'उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) में विपक्षी तौर-तरीक़ों को देखकर तो ये लग रहा है कि, सभी गैर भाजपाई दल भाजपा की बी टीम की तरह योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के इंतेजाम मे लग गये हैं.' एक राजनीतिक विश्लेषक का ये जुमला व्यंग्य ही नहीं कई ऐसी दलीलें भी पेश कर रहा है. सियासी गणित और केमिस्ट्री पर गौर कीजिए तो लगेगा कि यूपी में भाजपा को चुनावी बेला में कामयाब करने के लिए तमाम विपक्षी दल नये-नये तरीक़े अपना रहे हैं. कुछ ऐलान और कुछ सुगबुगाहट बता रही है कि ताकतवर जनाधार वाली भाजपा के आगे कमजोर विपक्ष बिखर कर और मिल कर..या प्रकट होकर भाजपा का फायदा कराने पर आमादा है. इधर करीब पांच वर्षों के दौरान भाजपा को घेरने के लिए सपा-बसपा गठबंधन (SP-BSP Alliance) से लेकर कांग्रेस-सपा गठबंधन (Congress-SP Alliance) के प्रयोग विफल हो चुके हैं. जिन्हें दोहराया जाना मुश्किल है.
बसपा के साथ एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी के बीच किसी प्रकार के गठबंधन की सुगबुगाहट यदि हकीकत बन कर दिखाई दी तो ये हकीकत कई मायनों में भाजपा को फायदा पहुंचानेगी जिससे कि भाजपा विरोधी मुस्लिम वोट ऐसे संभावित गठबंधन, कांग्रेस, सपा..इत्यादि में विभाजित हो जायेगा.पिछले विधानसभा चुनाव में बहन मायावती द्वारा बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने से नाराज दलित वोट बैंक भी बसपा की झोली से सरक गया था.
ओवेसी और मायावती के साथ आने पर वो रहा-सहा दलित वर्ग भी भाजपा का दामन थाम लेगा जो मोदी वेब में भी बसपा में तटस्थ रहा था. अब आईये यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा की बात की जाए. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर काबिज होने के बाद...
'उत्तर प्रदेश (ttar Pradesh) में विपक्षी तौर-तरीक़ों को देखकर तो ये लग रहा है कि, सभी गैर भाजपाई दल भाजपा की बी टीम की तरह योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के इंतेजाम मे लग गये हैं.' एक राजनीतिक विश्लेषक का ये जुमला व्यंग्य ही नहीं कई ऐसी दलीलें भी पेश कर रहा है. सियासी गणित और केमिस्ट्री पर गौर कीजिए तो लगेगा कि यूपी में भाजपा को चुनावी बेला में कामयाब करने के लिए तमाम विपक्षी दल नये-नये तरीक़े अपना रहे हैं. कुछ ऐलान और कुछ सुगबुगाहट बता रही है कि ताकतवर जनाधार वाली भाजपा के आगे कमजोर विपक्ष बिखर कर और मिल कर..या प्रकट होकर भाजपा का फायदा कराने पर आमादा है. इधर करीब पांच वर्षों के दौरान भाजपा को घेरने के लिए सपा-बसपा गठबंधन (SP-BSP Alliance) से लेकर कांग्रेस-सपा गठबंधन (Congress-SP Alliance) के प्रयोग विफल हो चुके हैं. जिन्हें दोहराया जाना मुश्किल है.
बसपा के साथ एआईएमआईएम चीफ असदुद्दीन ओवेसी के बीच किसी प्रकार के गठबंधन की सुगबुगाहट यदि हकीकत बन कर दिखाई दी तो ये हकीकत कई मायनों में भाजपा को फायदा पहुंचानेगी जिससे कि भाजपा विरोधी मुस्लिम वोट ऐसे संभावित गठबंधन, कांग्रेस, सपा..इत्यादि में विभाजित हो जायेगा.पिछले विधानसभा चुनाव में बहन मायावती द्वारा बड़ी संख्या में मुस्लिम प्रत्याशियों को मैदान में उतारने से नाराज दलित वोट बैंक भी बसपा की झोली से सरक गया था.
ओवेसी और मायावती के साथ आने पर वो रहा-सहा दलित वर्ग भी भाजपा का दामन थाम लेगा जो मोदी वेब में भी बसपा में तटस्थ रहा था. अब आईये यूपी के सबसे बड़े विपक्षी दल सपा की बात की जाए. समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर काबिज होने के बाद चुनाव हारने और विपक्ष की भूमिका में आने के बाद अखिलेश यादव ने अपना जनाधार बढ़ाने के लिए क्या-क्या किया?
इधर 6-7 वर्ष के दरम्यान राजनीतिक दुनिया में ना जाने क्या कुछ हो गया पर आखिलेश यादव अपने टूटे संगठन को पुन: मजबूत करने के लिए अपने चाचा शिवपाल यादव से समझौता तक नहीं कर पाये. जबकि मजबूत चट्टान जैसी भाजपा के सामने आने के लिए अखिलेश यादव ने कभी अपनी धुर विरोधी बसपा से दोस्ती कर ली तो कभी कांग्रेस से हाथ मिलाकर अपनी नैया को और भी डुबो दिया.
लेकिन वो अपने चाचा और कभी सपा का संगठन मजबूत करने वाले शिवपाल यादव चाचा के साथ समझौता नहीं कर सके. पिछले कई सालों से चाचा-भतीजे के झगड़े और फिर दोस्ती के संकेत.. दोनों मे फिर नाराजगी.. फिर तकरार.. फिर मेलमिलाप.. फिर कटुता.. थकी हुई किसी हिंदी फिल्मी की पटकथा में नायक-नायिका के इजहार, इकरार और तकरार की खबरों में सपा की विपक्षी भूमिका सिमट सी गई.
एक बार फिर अपने भतीजे से नाराज होकर प्रसपा अध्यक्ष शिवपाल ये बात साबित कर चुके हैं कि वो भले ही जीत ना पायें लेकिन वो सपा का खेल बिगाड़ने में सक्षम हैं. घायल विपक्ष के इन तमाम पेचोख़म के बीच यूपी की सियासत में एक ऐसा विपक्षी दल कूद पड़ा है जिसका ना सूत और और ना कपास. फिर भी आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यूपी में चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी.
सपा, बसपा और कांग्रेस की संभावित 'एकला चलो' नीति जहां भाजपा विरोधी वोटों की खीचातानी का संघर्ष कर ही रही थी कि आम आदमी पार्टी ने एंट्री मारकर बिखराव में अपनी भी हिस्सेदारी कर दी. 2022 के शुरू मे ही उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं, 2020 खत्म होने को है. चंद दिनों के बाद शुरू हो रहे चुनावी वर्ष 2021 में सियासी रण का बिगुल फुंकने को है.
यहां विपक्ष का बिखराव और एकजुटता दोनों ही ये यूपी में भाजपा को दोबारा सत्ता सौंपने वाले कदम उठाते दिख रहे हैं. यूपी की गुड गवर्नेंस ही नहीं बल्कि विपक्षी रणनीति भी योगी को पुन: सत्ता की कुर्सी दिलाने के इंतेजाम मे अपनी मुख्य भूमिका निभायेगी. हाथरस कांड हो, मुजफ्फरनगर मे इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या हो, कोरोना काल के शुरुआती दौर में मजदूरों का पलायन हो या किसान आंदोलन हो, तमाम मुश्किलों से निकलकर योगी ने अपनी गुड गवर्नेंस, सख्त फैसलों और चुस्त-दुरुस्त सरकार से जनता का दिल जीत लिया है.
जब योगी मुख्यमंत्री बनाए गये थे तो लगा था कि एक योगी किस तरह इतने बड़े प्रदेश की बागडोर संभाल कर इस बीमारू राज्य को स्वस्थ बनाएंगे? लेकिन अपेक्षाओं से अधिक बेहतर सरकार चलाकर योगी आदित्यनाथ ने रामायण के एक संवाद को सिद्ध कर दिया. राम मंदिर फैसले पर उत्तर प्रदेश में शांति, भाईचारे और सौहार्द का बना रहना यूपी सरकार की ऐतिहासिक सफलता रही.
कोरोना महामारी से लड़ने और आपदा में भी अवसर पैदा करके योगी सरकार ने जो नजीर पेश की उसकी तारीफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी की. एमएसएम ई, हो फिल्म सिटी या खाली पदों पर भर्ती का सिलसिला हो, रोजगार के तमाम सफल प्रयासों के साथ कानून व्यवस्था को बेहतर करने में यूपी हुकुमत के कड़े फैसले प्रदेश की जनता को खूब रिझा रहे हैं.
वैभवशाली देश के सांस्कृतिक विकास को बढ़ावा देने के क्रम मे ही कुंभ मेले का ऐतिहासिक सफल कार्यक्रम से लेकर अयोध्या में दीपोत्सव और काशी में देव दीपावली जैसे पवित्र आयोजनों से भी योगी सरकार में निखार आया.
जनता योगी की गुड गवर्नेंस से प्रभावित होकर इन्हें को दुबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठायेगी या नहीं ये तो समय बताएगा पर विपक्षी तौर तरीके तो यही बता रहे हैं कि यूपी का हर गैर भाजपा दल भाजपा की बी टीम है, और सब के सब योगी आदित्यनाथ को फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपना चाहते हैं.
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