ यात्रा...
Loksabha Election results 2019 के Exit Poll 2019 के लिए मीडिया को वोटिंग खत्म हो जाने का इंतजार रहा. नेताओं का Exit Poll पहले ही शुरू हो गया. Exit Poll में जो बातें मीडिया और सर्वे एजेंसियां लोगों से पूछ कर बताती हैं, नेताओं ने इसे अपने हाव भाव से बताना पहले ही शुरू कर दिया - सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों एक दूसरे को टक्कर देने लगे. वैसे तो देश की नजर टीवी चैनलों पर टिकी है, जो लोकसभा चुनाव नतीजों का पूर्वानुमान एग्जिट पोल के जरिए बताने वाले हैं.
बीजेपी की तरह पूरे विपक्ष को एक साथ प्रेस कांफ्रेंस का मौका नहीं बन पाया तो मुलाकातों का सिलसिला चला कर मैसेज देने की कोशिश की गयी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केदारनाथ पहुंच कर अपने समर्थकों को खास संदेश देने की कोशिश कर रहे थे, तो चंद्रबाबू नायडू की ताबड़तोड़ मुलाकातें मीडिया का ध्यान खींच रही हैं. लब्बोलुआब यही है कि सत्ता पक्ष निश्चिंतता के प्रदर्शन से आश्वस्ति का भाव प्रकट करना चाहता है तो विपक्ष ये जताने की कि वे मैदान से बाहर तो बिलकुल नहीं है - ये नेताओं का एग्जिट पोल ही तो है.
ये छुट्टी नहीं, ब्रेक है!
वोटिंग के पहले कत्ल की रात होती है तो नतीजे आने के पूर्व कर्मों के फल का इंतजार रहता है. बीजेपी नेतृत्व ने चुनाव प्रचार के खत्म होने के बाद प्रेस कांफ्रेंस कर लोगों को समझाने की कोशिश की कि नतीजों को लेकर पार्टी आश्वस्त है. बीजेपी की प्रेस कांफ्रेंस में प्रधानमंत्री मोदी ने सवालों का जवाब भले ही अमित शाह से दिलवाया हो, लेकिन उसके बाद से लगातार यही जताने की कोशिश कर रहे हैं कि छुट्टी तो वो अब भी नहीं लेने वाले, लेकिन 23 मई के बाद की तैयारी के लिए मेडिटेशन ब्रेक ले रहे हैं. केदारनाथ की गुफा में मोदी का मेडिटेशन विपक्ष को फूटी आंख नहीं सुहाया, लेकिन मजबूरी ये कि कहे तो क्या कहे.
मोदी के केदारनाथ में मेडिटेशन के खिलाफ ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस चुनाव आयोग गयी भी तो शिकायत मीडिया से दर्ज करा पायी. ममता बनर्जी की शिकायत है कि प्रधानमंत्री मोदी की केदारनाथ यात्रा को मीडिया ने लगातार कवरेज दी है. साफ है ममता बनर्जी को मोदी की केदारनाथ यात्रा से शिकायत नहीं है - और इसलिए भी नहीं क्योंकि कर्नाटक चुनाव के बाद राहुल गांधी की कैलास मानसरोवर यात्रा को लेकर भी ममता बनर्जी या टीएमसी ने कोई आपत्ति नहीं व्यक्त की थी.
ममता बनर्जी को शिकायत है मोदी की केदारनाथ यात्रा को मिली मीडिया कवरेज से - लेकिन मीडिया कवरेज तो ममता बनर्जी को भी उतनी ही मिली है. टीवी समाचारों की ऐसी कौन सी बुलेटिन रही होगी जिसमें पश्चिम बंगाल का जिक्र नहीं हुआ होगा. मीडिया कवरेज के मामले में ममता बनर्जी को शिकायत नहीं बिलकुल नहीं होनी चाहिये. अब पश्चिम बंगाल में हिंसा का फुटेज मिलता है और केदारनाथ की गुफा में मेडिटेशन का तो इसमें मीडिया का क्या कसूर. कवरेज तो बराबर मिल रही है. ममता बनर्जी को ऐसा क्यों लगता है कि वो कहीं पेंटिंग बना रही होतीं या एकांत में कहीं बैठ कर चाय की चुस्की ले रही होतीं तो मीडिया में वो नहीं छायी रहती हैं.
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का एग्जिट पोल है कि NDA को 300 से ज्यादा सीटें मिल रही हैं. अगर अमित शाह ये दावा कर रहे हैं तो इसमें गलत क्या है - चूंकि वो पार्टी हैं और कार्यकर्ताओं के उत्साह के साथ उन्हें अपने समर्थकों और वोटर की उम्मीद बनाये रखनी है. वैसे भी मीडिया का एग्जिट पोल भी तो नतीजों से मेल खाता हो ऐसा विरले ही होता है.
प्रधानमंत्री मोदी संदेश तो यही देना चाह रहे हैं कि वो कर्म कर चुके हैं. 23 मई को मिलने जा रहे फल का इंतजार है और उसके बाद मोर्चे पर भिड़ने के लिए वो खुद को रिचार्ज कर रहे हैं - ऐन उसी वक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू और तेलंगाना के सीएम के. चंद्रशेखर राव अपने अपने हिसाब से एक्टिव हैं - ये जताने के लिए सत्ता पक्ष के लिए विपक्ष ने कोई खुला मैदान नहीं छोड़ा है.
मैदान-ए-जंग में आखिरी मौका
प्रधानमंत्री मोदी केदारनाथ की गुफा पहुंचने के बाद सत्ता पक्ष की नहीं विपक्ष के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रहे हैं. 24 घंटे में चंद्रबाबू नायडू विपक्षी खेमे के ज्यादातर दिग्गजों से मुलाकात कर चुके हैं. कइयों से तो एक बार से ज्यादा भी मिल चुके हैं या संपर्क बनाये हुए हैं.
ऐसा भी नहीं है कि अकेले चंद्रबाबू नायडू ही विपक्ष को एकजुट करने को लेकर इतने तत्पर हैं. नाडयू के राजनीतिक विरोधी केसीआर और यूपीए नेता सोनिया गांधी भी अपने तरीके से विपक्ष को साधने में जुटी हुई हैं. एनसीपी नेता शरद पवार और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा भी इन कोशिशों में अहम रोल निभा रहे हैं.
मुश्किल ये है कि विपक्ष की कवायद में रोड़े खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. एक तरफ चंद्रबाबू नायडू नतीजों से पहले विपक्ष की बैठक बुलाने का प्रयास कर रहे हैं तो दूसरी तरफ शरद पवार का बयान आता है कि 23 मई से पहले ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला है. खास बात ये है कि सोनिया गांधी ने भी विपक्ष के 21 दलों की मीटिंग 23 मई को ही बुलायी है. नायडू की कोशिश है कि विपक्ष की एक मीटिंग नतीजे आने से पहले हो जाती. पहले ये मीटिंग 21 मई को होनी थी - लेकिन ममता बनर्जी की मंजूरी न मिलने से अधर में लटक गयी. ममता से इस मीटिंग के लिए मिलने से पहले नायडू दिल्ली में राहुल गांधी से मिल कर उनका मन टटोलने की भी कोशिश किये थे.
विपक्ष की एक मुश्किल जो कांग्रेस की तरफ से खत्म होती दिख रही थी, वो फिर से सजीव हो चुकी है. पहले कांग्रेस ने साफ करने की कोशिश की थी प्रधानमंत्री पद पर उसकी कोई दावेदारी नहीं होगी, लेकिन अब आंशिक भूल सुधार करते हुए उसकी ओर से नया बयान आ गया है. कांग्रेस महासचिव गुलाम नबी आजाद का संपादित बयान है, 'कांग्रेस प्रधानमंत्री पद की दावेदारी की इच्छुक नहीं है या फिर कांग्रेस पीएम पद पर दावा पेश नहीं करेगी, ये सच नहीं है. जाहिर सी बात है कि कांग्रेस ही देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है - और अगर हमें 5 साल तक सरकार चलानी है तो सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी को ही इसका मौका मिलना चाहिए.'
मतलब मान कर चलना होगा कि अब विपक्ष में सिर्फ डिप्टी पीएम के पद पर एक दावेदार है, जबकि प्रधानमंत्री पद का झगड़ा नहीं सुलझा है. विपक्ष की 21 तारीख को मीटिंग न हो पाने में सबसे बड़ी बाधा भी यही लगती है. वैसे भी कौन कितने पानी में है ये जानने के बाद ही दावेदारी पेश करेगा या पीछे हटने का फैसला करेगा.
नायडू ने प्रधानमंत्री पद के दावेंदारों राहुल गांधी, ममता बनर्जी और मायावती के अलावा अखिलेश यादव से भी मीटिंग की है. टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू की जिन नेताओं से अब तक मुलाकात हो चुकी है उनमें कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, सीपीआई नेताओं सुधाकर रेड्डी और डी राजा और अरविंद केजरीवाल शामिल हैं. नायडू के सोनिया गांधी के संपर्क में होने की बात बतायी गयी है और जल्द ही दोनों की मुलाकात हो भी सकती है.
जिस तरह प्रधानमंत्री पद पर दावेदारी जारी है, उसी तरह किंगमेकर की भूमिका निभा रहे नेताओं में भी प्रतियोगिता सी चल रही है. इसमें सोनिया गांधी, चंद्रबाबू नायडू और केसीआर फ्रंट पर हैं तो शरद पवार और एचडी देवगौड़ा फिलहाल पर्दे के पीछे सक्रिय हैं. सोनिया गांधी को 10 साल यूपीए को एकजुट रखने और सरकार चलाने का अनुभव है तो नायडू को भी संयुक्त मोर्चा और पुराने एनडीए में काम करने का एक्सपीरियंस है. 1996 में नायडू ने सीपीएम के वरिष्ठ नेता हरकिशन सिंह सुरजीत के साथ संयुक्त मोर्चा के गठन में अहम रोल निभाया था तो 2004 तक चली एनडीए की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के साथ भी सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं.
विपक्ष में केसीआर और अरविंद केजरीवाल अलग भूमिकाओं की तलाश में हैं. केसीआर ने तो डिप्टी पीएम की पोस्ट पर दावेदारी पेश भी कर दी है, लेकिन केजरीवाल अपनी हत्या का आरोप लगाकर बीजेपी को घेर रहे हैं. समझाने की कोशिश ये है कि सिर्फ राहुल गांधी और ममता बनर्जी ही नहीं, अरविंद केजरीवाल भी प्रधानमंत्री मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं - ये भी दर्ज हो.
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