देश में राजनीति के ऐतबार से दो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में राजनीतिक हलचल दिखाई पड़ रही है. दोनों ही राज्यों में वर्तमान समय में एनडीए का कब्जा है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुखिया हैं. तो बिहार में जेडीयू के नीतीश कुमार. हालांकि दोनों ही राज्यों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरूआती महीनों में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. जबकि बिहार में अभी हाल ही में चुनाव संपन्न हुआ है. बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहां सब कुछ ठीक नज़र नहीं आ रहा है. पार्टी के संगठन में बड़े ही मतभेद नज़र आ रहे हैं. हालांकि पूरा मामला खुलकर सामने नहीं आ पाया है, मगर अलग अलग तरह की चर्चाओं से बाजार गर्म नज़र आ रहा है. कयासों, अटकलों और संभावनाओं का दौर जारी है.
कोई उत्तर प्रदेश के मुखिया की कुर्सी को खतरे में बता रहा है तो कोई डिप्टी सीएम के पद पर विराजमान केशव प्रसाद मौर्य की सीट पर नए नवेले नेता एके शर्मा को विराजमान किए दे रहे हैं. किसी का अनुमान है कि राजनाथ सिंह को केंद्र से उत्तर प्रदेश और योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश से केंद्र में भेजने की बंपर तैयारी हो रही है. तो कोई किसी भी तरह के बदलाव को सिरे से नकार दे रहा है. कोई मुख्यमंत्री से विधायकों के रूठने की दास्तान कह रहा है. तो कोई मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल का दावा कर रहा है. बैठकों का दौर दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक जारी है.
क्या बदलाव होगा? कब होगा और किस हद तक सरकार में बदलाव होगा? यह बात किसी को भी नहीं मालूम है. यहां तक की उत्तर प्रदेश में बैठे भाजपा के शीर्ष के नेता एवं दिग्गज कद्दावर नेताओं को भी कुछ नहीं मालूम है कि होने क्या वाला है. मीडिया...
देश में राजनीति के ऐतबार से दो सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और बिहार में राजनीतिक हलचल दिखाई पड़ रही है. दोनों ही राज्यों में वर्तमान समय में एनडीए का कब्जा है. उत्तर प्रदेश में भाजपा के योगी आदित्यनाथ मुखिया हैं. तो बिहार में जेडीयू के नीतीश कुमार. हालांकि दोनों ही राज्यों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी है. उत्तर प्रदेश में अगले साल के शुरूआती महीनों में ही विधानसभा के चुनाव होने हैं. जबकि बिहार में अभी हाल ही में चुनाव संपन्न हुआ है. बात करें उत्तर प्रदेश की तो यहां सब कुछ ठीक नज़र नहीं आ रहा है. पार्टी के संगठन में बड़े ही मतभेद नज़र आ रहे हैं. हालांकि पूरा मामला खुलकर सामने नहीं आ पाया है, मगर अलग अलग तरह की चर्चाओं से बाजार गर्म नज़र आ रहा है. कयासों, अटकलों और संभावनाओं का दौर जारी है.
कोई उत्तर प्रदेश के मुखिया की कुर्सी को खतरे में बता रहा है तो कोई डिप्टी सीएम के पद पर विराजमान केशव प्रसाद मौर्य की सीट पर नए नवेले नेता एके शर्मा को विराजमान किए दे रहे हैं. किसी का अनुमान है कि राजनाथ सिंह को केंद्र से उत्तर प्रदेश और योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश से केंद्र में भेजने की बंपर तैयारी हो रही है. तो कोई किसी भी तरह के बदलाव को सिरे से नकार दे रहा है. कोई मुख्यमंत्री से विधायकों के रूठने की दास्तान कह रहा है. तो कोई मंत्रिमंडल में बड़े फेरबदल का दावा कर रहा है. बैठकों का दौर दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ तक जारी है.
क्या बदलाव होगा? कब होगा और किस हद तक सरकार में बदलाव होगा? यह बात किसी को भी नहीं मालूम है. यहां तक की उत्तर प्रदेश में बैठे भाजपा के शीर्ष के नेता एवं दिग्गज कद्दावर नेताओं को भी कुछ नहीं मालूम है कि होने क्या वाला है. मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो भाजपा में अंदरूनी कलह खुलकर सामने आने लगी है. शीर्ष नेतृत्व किसी भी तरह का फैसला करने से पहले हज़ार अन्य फार्मूलों पर विचार कर लेना चाहता है क्योंकि भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश का आगामी विधानसभा चुनाव वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में पूरा असर पड़ेगा.
ऐसे में भाजपा किसी भी कीमत पर उत्तर प्रदेश को नहीं गंवाना चाहती है. खासतौर पर पश्चिम बंगाल का चुनाव हारने के बाद. भाजपा का शीर्ष नेतृत्व उत्तर प्रदेश में अंदरूनी सर्वे के साथ साथ सरकार में शामिल हर एक सिपाही से फीडबैक ले रहा है और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए उसकी रणनीति क्या होगी इस पर मंथन कर रहा है.
यानी कुल मिलाकर देखा जाए तो भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में यह वक्त काफी चुनौती से भरा हुआ है जहां उसे तमाम कार्यकर्ताओं एवं सरकार में शामिल लोगों के मतभेद एवं मनभेद को भुलाकर एक टीम के नेतृव्य में सभी को एक प्लेटफार्म पर लाना है और दमदारी के साथ विधानसभा चुनाव में कूदना है. भाजपा के लिए उत्तर प्रदेश में सबकुछ एक सिरे से ठीक करना तो चुनौती भरा कार्य है ही साथ ही भाजपा के लिए अब बिहार से भी बुरी खबर सामने आ गई है.
बिहार में भाजपा बड़ी पार्टी ज़रूर है लेकिन सरकार में हिस्सा है. वैसे तो गठबंधन का नाम ही बुरा होता है क्योंकि कब कौन सी पार्टी दगा दे जाए और विरोधी खेमे में दाखिल हो जाए कोई भी भरोसा नहीं होता है. खासतौर पर जब कोई छोटा दल गठबंधन का हिस्सा हो और विरोधी ताकतवर हो. बिहार में एनडीए की 128 सीटों के साथ सरकार है जिसमें भाजपा, जेडीयू, हम और वीआईपी शामिल हैं.
वहीं विरोधी खेमे यानी की महागठबंधन के पास विधानसभा की कुल 110 सीटें हैं और तेजस्वी यादव हर दांव खेल रहे हैं. एनडीए की सरकार को गिराने का. एनडीए में मुकेश साहनी की वीआईपी और जीतन राम मांझी की हम के पास कुल 4-4 सीटें हैं और आशंका जताई जा रही है कि मुकेश साहनी और जीतन राम मांझी दोनों ही नीतीश कुमार से नाराज़ चल रहे हैं.
अगर मुकेश साहनी और जीतन राम मांझी ने सरकार का साथ छोड़ दिया तो महागठबंधन 110 सीट से 118 सीटों पर पहुंच जाएगा. साथ ही असदुद्दीन ओवैसी ने अगर 5 सीटों का समर्थन तेजस्वी यादव को दे दिया तो राजद महागठबंधन सरकार बना लेगा और बैठे बैठे एनडीए की सरकार ढह जाएगी. बिहार के राजनीतिक दलों में उठापटक कोई नई बात नहीं है.
बिहार के दोनों प्रमुख क्षेत्रीय दल राजद और जेडीयू भी मिलकर सरकार बना चुके हैं. ऐसे में कौन सा दल कब किसके साथ घुलमिल जाए कह पाना मुश्किल होता है. वर्तमान समय में मांझी और मुकेश साहनी दोनों के ही तेवर बदले से नज़र आ रहे हैं. दोनों ही नेताओं की अलग से बैठक भी हो चुकी है. जीतन राम मांझी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कसते हुए ट्वीट किया था कि जिस तरह वैक्सीन के सर्टिफिकेट पर प्रधानमंत्री की तस्वीर है, वैसे ही मृत्यु प्रमाण पत्र पर भी प्रधानमंत्री की तस्वीर होनी चाहिए.
मुकेश साहनी ने भी नीतीश कुमार को घेरते हुए पप्पू यादव की गिरफ्तारी पर सवाल खड़े किए थे. दोनों प्रमुख गठबंधन नेताओं का सीधा मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री को घेरना बताता है कि सब कुछ ठीक नहीं है. जीतनराम मांझी हों या फिर मुकेश साहनी दोनों ही सरकार का न सिर्फ हिस्सा हैं बल्कि सरकार का मजबूत पिलर हैं जिन पर सरकार टिकी हुई है.
मुखिया को ऐसे साथी का साथ लेकर ही चलना पड़ता है और हर समय उनकी खुशियों का ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि वह ये बात अच्छी तरह से जानते हैं कि इनका साथ छूटा तो कुर्सी को खतरा हो जाएगा. नीतीश कुमार और उनकी पार्टी दावा कर रही है कि सब कुछ ठीक है. लेकिन इन नेताओं के मन में क्या चल रहा है इसका आकलन कर पाना मुश्किल है.
तेजस्वी यादव ज़रूर चाह रहे होंगे कि वह किसी भी तरह मांझी और मुकेश साहनी को अपने पाले में घसीट लें मगर यह इतना भी आसान नहीं है. हालांकि राजनीति में कभी भी कुछ भी मुश्किल भी नहीं होता है. नीतीश कुमार हों या फिर भाजपा का नेतृव्य इन्हें छोटे दलों का भरोसा खोना महंगा पड़ सकता है यह बात मुकेश साहनी और मांझी दोनों ही नेता बखूबी जानते हैं इसलिए उनकी महत्वकांछाए भी बढ़ी हुई हैं.
वह क्या चाहते हैं यह सिर्फ वह ही जान सकते हैं लेकिन हालिया बयानों ने इतना तो ज़रूर बतला दिया है कि बिहार में राजनीतिक अस्थिरता कभी भी खुल सकती है फिर समीकरण के बदलते ज़रा सा भी देर नहीं लगने वाली है.
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